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उत्तर प्रदेश में अब सरकारी नौकरी की सियासत

मायावती सरकार ने 4 लाख सरकारी नौकरियां देकर न सिर्फ युवाओं को खुश किया है, बल्कि सोशल इंजीनियरिंग के बदले अंदाज से अति पिछड़ों, दलितों और ब्राह्मणों से नए सिरे से जुड़ने की कोशिश की है.

अपडेटेड 8 अगस्त , 2011

उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन पर पंजे की छाप छोड़ने के लिए आतुर राहुल गांधी भले ही किसान यात्राओं और महापंचायतों का सहारा ले रहे हों, लेकिन मायावती सरकार ठोस सोशल इंजीनियरिंग के साथ ही जांची-परखी 'सरकारी नौकरी' और वजीफों की बिसात पर अपना हाथी आगे बढ़ा रही है.

मायावती सरकार ने अब तक प्रदेश में सरकारी नौकरी में 4 लाख भर्तियों के दरवाजे खोल दिए हैं और चुनाव से पहले यह आंकड़ा 5 लाख तक पहुंचने का अनुमान है. इन भर्तियों में एक लाख सफाई कर्मचारियों की भर्ती को पारंपरिक दलित वोट बैंक, पारदर्शी पुलिस भर्ती को ओबीसी की अति पिछड़ी जातियों को मौका देने और प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती  को ब्राह्मण मतदाता को अपने साथ बनाए रखने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है.

इसके अलावा 30 लाख बीपीएल परिवारों को 400 रु. महीने पेंशन की घोषणा कर बसपा सरकार ने दलितों तक आर्थिक मदद पहुंचाने का रास्ता खोल लिया है. बहुजन से सर्वजन के नारे पर आईं मायावती की इस बाजीगरी से प्रदेश के युवाओं को सीधे तौर पर रोजगार तो मिला ही, साथ ही पार्र्टी के पुराने और संभावित वोट बैंक को भी सरकारी नौकरी का आसरा मिल गया.

बसपा जहां इसे प्रदेश के विकास का पथ मानती है, वहीं विपक्षी दल इन भर्तियों को पैसा उगाहने के कारोबार की नजर से ही देख रहे हैं.

भर्ती प्रक्रिया में पुलिस महकमे में 2.25 लाख नए पदों का सृजन सबसे ऊपर आता है. इस बार समय का पहिया कुछ ऐसा घूमा कि पाक-साफ भर्ती ही सबसे बड़ा राजनैतिक हित बन गई. भर्ती के पहले चरण में 2010 में 35,000 सिपाहियों की भर्र्ती की जा चुकी है, जबकि 41,000 सिपाहियों की भर्ती की प्रक्रिया इसी महीने शुरू की गई है.

इसके अलावा 4,000 सब इंस्पेक्टरों की भर्ती अंतिम चरण में है. पारदर्शिता के चलते इस बार पिछड़ा वर्ग से सिपाही भर्ती में यादव जाति का दबदबा खत्म हो गया और जाट, शाक्य, मौर्य, सैनी सहित दूसरी अति पिछड़ी जातियों को मौका मिला.

इन जातियों में मुलायम सिंह के कार्यकाल में हुई पुलिस भर्ती को लेकर गुस्सा था, क्योंकि तब जाति विशेष के लोगों की भरमार हो गई थी, हालांकि बाद में उस पुलिस भर्ती को हाइकोर्ट ने रद्द कर दिया था. पुलिस भर्ती की ताजा प्रक्रिया पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों और बाकी प्रदेश में अति पिछड़ी जातियों को बसपा से जोड़ने में सहायक हो सकती है.

भर्ती का दूसरा बड़ा दौर शिक्षा विभाग में चला है. मायावती सरकार ने 88,000 प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति की है. इस भर्ती ने कस्बाई क्षेत्र में जबरदस्त असर डाला है और सामान्य वर्ग में ब्राह्मणों को इससे खासा फायदा हुआ. यह बात किसी से छुपी नहीं है कि पिछले विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने वाली बसपा को ब्राह्मणों का कितना सहारा मिला था.

अब पार्टी चाहती है कि आगे भी ब्राह्मण वर्ग बसपा में अपना हित देखता रहे. शिक्षकों की इस भर्र्ती का ऐसा असर हुआ कि एमबीए, एमसीए या बीएएमएस करने के बाद महानगरों में नौकरी कर रहे युवा, प्राइवेट नौकरी छोड़कर प्राइमरी मास्टर बनने घर वापस आ गए. इसके अलावा 1.24 लाख शिक्षामित्रों की ना सिर्फभर्ती की गई, बल्कि अब उन्हें रेगुलर करने की घोषणा भी उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल ने की है. वहीं 5,000 उर्दू  शिक्षकों की भर्र्ती को अल्पसंख्यक कार्ड माना जा रहा है.

इतने बड़े पैमाने पर प्रदेश में सरकारी नौकरियों में नियुक्ति की प्रक्रिया के बारे में हमीरपुर से बसपा सांसद विजय बहादुर सिंह ने कहा, ''बसपा की सरकार समाज के हर तबके के विकास के लिए कृत संकल्प है. मायावती जी ने इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए सरकारी नौकरी के इतने अवसर पैदा किए हैं. इन नौकरियों ने ना सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं को बेहतर किया है, बल्कि लोगों के जीवन स्तर को भी ऊंचा उठाया है.''

