नवंबर, 2011 के बाद से लगातार तिल-तिल कर दम तोड़ रही किंगफिशर एयरलाइंस जुलाई की शुरुआत में ही जमींदोज हो जाने के लिए तैयार नजर आ रही थी. वेतन से वंचित और नाराज कर्मचारियों ने हड़ताल पर जाने की धमकी दी, और नागरिक उड्डयन महानिदेशक (डीजीसीए) इसका कामकाज सस्पेंड करने के बारे में बात करने लगे, क्योंकि वित्तीय तनाव से यात्री सुरक्षा पर गंभीर असर पड़ सकता था.
हालांकि कर्मचारी 14 जुलाई को हड़ताल पर चले ही गए, जो दो माह में पांचवीं हड़ताल थी, लेकिन मृतप्राय एयरलाइन बची रही. डीजीसीए ई.के. भारत भूषण पद पर बने नहीं रह सके. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की नियुक्ति समिति द्वारा डीजीसीए के रूप में उन्हें 30 नवंबर, 2012 तक का एक्सटेंशन देने की मंजूरी दिए हुए एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि 10 जुलाई को उन्हें पद से अचानक हटा दिया गया.
9 जुलाई को भूषण ने यह सिफारिश करते हुए एक नोट लिखा था कि किंगफिशर को एक नोटिस जारी किया जाए, जिसमें उन्हें अपने कर्मचारियों और देनदारों को भुगतान की तुरंत व्यवस्था करने को कहा जाए. नोट में आगे लिखा है कि अगर पूरा भुगतान न हो, तो भी कम-से-कम एक बड़े हिस्से का भुगतान किया जाए.
उन्होंने लिखा था, ''इस बात का संकेत दिया जा सकता है कि यदि नोटिस मिलने के 15 दिन के भीतर धनराशि उपलब्ध नहीं कराई जाती है और देनदारियों में अच्छी-खासी कमी नहीं लाई जाती है, तो हम उनका कामकाज ठप करने के लिए विवश हो सकते हैं.'' उन्होंने यह भी कहा कि किंगफिशर ने अपने कर्मचारियों को फरवरी, 2012 के बाद से वेतन नहीं दिया है, जो चिंता का कारण है. उन्होंने लिखा था, ''(किंगफिशर के) संचालन में विशेष सुरक्षा की अनदेखी जारी है. इसकी लेखा परीक्षा के दौरान कई इंजीनियरिंग मुद्दे उभरे हैं, जिनका सुरक्षा पर सीधा असर पड़ता है.''
तो क्या भूषण को इसलिए हटाया गया था कि किंगफिशर को राहत दी जा सके? नागरिक उड्डयन मंत्री अजित सिंह कहते हैं कि यह धारणा गलत है. उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, ''हमने यह बात शुरुआत में ही बहुत साफ कर दी थी कि सरकार किसी भी निजी एयरलाइन को बेलआउट नहीं देगी.'' लेकिन मुद्दा बेलआउट देने या उबारने का नहीं है. जो सवाल भूषण ने उठाया था, वह यात्री सुरक्षा पर था.
सूत्रों के अनुसार भूषण ने सुरक्षा का मुद्दा कई बार उठाया था. जब विमानों का रखरखाव इंजीनियरों द्वारा रात के 2 बजे किया जाता है और पायलट रात-बिरात उड़ान भरते हैं, तो वित्तीय और मानसिक तनाव का सुरक्षा पर सीधा असर पड़ सकता है.
मंत्री इसका बहुत ज्यादा अर्थ नहीं निकालते हैं. उनका कहना है कि देश में पिछले छह महीने में कोई (हवाई) दुर्घटना नहीं हुई है. वे कहते हैं, ''जहां तक पायलटों और इंजीनियरों पर तनाव का सवाल है, उसे आप कैसे माप सकते हैं? मुझे विश्वास है कि किंगफिशर का प्रबंधन अंततः उनका बकाया चुका देगा.'' विश्लेषकों और विमानन विशेषज्ञों की राय इस तरह की आशावादिता से हमेशा मेल नहीं खाती है.
इस बीच किंगफिशर एयरलाइंस का कहना है कि वह डीजीसीए की बारीक निगरानी के तहत अधिकतम संभव सुरक्षा के साथ काम कर रहा है. भूषण को अचानक हटाए जाने के सवाल पर यूबी ग्रुप के उपाध्यक्ष (कॉर्पोरेट कम्युनिकेशंस) रामप्रकाश मीरपुरी ने कहा कि यह कहना ''बेहद गलत और शरारत से भरा है कि इसका किंगफिशर एयरलाइंस से किसी भी तरह से कोई संबंध है.''
