एक निवेश कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खान कंपनियों में से एक कोल इंडिया और भारत सरकार को अदालत में ले जाने को तैयार है. लंदन स्थित इस हेज फंड के पास कोल इंडिया की 1.01 फीसदी हिस्सेदारी है. इस हिस्सेदारी की कीमत है 2,200 करोड़ रु. ब्रिटेन के द चिल्ड्रेन इन्वेस्टमेंट फंड (टीसीआइ) को 46 साल के क्रिस्टोफर होन चलाते हैं. यह लाभ कमाने के लिए बना फंड है. करीब 2.2 लाख करोड़ रु. की बाजार पूंजी वाली कोल इंडिया पर अल्पसंख्यक शेयरधारकों के अधिकारों का हनन करने के आरोप में होन भारत में दो अलग-अलग मुकदमे दायर करने वाले हैं.
होन का 8 अरब डॉलर (40,000 करोड़ रु.) का टीसीआइ यूरोप में अपनी शेयरधारक सक्रियता के लिए प्रसिद्ध है. इसका गठन 2004 में हुआ था. इसने 2007 में एबीएन एमरो बैंक को काफी गुस्से से भरे पत्र लिख कर कमजोर प्रबंधन को दुरुस्त करने के लिए कहा. टीसीआइ ने 2008 में वेदांता की पुनर्गठन योजना के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धमकी देकर उसे झुकने के लिए मजबूर कर दिया.
होन टीसीआइ के इस आक्रामक रुख के बारे में अडिग हैं. लंदन के फाइनेंशियल टाइम्स को दिए एक दुर्लभ साक्षात्कार में उन्होंने कहा, ''हम अपने निवेश सिद्धांत के तहत मजबूत कंपनियों पर ही नजर डालते हैं. हम ऐसी स्थितियों से नहीं डरते जो दूसरों के लिए असुविधाजनक हों.'' टीसीआइ के सबसे बड़े कुछ निवेशों को देखें तो उनमें रूपर्ट मर्डोक की न्यूज कॉर्प और वॉल्ट डिज्नी में हिस्सेदारी शामिल है.
इनगवर्न रिसर्च सर्विसेज के जुटाए आंकड़ों के अनुसार, टीसीआइ ने जून, 2011 में समाप्त तिमाही के दौरान अपनी दो सहायक कंपनियों, टीसीआइ साइप्रस होल्डिंग और आयरलैंड स्थित टैलोस कैपिटल के माध्यम से कोल इंडिया में 1 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी खरीदी. यह कंपनी दो मुकदमे दायर कर रही है-एक मुकदमा कोल इंडिया के खिलाफ और दूसरा भारत सरकार के खिलाफ जो ब्रिटेन और भारत के बीच द्विपक्षीय निवेश संधि के आधार पर है.
टीसीआइ के पार्टनर ऑस्कर वेल्डुइजेन कहते हैं, ''यह स्पष्ट है कि भारत सरकार राजनयिक हस्तक्षेप कर रही है और उचित तरीके से अल्पसंख्यक शेयरधारकों का समर्थन नहीं कर रही है.'' कोल इंडिया के शेयर की कीमत 30 जून, 2011 से अब तक घट कर 392.40 रु. से 349.65 रु. पर, यानी 11 फीसदी नीचे आ गई है. इन मुकदमों के लिए टीसीआइ ने लूथरा ऐंड लूथरा की सेवाएं ली हैं.
टीसीआइ की मुख्य दलील यह है कि कोल इंडिया ने कोयले के मूल्य निर्धारण की जो नीति रखी है, वह कंपनी के शेयरधारकों के हितों को ज्यादा-से-ज्यादा मुनाफा दिलाने के उसके कर्तव्य के विरुद्ध है. कंपनी 70 फीसदी कोयला बाजार भाव से कम कीमत पर बेचती है. टीसीआइ का मानना है कि कंपनी ने रियायती मूल्य निर्धारण के चलते 19 अरब डॉलर (95,000 करोड़ रु.) गंवा दिए हैं.
टीसीआइ इस बात का भी विरोध कर रही है कि सरकार ने कंपनी को राष्ट्रपति के निर्देश के जरिए कोल इंडिया को बिजली कंपनियों के साथ ईंधन आपूर्ति समझैते (एफएसए) पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया. इस समझैते के तहत कोल इंडिया बिजली कंपनियों की 80 फीसदी कोयला आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध होगी. टीसीआइ का कहना है कि एफएसए पर तभी हस्ताक्षर होने चाहिए, जब कोयला बाजार दर पर बेचा जाए. इसने यह भी मांग रखी है कि कंपनी लाभांश (डिविडेंड) का प्रतिशत बढ़ा कर अपने लाभ का 90 फीसदी हिस्सा लाभांश (डिविडेंड) के रूप में दे. कोल इंडिया का मुनाफा लगभग 17,000 करोड़ रु. का है. इसने 2011-12 के लिए सरकार को 5,400 करोड़ रु. के लाभांश का भुगतान किया है, जिसके पास कंपनी की 90 फीसदी हिस्सेदारी है.
जाहिर है कि सरकार होन के आरोप से सहमत नहीं है. कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल कहते हैं, ''यह सोचना गलत है कि अल्पसंख्यक शेयरधारकों के साथ ज्यादती हो रही है. वास्तव में कोल इंडिया का मुनाफा चालू वित्त वर्ष में बढ़ा है और उसने पिछले साल से ज्यादा लाभांश दिया है.''
