रायगढ़ के गंगा नर्सिंग होम का बिजली का बिल जब अचानक कम आने लगा तो छत्तीसगढ़ विद्युत वितरण कंपनी के अधिकारियों का माथा ठनका. 23 दिसंबर, 2010 को सतर्कता विभाग के दल ने नर्सिंग होम पर छापा मारा तो पता चला कि बिजली के मीटर के पास जैमर लगा हुआ है इसलिए मीटर बंद है. विभाग ने नर्सिंग होम पर 1,96,000 का जुर्माना तो लगाया ही पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवाई. छत्तीसगढ़-जो अगले छह माह में कोरबा संयत्र शुरू हो जाने पर बिजली के मामले में सरप्लस राज्य बन जाएगा, देश के पहले जीरो पावर कट राज्य का अपना दर्जा कायम रख पाएगा, इसमें संदेह ही लगता है क्योंकि यहां अजब-गजब तरीकों से बिजली चोरी की घटनाएं दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही हैं. हाल ही में जैमर के जरिए बिजली चोरी के पकड़े गए आधा दर्जन मामलों ने तो अधिकारियों के होश उड़ा डाले हैं.
हालत यह है कि बिजली वितरण केंद्रों से उपभोक्ताओं तक सप्लाई के बीच ही एक-तिहाई से ज्यादा बिजली चोरी हो जाती है. कुछ स्थानों पर तो 60 से 65 फीसदी तक बिजली चोरी हो जाती है. इस पूरे नुक्सान का हिसाब लगाएं तो हर साल यह आंकड़ा 1,300 से 1,400 करोड़ रु. बैठता है. उस पर जैमर के रूप में बिजली वितरण कंपनी के सामने और भी बड़ा संकट खड़ा है. कारण, जैमर से बिजली चोरी को पकड़ना आसान नहीं है, यह बात विद्युत सतर्कता विभाग के अधिकारी भी मानते हैं. अधिकारियों के मुताबिक यह काम चुनौती भरा इसलिए होगा क्योंकि हरेक मीटर की निगरानी करनी पड़ेगी, जो व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है.
चोरी रोकने के लिए ही वितरण कंपनी ने राज्य के 95 फीसदी से ज्यादा इलेक्ट्रो मैकेनिकल मीटर बदल डाले. इन्हें खोलकर आसानी से बंद किया जा सकता था इसलिए विभाग ने इलेक्ट्रॉनिक मीटर का रास्ता निकाला. मगर यह भी कारगर साबित नहीं हो पाया. विभाग के पास ऐसे ढेरों मामले हैं जिनमें चुंबक और रिमोट के जरिए बिजली चोरी पकड़ी गई. सतर्कता विभाग के मुताबिक साल भर में अकेले दुर्ग जिले में ही इलेक्ट्रॉनिक मीटर में प्रतिरोधक लगाकर चोरी करने के 314 मामले पकड़े गए. राज्य में मीटर बाईपास करके बिजली चोरी करने के मामले भी कम नहीं हैं. बाईपास यानी मीटर को जोड़ने वाली तार से लाइन खींचकर बिजली चोरी, इससे मीटर घूमना बंद हो जाता है. पिछले एक साल में राज्य में विभाग ने मीटर बाईपास के 186 मामले पकड़े हैं.
कंपनी के अधिकारियों के मुताबिक राज्य के कुछ इलाके तो बिजली चोरों के लिए कुख्यात हो चुके हैं, खासकर रायगढ़, महासमुंद, कवर्धा और दुर्ग इलाका. दुर्ग के बेमेतरा, बलौदा इलाके में 50 फीसदी तक बिजली चोरी होती है. हालत यह है कि विभाग ने जब बिजली वितरण की फ्रेंचाइजी देने के लिए टेंडर निकाला तो कुछ केंद्रों के लिए तो एक आवेदन तक नहीं आया. महासमुंद जिले का बसना, सराईपाली, कवर्धा का पंडरिया, रायगढ़ जिले का डभरा, बरमकव्ला, जांजगीर जिले का सक्ती, ऐसे ही इलाके हैं जहां सतर्कता विभाग के कर्मचारियों को जाने के पहले सौ बार सोचना पड़ता है क्योंकि इन इलाकों में बिजली चोरी पकड़ने गए अधिकारियों पर कई बार हमले भी हो चुके हैं. वैसे ऑटोमेटिक मीटर रीडिंग सिस्टम लगाने से उद्योगों में चोरियां रुकी हैं. इसके लिए संयंत्रों में चिप लगाए गए हैं जिससे विभाग के कंट्रोल रूम को 24 घंटे खपत बढ़ने-घटने की जानकारी मिलती रहती है. लेकिन वितरण कंपनी के प्रबंध निदेशक सुबोध सिंह कहते हैं कि घरेलू उपभोक्ताओं की संख्या ज्यादा होने की वजह से ऑटोमेटिक सिस्टम लगाना संभव नहीं है.
