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मायावती का मिशन लोकसभा चुनाव 2014

वोट के लिहाज से देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी की नेता मायावती को करप्शन के मामले में सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत. यूपी चुनाव की हार के सदमे से उबरकर पार्टी की नजर अब लोकसभा चुनाव पर.

मायावती
मायावती
अपडेटेड 18 जुलाई , 2012

छह मार्च की बात है. इस दिन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आए और पांच साल से सूबे की एकछत्र सम्राज्ञी रही, बीएसपी सुप्रीमो मायावती का ताज एक झटके में उछल गया. कार्यकर्ता मायूस हो गए. बहनजी भी बंगले से बाहर नहीं आईं. लगा, वे एक बार फिर से वही खामोशी ओढ़ लेंगी जो पहले भी दो बार मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने के बाद ओढ़ती रही हैं.

लेकिन ठीक चार महीने बाद जुलाई की छह तारीख मायावती के लिए मुस्कराने की वजह लेकर आई. सुप्रीम कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआइ की एफआइआर को रद्द करने का आदेश दिया और बीएसपी कार्यकर्ता झूम उठे. पांच दिन बाद 11 जुलाई को मायावती ने पार्टी संगठन में बड़े बदलाव कर एक तरह से 2014 के लोकसभा चुनाव की तैयारी का ऐलान कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राजधानी लखनऊ में बीएसपी कार्यकर्ता मिठाई बांटने लगे. मायावती 13 माल एवेन्यु के सरकारी बंगले के बाहर अपने पसंदीदा गहरे क्रीम रंग का सलवार कुर्ता पहने और गले में दुपट्टा लपेटे एक पर्चा पढ़ रही थीं. दलित नेता ने कहा, ''नौ साल तक चले मुकदमे के दौरान तमाम उतार-चढ़ाव आए, लेकिन पार्टी कार्यकर्ता विचलित हुए बगैर चट्टान की तरह खड़े रहे. इसके लिए मैं उनका आभार जताती हूं.''

चुनावी हार के बाद यह पहला मौका था जब मायावती ने सीधे-सीधे कार्यकर्ताओं को भावुक संदेश दिया. इन भावनाओं का असर पांच दिन बाद 11 जुलाई को लखनऊ में पार्टी नेताओं, विधायकों, सांसदों के साथ हुई बैठक में भी बरकरार रहा. मायावती के मंच पर पहुंचते ही एक नेता उनके सम्मान में माइक हाथ में लेकर गीत गाने लगे. मायावती मुस्कान के साथ उन्हें सुनती रहीं और उसके बाद कहा ''बैठ जाइए, आप थक गए होंगे.''

इसके बाद उन्होंने ओबीसी नेता रामअचल राजभर को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की घोषणा की और स्वामी प्रसाद मौर्य को 'एक व्यक्ति एक पद' के सिद्धांत के नाम पर विधानसभा में नेता विपक्ष के पद तक सीमित कर दिया. यही नहीं, प्रदेश में बीएसपी के सभी जोनल कोआर्डिनेटर अब सीधे मायावती के बजाय राजभर को रिपोर्ट करेंगे. राजभर माया सरकार के उन पूर्व मंत्रियों में हैं जो भ्रष्टाचार के मामले में लोकायुक्त जांच का सामना कर रहे हैं. माया का इशारा साफ है, भ्रष्टाचार का हौवा खड़ा करने वालों से अब वे नहीं डरतीं, जो फैसला होना होगा, जनता की अदालत में होगा.

दरअसल सुप्रीम कोर्ट का फैसला तो एक बहाना भर है. मायावती ने 6 मार्च को चुनाव हारने के बाद ही ठान लिया था कि वे अब लगातार मैदान में डटी रहेंगी. इस समय तक समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता भी मान रहे थे कि मायावती अब 2014 के चुनाव के वक्त ही हुंकार भरेंगी. लेकिन 10 मार्च को लखनऊ में जब उन्होंने पार्टी सांसदों और बाकी नेताओं की बैठक बुलाई तो तमाम ऊंचे कद वाले नेताओं के सिर झुके हुए थे. इस बैठक में मायावती ने अपने सिपहसालारों की खूब खबर ली.