एंजेल ब्रोकिंग में वरिष्ठ विश्लेषक भवेश चौहान ध्यान दिलाते हैं कि कंपनी की प्रोसपेक्टस में यह लिखा था कि सरकार जनहित में निर्णय लेने का अधिकार रखती है. इसलिए अपने आइपीओ के समय कंपनी ने निवेशकों को गुमराह नहीं किया. वे कहते हैं, ''मुझे नहीं लगता कि टीसीआइ की दलील जायज है.'' इसके अलावा, कोयला कंपनी ने प्रोसपेक्टस में जो अन्य लक्ष्य बताए थे, उन्हें उसने पूरा किया है. इसलिए उसने निवेशकों को एकदम निराश तो नहीं किया है.
पर कुछ लोगों का मानना है कि टीसीआइ अल्पसंख्यक शेयरधारकों के लिए अच्छा काम कर रही है. कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के विश्लेषक मुर्तुजा आरसीवाला इस बात से सहमत हैं कि कोल इंडिया अगर अधिक फायदे में रहे तो यह अंततः भारत के लोगों के लिए फायदेमंद ही होगा क्योंकि इसका 90 प्रतिशत स्वामित्व उन्हीं का है. साथ ही इससे अल्पसंख्यक शेयरधारकों के हितों की भी रक्षा होगी. कोल इंडिया के एक शीर्ष अधिकारी का कहना है, ''लाभांश पर प्रभाव के बारे में उनका चिंतित होना सही है, लेकिन उनके पास देश की नीति पर अपनी शर्तें थोपने का अधिकार नहीं है.''
होन निश्चित रूप से आखिरी दम तक लड़ेंगे. उनकी दिलचस्पी पैसों से ज्यादा खुद को सही साबित करने में है. द इकोनॉमिस्ट ने अतीत में उनकी लड़ाइयों का जिक्र करते हुए लिखा है, ''वे तर्क से जीतना पसंद करते हैं, और पैसा बनाना बस इस बात का सबूत है कि वे जीते.''
जमैका के एक कार मैकेनिक के पुत्र होन अमेरिका में जन्मी अपनी पत्नी जेमी कूपर-होन से पहली बार तब मिले थे, जब वे हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में पढ़ रहे थे. पूरे यूरोप में वे नए युग के वेंचर फिलएंथ्रोपिस्ट यानी दान आधारित कार्यों के लिए वेंचर कैपिटल का प्रयोग करने वाले व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध हैं. उन्होंने टीसीआइ का गठन इस तरह किया है कि हर साल यह उनकी पत्नी के धर्मार्थ संगठन को अपनी संपत्ति से हुए लाभ का 0.5 प्रतिशत दान कर देता है. यह संगठन एशिया और अफ्रीका में गरीब बच्चों के जीवन में सुधार लाने के लिए सक्रिय है.
विश्लेषकों को डर है कि इस लड़ाई में हारने की स्थिति में टीसीआइ अपने इस निवेश से हाथ खींच लेगी. अतीत में जिन कंपनियों के प्रबंधन से इसकी ठनी, उनमें इसने ऐसा ही किया. टीसीआइ ही 2009 में किसी विदेशी संस्थागत निवेशक की एकमुश्त सबसे बड़ी बिकवाली के लिए जिम्मेदार थी. तब इसने पोर्टफोलियो में शामिल आठ बैंकों के अपने सारे शेयर बेच दिए.
इन बैंकों में बैंक ऑफ बड़ौदा, पंजाब नेशनल बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और अन्य शामिल थे. यह बिकवाली कुल 3,113 करोड़ रु. की थी. इस समय कोल इंडिया को छोड़ कर किसी भी अन्य भारतीय कंपनी में टीसीआइ की 1 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी नहीं है. यह ऐसी स्थिति होगी, जिससे बचना ही सबसे अच्छा होगा. एसएमसी इन्वेस्टमेंट्स ऐंड एडवाइजर्स के सीएमडी डी.के. अग्रवाल का मानना है, ''सरकारी नीतियों और उत्पादन में ठहराव के मद्देनजर (इतनी बड़ी बिकवाली में) खरीदारों का मिलना मुश्किल होगा.''
लेकिन अगर टीसीआइ मुकदमा जीत गई तो यह मिसाल बन सकती है. कॉर्पोरेट गवर्नेंस पर शोध करने वाली संस्था इनगवर्न के संस्थापक और प्रबंध निदेशक श्रीराम सुब्रमण्यम कहते हैं, ''टीसीआइ के पक्ष में कोई फैसला गलत राह पकड़ने वाली कंपनियों के निदेशकों के खिलाफ मुकदमे दायर करने के लिए अन्य निवेशकों को प्रोत्साहित करेगा.''
अब तक इसने इतना तो हासिल किया है कि स्वतंत्र निदेशक एफएसए पर आपत्ति के लिए प्रेरित हुए. कंपनी ने एफएसए में जुर्माना 0.01 प्रतिशत के न्यूनतम स्तर पर रखा. साथ ही इसके मसौदे में बचाव की कई धाराएं भी डाली गईं. वेल्डुइजेन ने जुलाई, 2011 में ब्लूमबर्ग से बातचीत में कहा था, ''कोल इंडिया भारत में निवेश का अब तक का सबसे अच्छा अवसर है. यह सोया हुआ दानव है.'' क्या होन इसे जगा पाएंगे?