इक्कीस अक्तूबर को भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के पास पार्टी की रांची में होने वाली जनसभा के लिए सिर्फ 20 मिनट थे क्योंकि उन्हें अपनी जनचेतना यात्रा के अगले चरण के लिए दोपहर तीन बजे से पहले अंदमान पहुंचना था. मगर आडवाणी 8 मिनट का अपना भाषण देने के लिए उठ कर खड़े हो पाते, उसके पहले उन्होंने देखा कि उनके पास की कुर्सी पर असंतुष्ट नेता रघुबर दास बैठे हुए हैं, उस सीट पर जो मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के लिए रखी थी.
परिस्थिति और मौके की परवाह न करते हुए रघुबर दास ने आडवाणी को एक स्थानीय अखबार दिया, जिसके पहले पन्ने पर खबर छपी थी कि किस तरह राज्य के बिजली कारखाने बेशकीमती कोयले और तेल को बेकार गंवा रहे हैं. ऊर्जा विभाग मुंडा के पास है, और रघुबर दास के उनके साथ रिश्ते न के बराबर रह गए हैं और उन्होंने इस बारे में शक की कोई गुंजाइश भी नहीं छोड़ी थी कि उनका निशाना किस पर है. पहले ही एक घंटे की देरी से चल रहे आडवाणी की इस किस्म के बेतुके रहस्योद्घाटनों में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी. उन्होंने अखबार तो ले लिया, लेकिन साथ ही रघुबर दास को इस तरह असमय बेतुका राग अलापने के लिए झ्ड़िक भी दिया.
लेकिन नुक्सान हो चुका था. भाजपा की झारखंड इकाई पार्टी के सबसे कद्दावर नेता के सामने एकजुटता दिखाना चाहती थी, लेकिन भरी सभा में, ऐन टीवी कैमरों के सामने पार्टी की दोफाड़ सबके सामने आ गई. पूर्व उप-मुख्यमंत्री रघुबर दास को सितंबर 2010 में मुंडा की खातिर भाजपा विधायक दल के नेता का पद छोड़ना पड़ा था. और कहा जाता है कि वे उसके बाद से ही गठबंधन सरकार से नाराज चल रहे हैं.
अखबार की खबर आडवाणी का मूड बदलने में नाकाम रही. मुंडा सरकार को लेकर अतीत में रखे गए निष्पक्ष मौन के उलट भाजपा के पितृपुरुष ने मुंडा की तारीफों की झ्ड़ी लगा दी, ''अर्जुन सुशासन राज्य को देने की ईमानदारी से कोशिश कर रहे हैं. वे सरकारी सेवाएं तयशुदा समय पर मिले इसके लिए प्रौद्योगिकी का भी इस्तेमाल कर रहे हैं. मेरा आशीर्वाद उनके साथ है.''
आडवाणी के शब्द उनके पुराने रवैए में नए बदलाव का साफ संकेत दे रहे थे. सितंबर 2010 में मुंडा सरकार के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में वे शामिल नहीं हुए थे. खबरें थीं कि वे झामुमो के साथ गठबंधन बनाने से खुश नहीं थे.
यहां तक कि हाल में भी बिहार के सिताबदियारा में नीतीश कुमार के हरी झंडी दिखाने के बाद से शुरू हुई अपनी यात्रा में भी आडवाणी झारखंड को दरकिनार करते हुए उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर गए थे, जिससे झारखंड की गठबंधन सरकार के प्रति उनकी नाराजगी की बातों को बल मिला था.
लेकिन आडवाणी ने शुक्रवार को इसकी भरपाई कर दी. उन्होंने माना कि झारखंड के मुख्यमंत्री प्रशंसनीय काम कर रहे हैं और उनका यह काम राज्य को सकारात्मक विकास की ओर ले जाएगा. मुंडा के लिए यह तारीफ बहुत कुछ थी. इससे अभिभूत मुंडा ने अपनी कृतज्ञता दिखाने के लिए आडवाणी के पैर छू लिए.
