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मुकेश सहनी: मुश्किल में 'मल्लाह पुत्र'

निषाद, मल्लाह और बिंद को एससी में शामिल करने से केंद्र का इनकार.

वीआइपी पार्टी के नेता और बिहार में पशुपालन विभाग के मंत्री मुकेश सहनी (बीच में)
वीआइपी पार्टी के नेता और बिहार में पशुपालन विभाग के मंत्री मुकेश सहनी (बीच में)
अपडेटेड 23 मार्च , 2021

बिहार में पशुपालन विभाग के मंत्री मुकेश सहनी के लिए मार्च का महीना कतई अच्छा साबित नहीं हुआ है. मल्लाह और बिंद जातियों को अनुसूचित जातियों (एससी) की श्रेणी में शामिल करने के बिहार के प्रस्ताव को केंद्र ने खारिज कर दिया, जो सहनी के लिए किसी करारे झटके से कम नहीं है. सहनी खुद को ‘मल्लाह पुत्र’ कहते हैं और उन्हें सारी ताकत अपने समुदाय के मतदाताओं से मिलती है.

इससे पहले, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री रत्तन लाल कटारिय ने 9 मार्च को लोकसभा में ऐलान किया कि मल्लाह और बिंद समुदायों को एससी की सूची में शामिल करने के बिहार सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया है क्योंकि भारत के रजिस्ट्रार जनरल ने इसकी अनुमति नहीं दी.

सहनी बार-बार निषाद, बिंद, मल्लाह और नोनिया समुदायों को एससी की श्रेणी में शामिल करने की मांग करते रहे हैं.

इसके पांच दिन बाद सहनी ने बिहार के राज्यपाल फगु चौहान से मिलकर उन्हें फिर अपनी मांग सौंपी. कानून के लिहाज से सहनी के ज्ञापन की खास अहमियत नहीं होगी. इसे उन्हें अपनी लाज छिपाने की कसरत के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन 14 मार्च को जब वीआइपी के प्रमुख ने अपनी मांग रखी, उसी रोज सत्ताधारी जद (यू) उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में वापसी का जश्न मना रही थी. इसके मद्देनजर उनकी पहल का कुछ सांकेतिक महत्व है.

अपनी पूरी राजनीति निषाद समुदाय (और उसकी नौ उपजातियों) को सशक्त बनाने के वादे पर करने वाले सहनी को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि वे विकासशील इनसान पार्टी  (वीआइपी) के प्रमुख हैं. बिहार विधानसभा में इस पार्टी के चार विधायक हैं. इसके अलावा, 243 सदस्यीय विधानसभा में 126 सदस्यीय राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के लिए उनके चार विधायकों का समर्थन बहुमूल्य है.

बिहार में एनडीए सरकार दो ‘अविश्वसनीय’ साझीदारों—जीतन राम मांझी का हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और मुकेश सहनी की वीआइपी. इन दोनों पार्टियों को चार-चार सीटें मिली हैं, जिसकी वजह से नवंबर 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को मामूली बहुमत 122 का अंक पार करने में मदद मिली. अतीत में मांझी और सहनी अपनी मर्जी से पाले बदल चुके हैं, भले ही अभी वे नीतीश सरकार के पीछे मजबूती से खड़े हैं और विधानसभा अध्यक्ष का पद फिलहाल भाजपा के पास है.

विडंबना यह है कि इस मांग को केंद्र ने ऐसे समय में ठुकराया है जब सहनी अपने लहलहाते सियासी करियर के सबसे अच्छे दौर में हैं. राज्य मंत्रिमंडल में मंत्री होने के अलावा वीआइपी के प्रमुख को भाजपा के कोटे से एमएलसी बनाया गया है. इसके अलावा, बिहार में एनडीए सरकार के लिए उनके चार विधायकों का समर्थन बेहद जरूरी है. ऐसे में आश्चर्य नहीं कि एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है—अगर सहनी अपने बेहतरीन दौर में भी अपने समुदाय को एससी श्रेणी में शामिल नहीं करा सकते तो क्या वे कभी और करा पाएंगे? बिहार सरकार तीन बार केंद्र को इथनोग्राफी रिपोर्ट में इन जातियों को एससी श्रेणी में शामिल कराने की सिफारिश कर चुकी है—पहली बार 2004 में राबड़ी देवी सरकार के दौरान, दूसरी और तीसरी बार 2015 और 2018 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यकाल में.

फिलहाल, मल्लाह और बिंद जातियों, जो मछुआरा समुदाय में आते हैं, को अति पिछड़ा जातियों (ईबीसी) श्रेणी में रखा गया है और इस श्रेणी में 100 से ज्यादा जातियां हैं. निषाद समुदाय का मानना है कि एससी समुदाय में शामिल होने से उन्हें मौजूदा ईबीसी के मुकाबले ज्यादा आरक्षण और संवैधानिक अधिकार मिल सकते हैं.

मुकेश सहनी मल्लाह जाति के लोगों को एकजुट करके उन्हें जाट, जाटव, यादव और कुर्मी-पटेल की तरह प्रभावशाली जातियों के रूप में उभारना चाहते हैं. वे निषाद, मल्लाह और सहनी समुदायों (राज्य की आबादी में इनकी संख्या करीब 6 फीसद है) को ईबीसी श्रेणी से बाहर करने की कोशिश कर रहे हैं. राज्य में 30 फीसद ईबीसी मतदाता हैं और उन्हें हमेशा से नीतीश कुमार का समर्थक माना जाता रहा है. सहनी इसी में से निषाद को अलग करके अपना आधार मजबूत करना चाहते हैं.

सहनी की जड़ें बिहार में दरभंगा जिले के सुपौल बाजार में हैं. स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ चुके सहनी आर.एम. फिल्म प्रोडक्शन नाम से एक प्रोडक्शन हाउस चलाते हैं, जिसने स्पष्ट रूप से मुंबई में काफी पैसा कमाया है.

लेकिन निषाद को एससी में शामिल किए जाने से इनकार ही सहनी के लिए इकलौता झटका नहीं है. जब सबको लग रहा था कि एनडीए मुकेश सहनी का तुष्टिकरण करेगा, तभी उसने उन्हें एक और झटका दे दिया. 18 मार्च को जब राज्यपाल के कोटे से बिहार विधान परिषद के लिए सरकार ने 12 लोगों को चुना तब उसमें मुकेश सहनी की वीआइपी या जीतनराम मांझी के किसी भी सदस्य को इसके लायक नहीं समझा गया.

हम और वीआइपी, दोनों ने प्रतिनिधित्व देने से इनकार पर अपनी नाराजगी जाहिर की है, लेकिन क्या वे इससे ज्यादा कुछ कर सकते हैं?

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