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किंगफिशर एयरलाइन: कीमत हवाई उड़ान भरने की

एक समय था, जब विजय माल्या मानते थे कि उनके सपनों का व्यवसाय-एक एअरलाइन, उन्हें उद्योगपति से उठाकर बड़े अरबपतियों की कतार में खड़ा कर देगी.

विजय माल्या
विजय माल्या
अपडेटेड 19 नवंबर , 2011

एक समय था, जब विजय माल्या मानते थे कि उनके सपनों का व्यवसाय-एक एअरलाइन, उन्हें उद्योगपति से उठाकर बड़े अरबपतियों की कतार में खड़ा कर देगी. 2005 में किंगफिशर एअरलाइन शुरू करने के छह साल बाद, उनकी तकलीफें एक ऐसे नासूर में बदल चुकी हैं, जिसका जहर पूरे यूबी ग्रुप में फैल सकता है.

माल्या का शराब का मालदार धंधा चमचमाती खरीदारियों और लाइफस्टाइल की जरूरतों के आगे पहले ही सूख चुका है. फिर भी वह एक ऐसा बोझ था, जिसे संभाला जा सकता था, लेकिन एक एअरलाइन का बोझ जरा ज्‍यादा ही होता है.

इस संकट के कारणों को माल्या बहुत चतुराई के साथ गिनाते हैं. वे हर किसी को और हर चीज को दोषी बताते हैं-सिवाए अपने. लेकिन विश्लेषक समझ्ते हैं और कर्ज देने वाले सीख रहे हैं कि असल समस्या माल्या की बेढंगी सोच के साथ अमल में लाई गई कारोबारी योजनाएं हैं. एअरलाइन के धंधे पर उनके एकाएक धावे की कीमत यूबी की होल्डिंग कंपनी के शेयरधारकों को चुकानी पड़ी है, जिसके शेयर इस समय 82 रु. की दर से खरीदे-बेचे जा रहे हैं, जो 315 रु. के 52 हफ्तों के उनके उच्चतम स्तर का महज एक-चौथाई है. यह दिखावटी प्रबंधन की चुकाई गई कीमत है.

एअरलाइन के एक पूर्व प्रमुख के मुताबिक हर कीमत पर जेट एअरवेज को हरा देने की उनकी जिद उनकी नाकामी के लिए जिम्मेदार है. वे कहते हैं, ''उनकी समस्याएं खुद की पैदा की हुई हैं. आप बिजनेस मॉडल में बदलाव नहीं करते रह सकते, उसमें लागत पर पड़ने वाला असर शामिल होता है. एकसूत्रीय कार्यक्रम आपकी व्यावसायिक योजना का आधार नहीं हो सकता.''

माल्या के लिए जरूरी है कि कोई आकर तुरंत उन्हें बचाए. लेकिन किस हद तक? और कितने समय तक? उनके अहंकार ने उन्हें सरकार से मदद मांगने से रोक लिया.किंगफिशर की माली हालत

बैंक अनमने हैं, जो पहले ही उन्हें मार्च 2011 में एक उदार पैकेज दो चुके हैं, जब उन्होंने कर्ज के एक अच्छे खासे हिस्से को ऐसे प्रीमियम पर इक्विटी में बदल दिया था, जिस पर एक से ज्‍यादा सवाल उठे थे. लेकिन कुछ लोग हैं जो बचा सकते हैं. बताया गया है कि टाटा घराने ने 30 रु. प्रति शेयर पर कंपनी में पैसा लगाने की पेशकश की  है. यह नवंबर के दूसरे हफ्तों में किंगफिशर के शेयर दामों से 50 प्रतिशत ऊपर है, लेकिन नवंबर, 2010 में किंगफिशर के 81 रु. के शेयर दाम से काफी नीचे है. माल्या ने रिलायंस के मालिक मुकेश अंबानी से उनकी इच्छा जानने के लिए बात की थी. अभी तक, अंबानी ने इस संघर्षरत एअरलाइन को खरीदने में कोई दिलचस्पी होने से इनकार किया है.

