उत्तर प्रदेश सरकार ने निजी क्षेत्र की प्रयोगशालाओं द्वारा कोरोना संक्रमण की एकल चरण जांच के लिए अधिकतम फीस 2,500 रुपये निर्धारित की है. मांगे जाने पर इन प्रयोगशालाओं को गुणवत्ता ऑडिट के लिए नमूने चिकित्सा महाविद्यालयों तथा रेफरल प्रयोगशालाओं को उपलब्ध कराना होगा. अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद ने इस आशय का शासनादेश गुरुवार (18 जून) को जारी किया.
शासनादेश में इस बात का जिक्र है कि निजी प्रयोगशालाएं स्वयं एकत्र किए गए नमूने की एकल चरण जांच के लिए अधिकतम 2,500 रुपये ले सकेंगी. वहीं, सरकारी या निजी चिकित्सालयों द्वारा निजी प्रयोगशालाओं को भेजे जाने वाले नमूने की जांच पर अधिकतम 2,000 रुपये लिए जा सकेंगे. इससे अधिक धनराशि लिए जाने पर एपीडेमिक डिजीज ऐक्ट तथा उत्तर प्रदेश महामारी कोविड-19 विनियमावली का उल्लंघन मानते हुए कार्यवाही की जाएगी. बता दें कि इससे पूर्व 23 अप्रैल को जारी शासनादेश में निजी प्रयोगशालाओं के लिए प्रथम चरण की जांच के लिए 1,500 रुपये तथा द्वितीय चरण की जांच के लिए अधिकतम 3,000 रुपये निर्धारित किया गया था.
उधर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए राज्य सरकार को कई सुझाव दिए हैं. साथ ही उन पर अमल करने के संदर्भ में सरकार को विचार करने और ब्लू प्रिंट बनाकर पेश करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि केवल उसी व्यक्ति को बाहर जाने की छूट हो, जो जांच में संक्रमित न पाया गया हो. कोर्ट ने सरकार से सिस्टमेटिक टेस्टिंग बढ़ाने को कहा है. प्रयागराज को मॉडल के रूप में लेकर वार्डवार काम से बाहर निकलने वाले प्रत्येक परिवार के व्यक्ति की जांच की जाए और पॉजिटिव पाए जाने पर परिवार को घर में या सेंटर में क्वारंटीन किया जाए. कोरोना जांच की यह व्यवस्था प्रत्येक पांच वार्ड पर की जाए. कोर्ट ने वार्डों में जांच मशीन स्थापित करने के लिए सहायक सॉलिसीटर जनरल से आइसीएमआर से जानकारी लेने को कहा है.
कोर्ट ने सिस्टमेटिक टेस्टिंग के लिए घर जाकर परिवार के एक व्यक्ति की जांच करने का सुझाव दिया है क्योंकि सेंटर में भीड़ से संक्रमण बढ़ने की आशंका है. कोर्ट ने कहा कि सरकार या प्राइवेट कंपनी से वेतन ले रहे लोग अपनी जांच के साथ आर्थिक रूप से कमजोर एक व्यक्ति की जांच का खर्च उठाएं. व्यापारी और उद्योगपति सरकार को आर्थिक सहायता दें और सरकार उन्हें टैक्स छूट दे. गरीबों की सरकार जांच कराए और उनके इलाज की व्यवस्था करे.
कोर्ट ने कहा कि प्रयागराज शहर में बाहर से आने वाले हर व्यक्ति की जांच की जाए. वार्डवार सूची तैयार की जाए तथा 15 दिन बाद दोबारा जांच हो. उसके बाद एक महीने बाद जांच की जाए. कोर्ट ने कहा कि सरकार सुझावों पर विचार करे और अमल में लाने के लिए ब्लू प्रिंट तैयार कर कार्यवाही करे. यदि प्रयागराज में प्रयोग सफल होता है तो इसे सभी जिलों में लागू किया जाए. यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा एवं न्यायमूर्ति अजित कुमार की खंडपीठ ने कोरोना पीड़ितों का इलाज कर रहे अस्पतालों और क्वारंटीन सेंटरों की सुविधाओं की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए 18 जून को दिया है.
इससे पहले कोर्ट ने सरकार से टेस्टिंग में खर्च आदि की जानकारी मांगी थी. अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कोर्ट को बताया कि एक व्यक्ति की जांच में ढाई हजार रुपये का खर्च आएगा. प्रदेश में मेडिकल टीमें अब तक 94,63,756 घरों में जांच के लिए पहुंच सकी हैं. वहीं 4,82,71,852 लोगों से संपर्क किया जा सका है. कोरोना पीड़ितों के इलाज और टेस्टिंग के लिए 1,865 अस्पतालों को चिह्नित किया गया है. 17.6 लाख मजदूरों के टेस्ट किए गए हैं, जिनमें 3,950 कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं.
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