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अफीम की खेती, गुनाहों की फसल

झारखंड में सुरक्षा बलों ने माओवादियों को जबरदस्त चोट दी है. सीआरपीएफ और पुलिस बल के संयुक्त अभियान में पखवाड़े भर में लगभग 17 एकड़ में लहरा रही अफीम की अवैध फसल को नष्ट कर दिया गया है. पुलिस का दावा है कि इस खेती को माओवादियों के संरक्षण में अंजाम दिया जा रहा था.

अफीम की खेती
अफीम की खेती
अपडेटेड 3 जुलाई , 2014

झारखंड में सुरक्षा बलों ने माओवादियों को जबरदस्त चोट दी है. सीआरपीएफ और पुलिस बल के संयुक्त अभियान में पखवाड़े भर में लगभग 17 एकड़ में लहरा रही अफीम की अवैध फसल को नष्ट कर दिया गया है. पुलिस का दावा है कि इस खेती को माओवादियों के संरक्षण में अंजाम दिया जा रहा था. पुलिस के मुताबिक, यह माओवादियों के आर्थिक स्त्रोत पर सीधी चोट है. सीआरपीएफ ने माओवादिओं के गढ़ पश्चिम सिंहभूम, लातेहार और सरायकेला खरसावां जिले में फसल को नष्ट किया है.

26 फरवरी को पश्चिम सिंहभूम के मनोहरपुर के तलसडा में लगभग दो एकड़ फसल को मिट्टी में मिलाया गया. पिछले दिनों खूंटी में चार एकड़ में लगी अफीम की फसल को सुरक्षाबलों ने नष्ट किया था.

सुरक्षा बलों ने जब बंदगांव के चंपा गांव में अफीम की लहलहाती फसल को उजाड़ा तो उस फसल की अनुमानित कीमत लगभग 2 करोड़ रु. आंकी गई थी. इस मामले में नक्सली कुंदन पाहन, प्रसाद, वरुण और निर्मल को अभियुक्त बनाया गया. एक किग्रा अफीम की अनुमानित कीमत तकरीबन 45,000 से 50,000 रु. के बीच है. इस सिलसिले में अब तक 12 मामले दर्ज हो चुके हैं.

अफीम की खेती अक्तूबर महीने से शुरू होती है और मार्च का महीना आते-आते फूल खिलने शुरू हो जाते हैं. 95 फीसदी अफीम की खेती माओवादिओं के प्रभाव वाले इलाके में होती है. 2006-07 से चलाए गए विशेष अभियान के दौरान झारखंड पुलिस ने अब तक सैकड़ों एकड़ अफीम की फसल को नष्ट किया है. 2007 में 116, 2008 में 217, 2009 में 354, 2010 में 208, 2011 में 37 और 2012 में अब तक 17 एकड़ पर फसल को नष्ट किया गया है.

राज्‍य पुलिस के प्रवक्ता और महानिदेशक आर.के. मल्लिक बताते हैं, ‘2010 के बाद से हमें अच्छी सफलता मिली है. हम ह्यूमन और ग्राउंड इंटेलीजेंस के अलावा सैटेलाइट इमेजरी के सहारे उन इलाकों तक पहुंचते हैं जहां यह खेती हो रही है. अब माओवादी और माफिया सुदूर इलाकों में अपने ठिकाने बना रहे हैं.’

अफीम के खिलाफ चल रहे विशेष सुरक्षा अभियान के लिए नियुक्त किए गए नोडल अधिकारी पुलिस महानिरीक्षक अनुराग गुप्ता भी माओवादियों का हाथ होने से इनकार नहीं करते हैं. गुप्ता बताते हैं, ‘बहुत कुछ साफ होना बाकी है. लेकिन माओवादी इसमें शामिल हैं, इसके पुख्ता सुबूत हैं. हम इसकी तह तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.’

पुलिस का मानना है कि 10 एकड़ में अफीम की खेती को संरक्षण देने के एवज में माओवादी पांच करोड़ रु. तक की प्रोटेक्शन मनी लेते हैं. झारखंड पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, ‘यह उनके लिए धन एकत्र करने का सबसे बड़ा साधन है. माओवादियों के संबंध ड्रग माफिया से हैं. खबर है कि अब उन्होंने चतरा जैसे इलाकों में अफीम की लोकल प्रोसेसिंग भी शुरू कर दी है.’ पुलिस सीआइडी बताती है कि अगर अंदाज लगाएं तो 2007 से अभी तक अफीम की खेती से माओवादियों ने लगभग 300 करोड़ रु. बनाए हैं.

बीते साल चतरा के जोरी इलाके में तत्कालीन एसपी प्रभात कुमार द्वारा चलाए गए अभियान में पुलिस को माओवादियों की एक ऐसी डायरी हाथ लगी थी जिसमें प्रति एकड़ के हिसाब से अफीम की अवैध खेती में तकरीबन 50 लाख रु. के मुनाफे को दिखाया गया था.

चतरा के राजपुर, लावालौंग, प्रतापपुर, कुंडा, सिमरिया, टंडवा के बामी कुड़ी, बनवार, डोकवा, चीलाई, फुलवरिया, एकता, मरगडा, मोनिया, मरमगु और अन्य इलाकों में अफीम की खेती माओवादियों के संरक्षण में होती है. पुलिस मानती है कि पूरे झारखंड में हजारों एकड़ में खेती हो रही है और सबको नेस्तनाबूद कर देना संभव नहीं है.

2007 में हजारीबाग जिले के बरकागांव इलाके के एक कस्बे के कुछ लोग रातोरात अमीर बन गए थे. एक ही दिन में उस कस्बे में तकरीबन 12 चार पहिया गाड़ियों की बुकिंग की गई थी. चतरा जिले के बनियाडीह के एक किसान बताते हैं, ‘पहले हम टमाटर की खेती करते थे और माओवादी हमसे हर पौधे का एक रुपया लेवी लेते थे. अब वे हमें अफीम उगाने को कहते हैं. इसमें मुनाफा है. हम गुनाह तो करते हैं लेकिन हमारा इस पर कोई बस नहीं है.’

चतरा में अब तक 207 किसानों पर मुकदमे दर्ज हो चुके हैं और 76 जेल में हैं. 2006 के दौरान उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के संगठित ड्रग माफियाओं ने चतरा में अफीम की खेती के लिए किसानों को लुभाना शुरू किया और बाद में माओवादी इस धंधे में कूद पड़े.

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