पवई (मुंबई) में मोटरसाइकिल सवार हमलावरों के हाथों मारे जाने से एक पखवाड़े पहले 56 वर्षीय क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे ने महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर. पाटील से मुलाकात की थी. डे ने उन्हें वह विस्तृत रिपोर्ट सौंपी जिसे भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने तैयार किया है.
रिपोर्ट में मुंबई पुलिस के सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) अनिल महाबोले और दाऊद इब्राहिम की प्रभावशाली बहन हसीना पारकर के बीच सांठगांठ का ब्यौरा है. यह रिपोर्ट चार साल पुरानी थी लेकिन अब भी महत्वपूर्ण है. महाबोले ने अंग्रेजी दैनिक मिड-डे में डे के सहयोगी ताराकांत द्विवेदी उर्फ अकेला को मई में धमकाया था.
अकेला को सरकारी गोपनीयता कानून,1923 के तहत गिरफ्तार किया गया था. उनका कसूरः उन्होंने खबर दी थी कि 26/11 के बाद गवर्नमेंट रेलवे पुलिस को मिली एसॉल्ट राइफलों को किस तरह एक गीले कमरे में रखा गया था जिसके कारण वे आपातस्थिति में कारगर नहीं हो सकती थीं.
उन्होंने पुलिस के निकम्मेपन का पर्दाफाश करने की कीमत जीआरपी हवालात में पांच दिन बिता कर चुकाई. राज्य सरकार के हस्तक्षेप के बाद ही उन्हें रिहा किया गया. डे ने सच की कीमत अपनी जान देकर चुकाई. इसके बाद मुंबई पुलिस ने महाबोले का तबादला कर दिया, हालांकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने एलान किया कि उन्होंने इसकी मंजूरी नहीं दी थी.
डे की हत्या और महाबोले का उत्कर्ष मुंबई के अपराध जगत का आईना है. इससे वह व्यवस्था उजागर होती है जिसमें ईमानदारी की खास व.कत नहीं और लालच को जायज समझा जाता है. 2011 की मुंबई में ईमानदारी से बात करने वालों को गोली मार दी जाती है, सच को दबाने वाले फलते-फूलते हैं.
भगोड़े दाऊद इब्राहिम के सहयोगी छोटा शकील जैसे लोग राष्ट्रीय टीवी पर आते हैं और डे की हत्या में अपनी भूमिका होने से इनकार करते हैं. मुंबई पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक, सरकार को मालूम है कि छोटा शकील और दाऊद पाकिस्तान के कराची शहर में हैं, लेकिन न तो वह उन्हें लाना चाहती है, न ही उन्हें लाने में सक्षम है.
पाटील ने डे से वादा किया था कि वे 2007 की रिपोर्ट पर कार्रवाई करेंगे. इसमें देश की वित्तीय राजधानी में पुलिस, अंडरवर्ल्ड और बिल्डरों के नेटवर्क का विस्तृत ब्यौरा है. इस साल जनवरी में पुलिस और अंडरवर्ल्ड के बीच सांठगांठ उस बातचीत से जाहिर हो गई जिसे पुलिस ने ही रिकॉर्ड किया था. उसमें छोटा शकील से एक पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) को एक बिल्डर से जबरन उगाही न करने का आग्रह करते सुना गया.
माना जाता है कि उसी पुलिस अधिकारी ने पूर्व क्रिकेटर जावेद मियांदाद से बातचीत की थी. मियांदाद के बेटे की शादी दाऊद की बेटी से हुई है. इससे एसीबी रिपोर्ट, और दरअसल डे की बात सही सिद्ध होती है.
महाराष्ट्र को राजनैतिक चंदे के मामले में अग्रणी राज्य और मुंबई को उसका सबसे कीमती नमूना माना जाता है. लिहाजा, इस बात की संभावना कम ही है कि पाटील या कोई और नेता मुंबई की चाक-चौबंद जुर्म की दुनिया में दखल देगा.
