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शहीद देवेंद्र मिश्र: बुंदेलखंड के लाल से खौफ खाते थे बदमाश

देवेंद्र मिश्र का कांस्टेबल से सीओ तक का सफर उनकी दिलेरी की दास्तान है. देवेंद्र की बहादुरी की बानगी थी कि वर्ष 2012 में चर्चित ट्रेन डकैती के बदमाशों को दबोचकर उन्होंने लूट का माल भी बरामद किया था.

देवेंद्र मिश्र के परिवार के साथ योगी आदित्यनाथ (फोटोः आशीष मिश्र)
देवेंद्र मिश्र के परिवार के साथ योगी आदित्यनाथ (फोटोः आशीष मिश्र)
अपडेटेड 4 जुलाई , 2020

कानपुर में 2 जुलाई की रात कुख्यात बदमाश विकास दुबे और उसके साथि‍यों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए पुलिस उपाधीक्षक (सीओ) देवेंद्र मिश्र बुंदेलखंड के बांदा जिले के अतर्रा ब्लाक के गिरवा क्षेत्र के सहेवा गांव के रहने वाले थे. बेहद साधारण परिवार से आने वाले देवेंद्र मिश्र के पिता महेश प्रसाद गांव के ही जूनियर हाइस्कूल में शिक्षक थे. देवेंद्र ने मिडिल तक पढ़ाई गांव में ही की थी. उन्होंने हाइस्कूल खुरहंड के जनता इंटर कालेज और इंटर बांदा के आदर्श बजरंग इंटर कालेज से किया था. महेश प्रसाद के तीन बेटों में सबसे बड़े देवेंद्र काफी पहले पुलिस में भर्ती हो गए थे.

देवेंद्र मिश्र 2012 में सम्मानित हुए थेबांदा के पंडित जवाहरलाल नेहरू डिग्री कालेज से स्नातक करने के बाद देवेंद्र ने वर्ष 1981 में कांस्टेबल के पद पर पुलिस विभाग में नौकरी पाई थी. इनकी पहली पोस्टिंग गाजियाबाद के मोदीनगर में हुई थी. सहेवा गांव के खपरैलदार मकान के बाहर देवेंद्र मिश्र, पुलिस उपा‍धीक्षक नाम की नेमप्लेट लगी है. घर के सामने अपने माता-पिता की याद में देवेंद्र ने शि‍व जी का मंदिर बनाया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 29 फरवरी को चित्रकूट में बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का शि‍लान्यास करने आए थे तब देवेंद्र की ड्यूटी भी चित्रकूट में लगी थी. लौटते वक्त देवेद्र अपने गांव होते हुए गए थे और यही अंतिम बार वे अपने गांव आए थे. गांव में देवेंद्र के छोटे भाई राजीव मिश्र और रामग्रीनदीन मिश्र रहते हैं. देवेंद्र की पत्नी आशा मिश्र और उनकी दोनों बेटियां कानपुर में ही रहती हैं. बेटियां नीट परीक्षा की तैयारी कर रही हैं. देवेंद्र की ससुराल बांदा के मौदहा तहसील के इचौली गांव में है. देवेंद्र की शहादत की खबर आते ही 3 जुलाई की सुबह खुरहंड चौकी और स्थानीय पुलिस की टुकड़ी उनके घर पहुंच गई थी.

शहीद सीओ देवेंद्र मिश्र

कांस्टेबल से सीओ तक का सफर देवेंद्र की दिलेरी की दास्तान है. विभागीय परीक्षा पास कर वे एसआई बने और कानपुर की अहिरवां चौकी इंचार्ज का पद संभाला था. इसके बाद वर्ष 2004-05 में वह उन्नाव जनपद के आसीवन थाना इंचार्ज रहते हुए एक शातिर का एनकाउंटर किया था. वे आउट ऑफ टर्न प्रमोशन पाकर इंस्पेक्टर बने थे. देवेंद्र की बहादुरी की बानगी थी कि वर्ष 2012 में चर्चित ट्रेन डकैती के बदमाशों को दबोचकर लूट का माल भी बरामद किया था. उस वक्त देवेंद्र इंस्पेक्टर थे. इसके बाद तत्कालीन पुलिस महानिदेशक ने देवेंद्र को 15 हजार रुपए का इनाम और प्रशस्तिक पत्र देकर सम्मानित किया था. वर्ष 2013 में वाराणसी में कैंट जीआरपी निरीक्षक के रूप में तैनाती के दौरान देवेंद्र ने जहरखुरानी गिरोह को नेस्तनाबूद करने में मुख्य भूमिका निभाई थी. वर्ष 2016 में देवेंद्र आउट आफ टर्न प्रमोशन पाकर पुलिस उपाधीक्षक बने थे. वे मार्च 2021 में सेवानिवृत्त होने वाले थे.

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