बैठक में मौजूद नेताओं की मानें तो मायावती ने कहा था, ''आप लोगों ने दलितों की बहुत उपेक्षा की. अंत में मुझे ही उनके बीच जाना पड़ा और तब वे पार्टी के पीछे लामबंद हुए.'' उनका इशारा पार्टी के टिकट पर पिछले चुनाव में बड़ी संख्या में जीते गैर-दलित नेताओं की ओर था. इसके बाद 30 अप्रैल को राज्यसभा में मायावती ने अनुसूचित जाति-जन जाति के पदोन्नति आरक्षण के मुद्दे को खुलकर उठाया.

19 मई को उन्होंने लुटियन की दिल्ली के राजनीतिक पंडितों को आश्चर्य में डाल दिया. पूरे तीन साल बाद वे दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में प्रेस से मुखातिब हुईं. इस संवाददाता सम्मेलन की खासियत यह थी कि बहनजी अपना 7 पेज का भाषण पढ़ने के बाद भी पत्रकारों के सवालों का जवाब देने के लिए मंच पर मौजूद रहीं. एसपी सरकार को जमकर कोसने के बाद मायावती ने दो-टूक लहजे में यह भी बता दिया कि उन्हें कोई नहीं चलाता, वही पार्टी और नेताओं को चलाती हैं.

मायावती ने कहा, ''जब मैं राज्यसभा पहुंची तो मुझे शक हुआ कि मेरे विरोधी यह अफवाह फैला रहे हैं कि मैं सदन में वही बोलती हूं जो सतीश चंद्र मिश्र और दारा सिंह चौहान लिख कर देते हैं. लेकिन सच्चार्ई यह है कि जब ये दोनों नेता या मेरी पार्टी का कोई भी सांसद बोलता है तो उसके मुख्य बिंदु मैं ही तैयार करके देती हूं.''

यानी मायावती के पास आत्मविश्वास से भरी रणनीति है. मायावती के भरोसेमंद और विधान परिषद में नेता विपक्ष नसीमुद्दीन सिद्दीकी कहते हैं कि अखिलेश सरकार राजनैतिक विद्वेष से प्रेरित होकर कार्रवाई कर रही है. सिद्दीकी के मुताबिक ''दलित स्मारकों के निर्माण में किसी भी तरह का कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है. यह बात जल्द ही साबित हो जाएगी.'' हालांकि पार्टी की आगे की रणनीति के सवाल का जवाब वे पार्टी की मुखिया के लिए ही छोड़ देते हैं.

बीएसपी के राज्यसभा सांसद और मायावती के सिपहसालारों में से एक मुनकाद अली कहते हैं, ''बहनजी ने पार्टी कार्यकर्ताओं से पूरे उत्साह से काम करने के लिए कहा है.'' पर रणनीति के सवाल से वे भी पल्ला झाड़ लेते हैं. लेकिन एसपी के कद्दावर नेता और प्रदेश के नगर विकास मंत्री आजम खान के पास इसका मुंहतोड़ जवाब है.

बदली हुई मायावती पर खान कहते हैं, ''गम दिया जो बुतों ने तो खुदा याद आया.'' वे कहते हैं कि पांच साल बुत बनवाने में पानी की तरह पैसा बहाने के बाद माया को इसकी सजा मिली है. अगर वे इससे सबक लेती हैं तो अच्छी बात है. लेकिन एसपी की सेहत पर इससे कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि विधानसभा चुनाव में अभी चार साल आठ महीने बाकी हैं.

बहरहाल बीएसपी के भीतर से मायावती की जो नई रणनीति छनकर सामने आ रही है, उसके मुताबिक वे अब और मजबूती से खुद को दलित की बेटी बताएंगी. यही नहीं, विधानसभा चुनाव के बाद मायावती बीते 25 दिन से लगातार लखनऊ में कैंप कर रही हैं. इस दौरान वह हर रोज पार्टी के पदाधिकारियों से मिलकर उनसे संगठन के कार्यों की जानकारी ले रही हैं. पार्टी के एक पदाधिकारी बताते हैं कि मायावती हर रोज अपने आवास में अलग-अलग मंडलों के जोनल कोआर्डिनेटरों के साथ बैठक कर रही हैं. इस दौरान मुख्य चर्चा लोकसभा चुनाव में पार्टी की तैयारियों को लेकर ही होती है.

