प्रदेश के भाजपा नेता जनता का विश्वास जीतने के लिए विकास की बात और भोजन-भंडारे की राजनीति करते हैं. यह आरोप लगाने वाला कोई और नहीं बल्कि पार्टी के ही वरिष्ठ नेता विक्रम वर्मा हैं. वर्मा ने प्रदेश के नेताओं को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ''अब उन्हें कथा आयोजन, भोजन और भंडारे की राजनीति से हटकर विकास की राजनीति पर आ जाना चाहिए.''
बात दरअसल यह है कि छुटभैये नेता से लेकर प्रदेश के मंत्री तक जगह-जगह इस तरह के आयोजन कर जनता को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. पिछले दिनों वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने महू में मां कनकेश्वरी देवी की भागवत कथा करवाई थी. जनता के मनोरंजन के लिए आयोजन में कैलाश खेर और अनूप जलोटा ने भी अपनी कला परोसी.
भोजन-भंडारे की राजनीति में प्रदेश के भाजपा नेता एक-दूसरे को कड़ी टक्कर दे रहे हैं. इस दौड़ में सबसे आगे रहते हैं विजयवर्गीय. उनके सहयोगी विधायक रमेश मेंदोला और जीतू जिराती भी अपने स्तर पर ऐसे आयोजन करते रहते हैं. दिवंगत मंत्री लक्ष्मण सिंह गौड़ की पत्नी और भाजपा विधायक मालिनी गौड़ भी पीछे नहीं हैं. विजयवर्गीय जहां प्रदेशभर में मां कनकेश्वरी देवी के कथा-प्रवचन करवाते हैं तो गौड़ महामंडलेश्वर अवधेशानंदगिरी जी महाराज की भागवत कथा और कोटिचंडी महायज्ञ करवाती हैं. मजे की बात तो यह है कि अब कांग्रेस के नेता भी इसी रास्ते पर चल पड़े हैं.
यह एक तीर से कई निशाने साधने का मामला है. अव्वल तो धार्मिक आयोजन करवाने से नेता की सात्विक छवि बन जाती है, दूसरा फायदा आयोजनों में मुफ्त या नाममात्र शुल्क पर होने वाले भोजन से मिलता है, जिसके जरिए जनता में 'मजबूत' पकड़ बन जाती है.
शायद इसीलिए आम तौर पर कथा-प्रवचनों से किनारा करने वाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विपक्ष के नेता अजय सिंह भी सीधी और भोपाल में हर साल अवधेशानंदगिरी जी महाराज की कथा करवाते हैं. माना यह जाता है कि अजय सिंह महाकौशल में राजनैतिक दबदबा रखने वाली ब्राह्मण लॉबी में अपनी पैठ कायम रखना चाहते हैं, आखिर यह उनका पुश्तैनी गढ़ जो है.
भोजन-भंडारे की राजनीति कितने बड़े स्तर पर हो रही है, इसका अंदाजा इन आयोजनों पर होने वाले खर्च के आंकड़ों से साफ पता चलता है. अर्थशास्त्री बी.एस. भंडारी बताते हैं कि ''पिछले पांच वर्षों में प्रदेश में हुए बड़े स्तर के कथा, प्रवचन और भंडारों में 15,000 करोड़ रु. से ज्यादा खर्च होने का अनुमान है.''
लेकिन इस तरह की राजनीति से नेताओं को आखिर कैसा लाभ मिलता है? भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ''खुद मुख्यमंत्री भी धर्म आधारित राजनीति का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं. इसीलिए हर वे नेता जो मुख्यमंत्री के करीब होना चाहता है, कथा और भंडारे का सहारा लेता है.''
भाजपा के एक अन्य नेता कहते हैं, ''देश में कथा, प्रवचनों और भंडारों की होड़ मची हुई है तो इसका कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है. पार्टी में टिकट मिलने से लेकर मंत्री बनने तक की सीढ़ी संघ की गोपनीय रिपोर्ट पर निर्भर होती है. संघ की गुडबुक में पैठ बनाने के लिए कथा-भंडारे की राजनीति करना बढ़िया तरीका है.''
