प्रवासी मजदूरों के लगातार यूपी पहुंचने से प्रदेश के उद्योगों को स्किल्ड लेबर मिलने की संभावना कानपुर में आकार लेती दिखाई दे रही है. पिछले डेढ़ महीने के भीतर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात से करीब एक लाख मजदूर कानपुर लौट चुके हैं. मजदूरों की घर वापसी का कानपुर की साइकिल इकाइयों पर सकारात्मक असर पड़ा है. पंजाब से लौटे कारीगरों के कारण वहां की फैक्टरियां चालू नहीं हो सकीं, जिसका फायदा कानपुर की साइकिल फैक्टरियों को मिल गया. यहां की फैक्टरियों को लॉकडाउन के दौरान इतना काम मिल गया, जितना पिछले एक साल में नहीं मिला था.
कानपुर में साइकिल पार्ट्स की 76 से ज्यादा फैक्टरियां थीं जो दो साल मजदूरों के न मिलने और बाजार से ऑर्डर न मिलने से कंगाली की हालत में पहुंच गए थी. इसकी बड़ी वजह लुधियाना का बढ़ता प्रभुत्व और वहां से यूपी में सस्ते माल की भरमार थी. पंजाब साइकिल का सबसे बड़ा गढ़ है. 80 फीसद साइकिल पार्ट्स की सप्लाई देशभर में वहीं से होती है. कागजी वजहों से वहां के उत्पाद सस्ते पड़ते थे और कानपुर के महंगे. लॉकडाउन से फैक्टरियां बंद हुईं तो वहां से मजदूरों ने घर वापसी शुरू कर दी.
पंजाब में कारीगरों का संकट खड़ा होने से फैक्टरियां नहीं खुल पा रही हैं. इसके उलट कानपुर के उद्यमियों ने पंजाब के कारीगरों को काम पर रखकर प्रोडक्शन शुरू कर दिया. कानपुर के एक साइकिल व्यवसायी बलजीत सिंह बताते हैं, "लॉकडाउन में अचानक कानपुर की फैक्टरियों में बनी साइकिल की मांग अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई है. पारंपरिक और सस्ती साइकिलों की मांग ज्यादा हो गई, जबकि सालभर से पारंपरिक साइकलों की ग्रोथ एक-दो फीसद से ज्यादा नहीं थी."
कानपुर की साइकिल फैक्टरियों को पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ के अलावा मध्य प्रदेश, ओडिशा तक से ऑर्डर मिले हैं. जल्दी माल लेने के लिए कंपनियां न केवल पिछला फंसा हुआ पेमेंट दे रही हैं बल्कि एडवांस भुगतान भी कर रही हैं. आलम यह है कि कानपुर में कई वर्षों में पहली बार साइकिल की नगद बिक्री हो रही है. व्यापारियों के पास माल कम पड़ रहा है.
साइकिल इंडस्ट्री को हर संभव मदद देने के लिए कानपुर के जिलाधिकारी ब्रह्मदेव तिवारी ने व्यवसाइयों से फोन पर बात करके उनकी समस्याओं की जानकारी ली और जिला उद्योग अधिकारी को सभी प्रकार की समस्याओं को सूचीबद्ध करने के आदेश दिए हैं. इसके बाद इनका समयबद्ध निस्तारण कराया जाएगा.
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