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बैंकों की पिच पर घोटाले की लंबी पारी

बीसीसीआइ ने निंबस की गारंटी के घपले में बैंकों की भूमिका उजागर होने पर थवाणी के टीवी चैनलों में उनकी हिस्सेदारी कुर्क की.

हरीश थवाणी
हरीश थवाणी
अपडेटेड 4 फ़रवरी , 2012

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) ने नियो स्पोर्ट्‌स और नियो क्रिकेट टीवी चैनलों में निंबस कम्युनिकेशंस पब्लिक लिमिटेड की 89 फीसदी हिस्सेदारी कुर्क कर ली है. इस हिस्सेदारी की कीमत 890 करोड़ रु. आंकी गई है. ऐसा इसके प्रमोटर हरीश थवाणी की देनदारियों के एवज में किया गया है. यह कार्रवाई 27 जनवरी को बंबई हाइकोर्ट का फैसला आने पर की गई है.

कोर्ट का फैसला तब आया, जब बीसीसीआइ ने आरोप लगाया कि 51 वर्ष के थवाणी ने भारतीय क्रिकेट की शीर्ष संस्था से 2,000 करोड़ रु. ठगने के लिए एक बड़े घपले का ताना-बाना बुना. बीसीसीआइ का दावा है कि सरकारी क्षेत्र के तीन बैंकों-यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (लीड बैंकर), इंडियन बैंक और पंजाब नेशनल बैंक-के एक कंसोर्सियम (संघ) की भी थवाणी के साथ सांठगांठ थी. बोर्ड के अनुसार, दिसंबर 2011 में जब उसने निंबस का ब्रॉडकास्ट करार रद्द कर दिया, तो इन बैंकों ने नियमों को तोड़ते हुए 1,600 करोड़ रु. की गारंटी भुनाने से इनकार कर दिया. बोर्ड ने यह दावा भी किया कि निंबस ने उसके साथ हुए ब्रॉडकास्ट कॉन्ट्रैक्ट को गारंटी के लिए रेहन के तौर पर इस्तेमाल किया था.

कथित घपले के मूल में बैंक गारंटी एग्रीमेंट में थवाणी और आइपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी की तरफ से जोड़ी गई एक धारा है. इस धारा में कहा गया है कि अगर बीसीसीआइ निंबस का ब्रॉडकास्ट करार रद्द करती है, तो उस हालत में बैंक गारंटी के एवज में नकदी नहीं देंगे. यह प्रावधान बैंकिंग के सारे नियमों के खिलाफ था.

पता चला है कि गारंटी को मंजूरी बैंकों के बोर्डों ने दी थी. उस समय और अभी भी, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का नेतृत्व एम.वी. नायर के हाथों में था और पंजाब नेशनल बैंक का नेतृत्व के.आर. कामथ कर रहे थे. गारंटी देते समय इंडियन बैंक की कमान एम.एस. सुंदर राजन के हाथों में थी. अप्रैल 2010 में उनका स्थान टी.एम. भसीन ने लिया, जो इस समय चेयरमैन हैं. लीड बैंकर यूनियन बैंक 800 करोड़ रु., पंजाब नेशनल बैंक 700 करोड़ रु.और इंडियन बैंक 500 करोड़ रु. की गारंटी के लिए राजी हुआ था.

बीसीसीआइ के कानूनी प्रमुख पी. रघु रमन कहते हैं, ‘यह एक घोटाला है. भुगतान न करने का प्रावधान थवाणी और बैंकों को गारंटी भुनाने से बचाने के लिए डाला गया, क्योंकि एवज में कुछ था ही नहीं.’ बोर्ड का दावा है कि 2009 में बैंकों के साथ गारंटी पर बातचीत करते समय थवाणी ने विवादास्पद प्रावधान शामिल कराने के लिए मोदी के साथ सांठगांठ की थी, जो उस समय बीसीसीआइ के शीर्ष अधिकारी थे. 2009 में थवाणी के साथ बीसीसीआइ के चैनल का प्रस्ताव रखने वाले मोदी ने निंबस के साथ बैंक करार तय करने में अपनी भागीदारी की पुष्टि की है. वित्तीय गड़बड़ियों के 42 मामलों का सामना कर रहे आइपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी ने अपनी वेबसाइट पर दिसंबर में लिखा, ‘यह प्रावधान मैंने जोड़ा था कि कॉन्ट्रैक्ट खत्म किए जाने पर बैंक गारंटी अमान्य हो जाएगी.’

बीसीसीआइ के अधिकारी दावा करते हैं कि मोदी ने यह प्रावधान थवाणी की मदद करने के लिए जोड़ा था. थवाणी के सामने नकदी की भारी समस्या थी और अंदर के किसी व्यक्ति की मदद के बिना वे अधिकार नहीं खरीद सकते थे. बोर्ड के अधिकारी कहते हैं कि यह एक तरह की सांठगांठ का घपला था. बोर्ड के ऑपरेशंस प्रमुख रत्नाकर शेट्टी कहते हैं कि थवाणी और मोदी ने बीसीसीआइ के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया और कॉन्ट्रैक्ट को बैंकों के लिए रेहन बना दिया. वे कहते हैं, ‘यह गंभीर अपराध है. बीसीसीआइ के नियम किसी को भी किसी कॉन्ट्रैक्ट को रेहन बनाने की मंजूरी नहीं देते हैं.’

