जमीन पर गेंद को जितनी जोर से पटकोगे, गेंद उतनी ही ऊपर जाएगी''-सीबीआइ की विशेष अदालत में सात घंटे बिताने के बाद 28 मई को जब वाइ.एस. जगनमोहन रेड्डी को चंचलगुड़ा जेल ले जाया जा रहा था, तो उनकी मां वाइ.एस. विजयम्मा ने अपने बेटे को इन्हीं शब्दों से ताकत दी.
प्रधान सत्र न्यायाधीश ए. पुलइया ने आदेश दिया कि जगन को 11 जून तक न्यायिक हिरासत में रखा जाए यानी उपचुनाव से ठीक एक दिन पहले तक. जगन शांत दिख रहे थे, लेकिन उनकी पत्नी भारती तनाव में थीं और अदालत में बैठी हुई थीं. उनके हाथ में बाइबिल थी. उस दिन अदालत में सवेरे से ही जबरदस्त सुरक्षा इंतजाम थे.
हैदराबाद 28 मई को एक किले में तब्दील हो गया था और शहर भर में धारा 144 लगा दी गई थी ताकि लोग ज्यादा संख्या में एक जगह इकट्ठे न होने पाएं. हालांकि शाम साढ़े पांच बजे के आसपास जब वाइएसआर कांग्रेस के समर्थक और कार्यकर्ता कोर्ट परिसर में जुटे तो सारी सुरक्षा धरी रह गई. कोर्ट का स्टाफ जगन की एक झलक पाने, उन्हें छूने या उनसे हाथ मिलाने को बेताब था.
जेल ले जाते वक्त भी उनके चेहरे पर कोई शिकन न थी. वहां मौजूद किसी भी शख्स को उनके खिलाफ सीबीआइ के आरोपों की न तो चिंता थी न ही कोई उसमें विश्वास कर रहा था. उनके खिलाफ 2004 से 2009 के बीच उनके दिवंगत पिता वाइ.एस. राजशेखर रेड्डी के मुख्यमंत्रित्व काल में आय से अधिक संपत्ति इकट्ठा करने का आरोप है. जगन के खिलाफ आक्रोश तो दूर, कांग्रेस के इस कदम ने एक संभावित सहयोगी को ताकतवर दुश्मन में तब्दील कर डाला.
अपनी राजनैतिक नासमझी के लिए कुख्यात कांग्रेस ने जगन पर वार करने के लिए फिर सीबीआइ का इस्तेमाल किया. वैसे ही जैसे उसने 2007 में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति वाले मामले में या 2003 में मायावती के खिलाफ ताज गलियारा प्रकरण में किया था.
अंतर सिर्फ इतना है कि 39 साल के जगन इस घटनाक्रम का आनंद ले रहे हैं. वे जानते हैं कि इसका फायदा उन्हें ही होना है. माना जा रहा है कि 12 जून को एक लोकसभा और 18 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में वे दूसरों का पत्ता साफ कर देंगे. जिन 18 विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है, उनमें 16 कांग्रेस के पास हैं. हो सकता है कि बहुमत में बैठी कांग्रेस सरकार हाशिए पर खिसक आए. विधानसभा की 294 सीटों में से कांग्रेस अब 152 पर आ गई है. 2009 में उसके पास 156 सीटें थीं.
जगन की गिरफ्तारी के बाद एक कांग्रेसी विधायक ने वाइएसआर कांग्रेस का दामन थाम लिया है. बोब्बिली के विधायक एस.के. रंगा राव ने 30 मई को कांग्रेस से इस्तीफे की घोषणा करते हुए वाइएसआर कांग्रेस में जाने की बात कही.
उन्होंने कहा, ''मैं तीन बार से विधायक हूं लेकिन एपीसीसी अध्यक्ष बोत्सा सत्यनारायण ने मुझ्से शिष्टता भरा व्यवहार नहीं किया.'' रंगा राव दो और विधायकों को तोड़ने में लगे हुए हैं-पार्वतीपुरम के विधायक सवरापु जयमणि और कुरूपम के टीवीवीटी जनार्दन. सत्यनारायण अपने गृह जिले विजयनगरम के विधायकों को भी संभालने में खुद को नाकाम पा रहे हैं.
