एक साल पहले 29 दिसंबर, 2019 को लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति की जिम्मेदारी संभालने वाले डॉ. आलोक कुमार राय दो महीने ही गुजार पाए थे कि कोरोना महामारी ने दस्तक दे दी. मार्च में विश्वविद्यालय बंद कर दिया गया. पूर्ण लॉकडाउन में विद्यार्थी घरों में कैद हो गए. लॉकडाउन में शैक्षिक संस्थाओं को जैसे-जैसे छूट मिली, डॉ. आलोक कुमार राय के नवोन्मेषों को पैर फैलाने की जगह भी मिलने लगी. वर्ष 2020 अगर कोरोना महामारी के लिए जाना जाएगा तो यह 100 साल की उम्र पूरी करने वाले लखनऊ विश्वद्यालय में शुरू हुए उन तौर-तरीकों के बारे में भी याद किया जाएगा जिसने इस शिक्षण संस्थान को देश में एक अलग पहचान दी है.
देश के सरकारी विश्वविद्यालयों में लखनऊ विश्वद्यालय संभवत: पहला संस्थान बन गया है जिसने अपना खुद का ‘लर्निग मैनेजमेंट सिस्टम’ लागू किया है. वर्तमान में ऑनलाइन शिक्षा के लिए ज्यादातर संस्थान गूगल मीट, एमएस टीम, जूम जैसे सॉफ्टवेयर का उपयोग करते हैं. कोरोना संक्रमण के दौरान कुलपति डॉ. आलोक कुमार राय ने अपनी निगरानी में लखनऊ विश्वविद्यालय का अपना ‘लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम’ तैयार किया जिसे ‘स्ट्रीटजिक लर्निंग ऐप्लीकेशन फॉर ट्रांसमीटिव एजुकेशन’ यानी स्लेट नाम दिया. इसमें मोबाइल या कंप्यूटर पर एक वर्चुअल क्लासरूम के जरिए विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर सकता है. “स्लेट” को इस तरह से डिजायन किया गया है कि इसमें न केवल क्लास में पढ़ने वाले हर विद्यार्थी की सीधी निगरानी होती है बल्कि शिक्षक क्या और कैसे पढ़ा रहा है? इसपर भी नजर रखी जाती है. इसी के जरिए शिक्षक अपने विषय का न केवल वीडियो शेयर कर सकता है बल्कि पीपीटी या अन्य तरीके से भी विद्यार्थियों को जानकारी मुहैया करा सकता है. क्लास के खत्म होते ही विद्यार्थियों की उपस्थिति का ब्योरा भी सामने आ जाता है. इतना ही नहीं इस सिस्टम में शिक्षक जैसे ही कोई प्रश्नपत्र अपलोड करता है वैसे ही यह सभी वर्चुअली उपस्थित विद्यार्थियों के पास पहुंच जाता है. विद्यार्थी प्रश्नपत्र को सॉल्व कर सिस्टम में अपलोड करते हैं. इसी तरह शिक्षक सॉल्वड प्रश्नपत्र को जांच कर नंबर देता है. हर विभाग का प्रमुख अपने कंप्यूटर के जरिए यह देख सकता है कि कौन की क्लास चल रही है? कौन पढ़ा रहा है और कितने छात्र-छात्राएं पढ़ रहे हैं? लखनऊ विश्वविद्यालय अकेली यूनिवर्सिटी है जिसका अपना यूट्यूब चैनल है जो ‘मॉनिटाइज्ड’ यानी मुद्रीकृत है. इसके 14 हजार से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय ने किस तरह विद्यार्थियों के बीच लोकप्रियता हासिल की है उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दस महीनों के दौरान लखनऊ विश्वविद्यालय की वेबसाइट को सवा दो करोड़ से ज्यादा हिट्स मिले हैं.
कोरोना संक्रमण काल के दौरान लखनऊ विश्वविद्यालय प्रदेश का पहला राज्य विश्वविद्यालय भी था जिसने ‘फ्लिप’ और ‘हाइब्रिड’ मॉडल पर अपना ‘फिजीकल क्लासरूम’ शुरू किया. ‘फ्लिप’ मॉडल में क्लासरूम एजुकेशन तो ऑनलाइन होती है लेकिन विद्यार्थी को अपनी विषयगत समस्याओं का समाधान करने के लिए विश्वविद्यालय में आकर संबंधित शिक्षक से मिलना होता है. वहीं ‘हाइब्रिड’ मॉडल वह है जिसमें एक कक्षा के आधे विद्यार्थी एक दिन और आधे दूसरे दिन पढ़ने विश्वविद्यालय आते हैं. देश की राज्य विश्वविद्यालयों में लखनऊ विश्वविद्यालय पहला है जिसने सभी नियामक संस्थाओं से अनुमति लेकर अपने यहां ‘कम्पलीट पेपरलेस रिक्रूटमेंट सिस्टम’ लागू किया है. इसके तहत भर्ती के लिए विज्ञापन भी जारी हो चुका है और अब इनके तहत आए आवेदनों की छंटनी की जा रही है.
