scorecardresearch

एमएनसी से लोहा लेते देसी दबंग

बहुराष्ट्रीय कंपनियों यानी एमएनसी के बोलबाले वाले दौर में भी कुछ देसी ब्रांड ऐसे हैं जो न सिर्फ टिके हुए हैं बल्कि एमएनसी पर भारी पड़ रहे हैं. कंज्‍यूमर मार्केट की समझ, सही पोजिशनिंग और अच्छी क्वालिटी के दम पर जादू दिखा रहे ये ब्रांड यहां से और आगे जाने की तैयारी में हैं.

अपडेटेड 27 मई , 2012

भारतीय ब्रांड्स में आज कुछ ऐसे नाम हैं जिनकी लोकप्रियता और बाजार में जबरदस्त कामयाबी ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को चिंतित होने के लिए मजबूर कर दिया है. वी-जॉन, हिम गंगे केश तेल और वाघ बकरी चाय ऐसे ही कुछ सफल देसी ब्रांड्स के उदाहरण हैं जिन्होंने देश-विदेश के बड़े और स्थापित दिग्गजों को चौंकाया है.

गुणवत्ता का कमालHimgange Oil
हरिद्वार में छोटी-सी दवा की दुकान चलाने वाले 34 साल के महेंद्र कुमार पाहवा सिरदर्द से परेशान थे. उन्हें लगता था कि उनका सिर फट जाएगा. जब कभी सिरदर्द होता, कोई दवा काम न आती. वे बताते हैं, 'फिर करीब चार साल पहले एक दोस्त ने हिमगंगे तेल नियमित लगाने की सलाह दी. मैं लगाने लगा, और सिरदर्द गायब हो गया.' इसके बाद पाहवा ने अपनी दुकान पर उसका स्टॉक रखना शुरू किया. वे पहले हिमगंगे नहीं बेचते थे. उनके आश्चर्य की तब सीमा न रही जब एक दिन उन्होंने अपने बालों को देखा, 'मेरे बाल जल्दी सफेद होना शुरू हो गए थे. लेकिन मैं जैसे-जैसे हिमगंगे लगाता गया, न सिर्फ बालों का पकना रुक गया बल्कि काले भी होने लगे.'

हालांकि, इस तेल के निर्माता 74 साल के गौतम बर्मन उनके बेटे नीरज (41) और विक्रम (40) अपने उत्पाद को लेकर कोई चिकित्सीय गुण का दावा नहीं करते. वे इसे सिर्फ 'ठंडे तेल' की श्रेणी में मानते हैं क्योंकि इसके चिकित्सीय गुणों को प्रमाणित करने के लिए कोई शोध मौजूद नहीं है. माना जाता है कि ऐसे तमाम 'ठंडे तेल' तनाव, अनिद्रा, सिरदर्द और थकान से राहत दिलाते हैं. ऐसे तमाम तेलों का बाजार 700 करोड़ रु. का है, जिसमें हिमगंगे का हिस्सा 28.5 फीसदी है, जो उत्तर भारत में केंद्रित है. कंपनी के मालिकों के मुताबिक उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इसका दबदबा है. बाजार पर 52 फीसदी हिस्सेदारी जमाए इमामी के हिमानी नवरत्न के बाद हिमगंगे को उसकी जगह से कोई नहीं हिला सका है.

कनाडा की मॉन्ट्रियल यूनिवर्सिटी में रसायनशास्त्र के प्रोफेसर रहे गौतम बर्मन के पिता जब 1971 में बीमार पड़े, तो उन्होंने भारत लौट कर घरेलू कारोबार को संभालने का फैसला किया. बनारस का बर्मन परिवार बड़ी वितरण कंपनी चलाता था, लेकिन गौतम हमेशा कुछ अपने दम पर करना चाहते थे. ट्रेन के सफर में उन्होंने देखा कि एक यात्री काफी तेजी से अपने बालों में तेल लगा रहा था. तभी उन्होंने तय किया कि वे तेल बनाएंगे. रसायनशास्त्र की पृष्ठभूमि ने उनकी मदद की और वे महीनों तेलों, औषधियों और खुशबुओं के साथ प्रयोग करते रहे. तब जाकर 1987 में उन्होंने हिमगंगे तेल को बाजार में उतारा.