इंडिया टुडे को जानकारी मिली है कि दोस्ताना ढंग से किंगफिशर का अधिग्रहण करने वाला एक भारतीय व्यावसायिक समूह हो सकता है, जिसके पास काफी पैसा है और वह अच्छे-खासे प्राइवेट इक्विटी फंड का भी मालिक है. माल्या ने किसी को तैयार कर रखा है.डूब गए पैसे

15 नवंबर को मुंबई में प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, ''अगर मुझसे सीधा सवाल पूछा गया होता कि क्या आपको किसी भारतीय निवेशक से कोई सीधा प्रस्ताव मिला है, ''तो ईमानदार जवाब है-हां.'' 

इस आशय के कयास हैं कि इस साल की शुरुआत में माल्या की फार्मूला वन टीम खरीदने वाले सहारा के प्रमोटर सुब्रत राय जनवरी, 2006 में जेट एअरवेज को बेचने के बाद उड्डयन क्षेत्र में दोबारा आने के इच्छुक हैं. लेकिन यह सिर्फ अस्पष्ट कयास  है. जो साफ है, वह यह है कि माल्या नियामक ढांचे के तहत एअरलाइन में अधिसंख्य हिस्सेदारी बेच देंगे, जबकि अल्पसंख्या में हिस्सेदारी बनाए रखेंगे.

यूबी समूह के मुख्य वित्तीय अधिकारी रवि नेदुनगड़ी ने भी एक इशारा किया है, ''सवाल अधिसंख्य हिस्सेदारी का नहीं है.'' इसके बावजूद माल्या किंगफिशर पर अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहेंगे, भले ही उनका अपने खुद के शेयरों पर नियंत्रण न हो.

अनिश्चितता का असर एअरलाइंस के कर्मचारियों पर नजर आ रहा है, जिनमें से अधिकांश लोग रोजगार की सुरक्षा का एहसास खो चुके हैं. किंगफिशर के बंगलुरू कार्यालय में यह बात फैली हुई है कि खर्चों में कटौती की मुहिम शुरू की जाने वाली है.

किंगफिशर के एक कर्मचारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ''हम लोग यह जाने बिना काम कर रहे हैं कि किसकी नौकरी जाएगी और कब. हमारे वरिष्ठ लोगों ने हमसे कहा है कि उनकी समझ से एअरलाइन काम करती रहेगी, लेकिन वित्तीय मोर्चे पर सख्ती और कर्मचारियों की संख्या में कमी की जाएगी.''

हालांकि हालात घबराहट के स्तर पर अभी नहीं पहुंचे हैं, लेकिन लगभग सभी कर्मचारी दूसरी एअरलाइनों में या हॉस्पिटलिटी उद्योग में नौकरी खोज रहे हैं. अक्तूबर के महीने का वेतन रोक लिया गया है, जबकि कुछ लोगों को सितंबर का भी वेतन नहीं मिला है. संकेत यह भी हैं कि नाममात्र के मूल्य पर किंगफिशर में पारिवारिक यात्राओं और पायलटों और चालक दल सदस्यों को घर से लाने ले जाने की सुविधा जैसे विशेषाधिकारों में कटौती किए

जाने की संभावना है. एक कर्मचारी का कहना है, ''हम हालात पर नजर रखे हुए हैं, और उम्मीद है कि कोई हल निकल आएगा.''

वरिष्ठ अधिकारी और माल्या के दोस्त उम्मीद भरे अंदाज में बात करने की कोशिश कर रहे हैं. माल्या के बिजनेस पार्टनर इरफान रज्‍जाक, जिन्होंने यूबी सिटी का निर्माण किया था और जहां यूबी ग्रुप का मुख्यालय है, दावा करते हैं कि किंग ऑफ गुड टाइम्स कहे जाने वाले माल्या एअरलाइन को इस संकट से बाहर निकाल लेंगे. वह कहते हैं, ''माल्या बुद्धिमान व्यक्ति हैं, जो योजना के अनुसार काम करते हैं. उन्होंने बिना किसी आधार के एक विश्वस्तरीय एअरलाइन का निर्माण किया. माल्या ने इस एअरलाइन में काफी जुनून झेंका है, मुझे नहीं लगता कि वे आसानी से हार मान लेंगे.''

नेदुनगड़ी कहते हैं, ''हमें उम्मीद है. माना कि हालात मुश्किल हैं और हम चुनौतियों के लिए तैयार हैं. लेकिन मैं नहीं सोचता कि हम इससे हतोत्साहित हुए हैं. हम पूरे जोश में हैं. हम एक कठोर तिमाही से गुजरे हैं और दो अन्य एअरलाइनों का इसी तिमाही का साझ घाटा 950 करोड़ रु. हो गया है. किंगफिशर अपेक्षाकृत बेहतर हालत में है.''

