अक्सर दिसंबर में कुहरे में घिरे रहने वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश में महीने के पहले हफ्ते तक जाड़े का खास एहसास नहीं हो रहा था. इसके बरअक्स अगले साल विधानसभा चुनाव की आहट के बावजूद सियासी दलों को समर्थन देने के मामले में लोगों की प्रतिक्रिया बेहद ठंडी थी. प्रदेश के आजमगढ़ जिले में जगह-जगह अभी तक दीपावली और ईदुज्जुहा की बधाई देने वाले सियासी पोस्टर और होर्डिंग लगे थे.
21 दिसम्बर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
आजमगढ़ मुख्यालय से आधे घंटे की दूरी पर मुबारकपुर में जिंदगी रोजमर्रा की तरह सुस्त है. पास में ही कुछ रोज पहले कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के दौरे और बुनकरों के लिए केंद्रीय पैकेज की घोषणा के बाद कांग्रेस पार्टी के स्थानीय प्रत्याशी अब्दुस्सलाम की सभाओं में भीड़ बढ़ने लगी है. एमिलो गांव में कच्ची सड़क की बगल में एक छोटे-से कमरे में हथकरघा चला रहे 32 वर्षीय रईस अहमद अंसारी का कहना है, ''हमने अभी तक कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया है. लेकिन हमारे बुजुर्ग इस बारे में आखिरी फैसला करेंगे.'' वहीं कपड़े के दुकानदार हाजी शमशाद कहते हैं, ''हम लोगों ने कांग्रेस को वोट देने का फैसला कर लिया है.'' शमशाद साथ में यह भी जोड़ देते हैं कि वे भी परम वीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद की तरह दर्जी जाति के हैं.
14 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
07 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
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राहुल गांधी ने बुनकरों के लिए पैकेज की घोषणा करवाकर उन्हें खुश करने की कोशिश की है. वाराणसी की तंग गलियों वाले दारानगर में हर घर से टक-टक, टक-टक की आवाज सुनाई देती है. प्रसिद्ध मृत्युंजय मंदिर के किनारे आबाद बुनकरों की इस बस्ती में रहने वाले 77 वर्षीय नूरुद्दीन अंसारी कहते हैं, ''मैं 1947 से ही कांग्रेस को वोट दे रहा हूं.'' वहीं 50 गज के एक घर में ग्राउंड फ्लोर पर चार हथकरघे लगे हैं, करघों के बीच में इतनी भी जगह नहीं है कि दो लोग आराम से खड़े हो जाएं. परिवार के लोग पहली मंजिल पर रहते हैं. मुंबई में पिछले 40 साल से रह रहे घर के एक अन्य सदस्य अब्दुल हसन अंसारी हाल में अपने भाइयों के पास आए और उनकी दुर्दशा देखकर सियासी लोगों से बेहद नाराज हैं. वे कहते हैं, ''हमारी ऐसी हालत है कि आपको बैठने के लिए भी नहीं कह सकते.'' उनके भाई 55 वर्षीय रहीमुल्लाह अंसारी अपनी परेशानियों के बारे में बताते हैं. एक साड़ी तैयार करने पर रोजाना 100 रु. की दिहाड़ी भी निकालना मुश्किल होता है. ऊपर से महंगाई और बिजली के बिल से जीना मुहाल है. घर की मरम्मत के लिए पैसा नहीं है. वे कहते हैं, ''हम कांग्रेस का समर्थन करने के लिए तैयार हैं.'' लेकिन एक शर्त है ''पहले उसे अपने वादे पूरे करने होंगे.''
30 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
दिक्कत यह है कि राहुल ने पैकेज की घोषणा तो करवा दी है लेकिन उसे आम बुनकरों तक पहुंचवाने के लिए उनके पास संगठन नहीं है. कांग्रेस कार्यकर्ता मायूस हैं और इसकी कई वजहें हैं. बुनियादी स्तर के कार्यकर्ताओं को पार्टी में अहमियत नहीं दी जाती. दारानगर बस्ती के किनारे रहने वाले कांग्रेस के कार्यकर्ता अनूप श्रीवास्तव मानते हैं कि बुनियादी स्तर पर पार्टी संगठन खत्म हो चुका है. वे कहते हैं, ''कार्यकर्ताओं के काम को कोई देखने-सुनने वाला नहीं है.'' ऐसे में पैकेज मिल भी जाए तो वह उसके हकदार लोगों तक नहीं पहुंच पाएगा. शहर में बुनकरों की कम से कम 320 सोसाइटी हैं और एक ही पते पर कोई एक दर्जन सोसाइटी हैं, जो फायदे को डकारने के लिए तैयार हैं.