भर्ती में धांधली के सवाल पर उन्होंने कहा, ''ये आरोप बेबुनियाद और राजनीति से प्रेरित हैं. पुलिस भर्ती प्रक्रिया की तारीफ तो खुद केंद्र सरकार कर चुकी है और बाकी राज्य इस मॉडल का अनुसरण कर रहे हैं. शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया भी पूरी तरह पारदर्शी है. भर्तियों को राजनीतिक नजरिए से देखना ठीक नहीं है.

बसपा सरकार ने प्रदेश के 30 लाख गरीब परिवारों के लिए 400 रु. महीना की पेंशन शुरू की है, क्या इसे आप राजनीति कहेंगे.'' लेकिन कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने नौकरी देने की कवायद को सियासी स्टंट बताया.

उन्होंने कहा, ''बसपा सरकार ने बीते चार साल में प्रदेश में विकास के नाम पर कोई काम नहीं किया है. अब जब चुनाव में एक साल से कम समय रह गया है तो मायावती सरकार ने भर्तियों का दांव खेला है. इससे भी सरकार को कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि इस सरकार में बिना धांधली के कुछ नहीं होता.'

उधर बीपीएल पेंशन योजना को बसपा के पारंपरिक दलित वोट बैंक की खोज-खबर लेने से जोड़ा जा रहा है. 30 लाख बीपीएल परिवारों में आधे से ज्यादा परिवार दलित समुदाय के हैं. प्रदेश के गांवों की जैसी हालत है उसमें गरीब परिवारों के लिए 400 रु. की रकम भी कम मायने नहीं रखती. अपने पारंपरिक दलित वोट बैंक पर भी बसपा की पूरी नजर है.

अनुसूचित जाति-जनजाति के विशेष स्कूलों में संविदा आधार पर 1,189 शिक्षकों की भर्र्ती की गर्ई है. ग्राम पंचायत स्तर पर 1,08,848 सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति की जानी है और अब तक 95,043 सफाईकर्मी नियुक्त हुए हैं. इसका फायदा वाल्मिकि समुदाय को मिला है.

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही ने इससे असहमति जताते हुए कहा, ''चार साल तो बसपा सरकार को भर्तियों की याद नहीं आई. चुनाव में अपनी नैया पार लगाने के लिए मायावती ने युवाओं को नौकरी का सब्जबाग दिखाया है. इससे सरकार को कोई लाभ नहीं होने वाला. सफाई कर्मियों की भर्ती में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है. इसके लिए सरकार पूरी तरह जिम्मेदार है. भ्रष्टाचार के चलते नौकरी से वंचित  युवाओं में रोष है और वे सडक़ पर उतर रहे है.''

वहीं आंगनवाड़ी में 55,308 महिला कार्यकर्ता, 54,460 सहायक महिला कार्यकर्ता और 14,652 मिनी महिला कार्यकर्ताओं की मानदेय के आधार पर भर्र्ती की जा चुकी है.  लगभग सभी विभागों में अनुसूचित जाति-जनजाति के बैकलॉग पदों को तेजी से भरने की प्रक्रिया अलग चल रही है. वजीफों से जुड़े सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो सरकारी दावे के मुताबिक 7 लाख छात्राओं को साइकिल और 10,000 रु. से अधिक का वजीफा बंटा है.

समाजवादी पार्र्टी नेता शिवपाल सिंह यादव ने भी भर्तियों में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया. ''बसपा सरकार जितनी भी भर्तियां कर रही है, सब में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है. पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग की उपेक्षा की गर्ई है. भर्ती के नाम पर गरीब युवाओं से धन लेकर मंत्री-अधिकारी अपना बैंक बैलेंस बढ़ा रहे हैं.

सभी भर्तियों को तत्काल रोकना चाहिए और किसी निष्पक्ष संस्था से इनकी जांच होनी चाहिए.'' नौकरियों की सियासत तो वक्त के साथ सामने आ जाएगी, लेकिन नौकरियों की इस बहार का एक असर यह भी है कि लंबे समय बाद महानगरों के अलावा गांव और कस्बों में भी रोजगार के फूल खिले हैं.
-साथ में आशीष मिश्र, लखनऊ से

नौकरियों की बहार

*पुलिस विभागः 2.25 लाख पदों का सृजन (35,000 सिपाही भर्ती, 4,000 एसआइ और 41,000 सिपाहियों की भर्ती प्रक्रिया जारी)
*प्राथमिक शिक्षकः 88,000 भर्ती
*शिक्षा मित्रः 1.24 लाख भर्ती और अब इन्हें रेगुलर करने की घोषणा
*सफाई कर्मीः 1,08,848 पद सृजित, अब तक 95,043 भर्ती
*आंगनवाड़ी कार्यकर्ताः 1,24,420 महिलाओं की भर्ती
*सफाई कर्मीः 1,08,848 पद सृजित  और अब तक 95,043 की भर्ती

 

''अब जब चुनाव में एक साल से कम का वक्त बचा है तो मायावती सरकार ने सरकारी नौकरी देने का दांव खेला है.''
-रीता बहुगुणा जोशी, प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस

''भर्र्ती के नाम पर पैसा लेकर मंत्री और अधिकारी अपना बैंक बैलेंस बढ़ा रहे हैं. इसकी स्वतंत्र एजेंसी से जांच होनी चाहिए.''
-शिवपाल सिंह यादव, नेता प्रतिपक्ष

''सफाई कर्मियों की भर्ती में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है. इसके लिए प्रदेश सरकार पूरी तरह से जिम्मेदार है.''
-सूर्य प्रताप शाही, प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा

''इन नौकरियों ने न सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र में सुविधाओं को बेहतर किया है, बल्कि लोगों के जीवन स्तर को भी काफी ऊंचा उठाया है.''
-विजय बहादुर सिंह, बसपा सांसद
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