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मेडिसिन: मिलता है उचित उपचार

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान देश का सबसे मशहूर अस्पताल है और यहां प्रत्येक छह महीने पर पाठ्यक्रमों की समीक्षा होती है. इसी वजह से हर साल यह चार्ट में सबसे ऊपर रहता है.

अपडेटेड 31 अक्टूबर , 2013

वर्षों से 20 वर्षीय परितोष शर्मा एक ही मिशन पर जुटे थे. जब वे हाइ स्कूल में थे तभी उन्होंने अपना एकमात्र लक्ष्य निर्धारित कर लिया थाः अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिला पाना. बारहवीं की अपनी बोर्ड परीक्षा के बाद उन्होंने दो साल सख्त कोचिंग में गुजारे और आखिरकार दूसरे प्रयास में इस परीक्षा को पास किया.

आज जब वे अंतहीन अध्ययन के उन अनगिनत घंटों को याद करते हैं तो उन्हें कोई अफसोस नहीं होता. राजस्थान के इस गौरवान्वित एमबीबीएस छात्र का कहना है, ''मेरी मेहनत बिल्कुल जायज थी. एम्स के पास देश की सबसे अच्छी चिकित्सा सुविधाएं और शिक्षक हैं.'' हर साल अखिल भारतीय प्री-मेडिकल टेस्ट में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों की संख्या 30,000 से 35,000 के बीच होती है जिनमें से केवल 77 को ही एम्स में प्रवेश मिल पाता है.

फार्माकोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर वाइ.के. गुप्ता कहते हैं कि सर्वश्रष्ठ छात्रों के चयन को मौका मिलना ही संस्थान की सबसे बड़ी ताकत है. हर साल की तरह एक बार फिर से दिल्ली के एम्स ने सर्वश्रेष्ठ मेडिकल कॉलेजों के इंडिया टुडे-नीलसन सर्वेक्षण में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है. गुप्ता कहते हैं, ''अंडरग्रेजुएट छात्रों के लिए हमारे एमबीबीएस कोर्स का पाठ्यक्रम गतिशील एवं समसामयिक है.

हमारा पाठ्यक्रम प्रासंगिक बना रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक छह महीने पर एक कमेटी की बैठक होती है.'' 50 विभागों के 434 से अधिक शिक्षक 715 अंडरग्रेजुएट एवं  1,219 पोस्टग्रेजुएट छात्रों को नवीन तथा इंटरैक्टिव तरीकों का इस्तेमाल करते हुए प्रशिक्षित करते हैं ताकि एम्स में प्रवेश मिल जाने की खुशी गुजर जाने के बाद भी इन मेधावी छात्रों की प्रेरणा कायम रहे. हालांकि संकाय की पहल के अलावा यह संस्थान की प्रतिष्ठा ही है जिससे छात्रों को दूसरे संस्थानों के छात्रों के मुकाबले बढ़त हासिल होती है.

संस्थान में ही देश का सबसे प्रसिद्ध अस्पताल भी स्थित है जहां हर रोज देशभर से बड़ी संख्या में मरीज आते हैं, जिससे छात्रों को तमाम आम बीमारियों के अतिरिक्त असामान्य चिकित्सा मामलों को देखने और अध्ययन का अवसर मिलता है. गुप्ता बताते हैं, ''हमारे छात्र एम्स में दुर्लभ से दुर्लभतम रोगियों को देखते हैं और उन्हें सिखाया जाता है कि उन रोगियों का इलाज कैसे किया जाए.''

संस्थान की जगह भी महत्वपूर्ण है. एम्स परिसर के राजधानी के दिल में स्थित होने की वजह से छात्र कई चिकित्सा सम्मेलनों, सेमिनारों एवं अनुसंधान कार्यक्रमों में भाग लेते हैं जो उन्हें नई चिकित्सा प्रौद्योगिकियों तथा शल्य चिकित्सा तकनीकों से परिचित कराते हैं. 2011 में संस्थान ने खुद 150 से अधिक चिकित्सा सम्मेलनों का आयोजन किया.

इस तरह के माहौल से छात्रों को चिकित्सा के क्षेत्र की नवीनतम प्रगतियों के बारे में जानकारी मिलती है और उन्हें पाठ्यपुस्तकों से परे सोचने में मदद मिलती है. इसके अलावा एम्स को पूरी दुनिया से सहयोगात्मक (कोलैबोरेटिव) परियोजनाओं की पेशकश की जाती है.

अकेले 2010-11 में ही 500 से अधिक शोध परियोजनाएं संचालित की गईं, जिनके लिए संस्थान को 50 करोड़ रु. से अधिक का अनुदान प्राप्त हुआ. एम्स ने पुस्तकों तथा मोनोग्राफों में 259 लेखों के अतिरिक्त विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रभावशाली 1,611 शोधपत्र प्रकाशित कराए. परिसर के पुस्तकालय में छात्र इन सभी लेखों को पढ़ सकते हैं जो पूरे सप्ताह चौबीसों घंटे खुला रहता है. 

एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र हिमांशु मेनन का कहना है, ''एम्स में पढ़ने के स्पष्ट फायदे हैं. उदाहरण के लिए, यहां के डिसेक्शन लैब्स में एक मेज पर कव्वल पांच से छह छात्र काम करते हैं जबकि दूसरे संस्थानों में यह अनुपात लगभग 30-40 छात्र प्रति मेज का है.'' इसकी प्रतिष्ठा की वजह से कई मरीज वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए स्वेच्छा से निधन के बाद अपने शरीर के दान की घोषणा कर देते हैं. एक शिक्षक जिन्होंने अपना नाम जाहिर किए जाने से मना कर दिया, कहते हैं, ''हम उन कॉलेजों को कुछ शव देने की योजना बना रहे हैं, जहां आपूर्ति कम है.''

साल में एक बार सबसे ज्‍यादा पढ़ाकू भी अपनी किताबें रखकर उन हजारों छात्रों में शामिल हो जाता है जो पूरी तरह छात्रों द्वारा ही आयोजित किए जाने वाले लोकप्रिय वार्षिकोत्सव 'पल्स' में भाग लेने के लिए वहां पहुंचते हैं. सफलता का अंतिम मापदंड तो 'एम्सोनियन' ही हैं यानी वे पूर्व छात्र जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा रहे हैं.

गुप्ता बताते हैं, ''कई एम्सोनियन प्रतिष्ठित अस्पतालों में महत्वपूर्ण पदों पर काम कर रहे हैं, तो कई दूसरे नीतिगत स्तर पर सरकार से जुड़े हुए हैं.'' कुछ प्रसिद्ध एम्सोनियन में पद्म भूषण डॉक्टर पी. वेणुगोपाल, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के सतत शिक्षा पाठ्यक्रमों के डीन डॉक्टर संजीव चोपड़ा और प्रख्यात चिकित्सा विज्ञानी तथा एम्स के पूर्व निदेशक डॉक्टर वी. रामलिंगास्वामी जैसी हस्तियां शामिल हैं. चूंकि संस्थान भारत का प्रमुख मेडिकल कॉलेज बना हुआ है इसलिए पूरी उम्मीद है कि कई अन्य एम्सोनियन चिकित्सा दिग्गजों की सूची में अपना नाम जोड़ते रहेंगे.

यदि एम्स को किसी प्रतियोगिता का सामना करना भी पड़ता है तो यह प्रतियोगिता उसे वेल्लूर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी) से मिलती है. सीएमसी को अत्यंत प्रतिष्ठित अस्पताल की सिनर्जी से बहुत फायदा पहुंचा है. अत्यधिक प्रतिबद्धता के साथ चलाए जाने वाले इस अस्पताल को जान-बूझ्कर किसी बड़े शहर से दूर स्थापित किया गया है. यह इसकी ख्याति ही है कि देश के दूर-दराज के कोनों से मरीज इलाज के लिए वेल्लूर की यात्रा के लिए तत्पर रहते हैं. वेल्लूर तमिलनाडु की राजधानी चेन्नै से 125 किलोमीटर दूर है.

1918 में एक मेडिकल स्कूल के रूप में शुरू किया गया सीएमसी 1942 में एक एकल एमबीबीएस पाठ्यक्रम के साथ महिला मेडिकल कॉलेज के रूप में विकसित हुआ. पुरुषों को 1947 में जाकर प्रवेश मिल सका. आज मेडिकल, नर्सिंग तथा संबद्ध स्वास्थ्य विषयों के 150 विभिन्न पोस्टग्रेजुएट पाठ्यक्रमों में 2,000 छात्रों ने प्रवेश ले रखा है.

''नॉट टू बी मिनिस्टर्ड अनटू बट टू मिनिस्टर'' (सेवा करवाने के लिए नहीं वरन सेवा करने के लिए) इस कॉलेज का ध्येय वाक्य है, जो एमबीबीएस एवं अन्य अंडरग्रेजुएट पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए ऑल इंडिया सीएमसी वेल्लूर कॉमन एंट्रेंस टेस्ट आयोजित करता है. इसके पूर्व छात्रों में कई सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ शामिल हैं, जिन्होंने पारंपरिक सांचों को तोड़कर अलग काम किया है. उनमें नागरिक अधिकार कार्यकर्ता बिनायक सेन भी शामिल हैं जिन्होनें बरसों तक छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के बीच काम किया है और मैग्सायसाय पुरस्कार विजेता रजनीकांत अरोले भी हैं जिन्होंने महाराष्ट्र के जामखेड में अपनी पत्नी माबेले के साथ व्यापक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली विकसित की है.

सीएमसी वेल्लूर के निदेशक डॉक्टर सुरंजन भट्टाचार्जी कहते हैं, ''हम क्या हैं और हम क्या होंगे, के बीच मौजूद अंतर के प्रति हम सचेत हैं इसलिए हम निरंतर यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करते रहते हैं कि आकार एवं संख्या में हमारा विकास हमारी देखभाल और प्रतिबद्धता की गहराई के विकास के अनुरूप हो, हमारी प्रभावशीलता, हमारी संवेदनशीलता और जनता तक हमारी पहुंच के अनुरूप हो.'' अंधाधुंध व्यावसायिकता के इस दौर में सीएमसी अब भी ऐसे मेडिकल प्रोफेशनल तैयार कर रहा है जो राष्ट्र को अदम्य सार्वजनिक सेवा प्रदान करने के लिए तैयार हैं.

-साथ में अमरनाथ के. मेनन

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