पत्रकार ज्योतिर्मय डे की 11 जून को हुई हत्या का मामला सुलझाने में मुंबई पुलिस को महज कुछ मिनट लगे. उसने इसके लिए अपराध जगत को जिम्मेदार ठहराया. दो हफ्ते बाद उसने दावा किया कि इसके पीछे छोटा राजन है. पर मीडिया में भरपूर प्रचारित किया गया यह विजयी सुर जांच में टिक नहीं पाता. ऐसे कम-से-कम 10 सवाल हैं जिनका जवाब मुंबई पुलिस के पास नहीं है.
इस हत्या में छोटा राजन के शामिल होने का मुंबई पुलिस के पास क्या सबूत है?
कोई नहीं. पुलिस के रिटायर्ड संयुक्त आयुक्त वाइ.सी. पवार कहते हैं कि हत्या में राजन का हाथ होने की घोषणा करने में पुलिस ने जल्दबाजी से काम लिया. इस हत्या की जांच के अगुआ पुलिस के संयुक्त आयुक्त (अपराध) हिमांशु रॉय कहते हैं, ''हमने हत्या में इस्तेमाल की गई अमेरिका की बनी 32 बोर की रिवॉल्वर और चेक गणराज्य में बनी 20 गोलियां बरामद की हैं. इस हथियार पर हमें सतीश कालिया की उंगलियों के निशान मिले हैं.
राजन और कालिया के बीच फोन कॉल्स के रिकॉर्ड हमने पा लिए हैं.'' लेकिन सूत्रों की मानें तो यह पर्याप्त नहीं है. राजन का गिरोह डी.के. राव चलाता है, जो धारावी के बाहर से काम करता है. 2009 के जबरन वसूली के एक मामले में अभी जमानत पर चल रहे राव से जून माह में एक घंटे तक पूछताछ की गई थी. डे की हत्या के मामले में राजन का नाम सामने आने के बाद राव मुंबई से गायब हो गया. अब अपराध शाखा उसे तलाशने में जुटी है. पुलिस ने आगे की पूछताछ के लिए उसे गिरफ्तार क्यों नहीं किया था?
राजन डे को क्यों मारना चाहता था?
राजन डे के मुख्य सूत्रों में से था. पुलिस के दावे के मुताबिक, राजन को लगा कि डे उसके कट्टर दुश्मन और दाउद इब्राहिम के एक साथी छोटा शकील से मिल गए हैं और उसे धोखा दे रहे हैं. इसके पीछे यह कहानी बताई जा रही है कि डे एक व्यक्तिगत यात्रा के बहाने 27 अप्रैल और 4 मई के बीच लंदन में दाउद गिरोह के सदस्य इकबाल मिर्ची से मिले थे और राजन के गुस्से को भड़काने के लिए यह पर्याप्त था और यह पूरी तरह अटकलबाजी है, जिसका प्रचार पुलिस ने किया था.
अगर शूटर सात थे तो उनके पास मात्र एक बंदूक क्यों थी?
मुख्य आरोपी सतीश कालिया पेशेवर हत्यारा है. कम-से-कम उसके साथ एक हथियारबंद आदमी तो होता. डे का पीछा तीन मोटरसाइकलों पर सवार सात लोग कर रहे थे. खुद डे भी बाइक पर थे इसलिए वे स्थिर लक्ष्य नहीं थे. लेकिन पुलिस हमें यह भरोसा दिलाने में जुटी है कि हथियार केवल कालिया के पास था. कालिया के पास हत्याओं का खासा अनुभव है क्योंकि मोहन मोहिते, महेश देवाडिगा और अशोक शेट्टी सरीखे व्यवसायियों की हत्या में अभियुक्त होने के साथ उस पर खार में शराब की एक दुकान के मालिक पर गोलियां चलाने का आरोप है. उसके जैसा पेशेवर किसी सहायक बंदूकधारी को साथ में जरूर रखता.
14 जून को इकबाल हटेला, मतीन और अनवर को डे की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया. उन्हें किस आधार पर पहले पकड़ा गया, फिर छोड़ दिया गया?
14 जून को पुलिस ने तीनों से पूछताछ की. मतीन ने कबूल किया कि डे को गोलियां उसने ही मारी थीं. पर कुछ घंटे बाद पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक ने जांच संभाली तो पता चला कि कनिष्ठ अफसरों ने जोर-जबरदस्ती करके उनसे यह कबूल करवाया था.