इधर बिजली चोरों और अधिकारियों की मिलीभगत भी कंपनी के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है. इस बात से वितरण कंपनी के अधिकारी भी इनकार नहीं करते. जाहिर है, रिमोट से बिजली चोरी विभागीय लोगों के सहयोग के बिना संभव नहीं है क्योंकि ऐसा करने के लिए मीटर के अंदर एक चिप डाली जाती है और इलेक्ट्रॉनिक मीटर को विभाग के लोग ही खोल सकते हैं. कोई और इसे खोलने की कोशिश करेगा तो सील टूट जाएगी. अतिरिक्त मुख्य सर्तकता अधिकारी आर.बी. मिश्रा बताते हैं कि रायगढ़ जिले में जैमर के जरिए छह स्थानों पर बिजली चोरी पकड़ी गई. इन सभी जगह पर जीनस कंपनी के मीटर लगे थे. सतर्कता विभाग की जानकारी में यह भी है कि जिस व्यक्ति ने रायगढ़ इलाके में जैमर सप्लाई किए हैं वह पहले जीनस कंपनी में ही नौकरी करता था. मीटर खरीदी में भी घालमेल की शिकायतें अक्सर आती रही हैं. वैसे सरकार बिजली चोरी के मसले पर कुछ गंभीर जरूर दिख रही है. मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने पहली बार एक आइएएस अधिकारी सुबोध सिंह को वितरण कंपनी का प्रबंध निदेशक बनाया है. सुबोध की छवि ईमानदार अधिकारी की है और उन्होंने वितरण कंपनी की कमान संभालते ही बिजली चोरों के खिलाफ जोर-शोर से अभियान छेड़ दिया है. तभी तो 2009-10 के 1,478 मामलों की तुलना में 2010-11 में बिजली चोरी के 3,110 मामले पकडे़ गए. सुबोध सिंह बताते हैं कि साल भर में लाइन लॉस 4 फीसदी कम हुआ है और कोशिश इसे आर्दश स्थिति में लाने की है. उनकी सख्ती की वजह से हाल ही में बिलासपुर में जीनस कंपनी के 6,000 मीटर परीक्षण में फव्ल हो गए. 2005-06 में भी एमको कंपनी के 81,250 और जीनस कंपनी के 11,000 मीटरों को चुंबकीय परीक्षण में फव्ल हो जाने पर बिजली बोर्ड ने अस्वीकार कर दिया था. मगर बाद में तकनीकी विशेषज्ञ समिति बनाकर इन्हें पास कर दिया गया. बिजली अधिकारियों ने नियम विरुद्ध जाकर जीनस कंपनी को 25 करोड़ रु. का विस्तार ऑर्डर दे दिया है. अब लोक आयोग अफसरों के खिलाफ इस मामले की जांच कर रही है.
वैसे, ज्यादातर लोगों का मानना है कि बिजली चोरी पर अगर अंकुश लग जाता है तो बिजली दर सस्ती हो सकती है. राज्य विद्युत बोर्ड के पूर्व सदस्य, वितरण, शरदचंद का कहना है कि चोरी पर लगाम लगने पर दर में निश्चित रूप से फर्क पड़ेगा. मगर बिजली विभाग से उच्च पद से सेवानिवृत्त हुए एक अधिकारी की मानें तो जब तक राजनैतिक इच्छाशक्ति न हो तब तक चोरी पर लगाम लगाना संभव नहीं है.