अजित सिंह और कार्यकारी डीजीसीए प्रशांत सुकुल जोर देकर कहते हैं कि 9 जुलाई का विवादास्पद नोट था ही नहीं. भूषण के नोट का गुम होना चौंकाने वाला रहस्य है क्योंकि इसका अर्थ यह है कि इसे रिकॉर्ड्स से फाड़कर निकाला गया. यह कानूनन अपराध है.
मंत्रालय को इसके अलावा भी कई और बातों का खंडन करना पड़ रहा है. 21 जुलाई को इंडिगो एयरलाइंस के प्रमोटर राहुल भाटिया ने दावा किया कि ''सरकार इस उद्योग की कुछ चुनिंदा कंपनियों की खातिर विमानन नीतियों में फव्रबदल कर रही है.'' उन्होंने कहा, ''हम लगभग शून्य ऋण वाली कंपनी हैं, और हमें उनसे होड़ करनी पड़ रही है, जिन्हें एक के बाद एक मदद मिल रही है.''
किंगफिशर एयरलाइंस का नाम लिए बिना भाटिया ने कहा कि वे सरकार के स्वामित्व वाली एअर इंडिया से ''दिखावटी प्रतियोगिता'' के बारे में जानते थे, लेकिन उन्हें ''अक्षम निजी ऑपरेटरों को कारोबार में बनाए रखने के सरकार के अथक प्रयासों'' पर खेद है. उन्होंने कहा कि सरकार एक कंपनी को बढ़ावा दे रही है और इससे हताशा पैदा होती है.
भूषण को हटाने के मुद्दे पर किसी एयरलाइन का नाम लिए बिना भाटिया ने कहा कि ''अमेरिका में डीजीसीए के समकक्ष फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन होता है. अगर ऐसी स्थिति उनके सामने आती है जिसमें किसी एयरलाइन के चालक दल को महीनों से भुगतान न किया गया हो, चाहे वह पायलट हों या तकनीकी स्टाफ, तो मैं गारंटी देता हूं कि वे एयरलाइन को सुरक्षा के आधार पर बंद कर देंगे.''
किंगफिशर एयरलाइंस को प्राथमिकता दिए जाते पकड़े जाने पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय को 25 जुलाई को एक विस्तृत स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा था, ''निजी ऑपरेटरों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई वित्तीय सहायता प्रदान नहीं की जा रही है बल्कि उन्हें बाजार की शक्तियों के अनुसार काम करने की अनुमति दी गई है.'' इसमें यहां तक कहा गया कि ''दुनियाभर में कहीं भी ऐसा कोई रेगुलेटरी ढांचा नहीं है, जो केवल कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने में नाकाम रहने पर एयरलाइन का लाइसेंस रद्द करने की अनुमति देता हो.''
अजित सिंह जोर देकर कहते हैं कि किंगफिशर का लाइसेंस रद्द करने का कोई प्रस्ताव ही नहीं था. मंत्री महोदय कहते हैं, ''यदि किसी शेड्यूल्ड एयरलाइन के पास चालू हालत में पांच विमान और इक्विटी की एक निश्चित रकम है, तो इसका लाइसेंस तब तक रद्द नहीं हो सकता, जब तक सुरक्षा का मुद्दा न हो.''
लेकिन भूषण ने सुरक्षा का ही मुद्दा उठाया था. हालांकि मंत्रालय को किंगफिशर की लचर माली हालत, वेतन का भुगतान न करने और सुरक्षा में कोई संबंध नजर नहीं आता है, यह भूषण द्वारा बार-बार उठाए गए मुख्य मुद्दों में से एक है. 23 मार्च को एक नोट में भूषण ने 20 मार्च को किंगफिशर के मालिक विजय माल्या के साथ हुई मुलाकात का जिक्र किया है, जिसमें माल्या ने कथित तौर पर दावा दिया था कि ''काफी समय से भुगतान न किए जाने के बावजूद उनके कर्मचारियों को कोई शिकायत नहीं है.''
लेकिन भूषण ने टिप्पणी की है, ''एयरलाइन कर्मचारियों के विभिन्न वर्गों के साथ मेरी बातचीत के बाद मेरा मानना है कि उनके बीच असंतोष अपने चरम पर है. मेरी सोची-समझी राय है कि यह स्थिति उनकी सेवाओं की सुरक्षा के बारे में कई सवाल उठाती है. अनिश्चितता और तनाव और सबसे ऊपर यह तथ्य कि कोई समाधान कहीं नजर नहीं आ रहा है, और इसका नतीजा जान-बूझ्कर या अनजाने में होने वाली ऐसी घटनाओं में निकल सकता है, जिसके भयावह परिणाम हो सकते हैं.''