यह विशाल साम्राज्य है, जिसका दायरा रियल एस्टेट, बॉलीवुड के कुछ हिस्सों, नेताओं, हवाला, तेल में मिलावट, तस्करी, शेयर बाजार, क्रिकेट सट्टेबाजी और हफ्ता वसूली तक फैला है. उसका वार्षिक कारोबार 1 से 1.50 लाख करोड़ रु. के बीच आंका गया है. इतनी रकम बृहन्मुंबई नगर निगम को चलाने के लिए पर्याप्त है.
रक्षक बने भक्षक
इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि इस साल मई में भीड़ भरे भिंडी बाजार इलाके में पाकमोडिया स्ट्रीट पर दाऊद इब्राहिम के भाई इकबाल कासकर के घर पर दो पुलिस कांस्टेबलों को तैनात किया गया. मोटर-साइकिल सवार दो हमलावरों ने कासकर के ड्राइवर आरिफ सैयद की गोली माहूरकर हत्या कर दी थी और इसी के फौरन बाद दो सिपाहियों को वहां तैनात कर दिया गया.
महाराष्ट्र सरकार ने देश के सबसे वांछित अपराधी के प्रमुख सहयोगी को संरक्षण दिया फिर भी अव्यवस्था के शिकार इस शहर में किसी की भौंहें नहीं तनीं. इस शहर में अजमल कसाब जैसा खूंखार अपराधी सुरक्षित है, उसे ऐसे पुलिस बल ने सुरक्षा दे रखी है जिसे कई बार सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया गया है.
पिछले दशक में मुंबई के कोई आधा दर्जन आला पुलिस अधिकारी विभिन्न अपराधों से जुड़े होने के कारण खुफिया विभागों की नजर में थे.
कथित तौर पर उनका संबंध फर्जी स्टांप पेपर के सरगना अब्दुल करीम तेलगी से लेकर विदेश में रहने वाले छोटा शकील और छोटा राजन जैसे सरगनाओं से था. पूर्व पुलिस आयुक्त वाइ.सी. पवार का कहना है, ''मैं लंबे समय से कहता रहा हूं कि पुलिस और माफिया के बीच मिली-भगत है. आज दाऊद इब्राहिम इतना ताकतवर बन गया है कि आप उसे छू भी नहीं सकते, उसे भारत लाने की बात तो भूल ही जाइए.''
पुलिस और अंडरवर्ल्ड के बीच सांठगांठ सबसे ज्यादा जमीन के सौदों में नुमायां होती है. एक दशक पहले बिल्डरों और फिल्मवालों से जबरन वसूली की धमकी के बाद मुंबई पुलिस ने बदमाशों को संदिग्ध 'मुठभेड़ों' में ढेर करने के लिए अपने अधिकारियों का इस्तेमाल किया. मुठभेड़ दस्ते की बदनामी के बाद उन्हें भंग कर दिया गया.
पुलिस के एक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट रवींद्रनाथ आंगरे को 2009 में गिरफ्तार करके निलंबित कर दिया गया. उसने कथित रूप से जबरन वसूली के एक मामले में ठाणे के एक बिल्डर पर गोली चलाई थी. हाल में उसे बरी कर दिया गया. पिछले तीन साल के दौरान अंडरवर्ल्ड से संबंध रखने के इल्जाम में दो और 'एनकाउंटर स्पेशलिस्ट' सीनियर इंस्पेक्टर प्रदीप शर्मा और असलम मोमिन को निलंबित कर दिया गया.
सब-इंस्पेक्टर दया नायक को, जिसके जीवन पर फिल्म अब तक छप्पन बनी, कथित तौर पर आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में निलंबित कर दिया गया. परेशान कर देने वाले आरोप ये लगाए गए कि इनमें कुछ पुलिसवालों को शायद अंडरवर्ल्ड अपने प्रतिद्वंद्वियों का सफाया करने के लिए इस्तेमाल कर रहा था. लेकिन इस मिलीभगत की विशेष जांच नहीं करवाई गई.