कांग्रेस की इस कमजोरी का फायदा अफजाल और उनके भाई मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल को हो सकता है. उसका प्रत्याशी भले न जीते पर वह कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकता है और इसका अंदेशा कांग्रेस कार्यकर्ताओं को भी है. राज्य में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) के उम्मीदवारों की किस्मत पर पानी फेरने के लिए पीस पार्टी, ओलमा कौंसिल, कौमी एकता दल, वंचित समाज पार्टी, इंडियन जस्टिस पार्टी, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी जैसी कोई एक दर्जन पार्टियां हैं. जेल में बंद मुख्तार अंसारी की पार्टी का गाजीपुर और मऊ में भी असर हो सकता है. गाजीपुर जिले में मोहम्मदाबाद के आरिफ अली खान कहते हैं, ''मुख्तार यहीं के हैं और उनकी पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन जरूर मिलेगा.''
23 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे16 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
मुसलमानों में पिछड़ी जातियों की नुमाइंदगी करने वाली पीस पार्टी को प्रदेश के पूर्वी और उत्तरी इलाके में खासा समर्थन हासिल है. महाराजगंज में एक सरकारी विभाग में ड्राइवर का कहना है, ''मैं पीस पार्टी का समर्थक हूं. प्रत्याशी चाहे जो हो मैं उसी को वोट दूंगा.'' खुद ओलमा कौंसिल के प्रमुख आमिर रशादी मानते हैं, ''पीस पार्टी को गोरखपुर में कम से कम एक, बस्ती में छह और फैजाबाद में दो सीटें मिल सकती हैं.'' लेकिन ऐसी पार्टियां कांग्रेस और सपा के कितने उम्मीदवारों की किस्मत पर ताला लगा सकती है? रशादी कहते हैं, ''हम मुसलमानों को गुलामी से निकालना चाहते हैं. 75,000 बार गरज हो तो हमें वोट देना.'' ओलमा कौंसिल के प्रमुख ने 6 दिसंबर को उर्दू अखबारों में इश्तिहार देकर अयोध्या में जमीन का मालिकाना हक तीन भागों में बांटने के लिए अदालत को भी कोसा. सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन मामले पर रशादी की टिप्पणी को चुनाव से पहले माहौल तैयार करने का तरीका भी माना जा सकता है.
दरअसल, इन छोटी पार्टियों के उभरने की बड़ी वजह इस समुदाय की अपनी समस्याएं हैं. देश में कई बम विस्फोटों में आजमगढ़ के नौजवानों को अभियुक्त बनाया गया, जिनमें से कई बाद में निर्दोष माने गए. स्थानीय लोगों को लगा कि यह इलाके को बदनाम करने की साजिश है. उनकी इस भावना को रशादी की पार्टी ने भुनाया. लेकिन अब इलाके में शांति होने की वजह से कुछ लोगों को लगता है कि ओलमा कौंसिल का समर्थन एक-तिहाई रह गया है. प्रसिद्ध शिबली नेशनल कॉलेज के प्रिंसिपल शाह अफजल फै.जा कहते हैं, ''मुख्य लड़ाई बसपा और सपा में है. बाकी पार्टियां किसी को फायदा पहुंचाने और उससे फायदा लेने के लिए हैं. कांग्रेस के वादे शादी के वक्त बजने वाली शहनाई की तरह हैं. चुनाव खत्म और वादे भी खत्म.'' वे बताते हैं कि सपा ने इलाके के इस प्रमुख कॉलेज प्रशासन के साथ सहयोग किया. आज यहां हजारों लड़के और आसपास के जिलों की दर्जनों लड़कियां हॉस्टल में ही रहकर तालीम हासिल कर रही हैं. इलाके में कांग्रेस से नाराजगी की बड़ी वजह आतंकी मामलों से निबटने में केंद्रीय एजेंसियों का रवैया है और कांग्रेस ने वादे के मुताबिक अभियुक्तों की झटपट सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन न करके अपना ही नुक्सान किया है.
9 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे2 नवंबर 201: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
राहुल गांधी के तूफानी दौरे से राज्य में हर बार कुछ न कुछ हलचल होती है. पहले उन्होंने बुनकरों को लुभाने के लिए पैकेज की घोषणा करवाई, फिर पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण दिलाने की बात की और हाल में लखनऊ स्थित नदवतुल उलेमा के प्रमुख राबे हसन नदवी से मिलकर कथित तौर पर आरक्षण के बारे में तफसील से बातचीत की. इन घटनाओं से कार्यकर्ताओं की भी राय बदल रही है. एक हफ्ते पहले तक छत्रपति साहूजी महाराज नगर जिले में इन्हौना के कांग्रेस कार्यकर्ता चौधरी वहाज हुसैन का कहना था, ''मुसलमान राहुल की ओर नजरें लगाए हुए हैं लेकिन राहुल देख नहीं रहे हैं. वे अगर किसी गरीब मुसलमान के यहां एक रात रुक जाएं तो उसका काफी असर हो सकता था.'' 'सैन अब कहते हैं, ''मैं पहले से ही कह रहा हूं कि राहुल की तरफ मुसलमान नजरें टिकाए हुए हैं. इन उपायों का असर जरूर होगा.''
लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि कांग्रेस को इस तरह के उपाय केवल चुनाव के समय सूझते हैं. राज्य सरकार के एक वरिष्ठ मुस्लिम अधिकारी का कहना है, ''रिजर्वेशन से मुसलमानों को कुछ खास हासिल नहीं होगा. जिन्हें रिजर्वेशन देने की बात कही जा रही है, वे पढ़े-लिखे नहीं हैं और जो योग्य हैं उनके लिए न तो सरकारी नौकरी है, न ही उन्हें निजी कंपनियों में जगह मिल रही है.'' वे कहते हैं कि सपा के कार्यकाल में मुसलमानों को पुलिस में रखा गया, हर दफ्तर में एक मुसलमान मिल जाता था. उर्दू अनुवादक और उर्दू शिक्षक की नियुक्ति मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में ही की गई.
हाल में सपा के काजी रशीद मसूद के कांग्रेस में शामिल होने और अजित सिंह के रालोद के साथ गठबंधन से भी समीकरण बदल सकता है. एक ओर जहां मसूद सहारनपुर और मुजफ्फरनगर की सीटों को प्रभावित कर सकते हैं, वहीं, जाट और मुसलमानों की पर्याप्त संख्या वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद-कांग्रेस गठबंधन से सपा को झटका लग सकता है. प्रदेश की सियासत से वाकिफ राजनैतिककार्यकर्ता परवेज जमील कहते हैं, ''मुसलमानों के लिए कांग्रेस के उपायों से यकीनन फर्क पड़ेगा लेकिन ध्यान रहे कि यह लोकसभा नहीं बल्कि विधानसभा चुनाव है. अगर मुसलमानों को थोड़ा भी शक होगा कि राज्य में कांग्रेस की सरकार नहीं बन सकती तो वे भाजपा को छोड़कर किसी भी जीतने वाले वाले उम्मीदवार को वोट दे सकते हैं.''
19 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
12 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
5 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
राज्य में 18.5 फीसदी मुसलमान हैं. प्रदेश के 70 विधानसभा क्षेत्रों में उनकी संख्या 20 फीसदी से अधिक है. पश्चिम उत्तर प्रदेश की 20, पूर्वी उत्तर प्रदेश की 10, मध्य की पांच और बुंदेलखंड की एक सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 35-40 फीसदी है. राज्य के कुल मुसलमानों में 80 से 85 फीसदी तक पिछड़ी जाति के यानी पसमांदा मुसमलमान हैं.
नई उभरी मुस्लिम पार्टियों के नेता अब खुलकर यह कहने लगे हैं कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अपने ठोस आधार के कारण राज कर सकती है तो वे इतनी आबादी के बावजूद क्यों नहीं कर सकते. पीस पार्टी को पिछड़े मुसलमानों की नुमाइंदगी करने वाली पार्टी माना जा रहा है और बसपा की ही तरह उसके कई प्रत्याशी न तो मुसलमान हैं, न ही पिछड़े. उसे बसपा का मुस्लिम संस्करण माना जा सकता है. ये छोटी पार्टियां मुसलमानों के बीच पारंपरिक राजनीति को चुनौती दे रही हैं.
28 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
21 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
7 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
उन्होंने देख लिया है कि दर्शनशास्त्र में माया भले ही भ्रम है, मिथ्या है लेकिन उत्तर प्रदेश में माया हकीकत है. प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर बने पिछड़ों के प्रतीक स्थलों ने मुसलमानों के पिछड़े वर्ग को नया नेतृत्व तलाशने के लिए प्रेरित किया है. बसपा के उभार के बाद अब पीस पार्टी जैसे दलों के सामने आने से कांग्रेस, सपा और बसपा जैसी पार्टियों को झटका लग सकता है.
चुनाव के मद्देनजर सियासी सरगर्मी बढ़ने के साथ ही मतदाताओं की राय भी बदल रही है. आने वाले दिनों में भले ही मौसम ठंडा हो और कुहरा छाया रहे पर तब तक काफी लोग पार्टियों और उम्मीवदारों के बारे में अपनी स्पष्ट राय बना चुके होंगे.
-साथ में आशीष मिश्र और सुधीर सिंह