इस कारोबार में मोड़ तब आया जब उन्होंने मई, 2005 में इसे बनारस से हरिद्वार शिफ्ट करने का फैसला लिया. नया-नया बना उत्तराखंड राज्‍य उस वक्त निवेशकों को आकर्षित करने के लिए वहां उद्योग लगाने वालों को उत्पाद शुल्क पर 10 साल की छूट और 5 साल का टैक्स अवकाश दे रहा था. बर्मन ने अपने कारखाने में स्वचालित पैकेजिंग मशीनें लगाईं, जबकि बनारस में अधिकतर काम हाथ से किया जाता था. विक्रम कहते हैं, 'बोतलों की तेज पैकेजिंग ने नए रास्ते खोल दिए. हम बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अपना उत्पादन बढ़ाने में सक्षम हो गए.'

हिमगंगे का कारोबार 2007-08 और 2009-10 के बीच कुल मिला कर 34.4 फीसदी की दर से बढ़ा. पिछले वित्तीय वर्ष में वृद्धि दर 5.4 फीसदी कम रही जिसकी वजह बर्मन परिवार के मुताबिक सुहानी गर्मी और जल्दी हुई बारिश रही. जब तापमान कम रहता है तो ठंडे तेल को कम लोग लगाते हैं. इसके अलावा कच्चे माल की बढ़ती लागत ने भी असर डाला. गौतम कहते हैं, 'एक वक्त था जब मैं खुद रिटेल स्टोर्स पर एक वैन में अपने प्रोडक्ट के नमूने लेकर जाया करता था, अब हम 200 करोड़ रु. के ब्रांड के मालिक हैं.' विक्रम बताते हैं कि उनकी कंपनी दक्षिण भारत में भी प्रवेश करेगी और वह एकाध अधिग्रहण पर विचार कर रही है. कानपुर के स्टॉकिस्ट उमेश गुप्ता कहते हैं, 'दूसरे उत्पादों के मुकाबले हिमगंगे के उत्पाद बेहतर हैं. प्रतिद्वंद्वी भले ही आक्रामक तौर पर विज्ञापन और प्रचार करें, लेकिन हिमगंगे के ग्राहक ब्रांड के प्रति वफादार हैं. इसके अलावा हिमगंगे बेहतर मार्जिन भी देता है.'
बुलबुले का करिश्माV-john shaving cream

बड़ी मजेदार बात है. एक सिख परिवार जिसकी आस्था उसे शेविंग करने से रोकती हो, की तीसरी पीढ़ी देश के सबसे ज्‍यादा बिकने वाले शेविंग ब्रांड्स में से एक, वी-जॉन की मालिक है. इस ब्रांड का जलवा 1960 से कायम है. भूपिंदर सिंह कोचर याद करते हैं कि जब वे आठ साल के थे, तब अपने पिता सुचेत सिंह कोचर के चक्कर काटा करते थे, जिन्होंने दिल्ली के चांदनी चौक स्थित अपने घर से पर्सनल केयर उत्पाद का कारोबार शुरू किया था.

वे याद करते हैं कि जब खुशबूदार हेयर ऑयल, टेल्कम पाउडर और क्रीम के पैकेट आते थे तो वे कितने रोमांचित हो उठते थे. आज, 60 साल की उम्र में कोचर वी-जॉन ग्रुप के प्रबंध निदेशक हैं. वे बताते हैं, 'मेरे पिता दिनभर घूमते रहते थे. सामान बेचने के लिए वे सदर बाजार जाते थे. उन्हें कभी-कभार पैदल और रविवार को भी जाना पड़ता था.' कारोबार में तब सुखद मोड़ आया जब सुचेत सिंह को शेविंग क्रीम बनाने का नुस्खा मिला. उन्होंने उसका नाम रखा वी-जॉन. कोचर कहते हैं, 'उम्मीद थी कि अंग्रेजी में कोई नाम काम कर जाएगा क्योंकि तब विदेशी सामान का काफी शौक था और वे महंगे दामों में बिकते थे.'