सफलता के पीछे साया
सारा मामला आकर जमीन से जुड़ता है, जो मुंबई की सबसे महंगी चीज है. 1980 के दशक में शहर के रियल एस्टेट के धंधे में उफान के साथ ही दाऊद इब्राहिम के नेतृत्व में जुर्म की नई दुनिया उभरी. अनुमान है कि अंडरवर्ल्ड ने रियल एस्टेट में 15,000 करोड़ रु. लगा रखे हैं, जिसमें मुख्यतः करीब 450 झुग्गियों के पुनर्विकास की सरकारी योजनाओं में से कुछ में लगा है. आम तौर पर किसी इलाके में एक हेक्टेयर से लेकर 2.5 हेक्टेयर की झुग्गी बस्ती के पुनर्विकास से करीब 1,000 करोड़ रु. मुनाफा होता है.
एसीबी जांच की 2008 की एक अन्य रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि अंडरवर्ल्ड का पैसा कर- मुक्त देशों से रियल एस्टेट बाजार में आता है और फिर इस तरह की परियोजनाओं में लगाया जाता है. कहा जाता है कि अंडरवर्ल्ड बाजार दर से कम कीमत पर जबरन परियोजनाएं हासिल करता है और बिल्डरों को झुग्गियां हटाने और इजाजत दिलाने में मदद करता है.
इनमें से किसी भी आरोप को निर्णायक तरीके से साबित नहीं किया जा सका है क्योंकि इन आवासीय परियोजनाओं में शहर के कई नेताओं की प्रत्यक्ष या परोक्ष साझीदारी है. बिल्डर इन परियोजनाओं को मंजूरी दिलाने के लिए सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारियों को आकर्षक वेतन देते हैं.
पूर्व अधिकारी इसके लिए उस विभाग में अपने दबदबे का इस्तेमाल करते हैं जहां उन्होंने दशकों तक काम किया है. महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता एकनाथ खडसे का कहना है, ''झुग्गी बस्ती के बाशिंदों को निकालने का समय आता है तो सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इससे खाली जमीन पर आवासीय परियोजनाएं तैयार करने की बाधाएं साफ हो जाती हैं.''
अपराध शाखा की जांच से पता चला है कि मुंबई के रियल एस्टेट बाजार के ज्यादातर हिस्से पर छोटा शकील का नियंत्रण है. बिल्डरों के बीच जब भी कोई विवाद होता है, माफिया सरगना उसमें कूद जाता है. वह 'समझैते' के लिए बिल्डरों को दुबई बुलाता है.
अंडरवर्ल्ड ने मुंबई को अलग-अलग इलाकों में बांट रखा है. गैंगस्टर एक-दूसरे के इलाके में दखल नहीं देते. पूर्व माफिया सरगना अरुण गवली के एक करीबी सहयोगी का कहना है, ''दक्षिण मुंबई के रियल एस्टेट में दाऊद का हिस्सा है, अरुण गवली और अश्विन नाईक का मध्य मुंबई के और छोटा राजन का शहर के पूर्वी इलाकों के रियल एस्टेट में हिस्सा है.''
माफिया सरगना जमींदार के रूप में रुतबा हासिल करने के बाद नेता बनने का ख्वाब देखने लगते हैं. 1970 के दशक में हाजी मस्तान ने इसी का प्रयास किया था. गवली को डर था कि बाहर निकलने पर पुलिस उसे मुठभेड़ में मार गिराएगी, इसलिए वह बाहर नहीं घूम सकता था और वोट भी नहीं डाल सकता था लेकिन वह चिंचपोकली से 2004 में विधानसभा चुनाव जीत गया और 2009 तक विधायक रहा. उसे उसी साल जबरन वसूली के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया.
