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एनआरएचएम घोटाला: फंस गए 'छोटे सरकार'

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) में 130 करोड़ रु. के घोटाले के मामले में सीबीआइ ने पूर्व स्वास्थ्य मंत्री भानु प्रताप शाही और पूर्व स्वास्थ्य सचिव प्रदीप कुमार के अलावा 11 अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया है.

अपडेटेड 13 अगस्त , 2011

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) में 130 करोड़ रु. के घोटाले के मामले में सीबीआइ ने पूर्व स्वास्थ्य मंत्री भानु प्रताप शाही और पूर्व स्वास्थ्य सचिव प्रदीप कुमार के अलावा 11 अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया है.

10 अगस्त को दाखिल किए गए आरोपपत्र से यह बात सामने आई है कि विभिन्न 19 कंपनियों से पूर्व मंत्री और पदाधिकारियों ने लगभग 8.5 करोड़ रु. की घूस ली है.

इस घोटाले का खुलासा दरअसल तेज-तर्रार और साफ छवि रखने वाले पूर्व स्वास्थ्य सचिव शिवेंदु ने 2009 में किया था. मामले की जांच में तेजी तब आई जब सीबीआइ ने अगस्त, 2009 में पूर्व स्वास्थ्य सचिवों प्रदीप कुमार और सियाराम प्रसाद सिन्हा के खिलाफ मामला दर्ज कर छापेमारी शुरू की.

शाही की संलिप्तता का खुलासा उस समय हुआ जब दवा और मेडिकल उपकरणों के आपूर्तिकर्ता मेसर्स नंदकिशोर फोगला के मालिक राजेश फोगला ने अपने  बयान में स्वीकार किया कि शाही ने ठेके देने के नाम पर उनसे 2.14 करोड़ रु. बतौर कमीशन लिए थे. शाही फंसते नजर आ रहे हैं क्योंकि दवाइयों की आपूर्ति करने वाली कंपनी अन्नू इंटरप्राइजेज ने भी सीबीआइ को दिए बयान में माना है कि पूर्व मंत्री ने ठेका देने के नाम पर 16.96 लाख रु. बतौर घूस लिए थे.

मामले की जांच कर रहे सीबीआइ के डीएसपी बी.के. सिंह सिर्फ इतना ही बताते हैं, ''तकनीकी तौर पर शाही की एनआरएचएम के खरीद में कोई भी भूमिका नहीं होनी चाहिए थी. लेकिन मंत्री सहित सचिवों ने इस भ्रष्टाचार को अंजाम दिया. सभी आरोपी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, जिसके पुख्ता सुबूत हमारे पास हैं.'' सीबीआइ एनआरएचएम के लिए दवा और चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति करने वाली 19 कंपनियों मेसर्स नंदकिशोर फोगला, जेआर फार्मा, सावित्री सेल्स, सत्यसाई इंटरप्राइजेज, अन्नू इंटरप्राइजेज, कल्याण इंटरप्राइजेज, इंडो लैब्स लिमिटेड, लक्ष्मी मेडिकल इंडस्ट्री सहित अन्य के दस्तावेजों की जांच पूरी कर चुकी है.

लेकिन घोटाले का सबसे बड़ा खेल मोबाइल मेडिकल यूनिट की खरीद में हुआ. सूत्र बताते हैं कि एनआरएचएम के निर्देश के मुताबिक झारखंड के 24 जिलों के लिए एक-एक यूनिट खरीदना था. सियाराम प्रसाद ने अपने समय में काफी ऊंची दर 66 लाख रु. प्रति यूनिट के हिसाब से 24 गाड़ियों की खरीद कर ली थी, जिसकी जांच भी चल रही है.

प्रदीप ने 79 अतिरिक्त यूनिट खरीदने का आदेश दे दिया. इसके लिए लातेहार में प्रस्तावित 500 बिस्तर वाले अस्पताल के मद के फंड को डाइवर्ट किया गया. जमशेदपुर के गजानन मलोटिया की कंपनी बेबको के साथ करार हुआ. गुपचुप तरीके से टेंडर निकाला गया और टेंडर में सिर्फ तीन कंपनियां शामिल हुईं जिनमें से दो कागज पर थीं, जिसके मालिक गजानन के पुत्र नवीन, कृष्ण और नीतीश थे. प्रति यूनिट 60 लाख रु. की दर पर करार तय हुए जबकि ऐसे यूनिट का बाजार भाव 12 लाख रु. से ज्‍यादा नहीं था.

करार होने के ठीक घंटे भर के भीतर बेबको को 40 करोड़ रु. का अग्रिम भुगतान कर दिया गया और ये पैसे एचडीएफसी मुचुअल फंड में निवेश कर दिए गए.

यही नहीं, एनआरएचएम के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर जरूरत से अधिक दवा की खरीद की गई. एक मद के फंड को दूसरी मद में खर्च किया गया और केंद्र को गलत रिपोर्ट दी गई. स्वास्थ्य सचिव रहते हुए सियाराम प्रसाद ने वित्त वर्ष 2007-08 में 17.26 लाख रु. ह्यद्ध हेराफव्री की जबकि 2008-09 में प्रदीप के समय यह राशि बढ़कर 21.71 करोड़ रु. की हो गई.

बिना किसी जांच के यह तय कर लिया गया कि झारखंड की तीन करोड़ की आबादी रक्तहीनता की शिकार है जिसके लिए आयरन की गोलियां खरीदनी जरूरी है.

आयरन की ऐसी 50 करोड़ गोलियां खरीदी गईं जिनकी एक्सपायरी की तिथि महज तीन से छह महीने ही थी. 10 करोड़ रु. की हर्बल मेडिसिन जिसकी गुणवत्ता संदिग्ध थी को खरीदा गया. तरीके से स्टेट ड्रग कंट्रोलर मदन मोहन को इस पर आपत्ति करनी चाहिए थी जो उन्होंने नहीं की.

सीबीआइ के एसपी रामचंद्र चौधरी बताते हैं, ''हम लोगों ने जांच के दौरान तार्किक अंत पर पहुंचने के बाद ही आरोपपत्र दाखिल किया है.''

राजनीति और प्रशासन में रसूख रखने वाले शाही और प्रदीप ने दो दिनों के अंतराल पर आत्मसमर्पण िकया. शाही को 'छोटे सरकार' कहलाना पसंद था और कभी रांची के उपायुक्त रह चुके प्रदीप रांची का बॉस कहलाते थे. लेकिन आत्मसमर्पण के समय दोनों ही अकेले थे. बेशक इसी से समझा जा सकता है कि शाही और उनके पूर्व साथियों के आने वाले दिन कोई बहुत अच्छे नहीं हैं.

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