भूषण ने इसी तरह की चिंता 9 जुलाई के उस विवादास्पद नोट में जताई थी, जो मंत्रालय के रिकार्डों में नहीं मिल सका. उन्होंने 20 जुलाई को अपने उत्तराधिकारी सुकुल को भेजे पत्र के साथ किंगफिशर के नोट की एक प्रति संलग्न की थी, जिसमें उसके लापता होने की जांच करने के लिए कहा गया था.
भूषण के निकटस्थ सूत्रों के अनुसार, यह नोट किंगफिशर की वित्तीय निगरानी फाइल (23-11 नंबर) का हिस्सा था. यह नोट डीजीसीए के उप निदेशक अमित गुप्ता ने तैयार किया था और इसे उप महानिदेशक (हवाई सुरक्षा) ललित गुप्ता ने भूषण को भेजा था. आवाजाही की सूचनाओं से पता चलता है कि यह फाइल 9 जुलाई को डीजीसीए कार्यालय आई थी और उसी दिन ललित गुप्ता के पास वापस चली गई थी.
नोट कहता है कि (किंगफिशर की) वित्तीय स्थिति लगातार नाजुक बनी हुई है, ''हवाई अड्डा ऑपरेटरों, तेल कंपनियों और वेंडर की काफी देनदारी बकाया है.'' भूषण ने यह भी उल्लेख किया कि एयरलाइन के संचालन पर नवंबर, 2011 के बाद से बारीकी से नजर रखी जा रही थी और उसके बेड़े में अच्छी-खासी कमी आई है. जो मूल शीतकालीन शेड्यूल था, उड़ानों का शेड्यूल उसके लगभग एक चौथाई पर रोक दिया गया था. इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (आइएटीए) ने एयरलाइन की बिलिंग और निबटान योजना को निलंबित कर दिया था, जिस कारण यह एयरलाइन 11 अप्रैल, 2012 से अपना अंतरराष्ट्रीय कामकाज बंद करने के लिए मजबूर हो गई. इसके अलावा, एयरलाइन ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में भी अपने कामकाज में कटौती कर दी है. यह रूट सभी विमान सेवाओं के लिए अनिवार्य है.
मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि किंगफिशर ने अपना शीतकालीन शेड्यूल 30 अक्तूबर, 2011 को पेश किया था. उसके अनुसार, एयरलाइन 64 विमानों के बेड़े के साथ रोजाना 460 उड़ानें भरने वाली थी. लेकिन उसके फौरन बाद एयरलाइन ने अपनी तय उड़ानों को रद्द करना शुरू कर दिया और 11 नवंबर, 2011 को डीजीसीए द्वारा वित्तीय निगरानी करने का आदेश दिया गया.
यह खबरें मिलने के बाद स्पाइसजेट, इंडिगो और अन्य निजी विमान सेवाओं को भी इस निगरानी के दायरे में लाया गया था कि वे भी शेड्यूल्ड उड़ानों से कम उड़ानें भर रहे थे. 9 फरवरी, 2012 को डीजीसीए की वित्तीय निगरानी रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया गया, जिसमें कहा गया था, ''(किंगफिशर एयरलाइंस की) एयरलाइन ऑपरेटर अनुमति वापस लेने के लिए एक तर्कसंगत मामला मौजूद है, क्योंकि इसकी खराब वित्तीय स्थिति से सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है.''
किंगफिशर का कर्ज बढ़ता ही गया. 2005 में अपनी स्थापना के बाद से लाभ नहीं कमा सकने वाली इस विमान कंपनी का कर्ज अब 7,500 करोड़ रु. हो गया है. किंगफिशर के पास फिलहाल सिर्फ 15 विमान हैं और यह रोजाना लगभग 80 उड़ानें भर रहा है. यह भी मात्र कागजी आंकड़े हैं, क्योंकि उड़ानें नियमित रूप से रद्द की जा रही हैं. पट्टे पर लिए गए उनके विमानों में से कई विमान देय राशि का भुगतान न होने के कारण जब्त कर लिए गए हैं.
उनमें से कुछ विमान लंदन में हीथ्रो हवाई अड्डे पर उतरे और जब्त कर लिए जाने के कारण वहां से उड़ान नहीं भर सके और यात्री वहीं फंसे रह गए. उसके दूसरे विमान इस वजह से उड़ान नहीं भर सके कि उनके रखरखाव के लिए पैसे नहीं थे. उनमें से ज्यादातर मुंबई, बंगलुरू और दिल्ली हवाई अड्डे पर खड़े हैं, यहां तक कि उनके कुछ कलपुर्जों का इस्तेमाल चालू विमानों में स्पेयरपार्ट्स के रूप में किया जा रहा है. मंत्रालय के सूत्रों का दावा है कि ''किंग ऑफ गुड टाइम्स उधार की सांसें ले रहा है.''
-साथ में देवेश कुमार