अश्विन नाईक की जेल से रिहाई के बाद उसे अपना सदस्य बनाने के लिए शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के बीच होड़ लग गई थी. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 2009 में कथित तेल माफिया सरगना मोहम्मद अली को लोकसभा चुनाव में टिकट दिया. इससे पहले अली ने सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जनकल्याण के विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लिया.
वह हर साल स्वतंत्रता दिवस पर अपने स्वयंसेवी संगठन 'पनाह' की ओर से झंडारोहण के लिए एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को आमंत्रित करता है. एक मौजूदा विधायक दाऊद के साथ अपने संबंधों की वजह से अपराध शाखा की नजर में है. जांचकर्ताओं का मानना है कि वह दुबई में बसे अपने भाई से मिलने के बहाने अक्सर भगोड़े डॉन से मुलाकात करता है.
इस तरह के तनावपूर्ण माहौल में अनगिनत झ्गड़े चलते रहते हैं. 2007 की एसीबी रिपोर्ट के मुताबिक, इसी तरह के एक झ्गड़े में महाबोले के व्यवहार को 'संदिग्ध' करार दिया गया. उस साल बिल्डर विनोद अवलाणी एक झुग्गी पुनर्वास योजना के तहत आवासीय परियोजना में 51 फीसदी हिस्सेदारी के बदले बिल्डर कृष्णमिलन शुक्ला को 2 करोड़ रु. देने के लिए राजी हुआ.
लेकिन उसने शुक्ला को केवल 30 लाख रु. देने के बाद मांग कर दी कि शुक्ला साझेदारी के करार पर हस्ताक्षर करे. शुक्ला ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. इसके बाद अवलाणी ने शुक्ला पर 30 लाख रु. लौटाने के लिए दबाव बनाने की खातिर दाऊद की बहन हसीना पारकर और महाबोले से एक एजेंट चंद्रेश शाह के जरिए अलग-अलग बात की.
एसीबी ने जोर दिया है कि इस मामले में महाबोले की भूमिका की व्यापक जांच की जानी चाहिए पर सरकार ने इस आग्रह पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है.
2007 की रिपोर्ट के आधार पर महाबोले के खिलाफ कार्रवाई करने की जगह उन्हें चुपचाप स्थानीय आर्म्स यूनिट में तैनात कर दिया गया, फिर उन्हें एसीपी के रूप में ह्ढोन्नति देकर पुलिस मुख्यालय के कंट्रोल रूम में नियुक्त कर दिया गया. इसके बाद उन्हें आजाद मैदान डिवीजन में तैनात कर दिया गया, जिसके तहत दक्षिण मुंबई के तीन पुलिस थाने हैं.
उन्होंने डे को जो कथित धमकी दी थी उसके खिलाफ जब लोगों ने दबाव बनाया तो एसीपी महाबोले को फिर स्थानीय आर्म्स यूनिट में भेज दिया गया. पूर्व आइपीएस अधिकारी से वकील बने वाइ.पी. सिंह का कहना है, ''सवाल उठता है कि महाबोले पर गंभीर आरोप थे फिर भी वह इतनी महत्वपूर्ण पोस्टिंग के मजे कैसे ले रहा था? सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश साफ कहते हैं कि दागी पुलिस अधिकारियों का तुरंत तबादला कर दिया जाना चाहिए.''
महाबोले डे और अकेला को धमकाने और अंडरवर्ल्ड के साथ अपने संबंधों से साफ इनकार करते हैं. उन्होंने एक निजी टीवी चैनल से बातचीत में पत्रकार की हत्या से अपने संबंध को ''कुछ प्रतिद्वंद्वियों की साजिश'' करार दिया. पुलिस ने यह साबित करने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी कि डे की हत्या अंडरवर्ल्ड के लोगों ने की.