पुलिस के मुखबिर सैयद नदीम ने इन तीनों का नाम लेकर पुलिस जांच को भटकाने की कोशिश की थी. इन तीनों को 15 जून की दोपहर छोड़ दिया गया. तो अगर पुलिस के पास उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं थे तो उन्हें पकड़ा क्यों गया था?
अगर पुलिस को पता है कि राजन कहां है, वह उसकी फोन कॉल्स का पता लगा चुकी है और उसके उद्देश्यों को भी उजागर कर सकती है तो आखिर वह उसे पकड़ क्यों नहीं लेती?
वरिष्ठ अधिकारी मानते हैं कि उन्हें राजन के मलेशिया में होने का पता है और अगर वे राजन और कालिया के बीच बातचीत का पता लगा चुके हैं तो सचमुच वे जानते होंगे. पहले भी मुंबई पुलिस ने राजन से उसके पूर्व आका दाउद इब्राहिम के बारव् में जानकारियां निकलवाई थीं. पुलिस के पास कई स्पष्टीकरण हैं, जिनका प्रति सत्यापन नहीं किया जा सकता क्योंकि वे बड़ी एजेंसियों से जुड़े हैं. रिसर्च और एनालिसिस विंग (रॉ) उनका पसंदीदा बहाना है. पर मुंबई पुलिस के लिए क्या एक वरिष्ठ पत्रकार की हत्या इसका पर्याप्त आधार नहीं है कि वह कांग्रेस की अगुआई वाली महाराष्ट्र सरकार पर केंद्र को मलेशिया के साथ प्रत्यर्पण संधि की प्रक्रिया शुरू करने के लिए मनवाने का दबाव डाले?
मुंबई पुलिस के एक अधिकारी ने इंडिया टुडे को बताया कि डे की हत्या एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के आदेश पर हुई है. क्या यह सच है?
मुंबई में चर्चा है कि इस हत्या में एक रिटायर्ड मुठभेड़ विशेषज्ञ का हाथ है, जिसने एक 15 वर्षीया लड़की के साथ 2010 में हुए बलात्कार के मामले में आरोपी अपने एक पुलिस अधिकारी दोस्त को बचाने के लिए डे की हत्या करवाई.
पुलिस डे की प्रतिष्ठा पर कीचड़ क्यों उछाल रही है? क्या इसलिए कि हत्या के सुरागों को छिपा सके?
वरिष्ठ पत्रकार जतिन देसाई आरोप लगाते हैं कि पुलिस इस मामले से ध्यान भटकाने के लिए ही यह कह रही है कि डे दाउद के करीबी थे. डे के एक सहयोगी का कहना है, ''वे निष्पक्ष और पेशेवर पत्रकार थे. व्यक्तिगत फायदे के लिए उन्होंने कभी अपने पेशे का गलत इस्तेमाल नहीं किया.'' रॉय इस बात से इनकार करते हैं कि उनका विभाग दाउद के साथ डे के संपर्कों की कहानियां फैला रहा है.
उनका कहना है, ''आपकी ही तरह वे मेरव् भी दोस्त थे. हमारी टीम बहुत गंभीरता से इस मामले की जांच कर रही है क्योंकि हमारे दोस्त की हत्या हुई है.'' तो फिर पुलिस ने डे का वह ई-मेल क्यों लीक किया जिसमें कहा गया है कि वे राजन से मिलने के लिए फिलीपींस जाने की योजना बना रहे हैं?
डे की हत्या के दो दिन बाद पुलिस के सहायक आयुक्त अनिल महाबोले का तबादला कर दिया गया. उनका नाम दाउद के साथ कथित संपर्कों के चलते 2007 की भ्रष्टाचार निरोध ब्यूरो की एक रिपोर्ट में आया था. डे ने इसी साल मई में महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर. पाटील को यह रिपोर्ट सौंपी थी. अगर डे की हत्या से उनका कोई लेना-देना नहीं है, जैसा कि मुंबई पुलिस का दावा है, तो फिर उनका तबादला निरस्त क्यों नहीं किया गया?
