मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ का गृह जिला देश के उन कुछ बड़े जिलों में शुमार है जहां अभी तक एक भी कोरोना पाजिटिव मरीज नहीं मिला है. लेकिन देश में गोरखपुर की चर्चा उस अनोखे ऑनलाइन डिलिवरी के मॉडल को लेकर हो रही है जिसने पूरे शहर में चौबीस घंटे सौ फीसद लॉकडाउन लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस मॉडल की जानकारी मिलने पर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने गोरखपुर प्रशासन से इसकी पूरी रिपोर्ट मांगी है. लोगों के घरों तक सामान पहुंचाने का यह गोरखपुर मॉडल अगर पीएमओ को जंचा तो इसे देश के दूसरे जिलों में भी लागू किया जा सकता है.
ऑनलाइन डिलिवरी के इस अनोखे मॉडल के सूत्रधार वर्ष 2017 बैच के युवा आइएएस अफसर और गोरखपुर में ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के पद पर तैनात गौरव सिंह सोगरवाल हैं. भरतपुर, राजस्थान के रहने वाले गौरव ने भारतीय विद्यापीठ से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया है. आइएएस में आने से पहले वर्ष 2016 में भी ये सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर आइपीएस में चयनित हुए थे. आइएएस के रूप में अपने छोटे से कार्यकाल में गौरव ने कई नई शुरुआत करके जनता और प्रशासन के बीच बेहद मधुर संबंध स्थापित किया है. पिछले वर्ष अक्तूबर में गौरव की पोस्टिंग शामली जिले के ऊन तहसील में हुई थी. यहां पर उन्होंने “ऊन पहल” के नाम से एक योजना शुरू की. इसके तहत तहसील की सीमा में आने वाली जितनी भी सरकारी जमीन, तालाब थे, जिन पर अवैध कब्जे थे, उन्हें लोगों के सहयोग से खाली करवाया. तीन महीन के अंदर छह सौ बीघे जमीन खाली कराई गई. स्थानीय लोगों के सहयोग से कई सारे तालाबों का जीर्णोद्धार किया गया. अपने काम से गौरव स्थानीय जनता के बीच इनता विश्वास बना बैठे थे कि इस वर्ष जनवरी में जब इनका ट्रांसफर गोरखपुर के लिए हुआ तो इसके विरोध में बड़ी संख्या में लोग सड़क पर उतर आए थे. ये लोग गौरव को ऊन तहसील से वापस नहीं जाने देना चाहते थे. बड़ी मशक्कत के बाद गौरव ने उन लोगों को सरकारी बाध्यताओं का हवाला देकर वापस लौटने के लिए राजी किया था.
गौरव 28 जनवरी को गोरखपुर आए तो यहां भी उन्होंने 'गोरखपुर पहल' के नाम से योजना शुरू की. उन्होंने डेढ़ महीने में 500 एकड़ जमीन को कब्जे से मुक्त कराया गया. उस पर दोबारा अतिक्रमण न हो इसके लिए जमीन की 'जियो फेंसिंग' कर डिजिटल ढंग से सुरक्षित कर दिया गया. इससे कोई भी व्यक्ति घर बैठे देख सकता है कि सरकारी जमीन किस हालत में है? इस पर कोई कब्जा तो नहीं है? इन सभी रेवेन्यू रिकार्ड को गूगल अर्थ पर सुपरइंपोज किया गया. यह काम आगे और बढ़ता कि इसी बीच 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बाद लॉकडाउन की घोषणा हो गई. अब प्रशासन की प्राथमिकता