हत्या के फौरन बाद पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक ने मीडिया को बताया, ''डे की हत्या के पीछे शायद निजी दुश्मनी नहीं थी. डे की रिपोर्टों से आहत लोगों ने उनकी हत्या के लिए सुपारी दी थी.'' विडंबना ही है कि पटनायक ने जब इस साल फरवरी में पुलिस आयुक्त का पद संभाला तब उनकी एक प्राथमिकता पुलिस एवं बिल्डरों के गठजोड़ को खत्म करना थी.
उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक में जोर दिया था कि डीसीपी स्तर के ऊपर के अधिकारियों को सतर्कता अधिकारी के रूप में काम करना चाहिए और बिल्डरों एवं विकास परियोजनाओं से जुड़ी शिकायतों की जांच करनी चाहिए. पटनायक को इन शिकायतों के मद्देनजर प्रतिक्रिया दिखानी थी कि पुलिस थानों की अपराध डायरियों में बिल्डरों से जुड़ी एंट्री नहीं थी. पुलिसवाले बिल्डरों के साथ अपने मधुर संबंधों की वजह से उनके खिलाफ मामले दर्ज करने से अक्सर कतराया करते थे.
खामोशी की विषाक्त व्यवस्था
उपनगर खार के निवासी इंदर छुगाणी ने सितंबर, 2007 में बॉम्बे हाइकोर्ट में यह आरोप लगाते हुए एक जनहित याचिका दायर की थी कि शहर में पुलिस की करीब 300 चौकियां बिल्डरों के दान से तैयार की गई हैं. पुलिस कल्याण कोष के नियमों के मुताबिक, पुलिस को किसी व्यक्ति से 500 रु. से ज्यादा का दान लेने से पहले सरकार की मंजूरी लेनी चाहिए.
लेकिन नियमों का तो शायद ही कभी पालन किया जाता है. लेकिन जब मशर मरीन ड्राइव पर पुलिस जिमखाना के प्रायोजकों में से एक, राजकुमार बसंताणी का नाम 2005 में 150 करोड़ रु. के निवेश घोटाले में उभरा तो पुलिस का चेहरा शर्म से लाल हो गया.
एक ओर जहां जमीन के सौदे नेताओं, पुलिस और माफिया के लिए समान आधार मुहैया कराते हैं, वहीं क्रिकेट की सट्टेबाजी ऐसे क्षेत्र के रूप में उभर रही है जहां ये तीनों मिलते हैं. सट्टेबाजी को कभी मामूली गतिविधि बताकर खारिज कर दिया गया था, लेकिन अब यह महत्वपूर्ण हो गई है. हाल में हुए आइसीसी विश्व कप के दौरान सट्टेबाजी से कुल आय 90,000 करोड़ रु. तक पहुंच गई. विदेश में रहने वाले दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील और छोटा राजन जैसे डॉन मोटी रकम के लेनदेन को नियंत्रित करते हैं.
मुंबई में दाऊद के लोग सट्टेबाजी सिंडिकेट चलाते हैं. इससे पहले उसका करीबी सहयोगी जाहिद शेख यह धंधा चलाता था. शेख की मौत के बाद माना जाता है कि अब पारकर 5,000 सट्टेबाजों के नेटवर्क को नियंत्रित करती है. शहर के नागपाड़ा, मझ्गांव और डोंगरी तथा चेंबूर, जोगेश्वरी, बोरिवली एवं मीरा रोड जैसे उपनगरीय इलाके सट्टेबाजी के नए गढ़ बन गए हैं. इस क्षेत्र में भी दाऊद को अपने दोस्त से दुश्मन बने छोटा राजन से टक्कर मिल रही है.
राजन का विश्वासपात्र संतोष मलेशिया से सट्टेबाजी सिंडिकेट को नियंत्रित करता है. मुंबई पुलिस की अपराध शाखा के एक अधिकारी का कहना है कि सटोरिए शहर के नामचीन लोगों के कार्यक्रमों में नियमित रूप से नजर आते हैं और उन्होंने अपना नेटवर्क बढ़ाकर ब्रिटेन में अपना सिंडिकेट चलाने के लिए भारतीय छात्रों को भी उसमें शामिल कर लिया है. सटोरिए 200 छात्रों को प्रति माह 50,000 रु. देते हैं ताकि वे उनके बैंक खातों को संचालित कर सकें. ब्रिटेन में सट्टेबाजी वैध है.