सरकार की कमजोर वर्गों के लिए शुरू की गई निशुल्क एकल बत्ती कनेक्शन योजना भी भारी पड़ रही है. राज्य जब बना था तब करीब 6.5 लाख एकल बत्ती कनेक्शन थे जो बढ़कर 13.5 लाख हो गए हैं. एक बल्ब की पात्रता वाले इस कनेक्शन की आड़ में लोग ट्यूबलाइट से लेकर पंखा, टेलीविजन, कूलर सबकुछ चल रहे हैं. लेकिन यह सब जानते-बूझ्ते भी अधिकारियों के लिए इन्हें पकड़ना टेढ़ी खीर हैक्योंकि ऐसा करने पर वोट बैंक की राजनीति शुरू हो जाती है. गांवों में भी यही हाल है, रायगढ़ जिले में बिजली चोरी रोकने के लिए जब अभियान छेड़ा गया तो जनप्रतिनिधियों ने तत्कालीन अधीक्षण यंत्री सुभाष चंदा के कार्यालय के सामने धरना दे दिया, इसमें सभी पार्टियों के नेता शामिल थे. राज्य विद्युत मंडल कर्मचारी, अधिकारी समन्वय समिति के संयोजक पी.एन. सिंह कहते हैं कि सरकार को इसके लिए मजबूत इच्छाशक्तिदिखानी होगी.
बिजली चोर बिजली अधिकारियों से एक कदम आगे ही रहते हैं. चोरी रोकने के लिए विभाग जैसे ही नया रास्ता निकालता है, चोर हर बार इसकी काट ढूंढ निकालते हैं. चुंबक से मीटर बंद न हो इसके लिए बिजली विभाग ने कंपनियों को ऐसा मीटर बनाने को कहा जो चुंबक को पास ले जाते ही तेज घूमने लगे. मगर इसमें दिक्कत यह हुई कि धोखे से अगर छोटा चुंबक भी मीटर के पास चला जाता था तो वह तेज घूमना शुरू कर देता था. इसके बाद फरमान हुआ कि 100 मिली टैक्सला क्षमता तक के चुंबक से मीटर तेज न चले, तो बिजली चोर स्पार्क गन की मदद से मीटर बंद करने लगे. स्पार्क गन यानी दुपहिया वाहन के प्लग के स्पार्क से जिस तरह करंट निकलता है, उसी तरह स्पार्क गन की करंट से मीटर चलना बंद हो जाता है. लेकिन इससे सिर्फ 35 कव्वीए क्षमता का मीटर बंद होता था इसलिए विभाग ने इससे अधिक क्षमता का मीटर बनवाना शुरू कर दिया. इसकी काट में बिजली चोर रिमोट और जैमर ले आए. शरदचंद दो टूक कहते हैं, ''बिजली चोरी रोकने में न पुलिस की मदद और न राजनैतिक प्रोत्साहन मिलता है. यहां तक कि पुलिस क्वॉटरों में बिना मीटर के बिजली चलती रहती है वहीं वोट बैंक की वजह से नेता नहीं चाहते कि बिजली चोरों पर कार्रवाई हो.'' वे कहते हैं कि नंगी तारों की जगह एरियल बंज कव्बल लगाना चाहिए ताकि किंग (तार डालकर बिजली खींचना) न हो.
राज्य में बिजली नुक्सान की बानगी देखिए, 2010-11 में बिजली बोर्ड को विभिन्न संयंत्रों से 17,601 मिलियन यूनिट बिजली मिली, इसमें से 12,098 मिलियन यूनिट ही खर्च हो पाई बाकी 5,503 मिलियन यूनिट बिजली पारेषण और वितरण हानि में चली गई. बिजली हानि का स्टैंडर्ड लॉस 15 फीसदी है लेकिन राज्य में 18 प्रतिशत अधिक नुक्सान हो रहा है. विडंबना यह है कि राज्य बनने के बाद उत्पादन पर तो जोर दिया गया मगर लॉस रोकने को लेकर विद्युत बोर्ड कभी गंभीर नहीं रहा. यही वजह है कि बिजली बोर्ड बनने के समय 2002-03 में हानि 33.76 फीसदी थी, वह 2009-10 में बढ़कर 34.27 फीसदी हो गई.