वैसे हाइ-प्रोफाइल संत भी इसकी एक बड़ी वजह हैं, जो अपने भक्तों को टिकट दिलवाने से लेकर मंत्री बनवाने तक में सक्षम हैं. हालांकि मध्य प्रदेश भाजपा के पूर्व संगठन महामंत्री माखन सिंह कहते हैं, ''यह धारणा गलत है कि कथा-प्रवचन करवाने वाले जनप्रतिनिधि को संघ विशेष मानता है. इस तरह के आयोजन जन प्रतिनिधि को जनता के बीच मान्यता दिलाने में मददगार जरूर होते हैं. संगठन स्तर पर हमारा भी सुझाव होता है कि जनप्रतिनिधि राजनीति से इतर सामाजिक कार्य कर जनाधार मजबूत करें.''
प्रदेश खनिज निगम के उपाध्यक्ष गोविंद मालू ने पिछले साल नवंबर में इंदौर में पंडोखर सरकार का दरबार लगाया था, जिसमें महज तीन दिनों में डेढ़ लाख लोगों भी भीड़ जुटी थी. वे हर माह अमावस पर लोगों को न्यूनतम शुल्क पर इंदौर से पंडोखर (दतिया जिला) की यात्रा करवा रहे हैं.
माना जाता है कि सक्रिय राजनीति में आने के लिए मालू यह तरीका आजमा रहे हैं लेकिन मालू कहते हैं, ''विकास की राजनीति और अध्यात्मिक विकास अलग-अलग हैं और दोनों ही जरूरी हैं. मैं इस तरह के आयोजन टिकट पाने के लिए नहीं करता.'' विधायक मालिनी गौड़ के अपने तर्क हैं. वे कहती हैं, ''लोगों को निशुल्क भोजन दिया जाता है तो इसमें गलत क्या है?''
इंदौर में क्षेत्र क्रमांक 1 के भाजपा विधायक सुदर्शन गुप्ता दो साल से नवरात्र में चुनरी यात्रा करवाते हैं. इस तरह का आयोजन शुरू करने के पीछे उनकी मंशा बताई जाती है कि वे अपने कांग्रेसी प्रतिद्वंदी कमलेश खंडेलवाल से इस मामले में एक कदम आगे रहना चाहते हैं.
दरअसल, खंडेलवाल और क्षेत्र क्रमांक 1 से पार्षद उनकी पत्नी तनुजा खंडेलवाल पिछले चार वर्षों से नवरात्र, करवाचौथ जैसे किसी भी मौके को नहीं छोड़ते और बड़े स्तर पर भंडारे का आयोजन करवाते हैं.
विजयवर्गीय और विधायक मेंदोला 1992 से इंदौर के नंदानगर स्थित साईं मंदिर में रोजाना अन्न क्षेत्र लगाते आ रहे हैं. इस भंडारे में महज पांच रु. में जनता को भरपेट भोजन मिलता है. यहां प्रति दिन 1,000 से ज्यादा लोग भोजन करते हैं.
स्वामी अवधेशानंदगिरी की कथा का हर साल आयोजन करने वाले विपक्ष के नेता अजय सिंह कहते हैं, ''मैं रामकथा का आयोजन भोपाल में करता हूं, जो मेरे विधानसभा क्षेत्र सीधी से 800 किमी दूर है. मेरा आयोजन मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए नहीं होता. विक्रम वर्मा ने जो भी कहा है भाजपा नेताओं के लिए कहा है क्योंकि विकास से हटकर भंडारे की राजनीति वे ही कर रहे हैं.''
दरअसल, विक्रम वर्मा ने भंडारे की राजनीति पर बड़े ही तीखे सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा है, ''हम आज तक इंदौर से रतलाम तक ब्रॉडगेज रेललाइन तक नहीं डलवा पाए, प्रदेशभर में जेएनयूआरएम के नाम पर अधिकारी मनमानी कर रहे हैं, भूजल स्तर गिरता जा रहा है और जनप्रतिनिधि भंडारों में व्यस्त हैं.''
मालिनी गौड़ के आयोजनों के प्रमुख कार्यकर्ता गिरीश जैन कहते हैं, ''भोजन-भंडारे प्राचीन काल से चले आ रहे हैं. वर्मा का बयान अनुचित है.''
नेताओं के मुताबिक, वे ऐसे आयोजन ''जनसहयोग'' से करते हैं. लेकिन इंदौर के एक उद्योगपति आरोप लगाते हैं, ''कथाओं-भंडारों के लिए चंदा वसूली का अभियान जबरदस्त तरीके से चल रहा है. चंदा मनमर्जी से दे दो या फिर जबरिया ले लिया जाएगा.'' क्या चुनाव में ऐसे भंडारे लगाने वालों का भला होगा?