इस घोटाले के लिए सिर्फ थवाणी और मोदी को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा रहा है. सरकारी क्षेत्र के तीनों बैंक भी बराबर के गुनहगार हैं. भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देशों में साफ तौर पर कहा गया है कि गारंटी के लिए जितनी भी रकम की मंजूरी दी जाए, बैंकों को उस पूरी रकम की गारंटी की मांग करनी चाहिए.

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की अधिकृत प्रवक्ता अल्पना किल्लावाला पुष्टि करती हैं कि बैंक इस मामले की जांच कर रहा है, लेकिन वे कहती हैं कि आरबीआइ की नीति किसी खास मामले पर टिप्पणी करने की नहीं है. आरबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि इन बैंकों को फरवरी के मध्य तक जवाब देना है कि जब कंपनी की ओर से दी गई गारंटी में सिर्फ इस बात का आकलन था कि उन्हें घरेलू मैचों और विदेशी लाइसेंसिंग से कितनी आमदनी की उम्मीद है, तो फिर उन्होंने निंबस को गारंटी की मंजूरी क्यों दी. उस अधिकारी का सवाल है, ‘मैच से होने वाली आमदनी का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है और अगर कंपनी के पास दिखाने को क्रिकेट ही न हो, तो आप चैनल से क्या ले लेंगे?’

पीएनबी के चेयरमैन कामथ कहते हैं कि वे कोई टिप्पणी नहीं करेंगे. इंडियन बैंक के भसीन और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के नायर ने इंडिया टुडे के डेढ़ महीने से किए जा रहे ई-मेल और टेलीफोन कॉल्स का कोई जवाब नहीं दिया.

बीसीसीआइ को उम्मीद है कि हाइकोर्ट के आदेश के बाद वह अपने बकाए की वसूली कर लेगी. बीसीसीआइ को निंबस के शेयर कुर्क करने की अनुमति देने के अलावा अदालत ने निंबस को यह भी आदेश दिया है कि वह 305 करोड़ रु. अदालत में जमा करवाए. यह वह कमाई है, जो भारत-इंग्लैंड और भारत-वेस्ट इंडीज सिरीज से हुई थी और इनका प्रसारण बीसीसीआइ की इस शिकायत के बाद हुआ था कि थवाणी ने इन दो सिरीज के दौरान इतनी रकम के विज्ञापन बेच दिए हैं. नियो स्पोर्ट्स और नियो क्रिकेट में निंबस की हिस्सेदारी कुर्क करने के बावजूद, बीसीसीआइ को करीब 700 करोड़ रु. का घाटा होना है.

अदालत के आदेश से कंपनी की मौजूदा कीमत पर प्रीमियम लगाकर संभावित 2,500 करोड़ रु. में बेचने की थवाणी की कोशिशों पर पूर्ण विराम लग गया है. आदेश के अनुसार, नियो स्पोर्ट्स और नियो क्रिकेट में 58 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाली मुंबई स्थित कंपनी निंबस को अब अगर कोई खरीदार मिलता है, तो उसे इसकी सूचना बीसीसीआइ को देनी होगी. यानी अगर थवाणी को कोई निवेशक मिल गया, तो उन्हें पहले बोर्ड की देनदारी चुकानी होगी.

इसके पहले तक, निंबस अपनी बिक्री में मदद के लिए दो इनवेस्टमेंट बैंकों-बार्कलेज कैपिटल और एवेंडस को भी नियुक्त कर चुका था. पिछले करीब 6 साल से उसकी हालत खस्ता थी. 31 मार्च, 2010 को कंपनी ने वित्त वर्ष की समाप्ति 142 करोड़ रु. के घाटे से की थी. निंबस के सूत्र स्वीकार करते हैं कि मार्च 2011 को इसका घाटा 498 करोड़ रु. था. इंग्लैंड और वेस्टइंडीज के खिलाफ सिरीज में नियो क्रिकेट 10 सेकंड के स्लॉट पर 4.5 लाख रु. के अपने रेट पर 60 फीसदी तक रियायत देने के लिए मजबूर हो गया था.

थवाणी का व्यापारिक इतिहास विवादास्पद रहा है. 2007 में, जब दूरदर्शन ने दावा किया कि क्रिकेट प्रसारण में उनकी 40 करोड़ रु. की देनदारी बनती है, तो उन्होंने निबटारे का विकल्प चुना. 1994 में उनके बनाए कार्यक्रम-सुपरहिट मुकाबला-को दूरदर्शन ने दिखाना बंद कर दिया था. आरोप था नियमों का उल्लंघन हुआ है.

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