सुचेत सिंह की समझ रंग लाई. वी-जॉन शेविंग क्रीम चमक गई और उन्होंने कोचर कॉस्मेटिक्स नाम की अपनी कंपनी बनाई. 1978 से 2002 के बीच उन्होंने जीटी करनाल रोड पर चार फैक्टरियां लगाईं जिनमें रोजाना सात लाख यूनिट का उत्पादन होने लगा. सन्‌ 2004 में उनके परिवार ने उत्पादन इकाई को बद्दी, हिमाचल प्रदेश में शिफ्ट कर दिया और एफएमसीजी कारोबार को दो हिस्सों में बांट दिया-माजा पर्सनल केयर और माजा हेल्थकेयर. ये दो हिस्से मिलकर 15 उत्पाद बनाते हैं और इनके 125 स्टॉकिस्ट हैं. वी-जॉन ब्रांड में शेविंग क्रीम, फोम, जेल, हेयर रिमूवल क्रीम, गोरेपन की क्रीम, त्वचा के लिए क्रीम, बादाम तेल, टेल्कम पाउडर और टूथपेस्ट शामिल है. यह कंपनी डिओ और परफ्यूम भी बनाती है जो कोबरा और आर्चीज ब्रांड नाम से बिकते हैं.

उत्तर प्रदेश के रामपुर में आर.के. एजेंसीज के लिए वितरण का काम देखने वाले वीरेंद्र कुमार गर्ग कहते हैं, 'उनके पास हर जरूरत का सामान है, उनकी गुणवत्ता अच्छी है और दाम किफायती, लेकिन सबसे अहम बात यह है कि वे अच्छी मार्केटिंग करते हैं और हमें सबसे ज्‍यादा डिस्काउंट देते हैं.' यह एजेंसी इस कंपनी के साथ पिछले आठ साल से काम कर रही है और दूसरी एफएमसीजी कंपनियों जैसे केविन केयर, लॉरियाल और इमामी का वितरण भी देखती है. वी-जॉन की वितरण श्रृंखला से जुड़े कई लोगों का कहना है कि रिटेलर को अधिकतम खुदरा मूल्य पर 25 फीसदी का मार्जिन मिलता है.

वी-जॉन का कारोबार 250 करोड़ रु. का है. इसने अब अपना डिस्ट्रिब्यूशन उत्तरी भारत से पूर्व और पश्चिम के कुछ इलाकों में भी बढ़ा लिया है. वी-जॉन के सीईओ विमल पांडे बताते हैं, 'हमारा लक्ष्य एक साल में सात लाख आउटलेट को कवर करना है जो 3,500 वितरकों से पूरा होगा, और हम अब दक्षिण में भी शुरुआत कर रहे हैं.' वे पिछले ही साल वी-जॉन से जुड़े हैं, इससे पहले वे ऑल आउट बनाने वाली कंपनी एससी जॉनसन, पेप्सीको इंडिया और इमामी से जुड़े रहे हैं. परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य कंपनी के निदेशक हर्षित कोचर जो मार्केटिंग और सेल्स को विशेष रूप से देखते हैं, कहते हैं, 'जैसे-जैसे हम बढ़ेंगे, हमें अच्छे लोगों की जरूरत होगी.'

इस ग्रुप ने हाल ही में अपने सीनियर मैनेजमेंट की नियुक्ति की है जिसमें नेशनल सेल्स मैनेजर जगदीश मालवानी भी हैं, जो पहले एससी जॉनसन चुइंग गम और कैंडी निर्माता रिगली के अलावा मैरिको के साथ काम कर चुके हैं. कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट, ऑपरेशंस के पद पर रविंदर रोटे को लाया गया है. रोटे इमामी के अलावा बायो वेदा एक्शन रिसर्च के साथ काम कर चुके हैं जो बायोटीक ब्रांड का मालिक है. हर्षित कहते हैं, 'हम कारोबार में बढ़ोतरी के लिए काफी उत्सुक हैं. साथ ही हम ऐसे ब्रांड्स खरीदने के लिए भी बाजार को छान रहे हैं जो हमें आगे ले जा सकें.' जाहिर है, ऐसे में प्राइवेट इक्विटी निवेशक अपनी पूंजी के साथ वी-जॉन के दरवाजे पर दस्तक दे ही रहे होंगे. हर्षित कहते हैं, 'हम इस विकल्प पर तभी सोचेंगे जब अधिग्रहण का अपना लक्ष्य पूरा कर लेंगे. अगले तीन साल में हम आइपीओ लाने के बारे में भी सोच रहे हैं.'

चुस्की जो बनाए रिश्ते Bagh Bakri Tea

वाघ बकरी चाय बनाने वालों के नाम से प्रचलित गुजरात टी प्रोसेसर्स एंड पैकर्स लि. कंपनी जब किसी नए बाजार में प्रवेश करती है तो सबसे पहले वहां का पानी और दूध चखती है. पानी और दूध के हिसाब से उस इलाके के लिए चायपत्ती बनाई जाती है. मसलन, दक्षिण गुजरात में लोग क्रीम वाला दूध पीते हैं, तो यहां बेची जाने वाली वाघ बकरी चाय ऐसी होती है जो दूध के गाढ़ेपन के साथ घुल कर अपनी खुशबू और मौजूदगी दर्ज करा सके.