अपने नवोन्मेष को आगे बढ़ाते हुए डॉ. आलोक कुमार राय ने लखनऊ विश्वविद्यालय में नए सत्र से गर्भसंस्कार का एक अनोखा कार्यक्रम शुरू करने की तैयारी की है. देश में पहली बार किसी विश्वविद्यालय में इस तरह का कार्यक्रम शुरू होगा. इसमें मां के गर्भ में बच्चे के आने के बाद से उसका जन्म तक मां और बच्चे के सेहत को कैसे बेहतर बनाया जाए इसकी जानकारी दी जाएगी. गर्भधारण करने के बाद मां को कैसा भोजन करना चाहिए? किस समय कैसे और किस रंग के कपड़े पहनने चाहिए? गर्भावस्था के अलग-अलग चरणों में कैसा योग और व्यायाम करना चाहिए? गर्भावस्था के दौरान किस तरह का संगीत सुनना चाहिए जिससे बच्चे के मस्तिष्क का विकास हो? इसके लिए लखनऊ विश्वविद्यालय ने किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी और भातखंडे संगीत सम विश्वविद्यालय से समझौता किया है.
ऐसे ही अनोखे कार्यक्रमों के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय में विद्यार्थी के संपूर्ण विकास के लिए “हैप्पी थिकिंग लैब” की परिकल्पना ने भी मूर्त रूप लिया है. इसमें विद्यार्थी में मानसिक तनाव का आकलन, उसके प्रभामंडल का आकलन किया जाता है. ज्यादातर संस्थान विद्यार्थी के “इंटेलिजेंस कोशंट” यानी आइक्यू पर फोकस करते हैं लेकिन लखनऊ विश्वविद्यालय ने “हैप्पी थिकिंग लैब” के जरिए आइक्यू के साथ ही विद्यार्थी में ‘इमोशनल कोशंट’ और ‘स्प्रिचुअल कोशंट’ को भी बढ़ाने पर फोकस किया है. इस लैब के संचालन के लिए विश्वविद्यालय ने अपने साथ कुछ आध्यात्मिक संस्थाओं को भी अपने साथ जोड़ा है जो विद्यार्थी की जरूरत के हिसाब से उसे योग या अन्य ‘मेडिटेशन’ मुहैया कराते हैं. कोविड संक्रमण काल के दौरान जब पूरी तरह से लॉकडाउन लागू था तब पुलिसकर्मी अपने परिवार से दूर सड़कों पर लगातार कड़ी ड्यूटी कर रहे थे. इस दौरान लखनऊ विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग ने कुल 35 हजार पुलिसकर्मियों की मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग की.
केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में जितने प्रावधान रखे गए हैं उसका करीब 60 फीसद डॉ. आलोक कुमार राय ने लखनऊ विश्वविद्यालय में लागू कर दिया है. ऐसा करने वाला लखनऊ विश्वविद्यालय प्रदेश का पहला राज्य विश्वविद्यालय है. इसी क्रम में विश्वविद्यालय ने अपना ‘पोस्ट ग्रेजुएट आर्डिनेंस’ सभी वैधानिक प्रक्रियाओं को पूरा करते हुए राजभवन भेज दिया है. इसी तरह ‘पीएचडी आर्डिनेंस’ और ‘डीलिट आर्डिेनेंस’ सब नया बना लिया है. लखनऊ विश्वविद्यालय ने लखनऊ शहर का ‘बायोडायवर्सिटी इंडेक्स’ तैयार किया है. विदेशों में ऐसा प्रोजेक्ट कई विश्वविद्यालयों ने पूरा किया है लेकिन देश में किसी शहर का बायोडायवर्सिटी इंडेक्स पहली बार लखनऊ विश्वविद्यालय ने तैयार किया है. डॉ. आलोक कुमार राय के प्रयास से करीब छह महीने पहले कोरोना संक्रमण की चुनौतियों के बीच विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ वाइल्ड लाइफ साइंसेज ने लखनऊ शहर के जैवविविधता इंडेक्स को तैयार करने की कवायद शुरू की थी. लखनऊ का बायोडायवर्सिटी इंडेक्स जानने के लिए अलग-अलग जीव-जंतुओं, पशु पक्षियों व उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों की विभिन्न प्रजातियों व वैरायटी पर शोध व अध्ययन किया गया. इसमें पाया गया कि लखनऊ का इंडेक्स 30 है. 92 प्वाइंट को बेस्ट इंडेक्स माना जाता है. बायोडायवर्सिटी इंडेक्स को सफलतापूर्वक तैयार करने के बाद मिले हौसले से अब लखनऊ विश्वविद्यालय अपने खुद के परिसर का ‘ग्रीन ऑडिट’ कर रहा है. इसके बाद विश्वविद्यालय के पास यह ब्योरा मौजूद होगा कि इसके परिसर में कितनी ‘ग्रीन बिल्डिंग’ हैं. परिसर में पेड़-पौधों की संख्या कितनी है? इनसे कितना ऑक्सीजन और कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जित होता है? परिसर का कूड़ा प्रबंधन कितना प्रभावी है? ऐसी कई जानकारियां इस ग्रीन ऑडिट से स्पष्ट हो जाएंगी.
इसी के साथ लखनऊ विश्वविद्यालय देश में पहली बार ‘कार्बन फुटप्रिंट रिडक्शन एसेसमेंट’ का अध्ययन कर रहा है. इसमें यह देखा जाएगा कि जो लोग विश्वविद्यालय के परिसर में आए और उन्होंने जितनी मात्रा में कार्बन डाइआक्साइड का उत्सर्जन किया और परिसर के ‘ग्रीन इनीशिएटिव’ ने जितना आक्सीजन का उत्सर्जन किया, इन दोनों की मैपिंग करायी जाएगी. इसमें यह भी देखा जाएगा कि परिसर में कितने पेड़-पौधे हैं? उनका आकार कैसा है? उनमें शाखाएं, पत्तियां कितनी हैं? ऐसे कई बेहद सूक्ष्म पैरामीटर पर परिसर के ‘ग्रीन इनीशिएटिव’ के कारकों का पूरा ब्योरा तय किया जाएगा. यह एसेसमेंट शुरू हो चुका है जो एक साल तक चलेगा.
लखनऊ विश्वविद्यालय के एकेडमिक पटल को विस्तार देने के लिए डॉ. आलोक कुमार राय ने यहां पर “फैकल्टी आफ योग ऐंड अल्टरनेटिव मेडिसिन” की नींव डाली है जिसमें वर्तमान सत्र से प्रवेश भी शुरू हो गया है. देश में ऐसी फैकल्टी शुरु करने वाला लखनऊ विश्वविद्यालय पहला राज्य विश्वविद्यालय बन गया है. इसी तरह विश्वविद्यालय में “इंस्टीट्यूट आफ एडवांस मॉलीकुलर जेनेटिक्स एंड इन्फेक्शियस डिजीजेज” और “सेंटर फार नैनोसाइंसेज” खोला गया है. वैदिक साहित्य और प्राकृतिक भाषा के विकास के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय में एक प्राचीन अभिनव गुप्त संस्थान है जो समय के साथ उपेक्षा का शिकार होता गया है. अब इस संस्थान को एक स्कूल का दर्जा देकर इसके प्राचीन वैभव को वापस लाने की कवायद शुरू की गई है.