लेकिन दरअसल वे बेहतर हालत में नहीं है. जुलाई से सितंबर 2011 के बीच किंगफिशर के 469 करोड़ रु. की तुलना में जेट एअरवेज का घाटा 713 करोड़ रु. हुआ है, लेकिन वह ज्‍यादा लंबे समय से बेहतर वित्तीय हालत में रही है. वित्त वर्ष 2010-11 में जब किंगफिशर को 1,027 करोड़ रु. का घाटा हुआ, जेट एअरवेज का घाटा सिर्फ 86 करोड़ रु. रहा. 2005 में शुरू होने के बाद से किंगफिशर आज तक एक भी बार सालाना मुनाफा नहीं कमा सका. जेट एअरवेज कई साल मुनाफे में चली है. इंडिगो और स्पाइस जेट जैसी सस्ती दरों की विमान सेवाएं भी मुनाफव् में चली हैं, भले ही पिछले छह महीने संघर्ष के रहे हैं (देखें बॉक्स). किंगफिशर के बिजनेस मॉडल में कोई न कोई मूलभूत खामी रही होगी, जिसने उसे कभी मुनाफा नहीं कमाने दिया, जबकि वह भी उसी बाजार में और उन्हीं हालात में काम कर रही थी, जिनमें बाकी विमान सेवाएं कर रही थीं.

विमानन ईंधन पर ऊंचे टैक्सों, हवाई अड्डों पर ऊंचा प्रयोक्ता शुक्ल और मुनाफा न देने वाले रास्तों पर अनिवार्य उड़ानें सभी विमान सेवाओं को बराबरी से प्रभावित करती हैं. इसके अलावा माल्या ने जब एअरलाइन शुरू की थी, तब वे खूब जानते थे कि ये समस्याएं मौजूद हैं. लिहाजा उन्हें कारोबारी पांव हालात के हिसाब से ही पसारने चाहिए थे.

निष्पक्ष प्रेक्षक माल्या और किंगफिशर की उम्मीदों को लेकर निराशावादी हैं. नागरिक उड्डयन के पूर्व संयुक्त सचिव सनत कौल कहते हैं, ''मैं समझ्ता हूं वे ज्‍यादा ही गहरे में फंस गए हैं. अब वे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों में फेरबदल से विदेशी इक्विटी की इजाजत की कोशिश कर रहे हैं. बैंक पहले ही 23 प्रतिशत के मालिक हैं, अब वे ऐसे रास्ते में हैं, जो एक ही तरफ जाता है.'' 'ए पाई इन द स्काई' नाम से हाल में जारी की गई वेरिटास इन्वेस्टमेंट रिसर्च की एक कटु रिपोर्ट में कहा गया है, ''किंगफिशर की जन्मदाता कंपनी यूबी होल्डिंग्स दीवालिएपन की कगार पर लड़खड़ा रही है और यही हालत किंगफिशर एअरलाइंस की है.''

अगर बिजनेस मॉडल ही गलत है, तो एअरलाइन में पैसा लगाने के मतलब पर ही सवाल खड़ा हो जाता है. स्टेट बैंक और आइसीआइसीआइ के नेतृत्व में 13 बैंकों के एक  समूह ने यह सबक भारी कीमत चुका कर सीखा है. मार्च, 2011 में यह दल किंगफिशर के कर्ज के 1,300 करोड़ रु. को 64 रु. प्रति शेयर की दर से इक्विटी में बदलने पर राजी हुआ. शेयर मूल्य का आकलन सेबी के बनाए नियम के मुताबिक छह महीने के भार सहित शेयर मूल्य औसत से किया गया. लिहाजा हुआ यह कि जिस समय कर्ज को इक्विटी में बदला जा रहा था, उस समय चल रहे शेयर मूल्य 40 रु. पर 61 प्रतिशत प्रीमियम दिया गया.