कंपनी की स्थापना करने वाले परिवार की चौथी पीढ़ी के सदस्य पारस देसाई कार्यकारी निदेशक हैं जो सोर्सिंग और ऑपरेशंस का काम संभालते हैं. वे बताते हैं, 'अधिकतर भारतीय दूध और चीनी वाली चाय पीते हैं. इसीलिए हम सबसे पहले इनकी जांच करते हैं और उसके बाद एक ऐसी पत्ती देने की कोशिश करते हैं जो स्थानीय स्वाद के साथ रिश्ता बना सके.' देसाई की खुद की जबान हालांकि रात में बिस्तर तक जाते-जाते सुन्न पड़ जाती है क्योंकि दिनभर में वे करीब 500 नमूने चखते हैं. वे कहते हैं, 'एक परिवार के तौर पर भी हम चाय को लेकर काफी संवेदनशील हैं और इस बात की भरपूर कोशिश में रहते हैं कि ग्राहक तक सही स्वाद पहुंचा सकें.'

जाहिर है, इस कंपनी से आप ऐसी प्रतिबद्धता की उम्मीद भी कर सकते हैं क्योंकि इसकी स्थापना के पीछे महात्मा गांधी की प्रेरणा है. गांधीजी ने नरेंद्र दास देसाई को 1892 में चाय बाजार का जायजा लेने के लिए दक्षिण अफ्रीका बुलाया जहां वे वकालत करते थे. देसाई वहां गए और उन्होंने एक चाय बागान भी खरीद लिया, लेकिन वे उसी वजह से लौट आए जिस वजह से गांधीजी को आना पड़ा- नस्ली भेदभाव. वे वापस लौट कर आए तो उनके पास गांधीजी की एक चिट्ठी थी जिसमें देसाई को चाय का जानकार बताया गया था. इसी ने उन्हें 1919 में गुजरात टी डिपो कंपनी खोलने की प्रेरणा दी.
1925 में उन्होंने वाघ बकरी ब्रांड लॉन्च किया जो गांधीजी के सद्भाव के सिद्धांत पर आधारित था जिसमें एक बाघ और बकरी को एक ही कप से चाय पीता दिखाया गया था. इस ब्रांड नाम के पीछे यही मूल विचार था. गुजराती में बाघ को वाघ कहते हैं. पारस के चचेरे भाई और मार्केटिंग्स व सेल्स के प्रमुख और कार्यकारी निदेशक पराग देसाई कहते हैं, 'यह ब्रांड सद्भाव को प्रदर्शित करता है और दिखाता है कि चाय कैसे रिश्तों को जोड़ सकती है.'

गुजराती कारोबारी होने का अर्थ असंतुष्ट होना होता है, यह बात इस कंपनी के साथ भी सही है. एक वक्त आया जब देसाई परिवार ने तय किया कि अब गुजरात से बाहर निकलना है और हिंदुस्तान यूनीलीवर और टाटा जैसे खिलाड़ियों से दो-दो हाथ करने हैं जिनका 80 फीसदी बाजार पर कब्जा है. गुजरात में 50 फीसदी खपत वाघ बकरी की ही है. यह राजस्थान, मध्यप्रदेश, आंध्र, महाराष्ट्र, गोवा, दिल्ली, हैदराबाद, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में भी बिकती है जो इसे एचयूएल और टाटा के बाजार से इतर देश का सबसे बड़ा ब्रांड बनाती है.

इन तीनों क्षेत्रीय कंपनियों की शुरुआत रोचक है. इन्होंने स्थानीय बाजार की जरूरतों को अच्छी तरह समझा, अपनी शुरुआती सफलता को पेशेवर अंदाज में भुनाया, कारोबार को बढ़ाया और बाजार हिस्सेदारी के बूते लोहा मनवाया है. ये ब्रांड इस धारणा को गलत साबित कर रहे हैं कि क्षेत्रीय ब्रांड सस्ते होते हैं और बेसलीके के विज्ञापन देते हैं. दरअसल अब ये एमएनसी को बराबरी की टक्कर दे रहे हैं. यही उनकी सफलता का राज है.

Advertisement
Advertisement