विद्यार्थियों से संवाद स्थापित करने में भी लखनऊ विश्वविद्यालय ने दूसरे राज्य विश्वविद्यालयों के सामने मिसाल कायम की है. विश्वविद्यालय में कार्यरत सभी शिक्षक और अधिकारी का अपना ट्विटर अकाउंट है. कोई भी विद्यार्थी किसी भी समय अपनी जरूरत के अनुसार शिक्षक या अधिकारी से ट्विटर के जरिए संपर्क कर सकता है. लखनऊ विश्वविद्यालय को ‘स्टूडेंट फ्रेंडली’ बनाने के लिए भी कई स्तर पर प्रयास किए गए जिन्होंने इस संस्थान को दूसरे के मुकाबले अलग जगह दिलाई है. ऐसा ही एक प्रयास “स्टूडेंट ओपीडी” का है. जिस तरह डॉक्टरों की ओपीडी होती है उसी तर्ज पर विश्वविद्यालय का एक शिक्षक हफ्ते में एक दिन एक घंटा केवल विद्यार्थियों की समस्याएं सुनने के लिए मौजूद रहता है. इसमें विद्यार्थी शिक्षक से अपने व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी समस्याओं को बताकर उनका निदान पा सकता है बल्कि घरेलू, व्यवसायगत या किसी अन्य तरह की दिक्कतों को साझाकर उनपर शिक्षक की सलाह पा सकता है. लॉकडाउन के दौरान यह “स्टूडेंट ओपीडी” की धारणा को हकीकत में बदला गया. इसी तरह पीजी विद्यार्थियों को परामर्श देने के लिए एक “ट्री” (टीचिंग, रीचिंग, एम्बोल्डरिंग, एवॉल्विंग) स्कीम शुरू की गई है. इसीक्रम में लखनऊ विश्वविद्यालय ने अनोखी परामर्श स्कीम “संवर्धन योजना” के नाम से शुरू की है. इसमें पीएचडी का छात्र पीजी के छात्र को, पीजी का छात्र स्नातक के छात्र को उसकी जरूरत के हिसाब से सलाह देगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब मई में “आत्मनिर्भर भारत” योजना की शुरुआत की तो डॉ. आलोक कुमार राय की पहल पर “आत्मनिर्भर लखनऊ विश्वविद्यालय” को केंद्रित कुछ नई योजनाएं शुरू की गईं. ऐसा ही एक अनोखा कोर्स “एमबीए इन आंत्रप्रन्योरशिप ऐंड फैमिली बिजनेस मैनेजमेंट” शुरू किया गया. यूपी के राज्य विश्वविद्यालयों में लखनऊ विश्वविद्यालय पहला है जहां ‘सेंट्रलाइज्ड एडमिशन सिस्टम’ लागू किया गया है.
गोमती नदी के किनारे मौजूद लखनऊ विश्वविद्यालय में नवोन्मेषों की गंगा बहाने वाले डॉ. आलोक कुमार राय मूलत: बनारस के लक्सा इलाके के रहने वाले हैं. इनके पिताजी लोक निर्माण विभाग में इंजीनियर के पद से सेवानिवृत्त हैं. इंटर तक की पढ़ाई बनारस से करने के बाद डॉ. आलोक ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स से बीएससी किया. इसके बाद इन्होंने एमएससी में दाखिला लिया. इलाहाबाद विश्वविद्यालय का सत्र पिछड़ा हुआ था और इसी दौरान इन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में एमबीए में दाखिला मिल गया. वर्ष 2000 में एमबीए पूरा करते ही इनका प्लेसमेंट “हाकिक्स कूकर्स लिमिटेड” में हो गया. प्राइवेट नौकरी में मन न लगने के कारण आलोक ने यह नौकरी छोड़ दी और वे बनारस के उदय प्रताप कॉलेज में मार्केटिंग पढ़ाने लगे. इस दौरान मार्केटिंग में ‘कस्टमर रिलेशनशिप मैनेजमेंट’ एक नया विषय उभरकर सामने आया था जिसपर आलोक ने महारथ हासिल कर ली थी. उदय प्रताप कॉलेज में पढ़ाने के दौरान ही इन्होंने अपनी पीएचडी पूरी की. वर्ष 2006 में आलोक बीएचयू में शिक्षक बन गए. मैनेजमेंट विषय पर डॉ. आलोक की लिखी किताबों ने देश और विदेश में काफी प्रसिद्धि पायी. 'कस्टमर लायलिटी', ‘कस्टमर रिलेशनशिप मैनेजमेंट’, ‘बिजनेस एथिक्स’ जैसे विषयों पर डॉ. आलोक कुमार राय की लिखी किताबों ने विद्यार्थियों के बीच काफी लोकप्रियता पायी है. अब डॉ. आलोक कुमार राय ने कुलपति के तौर पर वर्ष 2021 का अपना पहला ‘एसाइनमेंट’ लखनऊ विश्वविद्यालय में “बिजनेस क्लीनिक सेंटर” की शुरुआत के रूप में तय किया है. इस आनोखे सेंटर में स्थानीय उद्यमी अपनी व्यवसायगत एवं अन्य समस्याओं का निदान पा सकेंगे. इस तरह नए साल में लखनऊ विश्वविद्यालय का शैक्षिक आकाश कुछ और फैलेगा जिनमें नए परिंदों को भी जगह मिलेगी.
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