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कविता संग्रह: जीवन के कच्चे-पक्के रंग

कवि राजकिशोर राजन का यह दूसरा कविता संग्रह है. वे एक ऐसे कवि हैं, जो सामने आने वाली हर शै से टकराते हैं, उलझते हैं, उस पर अपनी राय बनाते हैं और इस तरह उनकी कविताई, आगे बढ़ती है. यह राय अमूमन खुद को समझने के लिए होती है पर इस खुद में वे अक्सर अपने पाठकों को भी साथ लेते चलते हैं.

अपडेटेड 19 नवंबर , 2011

नूरानी बाग

राजकिशोर राजन

प्रकाशन संस्थान, दरियागंज

नई दिल्ली-2,

कीमतः 250 रु.

कवि राजकिशोर राजन का यह दूसरा कविता संग्रह है. वे एक ऐसे कवि हैं, जो सामने आने वाली हर शै से टकराते हैं, उलझते हैं, उस पर अपनी राय बनाते हैं और इस तरह उनकी कविताई, आगे बढ़ती है. यह राय अमूमन खुद को समझने के लिए होती है पर इस खुद में वे अक्सर अपने पाठकों को भी साथ लेते चलते हैं.

यहां दैनंदिन व्यवहार के ढेरों चित्र हैं, जो आज की कविता में छूटते जा रहे हैं. आज के अधिकांश कवियों को पढ़कर आप यह नहीं जान सकते कि उनके जीवन में क्या घट रहा है. राजन के साथ ऐसा नहीं है. जीवन वहां अपने विविध राग-रंगों के साथ उपस्थित है. उसके कच्चे-पक्के रंगों को वे सहजता से उभरने देते हैं, दूर की कौड़ी लाने के प्रयत्न में वे, सहजता से उमगते भावों पर दर्शन की कलई नहीं पोतते.

उस दिन इतवार था और दोपहर का वक्त/ कुर्सी पर ऊंघते/ पैर टिकाए अमरूद के तने पर/ मैं लिखना चाहता था एक और कविता/ अपनी डायरी में. सरल, सीधी-सी बात है यहां. कविता के आरंभिक दौर में अगर जीवन में थोड़ी व्यवस्थितता हो तो कविता ऐसे ही चित्रों के साथ आरंभ होती है. ऐसा नहीं कि विचार तत्व का अभाव है कवि में.

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जीवन-जगह की परेशानियों पर भी वह उंगलियां  रखता चलता हैः एक-एक कर लोगों ने/ बदल दिया जिस तरह/ हर चीज का मतलब/ कुछ भी नहीं बचा साबुत/ यहां तक कि/ मजाक भी बन गया है मजाक. कवि चिंतित है कि शब्दों के मानी बदल रहे हैं, बेदखल हो रहे हैं कि मजाक कहीं चला गया है दूर-देश. 'लस कर हंसने के लिए. यहां अरुण कमल की एक कविता याद आती है, जिसमें डाक टिकट पर जीभ फिराते भी कवि को डर लगता है कि उसमें जहर न हो. हालांकि राजन के यहां निराशा अरुण की तरह नहीं.

जीवन-जगत के जाहिर चित्रों के साथ उसके छुपे रहस्यों पर भी निगाह है कवि की और समय से छूट रही चीजों को भी वह दर्ज करता जाता है-जो सबसे बच जाता/ कोई कवि रच जाता. दोस्तों का जिक्र राजन की कई कविताओं में है. उनकी शिकायत है कि आज के समय में दोस्ती सबसे कुटिल शब्द हो गया हैः जाने क्या हो गया है इन दिनों/ कि एक-एक कर बने साथी/ चालीस की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते/ हो रहे/ एक-एक कर दूर.

यहां कवि को ध्यान देना होगा कि सीधे दोस्ती को कुटिलता का पर्याय बना देना उचित नहीं है एक कवि के लिए. इस कुटिलता के कारकों की पड़ताल और पीछे की विडंबनाओं को उजागर करने की जिम्मेदारी भी उसकी है. यूं दैनंदिन जीवन की विडंबनाओं, वीभत्सताओं पर निगाह रखती कविताएं भी हैं राजन के पास. रामदाना के लड्डू और पत्थर की नदी आदि ऐसी ही कविताएं हैं: कि सौंदर्य के पीछे/ कुरूपता छाया की तरह/ चली आ रही है सदा से.

संग्रह में कई कविताएं ऐसी हैं, जो विभिन्न जीवन स्थितियों पर कमेंट या बयान की तरह हैं. इन बयानों का मुकम्मल होना अभी बाकी है. यूं कवि का विश्वास जीवन के यथार्थ पर है, उसकी कटु सचाइयों पर है. सचाइयों पर यह विश्वास उसकी भविष्य की कविता को एक ठोस जमीन मुहैया कराएगा, ऐसी आशा कर सकते हैं हम. ऐसा खुद कवि का विश्वास भी है ''कि यकीन और कविता/ एक ही चीज है मेरे लिए...'' 

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