पटनायक के अनुसार, उन्होंने महाबोले का तबादला इसलिए किया क्योंकि उन पर अपराधियों के साथ संबंधों के आरोप हैं, पर वे जोर देते हैं कि महाबोले डे की हत्या में संदिग्ध नहीं हैं. बकौल पटनायक, ''वे संदिग्ध होते तो हम उन्हें निलंबित कर देते.'' पर पटनायक ने महाबोले का तबादला 2007 के आरोपों के आधार पर इस साल जून में क्यों किया?
मामले का खुलासा करने पर पुलिस को पुरस्कृत क्यों किया गया जबकि अभियुक्त अभी संदिग्ध ही माने जा रहे हैं?
मुंबई पुलिस डे हत्या मामले पर अपनी जांच प्रगति रिपोर्ट 7 जुलाई को देगी. अभी राजन को निर्णायक रूप से हत्यारा साबित किया जाना है, पर 27 जून को राज्य सरकार ने अपराध शाखा को 10 लाख रु. का पुरस्कार देने की घोषणा कर दी, मानो पुलिस का कहा ही अंतिम निर्णय हो. और फिर, मुख्य अभियुक्त सतीश कालिया को पहचान परेड होने से पहले ही मीडिया के सामने पेश कर दिया गया. उसका वकील अब दावा कर सकता है कि इस मामले में उसके मुवक्किल को झूठे फंसाया जा रहा है और गवाहों ने उसे टीवी पर देख लिया था.
भाजपा प्रवक्ता माधव भंडारी कहते हैं, ''सब झूठ है.'' रॉय कहते हैं, कालिया ने अपना चेहरा खुद दिखाया था, किसी पुलिस वाले ने उसे ऐसा नहीं कहा था. ''हम अभियुक्त के खिलाफ महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम का मुकदमा चलाने वाले हैं, जिसके तहत आरोप सिद्ध करने के लिए अभियुक्त का पुलिस के सामने दिया बयान ही काफी होता है.''
डे की हत्या के मामले में जब छोटा शकील राष्ट्रीय टीवी पर इंटरव्यू दे रहा है तो पुलिस उसे गिरफ्तार क्यों नहीं कर सकती?
इस हत्या में छोटा शकील की गिरफ्तारी अवांछित नतीजा हो सकती है. शकील मीडिया को इंटरव्यू में कह रहा है कि डे की हत्या उसने नहीं करवाई. पुलिस मौके का फायदा उठाकर 1993 में मुंबई में हुए बम विस्फोटों में शामिल भारत के सबसे ज्यादा वांछित अपराधियों में से एक को गिरफ्त में ले सकती है, जो 17 हत्याओं और हत्या के कई प्रयासों में भी वांछित है. उसके कराची में होने की बात से पाकिस्तान लगातार इनकार कर रहा है. पुलिस के पास फोन नंबर हैं. राज्य सरकार केंद्र को इसके लिए क्यों नहीं मनाती कि वह उसे भारत को तुरंत सौंपे जाने की पाकिस्तान से मांग करे.
बदलती कहानियां
जून 14: पुलिस ने कहा कि डे की हत्या के पीछे शहर के अंडरवर्ल्ड का हाथ है. मुंबई पुलिस के आयुक्त अरूप पटनायक ने कहा कि हत्या की वजह व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है. हत्या पेशेवरों ने की है.
जून 15: पुलिस ने हत्या के सिलसिले में तीन संदिग्धों-इकबाल हटेला, मतीन और अनवर से पूछताछ की और जब हत्या में उनकी भूमिका सिद्ध करने को कुछ नहीं मिला तो उन्हें रिहा कर दिया.
जून 16: पुलिस ने तेल माफिया डॉन मोहम्मद अली शेख और 1,000 अन्य कुख्यात अपराधियों से पूछताछ की. हत्या के पीछे व्यक्तिगत दुश्मनी की बात खारिज की.
जून 23: डे के तीन लैपटॉप कब्जे में लेने के दस दिन बाद पुलिस डे का ई-मेल अकाउंट खोल पाई. इसके कुछ ही घंटे बाद उसने घोषणा की कि हत्यारों को जल्द ही पकड़ लिया जाएगा.
जून 27: पटनायक और पुलिस संयुक्त आयुक्त (अपराध) हिमांशु रॉय ने घोषणा की कि छोटा राजन ने डे की हत्या करवाई और डे को गोली मारने वाले सात आरोपियों को पकड़ लिया गया है. पर हत्या का कारण अब भी अस्पष्ट है.