आठ महीने बाद शेयर मूल्य और नीचे गिरकर 20 रु. पर पहुंच गए, जिससे बैंकों द्वारा भुगता जा रहा घाटा और ज्‍यादा मुंह चिढ़ाने लगा. तीन अग्रणी कर्जदाताओं की हालत देखिए. भारतीय स्टेट बैंक के 2.8 करोड़ शेयर, जो उस समय 182 करोड़ रु. के थे, अब 59 करोड़ रु. के रह गए हैं. आइसीआइसीआइ के 2.6 करोड़ शेयर, जो उस समय 169 करोड़ रु. के थे, अब 55 करोड़ रु. के रह गए हैं. 109 करोड़ रु. के आइडीबीआइ बैंक के 1.7 करोड़ शेयर अब 36 करोड़ रु. के हैं. बैंक ऑफ इंडिया ने 56 करोड़ रु. में 87 लाख शेयर लिए थे, लेकिन अब उनका दाम सिर्फ 18.57 करोड़ रु. रह गया है, ठीक वैसे ही जैसे यूको बैंक के 44.49 करोड़ रु. के 69 लाख शेयर अब 14.35 करोड़ रु. के हैं. पंजाब नेशनल बैंक ने 36 करोड़ रु. में 56 लाख शेयर लिए थे, जो अब 12 करोड़ रु. के हैं.

आज की कीमतों में जो शेयर 196 करोड़ रु. के हैं, उनके लिए छह शीर्ष बैंकों ने 598 करोड़ रु. निकाले. बैंकों को दोहरी मार इस वजह से झेलनी पड़ रही है, क्योंकि इक्विटी के अलावा उन्होंने किंगफिशर को कर्ज के तौर पर भी पैसे दिए थे.

उनके कुल लगभग 7,000 करोड़ रु. इसमें फंसे हैं. गैर मुनाफे वाली संपत्तियों में इजाफा करते जाने के कारण वैश्विक रेटिंग संस्था मूडीज द्वारा हाल में दर्जा घटाए गए बैंक अब और पैसा लगाने के लिए तब तक तैयार नहीं हैं, जब तक माल्या प्रमोटर की हिस्सेदारी और नहीं बढ़ाते. भारतीय स्टेट बैंक के प्रबंध निदेशक हेमंत कॉन्ट्रैक्टर ने 13 नवंबर को मुंबई में विश्व आर्थिक फोरम में कहा कि बैंक उम्मीद करते हैं कि माल्या कम-से-कम 800 करोड़ रु. लगाएं.

किंगफिशर की बैलैंस शीट बताती है कि माल्या इस एअरलाइन में अच्छी-खासी इक्विटी लगा चुके हैं. पिछले छह सालों में 7,057 करोड़ रु. का कर्ज देने वाले बैंकों के साथ साथ माल्या ने एअरलाइन में 3,593 करोड़ रु. का इक्विटी निवेश किया है. पिछले 12 महीनों में ही माल्या ने अपना या अपने साथियों का 780 करोड़ रु. का निवेश किया है, जिसमें से 150 करोड़ रु. तो पिछले ही महीने लगाए गए थे.

खामियाजा यूबी ग्रुप भुगत रहा है. किंगफिशर पर ज्‍यादा ध्यान दिए जाने से उसकी सूचीबद्ध कंपनियों में से छह का कामकाज गंभीर तौर पर प्रभावित हुआ है. बाजार से जुटाई गई उसकी पूंजी 45,134 करोड़ रु. से आधी होकर 21,308 करोड़ रु. रह गई है. यूबी सिटी में माना जाता है कि माल्या एअरलाइन को डूबने से बचाने के लिए अपनी नावें और घोड़े या रॉयल चैलेंजर्स आइपीएल टीम नहीं बेचेंगे क्योंकि इसका मतलब होगा तड़क-भड़क की उनकी बेहद प्यारी छवि का खात्मा.

इसके बजाए ज्‍यादा मुमकिन है कि वे एअरलाइन के धंधे से बाहर आ जाएं और बाकी कामों पर ध्यान दें. माल्या के नजदीकी एक सूत्र कहते हैं, ''उनकी शराब कंपनी यूनाइटेड ब्रूअरीज अभी भी एक सुरक्षित संपदा है, जिसकी बाजार में अच्छी हिस्सेदारी है और जो मजबूत है. इसलिए ऐसा नहीं है कि उनके पास जेब में कुछ बचा ही नहीं है. वे किंगफिशर एअरलाइंस को बचाने में समर्थ नहीं हो सकते, लेकिन बाकी सब कुछ ठीक है.'' लेकिन, जाहिर तौर पर वह तब होगा, जब माल्या अपनी नादानी परे रख-कर खरीदार की शर्तों पर सौदा करेंगे.

 -सौम्या अजि के साथ

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