
बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक ने तीन दिन पहले महिला कर्मचारियों को 'शालीन और पेशेवर' कपड़े पहनकर दफ्तर आने कहा था. बांग्लादेश बैंक के मानव संसाधन विभाग ने यह भी चेतावनी दी थी कि आदेश का पालन न करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है.
हालांकि, देश के दो बड़े सरकारी संस्थानओं के इस फैसले के बाद सोशल मीडिया में तूफान उठ खड़ा हुआ. अब ड्रेस कोड लागू करने का फैसला बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस शासन को घेरने के लिए नए, लेकिन विवादित मुद्दे बन गए हैं.
इस घटनाक्रम के बाद न केवल सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है, बल्कि कुछ लोगों ने तो इसकी तुलना अफगानिस्तान में तालिबान शासन के दौरान जारी किए गए इसी प्रकार के फरमानों से भी की है.
इस हफ्ते की शुरुआत में बांग्लादेश बैंक ने महिला कर्मचारियों के छोटे कपड़े, छोटी आस्तीन वाले कपड़े और लेगिंग पहनने पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही महिलाओं से सिर्फ साड़ी या सलवार कमीज पहनने को कहा था.
केंद्रीय बैंक के निर्देश में यह भी सुझाव दिया गया है कि महिलाएं सिर पर स्कार्फ, हिजाब और औपचारिक सैंडल या जूते पहनें. बैंक की मानव संसाधन टीम ने आदेश जारी कर कहा कि पुरुषों के लिए जींस और चिनो ट्राउजर पहनने पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया है.
आदेश में कहा गया है कि निर्देशों का पालन न करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. इसके अलावा, सभी विभागों को ड्रेस कोड दिशानिर्देशों के अनुपालन की निगरानी के लिए एक अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया गया है.
‘ड्रेस कोड’ आदेश के बाद भड़का विरोध
हालांकि, महिलाओं के कपड़ों पर प्रतिबंध से पूरे देश में रोष फैल गया और नागरिकों तथा पत्रकारों ने सरकार पर "तानाशाही" का आरोप लगाया.
कुछ लोगों ने तो इस आदेश की तुलना अफगानिस्तान में तालिबान शासन के आदेशों से की है, जिसमें सभी महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर सिर से पैर तक कपड़े पहनने का आदेश दिया गया है.
एक सोशल मीडिया यूजर्स ने ट्वीट किया, "एक तानाशाह के अधीन नए तालिबानी युग की शुरुआत."
बांग्लादेश महिला परिषद की अध्यक्ष फौजिया मुस्लिम ने स्थानीय मीडिया को बताया कि बांग्लादेश में इस तरह का निर्देश अभूतपूर्व है. उन्होंने कहा, "एक खास तरह की संस्कृति को बढ़ावा देने की कोशिश हो रही है और यह निर्देश उसी प्रयास को दिखाता है."
सोशल मीडिया पर मचे बवाल के बीच, बांग्लादेश बैंक ने 24 जुलाई को यह आदेश वापस ले लिया है. बैंक के प्रवक्ता आरिफ हुसैन खान ने बीडी न्यूज को बताया, "यह सर्कुलर पूरी तरह से एक सलाह है. हिजाब या बुर्का पहनने को लेकर कोई बाध्यता नहीं लगाई गई है."

बांग्लादेश में महिलाओं के अधिकारों को लेकर विरोध प्रदर्शन
यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है, जब इस्लामी समूह महिलाओं के लिए संपत्ति से संबंधित अधिकारों सहित समान अधिकार सुनिश्चित करने वाले सरकार की प्रस्तावित सिफारिशों का विरोध कर रहे हैं.
पिछले महीने, एक इस्लामी समूह ने एक विश्वविद्यालय के शिक्षकों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और उन्हें "हिजाब विरोधी" करार दिया. एक अन्य इस्लामी संगठन, जमात-चार मोनाई ने सरकार से अपील की है कि बांग्लादेश को अफगानिस्तान की तरह शरिया कानून के आधार पर चलाया जाए.
मई में, हिफाजत-ए-इस्लाम नामक संगठन के हजारों कार्यकर्ताओं ने ढाका विश्वविद्यालय के पास रैली निकाली, जिनके हाथों में बैनर थे. इन बैनरों पर लिखा था, "हमारी महिलाओं पर पश्चिमी सभ्यता को ना थोपें, बांग्लादेश उठ खड़ा हो."
विरोध प्रदर्शन दबाने के लिए सरकार ने उठाया मजबूत कदम
इस विवाद के बीच, 23 जुलाई की रात को पारित एक अध्यादेश ने नागरिकों को और अधिक नाराज कर दिया है, जिसमें सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई का प्रस्ताव है.
बीडी न्यूज की एक रिपोर्ट के अनुसार, संशोधित अध्यादेश में विवादास्पद शब्द "अवज्ञा" के स्थान पर "सार्वजनिक कर्तव्य में बाधा डालने वाला कदाचार" शब्द जोड़ा गया है. पिछली बार भी इस कानून के बनने पर सरकारी कर्मचारियों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया था.
कानून में कहा गया है कि अगर कोई सरकारी कर्मचारी किसी सरकारी आदेश का उल्लंघन करता है या उसके पालन में बाधा डालता है, तो उसे सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है. इसके अलावा उस अधिकारी उसके विभाग में डिमोट भी किया जा सकता है.
इसके अलावा, नए कानून में किसी कर्मचारी के खिलाफ किए गए कानूनी कार्रवाई के खिलाफ कोर्ट में अपील करने का भी कोई प्रावधान नहीं है.