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साइकोलाजः प्रकृति से दूर पले-बड़े बच्चों में होती है यह बीमारी

अमेरिका मनोवैज्ञानिक रिचर्ड लव ने बताया प्रकृति से दूर पले-बड़े बच्चों के व्यक्तित्व में कम होता है आत्मविश्वास, जिद्दीपन और अड़ियल रवैया उन्हें बनाता है एंटीसोशल या दब्बू.

मेंटल हेल्थ के लिए जरूरी डोज देती है प्रकृति
मेंटल हेल्थ के लिए जरूरी डोज देती है प्रकृति
अपडेटेड 3 मई , 2020

यू एन क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस में 17 साल की एक स्वीडिश बच्ची ग्रेटा थनबर्ग का नेताओं पर झल्लाना और चिल्लाना तो याद ही होगा. भरी कॉन्फ्रेंस में ग्रेटा ने चीखते हुए कहा, ''हमारे बचपन और सपनों को छीनने की आपकी हिम्मत कैसे हुई? युवाओं को समझ में आ रहा है कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर आपने हमें छला, अगर आपने कुछ नहीं किया तो युवा पीढ़ी आपको माफ नहीं करेगी. मुझे इस वक्त यहां नहीं स्कूल में होना चाहिए था. पर आपने हमारे सपने और बचपन को छीन लिया. लोग मर रहे हैं, पूरा इको सिस्टम तहस-नहस हो गया है. आप केवल पैसे और आर्थिक ग्रोथ की बात कर रहे हैं.'' ग्रेटा के इस भाषण ने उसे दुनियाभर में उसे मशहूर कर दिया. पर्यवारण को बचाने के लिए सबसे कम उम्र की इस बच्ची ने लोगों को झकझोर कर रख दिया.

वैसे तो पूरी दुनिया में हजारों आंदोलन पर्यावरण को बचाने के लिए चल रहे हैं. पर्यावरणविद् चेतावनी पर चेतावनी दे रहे हैं. लेकिन ग्रेटा की झल्लाहट ने हमें अपने बच्चों के सामने गुनहगार की तरह खड़ा कर दिया. शर्माशार कर दिया, क्योंकि हमने ही तो प्रकृति का इतना दोहन किया कि अब उसमें जगह जगह पैबंद नजर आने लगे हैं. रिसते हुए जख्मों की तरह प्रदूषण फूट-फूट कर निकल रहा है.

पर जैसा हमने बोया, काट रहे हैं. एक-एक सांस को मोहताज, बीमारियों की गठरी हमारे सिर पर लदी हुई है. फिजिकल हेल्थ ही नहीं मानसिक बीमारियां हमको घेर चुकी हैं. प्रदूषित धुआं, शोर, दूषित पानी के बीच अब दुनिया त्राहि-त्राहि कर रही है.

प्रकृति को दिए घावों की सजा पूरी मानव जाति को मिल रही है. लेकिन उन बच्चों का क्या जिन्हें हम विरासत में जहरीले हवा-पानी दे रहे हैं? वाकई ग्रेटा हमने तुम जैसे न जाने कितने करोड़ बच्चों का जीवन बर्बाद कर दिया. लेकिन प्रकृति जड़ नहीं चेतन है. सहते-सहते वह भी तो अब भर चुकी है.

विज्ञान की बड़ी बातें करने वाली दुनिया को एक छोटे से वायरस ने कैद कर दिया. प्रकृति मुस्कुरा रही है. वह आह्ललादित है. चिड़ियां, जीव-जंतु सब अब सड़कों पर दिख रहे हैं. आसमान नीला है. हवा इतनी साफ कि नाक के रास्ते जब श्वांसनली से होते हुए पेट तक पहुंचती है तो दिनभर का तनाव छूमंतर हो जाता है.

देर रात तक चिड़ियां न जाने किस गुफ्तगूं में व्यस्त हैं. भोर होते ही चहचहाना फिर शुरू कर देती हैं. मानों कह रही हों. ईश्वर इन क्रूर इंसानों को अब कभी बाहर मत आने देना.

2004 में अमेरिकी साइकोलोजिस्ट रिचर्च लव (Richard Louv)की एक किताब आई थी, 'लास्ट चाइल्ड इन दा वुड'.इस किताब ने प्रकृति और बच्चों के जुड़ाव को पहली बार तथ्यों के साथ सामने लाया था.

लेखन प्रकृति से दूर पलने वाले बच्चों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कर निष्कर्ष निकाले थे. रिचर्ड ने ही पहले वे व्यक्ति थे जिन्होंने नेचर डिफिसिट (nature-deficit disorder) डिसआर्डर के बारे में सबको बताया. रिचर्ड ने बताया कि बच्चों की पैरेंटिंग में जितना महत्व मां-बाप का होता है उससे कहीं ज्यादा महत्व प्रकृति का होता है.

व्यक्तित्व निर्माण में अहम भूमिका निभाती है प्रकृति

व्यक्तित्व विकास में प्रकृति का सानिध्य एक अहम भूमिका निभाता है. प्रकृति एक मास्टर की तरह हमें बहुत कुछ सिखाता है. वह हमारे भीतर नैसर्गिक गुणों का विकास करती है.

जैसे चिड़ियां हमें हमेशा चहचहाना सिखाती हैं. हवा हमें बेफिक्र होकर बिना किसी भेदभाव बहना सिखाती है. नदी सिखाती है कि बहते रहने में ही ताजगी है. ठहरे नहीं कि कई तरह की गंदगी घुलना शुरू हो जाएगी. पहाड़ दृढ़ता सिखाते हैं. सैकड़ों शोध बताते हैं कि प्रकृति का साथ चिंता-तनाव को खत्म कर देता है.

रिचर्ड और उनकी टीम ने एक सर्वे किया और पाया कि जो बच्चे प्रकृति से दूर रहे उनमें जिद्दीपन, एकाग्रता की कमी, हिंसा, चिंता, तनाव जैसे गुण होते हैं. आगे चलकर इन बच्चों में एंटीसोशल व्यक्तित्व के विकास की संभावना बढ़ जाती है. दूसरी तरफ ऐसे बच्चे दब्बू स्वाभाव के भी होते हैं. जबकि प्रकृति के साथ पले-बढ़े बच्चों में समस्या सुलझाने की क्षमता, एकाग्रता (FOCOUSED), साहस (BRAVE),दया, सहानुभूति (SYMPATHY), संवेदना (EMPATHY), आत्मविश्वास जैसे गुण होते हैं. नार्थ अमेरिका में चिल्ड्रन ऐंड नेचर नेटवर्क नाम से एक अभियान 2006 से चल रहा है. रिचर्ड कहते हैं...लगता है लोगों तक मेरी बात पहुंच गई है. वह दिन दूर नहीं जब लोग बच्चों को वीडियोगेम या किसी मशीन से नहीं बल्कि प्रकृति के बीच खेलना सिखाएंगे. दुनिया सुधरेगी, उसे सुधरना ही होगा.

ग्रेटा थनबर्ग की चीख भी इस बात का सुबूत है कि बड़े अगर नहीं सुधरे तो अब बच्चे कमान संभालेंगे. वे अपना बचपन और अपने सपने छीनने नहीं देंगे. इंग्लिश कवि वर्ड्सवर्थ की यह लाइन 'चाइल्ड इज द फादर ऑफ मैन' बिल्कुल सही है. लालच और महत्वकांक्षाओं से भरे बड़ों को अब बच्चे ही रास्ते पर लाएंगे.

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