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एक को सजा, बाकी को मजा

ओसामा को ढूंढने में मददगार को सजा देने में पाकिस्तान की अदालत को बस दो महीने लगे, लेकिन हाफिज सईद आजाद है.

अपडेटेड 6 जून , 2012

पाकिस्तान के खैबर एजेंसी इलाके की राजधानी बाड़ा की एक कबाइली अदालत ने 24 मई को उस डॉ. शकील अफरीदी को 'गद्दारी' के इल्जाम में 33 साल की जेल की सजा सुनाई, जिसने दुनिया के सबसे वांछित आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को ढूंढने में मदद की थी. अफरीदी ने डीएनए नमूने इकट्ठा करने के लिए टीकाकरण का फर्जी अभियान चलाया, जिससे एबटाबाद के एक कम्पाउंड में छिपे बिन लादेन परिवार की शिनाख्त करने में अमेरिकी खुफिया एजेंसी को मदद मिली थी.

इस फैसले से पाकिस्तान और अमेरिका के बीच पहले से बिगड़ते संबंध और तार-तार होने को हैं. गोपनीय ढंग से हुई यह सुनवाई सिर्फ ढाई महीने चली. पाकिस्तान में कबाइली अदालतें सीमांत अपराध नियमन के तहत काम करती हैं, जो एक खास न्याय प्रणाली है और नियमित न्याय प्रणाली को नजरअंदाज करके काम करती हैं.

इसके ठीक विपरीत लश्कर-ए-तय्यबा के तीन गुर्गों के खिलाफ मुकदमा तीन साल से चला आ रहा है, जिन्हें भारत ने 26 नवंबर, 2008 को मुंबई पर हुए हमले का षड्यंत्रकारी कहा है. इन हमलों में 166 लोग मारे गए थे. तीन अभियुक्तों-.जकी-उर-रहमान लखवी, जरर शाह और अबू अल-कामा को मुजफ्फराबाद में उनके अड्डे पर सेना के छापे के बाद गिरफ्तार किया गया था और 19 फरवरी, 2009 को विशेष अदालत में पेश किया गया. जमात-उद-दावा का सरगना हाफिज सईद भी खुला घूम रहा है, जिसे सभी लोग इस हमले का मास्टरमाइंड मानते हैं.

लाहौर में एक आतंकवाद विरोधी विशेष अदालत ने उसे 16 फरवरी, 2009 को 26/11 से संबंधित सारे आरोपों से बरी कर दिया. इसके बाद लाहौर हाइकोर्ट ने 12 अक्तूबर, 2009 को सईद के खिलाफ सभी मामले रद्द कर दिए और उसे आजाद कर दिया. अदालत ने यह भी फैसला सुनाया कि जमात प्रतिबंधित संगठन नहीं है और पाकिस्तान में खुलेआम काम कर सकता है. सईद को आजाद छोड़ने के फैसले से पाकिस्तान की सिविल सोसाइटी के वे कार्यकर्ता निराश हो गए, जो इसे 26/11 के भीषण हमले में शामिल रहे लोगों को दंडित करने में एक विफलता के रूप में देखते थे.

पेशावर के रहने वाले एक वकील, जो अपना नाम नहीं उजागर करना चाहते, कहते हैं, ''फैसला करने में कई साल लगा देना पाकिस्तानी अदालतों का इतिहास रहा है. बहरहाल, अफरीदी के मामले में कबाइली अदालत की फटाफट सुनवाई इस बात का सबूत है कि एस्टेब्लिशमेंट (पाकिस्तानी सेना) उसे सलाखों के पीछे भेजना चाहता था.'' अपनी बात साबित करने के लिए वह जमात सरगना को छोड़ने का भी जिक्र करते हैं. वे कहते हैं, ''पाकिस्तानी एस्टेब्लिशमेंट जमात सरगना को सलाखों के पीछे डालना नहीं चाहता और इसीलिए उनके मामले की कभी गंभीरता से जांच ही नहीं की गई. इसी का नतीजा है कि वह छूटने में सफल रहा.''

इस्लामाबाद में 24-25 मई को हुई गृह सचिव स्तर की वार्ता के दौरान भारत ने सईद के खिलाफ ताजा सबूत पेश किए हैं. पाकिस्तान की ओर से अभी उस पर जवाब दिया जाना बाकी है. सईद की रिहाई से आतंकवादियों को दंडित करने का पाकिस्तान का नाममात्र का रिकॉर्ड और कमजोर हुआ है.

कुख्यात शिया विरोधी संगठन लश्कर-ए-झंगवी का नेता मलिक इसहाक लाहौर की कोट लखपत जेल में 14 साल बिताने के बाद इस साल जनवरी में रिहा हो गया. उस पर हत्या और आतंकवाद के 44 मुकदमे थे, जिनमें से 34 मामलों में उसे बरी कर दिया गया था और बाकी 10 मामलों में उसे जमानत दे दी गई. उसकी रिहाई इस कारण खास तौर पर विवादास्पद है, क्योंकि लाहौर में श्रीलंकाई क्रिकव्ट टीम पर हुए हमले का मास्टरमाइंड वही था.

अन्य फैसलों ने भी इस आम धारणा को पुष्ट किया है कि पाकिस्तानी अदालतों का रुख आतंकवादियों के प्रति नरम है. 13 मई को एक आतंकवाद विरोधी अदालत ने उन नौ संदिग्धों को रिहा कर दिया, जिन्हें 25 फरवरी, 2008 को पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन सर्जन जनरल मुश्ताक बेग पर आत्मघाती बम हमले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था.

5 मई, 2011 को आतंकवाद विरोधी अदालत ने उन चार लोगों को बरी कर दिया, जो 20 सितंबर, 2008 के इस्लामाबाद के मैरियट होटल पर हुए उस बम हमले के अभियुक्त थे, जिसमें 54 लोग मारे गए थे. बरी किए गए लोगों में मोहम्मद अकील उर्फ डॉ. उस्मान भी है, जो हमलों के कई मामलों में आरोपी है. इन हमलों में 3 मार्च, 2009 को श्रीलंकाई टीम पर हमला और रावलपिंडी में 10 अक्तूबर, 2009 को सेना मुख्यालय पर हुआ हमला शामिल है.

सईद को नजरबंदी से रिहा करने के खिलाफ पाकिस्तान के केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों की ओर से दायर की गई अपील को पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने 25 मई, 2010 को खारिज कर दिया. 17 अप्रैल, 2009 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि इस्लामाबाद की लाल मस्जिद के बड़े मौलवी मौलाना अब्दुल अजीज को मामले की सुनवाई शुरू होने तक जमानत पर रिहा किया जाए. 2007 में वह पाकिस्तानी सेना के ऑपरेशन का टारगेट था. इस मौलवी पर हत्या, अपहरण और नफरत भड़काने सहित कुल 26 आरोप हैं.

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