बीएसपी ने 80 लोकसभा सीटों में से 70 पर अपने उम्म्मीदवारों के नाम फाइनल कर दिये हैं. इनमें अमेठी की लोकसभा सीट भी शामिल है जहां से कांगे्रस महासचिव राहुल गांधी सांसद हैं. बीएसपी ने अमेठी से चंद्र प्रकाश मिश्र 'मटियारी' को उतारा है जो यहां से कई बार विधायक भी रह चुके हैं. इसके अलावा लखीमपुर से अब्दुल मन्नान, बाराबंकी से कमला प्रसाद रावत, मेरठ से शाहिद अस्लम, गाजियाबाद से मुकुल उपाध्याय, गौतमबुद्घ नगर से सुरेंद्र नागर लोकसभा का टिकट पाने वालों की सूची में शामिल हैं. इसके अलावा उत्तर प्रदेश की 17 सुरक्षित लोकसभा सीटों में से कम-से-कम 15 सीटें पार्र्टी की झेली में डालना उनके एजेंडे में सबसे ऊपर है. इसके लिए उन्होंने मुसलमान-पिछड़ा और ब्राह्मण भाईचारा समिति का गठन किया है. ये समितियां सुरक्षित लोकसभा सीटों पर मुसलमानों, पिछड़ों और ब्राह्मणों को बीएसपी प्रत्याशी के समर्थन के लिए तैयार करेंगीं.

मायावती ने पार्टी नेता मौर्य के नेतृत्व में पिछड़ा वर्ग भाईचारा समिति का भी गठन किया है. मायावती की रणनीति प्रदेश की अखिलेश सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार करने की है. अगर वर्तमान सरकार मायावती के कार्यकाल में स्मारकों के निर्माण में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे को हर मंच से उठा रही है तो इसकी काट के रूप में मायावती ने एसपी सरकार के दौरान खराब कानून-व्यवस्था को जोरदार ढंग से उठाने की रणनीति तैयार की है. इसका जिम्मा विधानसभा में नेता विरोधी दल स्वामी प्रसाद मौर्य को दिया गया है. 

बीएसपी भले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आखिरी इबारत करार दे रही हो लेकिन सारे तथ्य उतने लुभावने नहीं हैं जितने पार्टी को नजर आ रहे हैं. मायावती से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सीबीआइ के सूत्र दावा करते हैं कि वह अब भी फैसले को चुनौती दे सकती है. वैसे भी 25 अक्टूबर, 2004 को सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच ने दोनों मामलों को अलग कर दिया था.

सीबीआइ के एक अफसर ने दावा किया, 'यह महज कानूनी नुक्ताचीनी का मामला है.' दूसरी तरफ खुद अदालत ने अपने आदेश में इसी मामले के एक पक्षकार कमलेश वर्मा को नए सिरे से रिट पिटीशन डालने की छूट दी है. वर्मा ने इंडिया टुडे को बताया, ''मैं लंबे समय से मायावती की बेहिसाब दौलत के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा हूं. जल्द ही मैं रिट पिटीशन दायर करूंगा.''

उधर विपक्षी पार्टियों के सुर भी सख्त हैं. वरिष्ठ बीजेपी नेता कलराज मिश्र मानते हैं कि कांग्रेस संचालित केंद्र सरकार के दबाव में सीबीआइ ने रणनीति के तहत मायावती पर कमजोर केस किया. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी कहती हैं, ''कोर्ट ने मायावती को क्लीन चिट नहीं दी है.

कोर्ट का निर्णय इस बात का प्रमाण है कि सीबीआइ ने अपना होमवर्क ठीक से नहीं किया था. इससे मायावती पर भ्रष्टाचार का मामला समाप्त नहीं हो जाता.'' राजनीतिक विरोधियों को अपनी बात रखने का पूरा हक है, फिलहाल तो बीएसपी हार की धूल झाड़ मिठाइयां बांटने के मूड में है. सियासत में हार-जीत तो लगी रहती है पर हौसले का बना रहना सबसे बड़ी बात है.

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