भले ही यूपीए सरकार गांवों की गरीब जनता का अन्नदाता होने का दावा करती हो, लेकिन ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़े इस दावे की पोल खोलने के लिए काफी हैं. मंत्रालय की सभी बड़ी-बड़ी योजनाएं पटरी से उतर चुकी हैं.
07 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
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कुछ तो अपना 50 फीसदी लक्ष्य भी पूरा नहीं कर पाई हैं. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा), जिसने पिछले साल 72.97 करोड़ कार्य-दिवस का रिकॉर्ड बनाया था, इस साल वह संख्या गिरकर 52.43 करोड़ रह गई. हालांकि सरकार ने इस वित्त वर्ष के लिए 40,000 करोड़ रु. की रकम तय की थी, लेकिन नवंबर तक केवल 21,000 करोड़ रु. ही खर्च हो पाए.
30 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
प्रधानमंत्री सड़क योजना में 1,94,130 किमी सड़क को बेहतर बनाने का लक्ष्य था, इसमें से 1,16,478 किमी (लक्ष्य का 60 फीसदी) के लिए केंद्र सरकार से पैसा मिलना था और बाकी के लिए राज्यों से. सितंबर तक केवल 12,515 किमी सड़क का काम ही पूरा हो सका. इस योजना में क्वालिटी कंट्रोल एक बड़ा मुद्दा हो चुका है. मंत्रालय के एक नोट के अनुसार, ''सड़क में सुधारी न जा सकने वाली खराबी होने पर जिम्मेदार अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ कड़ी दंडात्मक और अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है.''
23 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे16 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
हालांकि जिलों में निगरानी समितियों की बैठक नियमित रूप से होनी चाहिए थी, लेकिन 2011-12 के दौरान उनमें से 435 जिलों में एक बार भी बैठक नहीं हुई. इनमें से ज्यादातर जिले उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात और महाराष्ट्र के हैं. गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को स्वरोजगार देने के लिए स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना शुरू की गई थी.
9 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे2 नवंबर 201: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
हर ब्लॉक में पांच मुख्य काम चुने गए ताकि इसमें शामिल लोगों को हर महीने कम-से-कम 2,000 रु. की कमाई हो सके. समीक्षा से पता चला है कि केवल 27 प्रतिशत लक्ष्य ही हासिल किया जा सका. केवल मिजोरम, पांडिचेरी और अंदमान-निकोबार द्वीप समूह में ही 50 फीसदी से ज्यादा लक्ष्य हासिल किया जा सका. यूपीए के एक अन्य बहुप्रचारित कार्यक्रम इंदिरा आवास योजना के मामले में भी यही हाल है.