डे की हत्या के कुछ घंटों बाद राकांपा के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने इसके लिए खतरनाक तेल माफिया को दोषी ठहराया. राज्य में यह माफिया (पेट्रोल और डीजल चोरी करने और उसमें मिलावट का) 12,000 करोड़ रु. का धंधा करता है और वह डे की रिपोर्ट से बहुत परेशान था. गृह मंत्री आर.आर. पाटील ने हत्या की जांच तेजी से करवाने का एलान किया है. मुख्यमंत्री चव्हाण ने सीबीआइ जांच की मांग ठुकराते हुए मीडिया से आग्रह किया है कि वे मुंबई पुलिस को अपनी जांच करने दें और इस मामले को सीबीआइ के हवाले करने के लिए दबाव न डालें.
पुलिस ने डे हत्याकांड के सिलसिले में छोटा शकील से जुड़े तीन हत्यारों-इकबाल हटेला, मतीन और अनवर-को गिरफ्तार करके उनसे पूछताछ की है. इन तीनों का संबंध चंदन की लकड़ी के तस्कर और शकील के कारोबारी सहयोगी जाफर कासिम से था, जो दुबई में रहता है. 16 जून को उन तीनों को रिहा कर दिया गया.
पुलिस के मुताबिक, उनकी जांच से पता चला है कि कासिम ने डे को चंदन की लकड़ी की तस्करी से जुड़ी अपनी रिपोर्ट को दबाने के लिए 10 लाख रु. देने की पेशकश की थी. जब डे ने उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया तो उन्हें हमेशा के लिए खामोश कर दिया गया. मुंबई में सच के लिए जान देने वाले वे पहले व्यक्ति नहीं हैं. पुलिस के एक प्रमुख मुखबिर और डे के दोस्त अमजद खान को अक्तूबर, 2006 में काला घोड़ा इलाके में सत्र अदालत के बाहर गोली मार दी गई. अपनी हत्या से पहले खान ने भी इसी तरह का खुलासा करने की धमकी दी थी.
पुलिस को 1980 के दशक और आज अंडरवर्ल्ड द्वारा की जा रहीं हत्याओं में काफी अंतर दिखता है. पहले सरगना लोगों को झुकाने के लिए निशाना बनाते थे. अब वे उन्हें निशाना मनाते हैं जिन्हें वे अपने लिए खतरनाक मानते हैं. हालांकि शोहदों की भर्ती का तरीका नहीं बदला है.
पूर्व डीजीपी पी.एस. पसरीचा कहते हैं, ''आज भी माफिया सरगना बेरोजगारों और छुटभैये अपराधियों को ही नियुक्त करते हैं. अंडरवर्ल्ड पहले से ज्यादा प्रभावशाली हो गया है क्योंकि उसे सरकार के हर विभाग से मदद मिलती है.''
मशर वकील और भाजपा नेता महेश जेठमलानी का कहना है, ''यह जुर्म की दुनिया में धंसा शहर है और पुलिस के सहयोग से वही इसे चलाते हैं. यहां जो कुछ होता है उसमें भाई का हाथ छिपा होता है, जिससे बेहतर जिंदगी और मौत की गारंटी मिलती है. मैं इस शहर को मुंभाई कहता हूं.''
दागो और भागो
हाल में मुंबई में जिन चार सनसनीखेज अपराधों को अंजाम दिया गया उनमें दुपहिया वाहन का इस्तेमाल किया गया.
14 अक्तूबर, 2008: बाइक पर सवार दो .हमलावरों ने कांदीवली इलाके में आभूषण की एक दुकान के कर्मचारी प्रदीप कांबले पर हमला करके 10 लाख रु. मूल्य के सोने और हीरे के आभूषण लूट लिए.