बहरहाल, चोरी रोकने के लिए बिजली वितरण कंपनी ने भी कमर कस ली है. सुबोध सिंह बताते हैं कि ट्रांसफार्मर में मीटर लगाए जाएंगे, इससे पता लगाना आसान रहेगा कि किस इलाके में अधिक चोरी हो रही है. जिन इलाके में हूकिंग से बिजली चोरी हो रही है वहां भूमिगत तार बिछाई जाएंगी. इसके अलावा कुछ शहरों में स्पॉट बिलिंग भी शुरू कर दी गई है. इससे भी चोरी पर लगाम लगेगी. बिजली चोरी की शिकायत करने पर इनाम का भी प्रावधान किया गया है.
चोरी के आधुनिक औजार
जैमरः चोरी की सबसे नई तकनीक है जैमर. यह एक ऐसा उपकरण है जिसे मीटर के पास ऑन करके लगा दिया जाता है, इसके लगते ही मीटर को फ्रीक्वेंसी मिलना बंद हो जाती है और मीटर घूमना बंद हो जाता है. मीटर की जांच के दौरान इसे आसानी से हटाया जा सकता है इसलिए पकड़े जाने की संभावना नहीं के बराबर. जैमर के हटाने पर मीटर पहले की तरह चलने लगता है. बाजार में यह 4,000 से 15,000 रु. में खास दुकानों में उपलब्ध है.
शक्तिशाली चुंबकः मीटर के नीचे चुंबक रख देने से मीटर बंद हो जाता है. इसके लिए बाजार में बड़े आकार के चुंबक उपलब्ध हैं और इनकी कीमत 6,000 से 8,000 रु. है. इलेक्ट्रॉनिक मीटर लग जाने से चुंबक का इस्तेमाल कम हो गया है.
स्पार्क गनः स्पार्क गन यानी दुपहिया वाहन के प्लग के स्पार्क से जिस तरह करंट निकलता है उसी तरह का करंट स्पार्क गन निकलता है जिससे मीटर चलना बंद हो जाता है. स्पार्क गन से 35 केवीए क्षमता का मीटर बंद हो जाता है, कीमत है 3,000-4,000 रु.
रिमोटः इसमें मीटर के भीतर एक चिप डाली जाती है. इलेक्ट्रॉनिक मीटर में यह विभाग के लोगों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं. इसका फायदा यह है कि जब चाहे तब रिमोट से मीटर बंद कर दो और बिजली विभाग के कर्मचारी जब मीटर रीडिंग करने के लिए आएं तो रिमोट से मीटर चालू कर दो.
बाईपासः बाईपास यानी मीटर को जोड़ने वाली तार से लाइन खींचकर बिजली चोरी. इससे मीटर घूमना बंद हो जाता है. राज्य में पिछले एक साल में मीटर बाईपास के 186 मामले पकड़े गए हैं.
तब ठनका माथा और चोरी आई पकड़ में
केस 1: रायगढ़ के गंगा नर्सिंग होम में बिजली की बिलिंग कम होने लगी तो छत्तीसगढ़ विद्युत वितरण कंपनी के अधिकारियों को गड़बड़ी की बू आई. चोरी पकड़ने के लिए सतर्कता विभाग के दल ने नर्सिंग होम पर छापा मारा. तब पता चला कि मीटर के पास जैमर लगा है और इसी की वजह से मीटर बंद था. विभाग ने नर्सिंग होम पर 1,96,000 का जुर्माना ठोका, साथ ही साथ पुलिस में भी शिकायत दर्ज करवाई.
केस 2: रायगढ़ में ही फोटो बनाने वाले कलर प्लस लैब का बिजली बिल अचानक कम हो गया तो विभाग ने जांच के लिए सतर्कता विभाग के अधिकारियों की टीम बनाई. 6 जनवरी, 2011 को टीम ने दबिश दी तो जैमर की वजह से मीटर बंद मिला. जैमर जब्त कर संचालक के खिलाफ अपराध दर्ज कराया गया.
चोरी का इतिहास
वर्ष कनेक्शन चोरी के पुलिस में
जांचे गए मामले दर्ज शिकायत
08-09 25302 833 417
09-10 26200 1478 729
10-11 39077 3110 1484
11-12 14143 984 470
आंकड़े जुलाई 2011 तक के, स्त्रोतः प्रदेश बिजली बोर्ड