यह थी कि लोग घरों से बाहर न निकलें. लोग घरों से बाहर न आएं तो यह जरूरी था कि प्रशासन लोगों तक पहुंचे. गोरखपुर प्रशासन के पास ऐसा करने के दो तरीके थे. पहला, सरकारी लोग घर-घर पहुंचे और आवश्यक सामानों की सप्लाई करें. दूसरा शहर में जो सामान डिलिवरी करने वाले ऑनलाइन पोर्टल जैसे फ्लिफकार्ट, अमेजन, बिगबास्केट, ग्रोफर्स, जो शहर की 12-13 लाख जनसंख्या तक पहुंच रखते थे और लॉकडाउन में जिनका बिजनेस बंद हो गया था, का उपयोग करके लोगों तक सामान पहुंचाया जाए. प्रशासन ने दूसरा मॉडल चुना और इसे हकीकत में बदलने की बड़ी जिम्मेदारी गौरव सिंह पर आ गई. गौरव ने गोरखपुर सदर तहसील के फेसबुक पेज के जरिए ऐसे लोगों की तलाश की जो स्वैच्छिक रूप से ऑनलाइन डिलिवरी के लिए एक पोर्टल तैयार कर सकें. इसके लिए गौरव ने गोरखपुर के सरकारी इंजीनियरिंग कालेज के रजिस्ट्रार से भी संपर्क किया. गौरव को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा. लॉकडाउन की घोषणा होने के अगले दिन सुबह ही दो लड़कों ने स्वैच्छिक रूप से गोरखपुर में ऑनलाइन डिलिवरी के लिए पोर्टल बनाने को गौरव से संपर्क किया. शुरुआत में केवल जरूरी सामान की डोर-टू-डोर डिलिवरी के लिए 'ऑनलाइनफूड्स डॉट कॉम' नाम से पोर्टल बनाया गया. डिलिवरी के लिए 15-20 लोग भी जुटाए गए. इस पोर्टल का मालिकाना हक उन्हीं लड़कों को सौंपा गया जिन्होंने इसे तैयार किया था. चूंकि पोर्टल एक कमर्शियल गतिविधि थी इसलिए प्रशासन इसे सीधे तौर पर नहीं चला सकता था. इसलिए गौरव सिंह की निगरानी में सदर तहसील ने एक ‘फैसिलिटेटर’ (सुविधा प्रदाता) की भूमिका निभाई. इस पोर्टल से शहर की सभी मंडियों को लिंक करा दिया गया. असर यह हुआ कि पहले ही दिन एक हजार से अधिक आर्डर पोर्टल के जरिए आ गए. यह बहुत उत्साहपूर्ण नतीजा था. लॉकडाउन के दो दिन बीतते ही मार्च 24 तक कई सारे ऐसे लोग जो स्थानीय स्तर पर ऑनलाइन डिलिवरी कर रहे थे लेकिन कुछ कारणों से इनका काम बंद चल रहा था, इन लोगों ने भी प्रशासन से संपर्क कर ऑनलाइन डिलिवरी सिस्टम से जुड़ने की इच्छा व्यक्त की. कुछ ही दिनों में डिलिवरी पोर्टल की संख्या एक से बढ़कर नौ हो गई. जनता में विश्वास दिलाने के लिए गौरव सिंह की देखरेख में पोर्टल संचालकों के लिए आठ शर्तें निर्धारित की गईं. यह तय किया कि हर एक आर्डर किसी भी कीमत पर ग्राहक तक पहुंचना चाहिए. इसके लिए शुरुआत में केवल 14 जरूरी सामानों जैसे आटा, दाल, चावल, तेल, साबुन को ही ऑनलाइन डिलिवरी के लिए रखा गया. इन ऑनलाइन डिलिवरी पोर्टल को गोरखपुर की मंडियों से लिंक कर दिया गया. पूरे गोरखपुर शहर को आठ भौगोलीय जोन में बांटा गया. गोरखपुर शहर की हर दुकान, ग्रॉसरी स्टोर, किराना स्टोर, दूध की दुकान, फल-सब्जी की दुकान की 'जियो मैपिंग' की गई. इसके लिए सदर तहसील के रेवेन्यु स्टॉफ ने लॉकडाउन लागू होने के