मुंडा को लेकर आडवाणी की यह नई गर्मजोशी आपस में झ्गड़ते सहयोगियों को लेकर सरकार चला सकने की उनकी क्षमता के एहसास को जताती है. इसके पहले जून 2010 में झारखंड विधानसभा को तब निलंबित कर दिया गया था, जब संसद में एक कटौती प्रस्ताव पर झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन के यूपीए के पक्ष में मतदान करने के बाद भाजपा ने उनकी अगुआई वाली सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. रघुबर दास उस सरकार में उप-मुख्यमंत्री थे.
भाजपा और झामुमो ने सोरेन की अगुआई में 30 दिसंबर, 2009 को गठबंधन सरकार बनाई थी. लेकिन यह सरकार सिर्फ पांच महीने ही चल सकी. तीन महीने के अंतराल के बाद सितंबर 2010 में दोनों पार्टियों ने फिर हाथ मिला लिए, हालांकि इस बार नेतृत्व मुंडा को मिला.
झारखंड-जिसके जन्म का श्रेय नवंबर 2000 में केंद्रीय गृह मंत्री होने के नाते आडवाणी को जाता है-के बदलते राजनैतिक घटनाक्रम से उनकी नाराजगी समझी जा सकती है. राज्य के गठन के 11वें बरस में मुंडा वर्तमान में राज्य की 8 वीं सरकार चला रहे हैं.
साल भर पहले, माना जाता था कि आडवाणी झामुमो के साथ एक बार फिर से गठबंधन गांठने के खिलाफ थे. मगर तब से हालात में काफी बदलाव आ चुका है. शुक्रवार को जब आडवाणी ने 40,000 लोगों की भीड़ के सामने अपने 8 मिनट के भाषण में मुख्यमंत्री मुंडा और उनके प्रशासन की बार-बार तारीफ की, तो उनके शब्द इस बात की पुष्टि कर रहे थे कि अब उनके और मुंडा के बीच प्रगाढ़ विश्वास पैदा हो चुका है.
आडवाणी ने कहा, ''मैं मुंडा के विचारों और उनके नजरिये से प्रभावित ं और मुझे भरोसा है कि उनके नेतृत्व में झारखंड बहुत निखरेगा.''
यह मुंडा के दक्ष नेतृत्व को पहचान देने जैसा भी था. साल भर से भी ज्यादा समय से वे बखूबी गठबंधन सरकार चला रहे हैं. यही नहीं, मुंडा सुशासन के मामले में भी काफी आगे हैं. उनकी इन्हीं खासियतों ने उनके लिए आडवाणी की तारीफ के दरवाजे खोले.
लेकिन अपनी जनचेतना यात्रा के दौरान आडवाणी की रांची में हुई सभा पड़ोसी राज्य बिहार में हुई सभाओं से बहुत अलग थी, जहां उनके गठबंधन के साथी नीतीश कुमार ने उनकी 38 दिन की जनचेतना यात्रा को झंडी दिखाकर रवाना किया था.
झारखंड की मुंडा सरकार तीन गठबंधन पार्टियों से समर्थित है-शिबू सोरेन के नेतृत्व वाला झामुमो, सुदेश महतो की अगुआई वाली ऑल झारखंड स्टुडेंट यूनियन (आजसू) और जनता दल (यूनाइटेड), लेकिन बिहार के उलट आडवाणी की झारखंड यात्रा एक विशुद्ध पार्टीगत मामला थी, जिसमें गठबंधन के तीनों साथियों में से किसी को भी आडवाणी की आम सभाओं में शामिल होने के लिए न्यौता नहीं दिया गया था.
इसे मोटे तौर पर भाजपा की इस चिंता से जोड़ा जा रहा है कि वह मंच को किसी भी दागी चेहरे की मौजूदगी से मुक्त रखना चाहती थी. गठबंधन के तीनों साथियों को इसीलिए परे रखा गया क्योंकि भाजपा भ्रष्टाचार के कई आरोपों का सामना कर रहे झामुमो प्रमुख सोरेन की मौजूदगी से आडवाणी के लिए किसी तरह की अटपटी स्थिति पैदा होने देना नहीं चाहती थी.
कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ शायद अपनी आखिरी राजनैतिक यात्रा पर निकले आडवाणी के बारे में माना जाता है कि उन्होंने सभी राज्य इकाइयों को अपने दामन साफ कर लेने और उनकी मौजूदगी में कोई भी दागी चेहरा मंच पर न आए, इसका इंतजाम करने के निर्देश दिए थे.
इस साल मार्च में झारखंड की अपनी पहली यात्रा में भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी प्रशासन के विषयों पर चर्चा करने के लिए झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन के निवास पर गए थे. वह व्यावहारिक राजनीति थी. मगर अपने राजनैतिक कॅरियर की सांध्यवेला में आडवाणी सोरेन और उनकी मंडली को दूर से भी नहीं छूना चाहेंगे. मंच पर झामुमो नेताओं के साथ नजर आने के प्रति उनकी अनिच्छा का मुंडा सरकार की स्थिरता के लिहाज से कोई खास मतलब भले ही न हो, लेकिन यह दीर्घकाल में राज्य में भाजपा की 'एकला चलो' योजना की ओर निश्चित तौर पर इशारा करती है.
आडवाणी की झारखंड यात्रा से सहयोगी दलों को भले ही कुढ़न हुई हो, लेकिन इसने झारखंड की भाजपा इकाई को नए जोश से भर दिया है. भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष दीपक प्रकाश के मुताबिक पार्टी ने आडवाणी की यात्रा को मिले जन उत्साह को दिशा देने का मन बना लिया है. उन्होंने कहा, ''यात्रा के तुरंत बाद पहले चरण में पार्टी 10,000 गांवों में अपनी इकाइयों की स्थापना करेगी ताकि सरकार और पार्टी के लिए सूचनाएं मिलने का एक स्वतंत्र ढांचा तैयार हो सके.''
झारखंड के राजनैतिक मैदान में पाले की दूसरी तरफ विपह्नी दल कांग्रेस ने खुद को पृष्ठभूमि में बनाए रखा और सभी का ध्यान आकर्षित करने के लिए गठबंधन भागीदार बाबूलाल मरांडी को आगे धकव्ल दिया. कांग्रेस मरांडी को झारखंड का नीतिश कुमार बनाकर पेश करने की कोशिश कर रही है. उसे भरोसा है कि पूर्व भाजपा नेता और झारखंड के पहले मुख्यमंत्री मरांडी में ही राज्य में भाजपा से टक्कर ले सकने की राजनैतिक ताकत है.
झारखंड भाजपा के महासचिव अनंत ओझा कहते हैं, ''कांग्रेस के पास भ्रष्टाचार विरोधी यात्रा की आलोचना करने लायक विश्वसनीयता नहीं है. इसी वजह से वह शांत बैठी रही और उसने वाहवाही लेने के लिए मरांडी को आगे कर दिया.''
आडवाणी की यात्रा ने मुंडा का आत्मविश्वास भले ही बढ़ाया हो, पर यह यात्रा उन्हें विपक्ष के बजाए अपने ही गठबंधन में और ज्यादा विरोधियों से घिरा छोड़ गई है. उनके मंत्री गैर-प्रशासनिक विषयों पर बाल की खाल निकालते रहते हैं, तकरार पर आमादा गठबंधन साथियों और सरकार गिराने की धमकी देते गठबंधन सहयोगियों की हठधर्मिता से एक बार मुंडा को अपने मंत्रिमंडल की बैठक तक को स्थगित करना पड़ा था.
फिर रघुबर दास जैसे पार्टी के साथी इशारा देते नहीं थकते कि झारखंड में राजनैतिक अनिश्चितता का गुरुत्वाकर्षण बल सरकार के स्थायित्व पर हमेशा भारी पड़ता है लेकिन मुंडा इससे विचलित नहीं दिखते. आगे का रास्ता मुश्किल भले हो, पर वे आगे बढ़ रहे हैं.