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आजाद हो गया राजस्‍थान का जलमहल

इंडिया टुडे की रिपोर्ट का असर. राजस्थान हाइकोर्ट के आदेश पर जलमहल की लीज रद्द. ढाई करोड़ रु. सालाना की मामूली राशि पर इस ऐतिहासिक स्थल को 99 साल के लिए लीज पर दिया गया था.

जलमहल
जलमहल
अपडेटेड 23 मई , 2012

राजस्थान हाइकोर्ट ने जयपुर के जलमहल प्रोजेक्ट की लीज 17 मई को रद्द कर दी. यह ऐतिहासिक इमारत और उसके चारों ओर बनी झील और 3,500 करोड़ रु. की जमीन जलमहल रेसॉर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड को मात्र ढाई करोड़ रु. सालाना की मामूली राशि पर 99 साल के लिए लीज पर दी गई थी. कोर्ट ने ऐसे कई फैसलों को अवैध ठहराया, जिनसे इस निजी फर्म को लाभ पहुंचाया गया था.

यह फैसला मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए एक करारा झ्टका है, जिनके करीबी मित्र और कल्पतरू ग्रुप के मालिक मोफतराज मुनोट की इस प्रोजेक्ट में आधे की हिस्सेदारी थी.

इस फर्म को मदद पहुंचाने के इरादे से तैयार निविदाएं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पहले कार्यकाल के दौरान जारी की गई थीं और दिसंबर, 2003 में हुए विधानसभा चुनावों के लिए मतदान हो जाने के बाद और परिणाम आने के पहले उन्हें जल्दबाजी में खोला गया था. मुनोट के अलावा लीज पाने वाली कंपनी का दूसरा मालिक जयपुर का ज्‍वैलर नवरतन कोठारी है.

जयपुर के वकील अजय जैन लगातार यह लड़ाई लड़ते रहे कि लीज देने में भारी गड़बड़ी की गई है. प्रोफव्सर के.पी. शर्मा ने भी इस बात के अहम सबूत पेश किए कि किस तरह से यह प्रोजेक्ट प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचा रहा है. धरोहर बचाओ समिति और हैरिटेज प्रिजर्वेशन सोसायटी भी इस मामले में याचिकाकर्ता थे.

मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्र और न्यायमूर्ति महेश भगवती के फैसले से जल निकायों, जमीन और ऐतिहासिक इमारतों में होने वाली ऐसी खुली गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार को रोकने की एक नजीर कायम हो सकती है. न्यायाधीशों ने कहा कि सरकार जमीन, झील और ऐतिहासिक इमारत को 99 वर्ष के लिए लीज पर नहीं दे सकती.

कोर्ट ने फैसला दिया कि परियोजना मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि विशुद्ध व्यावसायिक थी. अदालत ने झील की जमीन और झील के 13 फीसदी हिस्से को मिट्टी से पाट कर होटल बनाने के लिए किए गए आवंटन को खारिज कर दिया.

एक अत्यंत निर्णायक फैसले में अदालत ने उस समिति की स्थापना को भी खारिज कर दिया, जिसने इस निजी कंपनी को अभूतपूर्व लाभ देने का फैसला 2009 में किया था. उस समय के मुख्य सचिव कुशल सिंह के नेतृत्व वाली इस समिति के सदस्यों में वर्तमान मुख्य सचिव सी.के. मैथ्यू भी शामिल थे. इस समिति ने भाजपा शासनकाल में मुख्य सचिव रहे डी.सी. सामंत के उस फैसले को पलट दिया था, जिसमें उन्होंने कंस्ट्रक्शन क्षेत्र 35,000 वर्ग मीटर से बढ़ाने से इनकार कर दिया था.

हालांकि गहलोत के कार्यकाल में कुशल सिंह समिति ने सौदे में जानबूझ्कर शामिल किए गए एक अस्पष्ट प्रावधान का लाभ उठाते हुए इसे तीन गुना बढ़ा दिया. सरकारी अफसरों ने हाइकोर्ट के समक्ष यह झूठ भी बोला कि इसके लिए केंद्र सरकार से पर्यावरणीय मंजूरी ले ली गई है, जबकि ऐसा नहीं किया गया था.

हाइकोर्ट ने यह आदेश उचित ही दिया है कि झील को  उसके मूल स्वरूप में वापस लाया जाना चाहिए और इसका खर्च जलमहल रेसॉर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड से वसूला जाना चाहिए. इस प्राइवेट कंपनी ने ऐतिहासिक इमारत को नया बनाने पर छह करोड़ रु. खर्च किए हैं, लेकिन सरकार ने अपनी विभिन्न संस्थाओं के जरिए झील को शानदार स्थिति में लाकर ग्रुप को सौंपने पर 35 से 40 करोड़ रु. खर्च किए हैं, ताकि ग्रुप यहां 400 कमरों के दो होटल बनवा सके.

कांग्रेस सरकार और उसके अधिकारियों ने पूरी परियोजना पर काम करते हुए इस तथ्य को छिपाया कि यहां पूरे दो होटल बनाए जा रहे हैं. जनता को यही बताया गया था कि झील के चारों ओर पगडंडियां और खुले रेस्तरां होंगे, लेकिन इस जमीन का इस्तेमाल 400 कमरों के होटल बनाने में होना था. यह सवाल हर व्यक्ति कर रहा था कि जब सरकार झील और उसके आसपास की जमीन पर 35 से 40 करोड़ रु. खर्च कर सकती है, तो ऐतिहासिक इमारत पर वह भी खर्च करके उसका रख-रखाव अपनी संपत्ति के तौर पर क्यों नहीं कर लेती, जैसे वह माउंट आबू की नक्की झील का करती है.

इसी के चलते आपराधिक साजिश का पता लगाने की जरूरत है. गहलोत, मुनोट, कोठारी और अधिकारियों की भूमिका की जांच करने के लिए अदालत की देख-रेख में केंद्रीय जांच ब्यूरो से जांच होनी चाहिए. यह जांच होना भी अहम है कि अधिकारियों ने किस तरह व्यवहार किया और कैसे वे सरकारी खजाने की कीमत पर एक के बाद एक रियायत देते गए.

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