आज कल किसी बात की जानकारी लेनी हो तो लोग विकिपीडिया की शरण लेते हैं. और अगर आप विकिपीडिया पर हसदेव नदी खोजेंगे तो आपको इसका परिचय दो पंक्तियों में मिलेगा कि हसदेव नदी महानदी की प्रमुख सहायक नदी है. यह कोरबा के कोयला क्षेत्र में और चांपा मैदान में बहती है. हसदेव नदी कोरिया जिले की कैमूर की पहाड़ियों से निकलकर कोरबा, बिलासपुर जिलों में बहती हुई महानदी में मिल जाती है. इसकी कुल लंबाई 176 किलोमीटर है. बस. थोड़ा नीचे स्क्रॉल करेंगे तो शायद आपकी नजर एक और पंक्ति पर जाएगी जिसमें लिखा है कि एक सर्वे के अनुसार हसदेव नदी छत्तीसगढ़ की सबसे प्रदूषित नदी है.
विकिपीडिया में योगदान करने वाले ने यह नहीं बताया है कि यह सर्वे कौन सा था और छत्तीसगढ़ की यह नदी सबसे प्रदूषित है तो पर यह समस्या कितनी गहरी है. हमने शायद प्रदूषित नदियों और तालाबों को अपनी नियति मान लिया है.
हसदेव छत्तीसगढ़ की 21 उन नदियों में शामिल है जिसे सूबे की जीवनरेखा कहा जा सकता है. अपने सफर में पहले 125 किमी तक तो हसदेव नदी बिल्कुल साफ-सुथरी रहती है पर उसके बाद कोरबा पहुंचते ही नदी का पानी प्रदूषित हो जाता है. इसका कारण बांध से निकला राखड़युक्त पानी और हानिकारक रसायन हैं. हसदेव नदी पर ही बांगो बांध है, साथ ही अब तक 11 एनीकट बनाए गए हैं, जहां से औद्योगिक संस्थानों को पानी दिया जाता है.
बनने के समय इस बांध की जल भराव क्षमता 3,046 मिलियन घन मीटर (एमसीएम) थी, लेकिन गाद भरने की वजह से यह अब घटकर 2,894 एमसीएम रह गई है. हसदेव बांगो बांध का निर्माण 1992 में पूरा हुआ था. पिछले 27 साल में बांध की जल भराव क्षमता 10 फीसद घट गई है. बांध में बारिश के समय पानी में बहकर गाद आता है. इस बात की पुष्टि केन्द्रीय जल आयोग की रिपोर्ट भी करती है. इसी वजह से औद्योगिक संस्थानों को पानी देने के लिए निर्धारित मात्रा में से 23 मिलियन घनमीटर घटा दी गई है. यहां से उद्योगों को देने के लिए 418 एमसीएम पानी रिजर्व रखा गया है. पहले उद्योगों के लिए 441 एमसीएम पानी रिजर्व रखा गया था. खरीफ सिंचाई के लिए 1,454 एमसीएम पानी रिजर्व रखा गया है.
बांगो बांध से दर्री बराज के बीच एनटीपीसी के राखड़ (फ्लाइऐश) बांध का पानी नदी में आता है. इसके बाद दर्री बराज से नीचे बेलगरी और ढेंगुरनाला का पानी नदी में जाता है. यहां से भी राखयुक्त पानी का प्रवाह होता है.
मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद से इस इलाके में औद्योगीकरण तेज हुआ है और कृषि की आधुनिक विधियां अपनाने से हसदेव नदी में कई तरह के भारी धातुओं का जमाव होने लगा है. राजश्री सिंह ने इस पर एक शोधपत्र तैयार किया है और उनके शोधपत्र में हसदेव नदी में जमा भारी धातुओं की मात्रा के बारे में विस्तार से बताया गया है. शोध के मुताबिक, इन भारी धातुओं के संपर्क में आने से न सिर्फ नदी के जलीय जीवों पर बुरा असर पड़ेगा बल्कि लोगों की सेहत पर इसका असर दिखने भी लगा है.
शोधपत्र के मुताबिक, कोरबा में दस अलग-अलग जगहों पर प्रदूषकों की जांच की गई. नदी के पानी में कैडमियम, कॉपर, लेड, लौह, और जिंक जैसे धातुओं की मात्रा मानकों के लिहाज से काफी अधिक मानी गई है.
असल में, कोरबा को सूबे की ऊर्जा राजधानी भले ही कहा जाता हो, पर यहां के बिजलीघरों ने हसदेव नदी की सांसे रोकने का काम किया है. यहां के ताप बिजली घरों में रोजाना 80 हजार टन कोयले की खपत होती है और उसका 40 फीसद हिस्सा राख के रूप में बच जाता है. इस बॉटम ऐश और फ्लाइ ऐश को पानी में भिंगोकर राखड़ डैम में ले जाया जाता है. एनटीपीसी, बिजली उत्पादन कंपनी, बालको का राखड़ डेम हसदेव नदी के साथ नालों के किनारे है, जिसकी वजह से राखड़ बहकर नदी में जाता है. इसी से पानी प्रदूषित होता है.
इस समस्या की गंभीरता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि कोरबा के 8 ताप बिजलीघरों से 1 लाख मीट्रिक टन से अदिक फ्लाइ ऐश का उत्पादन होता है.
हालांकि, कुछ ताप बिजली घरों में तो राखड़ डैम भी नहीं है.
2009 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक अध्ययन करवाया था जिसके मुताबिक, कोरबा देश के 88 औद्योगिक क्लस्टर्स में गंभीर रूप से प्रदूषित क्लस्टर में पांचवे पायदान पर था.
हसदेव नदी का दम राखयुक्त पानी से घुटता जा रहा है. कोरबा में बन रही बिजली से हमारे घर रोशन हो रहे हैं पर एक नदी के खत्म हो जाने के बाद उस इलाके में कितना अंधेरा फैलेगा, हमें इसका जरा भी अंदाजा नहीं.
(मंजीत ठाकुर, इंडिया टुडे के विशेष संवाददाता हैं)
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