शुरुआती तीन-चार दिन दिन रात काम किया. गोरखपुर में 1,800 ग्रॉसरी स्टोर थे, 800 मिल्क पार्लर, 700 फल और सब्जी की दुकानें थीं. इन सभी दुकानों को शॉप-ए और शॉप-बी में बांटा गया. शॉप-ए में बड़ी दुकानें रखी गईं. शॉप-बी में गली-मोहल्लों में खुली हुई छोटी दुकानें, गुमटियां थीं. पोर्टल संचालकों को सामान होल सेल मंडी या फिर शॉप-ए से दिलाया गया. हर जोन की शॉप-ए की जियो मैपिंग कर दी गई. ऑनलाइन पोर्टल संचालकों के लिए प्रशासन ने शर्त रखी कि वे कोई भी डिलिवरी चार्ज नहीं लेंगे. ये सारी डिलिवरी मुफ्त करेंगे, पैक्ड सामानों को एमआरपी पर बेचा जाएगा और खुले सामान को उसी दर पर बेचा जाएगा जो मूल्य प्रशासन ने तय कर रखा है. सबसे महत्वूपर्ण बात यह कि सौ फीसद डिलिवरी भी की जाएगी. इसका असर यह हुआ कि शुरुआत से कालाबाजारी, अधिक मूल्य वसूली, जमाखोरी जैसी शिकायतें गोरखपुर से बिल्कुल ही नदारद ही रहीं. हर पचास दुकानों की निगरानी के लिए एक लेखपाल की तैनाती की गई. लेखपाल यह देखता कि कहीं कोई दुकानदार ओवरप्राइजिंग तो नहीं कर रहा या फिर डिलवरी में देरी तो नहीं हो रही. ऐसा करने वाले का नाम रोज शाम को सदर तहसील के फेसबुक पेज से हटा दिया जाता और एक नई लिस्ट जारी की जाती. इस तरह शुरुआत में ऑनलाइन डिलिवरी सिस्टम से जुड़ीं 1,800 दुकानें घटकर 1,400 रह गईं. ये वे दुकानें थीं जो वास्तव में सही दाम और समय पर सप्लाई करने में सक्षम थीं.
ऑनलाइन पोर्टल की सफलता से गोरखपुर यूपी का ऐसा इकलौता शहर बन गया जहां 24 घंटे कड़ाई से लॉकडाउन लागू किया गया. सप्लाई चेन मजबूत की गई. किराना स्टोर बंद भी रहे लेकिन उनके पास ग्राहक आना बंद नहीं हुए. अब दुकानों पर ग्राहक न जाकर डिलिवरी ब्वॉय जाने लगे. इससे दुकान वालों को फायदा हुआ और पोर्टल संचालकों को भी काम मिला. लेकिन सबसे बड़ी समस्या शहर में सामान पहुंचा रहे 800 से अधिक डिलिवरी ब्वाय को वेतन देने की थी. इनके वेतन के लिए प्रशासन ने डिलिवरी पोर्टल संचालकों को थोक मूल्य में सामान दिलाया और इन्होंने सप्लाई रिटेल मूल्य पर की. बीच का प्रॉफिट पोर्टल संचालकों को मिला जिससे डिलिवरी ब्वॉय को वेतन दिया गया.
गोरखपुर में इसका असर यह हुआ कि लॉकडाउन के पहले फेज में दो लाख से अधिक आर्डर हुए. इस तरह करीब आठ-दस लाख लोगों को घरों से बाहर निकलने को रोक दिया गया. इससे प्रशासन को क्वारंटीन सेंटर, आइसोलेशन और स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने में ध्यान लगाने में आसानी हुई. गौरव अब लॉकडाउन के फेज टू में ऑनलाइन डिलिवरी सिस्टम में और सुविधाएं जोड़ने में जुटे हैं. अब स्टेशनरी, कॉस्मेटिक्स, बेबी प्रॉडक्ट्स, दवाएं की तो डिलिवरी होगी ही साथ में पांच सौ से पांच हजार रुपए भी ऑनलाइन डिलिवरी पोर्टल के जरिए लोगों तक पहुंचाए जाएंगे. इस तरह गोरखपुर में एक और मिसाल बनाने की तैयारी है.