27 अक्तूबर, 2009: बाइक पर सवार और छुरा उठाए दो हमलावरों ने परेल की 39 वर्षीया बीना देधिया को सवेरे-सवेरे छुरा घोंप कर मार दिया जब वे अपने पति जतिन के साथ टहल रही थीं. इस हत्या का ठेका जतिन ने दिया था क्योंकि उसका किसी के साथ प्रेम संबंध चल रहा था.
17 मई, 2011: बाइक पर सवार दो निशानेबाजों ने भगोड़े डॉन दाऊद इब्राहिम के भाई इकबाल कासकर के ड्राइवर अबु बुखा उर्फ बाएल की गोली मार कर हत्या कर दी. हत्यारों-29 वर्षीय बिलाल मुस्तफा अली सैय्यद और 28 वर्षीय इंद्रलाल बहादुर खत्री-को चश्मदीदों ने धर-दबोचा.
11 जून, 2011: दो मोटरबाइक पर सवार चार निशानेबाजों ने क्राइम रिपोर्ट जे. डे को पवई में गोली मार दी. उन्होंने .32 रिवॉल्वर से इस हत्याकांड को अंजाम दिया, जो माफिया निशानेबाजों का पसंदीदा हथियार है.
लगभग हर दिन इस महानगर में आपसी रंजिशों का निबटारा किया जाता है और सड़कों पर खून बहता है. हाल में हुईं कुछ गोलीबारियां:
मुंबई में खूनखराबे
14 मार्च, 2011: कथित रूप से रवि पुजारी के गिरोह ने डेवलपर सुधाकर शेट्टी की कंस्ट्रक्शन साइट पर एक सुपरवाइजर और इंजीनियर की हत्या की. माफिया सरगना बिल्डरों से जबरन वसूली करते रहते हैं.
28 फर., 2011: मोटरसाइकिल पर सवार दो लोगों ने बिल्डर नलिन शाह की कंस्ट्रक्शन साइट पर एक इंजीनियर संजय फाटक पर गोली चलाई. उन्हें पेट और हाथ में गोली लगी.
8 फर., 2011: दो बंदूकधारियों ने बिल्डर मनीष ढोलकिया के बॉडीगार्ड अजित येरुणकर की हत्या कर दी. यह हत्या दक्षिण मुंबई में भारी सुरक्षा वाले अमेरिकी सूचना सेवा कार्यालय से एकदम पास की जगह पर की गई. बताया जाता है कि ढोलकिया के पिता के संबंध माफिया सरगना दाऊद इब्राहिम से थे.
2 जून, 2010: गिरोहबाज छोटा राजन के सहायक फरीद तनाशा को राजन का गढ़ माने जाने वाले तिलक नगर में गोली मारी गई जहां तनाशा रहता था. तनाशा खुफिया ब्यूरो और अपराध शाखा का प्रमुख मुखबिर था.
13 फर., 2010: डॉन दाऊद इब्राहिम के गिरोह के एक आदमी आसिफ इकबाल शेख को गोली मारी गई. इससे वह घायल हो गया. भिंडी बाजार में हुई इस गोलीबारी में उसके दो साथी मारे गए.
10 फर., 2010: 26/11 कांड के मुकदमे में फहीम अंसार के वकील शाहिद आजमी को कुर्ला में उनके दफ्तर में मार डाला गया.
29 जुलाई, 2009: जाहिद गुलाम हसन उर्फ छोटे मियां और उसके भतीजे को नागपाड़ा में गोली मार दी गई. पुलिस का कहना है कि छोटे मियां 2008 के आइपीएल के दौरान सट्टे में करोड़ों रु. हार गया था. इससे नाराज महाजनों ने छोटा राजन गिरोह से संपर्क किया था जबकि छोटे मियां ने दाऊद से सुरक्षा की गुहार लगाई थी.