हेलीकॉप्टर हादसे में 2 सितंबर, 2009 को वाइएसआर की मौत के बाद से ही जगन और सोनिया गांधी के बीच मतभेद बढ़ने शुरू हुए. जगन मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, जबकि सोनिया उन्हें इंतजार करवाने के मूड में थीं. जैसे ही दोनों के बीच राजनीति घुसी, सीबीआइ को पहुंचते देर न लगी. वाइएसआर ने जो कुछ भी किया उसका आरोप अब जगन पर है जबकि सीबीआइ ने इसकी पड़ताल के लिए कुछ नहीं किया.
कांग्रेस ने छद्म खेल खेला और मामले को अदालत में घसीट ले गई, जैसा कि ऐसे मामलों से हाथ धो लेने की उसके आलाकमान की परंपरा रही है. पार्टी विधायक पी. शंकर राव ने 21 नवंबर, 2010 को आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करते हुए जगन की परिसंपत्तियों की सीबीआइ जांच की मांग कर डाली. ठीक दस दिन बाद उन्हें दिल्ली ने इनाम दिया और राज्य का हथकरघा और कपड़ा मंत्री बना दिया.
आंध्र हाइकोर्ट ने 10 अगस्त, 2010 को सीबीआइ को जगन की परिसंपत्ति की जांच के आदेश दिए. सीबीआइ ने उन्हें पहली बार 25 मई को पूछताछ के लिए बुलाया. ठीक उस मौके पर जब वे उपचुनाव के प्रचार में जी-जान से जुटे थे. उस दिन उनकी गिरफ्तारी की अफवाहों के चलते सीबीआइ ने इंतजार करने में भलाई समझी. बहरहाल, उन्हें 28 मई को सीबीआइ की विशेष अदालत में पेश होना ही था. सीबीआइ के शीर्ष सूत्र बताते हैं कि कोर्ट में उनकी पेशी तक जगन की गिरफ्तारी की कोई योजना नहीं थी. एजेंसी ने अचानक उनकी हिरासत मांगने का मन बनाया.
सीबीआइ जिस दौरान जगन से हैदराबाद स्थित राजभवन के करीब दिलकुशा गेस्ट हाउस में पूछताछ कर रही थी, ठीक उसी वक्त दिल्ली में कांग्रेस के राज्य प्रभारी गुलाम नबी आजाद, उपचुनाव प्रभारी वायलार रवि, कार्मिक राज्यमंत्री वी. नारायणसामी और कैबिनेट सचिव ए.के. सेठ के बीच गंभीर बातचीत जारी थी. वे लगातार संपर्क में बने हुए थे. इसके बाद आजाद ने सोनिया से 27 मई की सुबह मुलाकात की और इसके बाद दिन में फरमान जारी कियाः जगन को गिरफ्तार किया जाए.
इससे कांग्रेस को जो नुकसान हो सकता था, उसे कम करने के लिए उसने जगन को सड़कों से भरसक दूर रखने की कोशिश की. कुछ राहत तो उसे मिली ही, लेकिन पुलिवेंदुला से विधायक जगन की मां विजयम्मा लगातार प्रचार में हैं और लोगों से कह रही हैं, ''जनता की अदालत जगन को इंसाफ दिलाएगी.'' कांग्रेस की तस्वीर ऐसे में बिगड़ सकती है. यूपीए के लिए आंध्र निर्णायक स्थिति रखता है-यूपीए-1 में यहां से 29 और यूपीए-2 में 33 सीटें आई थीं. राज्य में कांग्रेस की सरकार दक्षिण भारत में इकलौती सरकार है, जो पार्टी ने अकव्ले अपने दम पर बनाई है. कांग्रेस के लिए यह जीने-मरने का सवाल है.
मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी ने इसे स्वीकार भी किया, ''अधिकांश चुनाव क्षेत्रों में, नेल्लोर लोकसभा सीट समेत, टक्कर कांटे की है.'' उन्होंने इंडिया टुडे को बताया, ''कई स्थानीय नेता वाइएसआर कांग्रेस में चले गए हैं. वे अपने साथ कार्यकर्ता भी ले गए हैं. इसकी भरपाई करने और नुकसान को थामने में हमें वक्त लगेगा.''
आगामी 12 जून के उपचुनाव उतने ही निर्णायक होंगे जितना 1983 का आम चुनाव था जिसमें तेलुगु देशम पार्टी उभर कर पहली बार सामने आई थी. क्या जगन एन.टी. राम राव की कहानी दोहरा पाएंगे और क्या 2014 के आम चुनावों में वाइएसआर कांग्रेस टीडीपी और कांग्रेस से वोट अपनी ओर खींचकर राज्य की निर्णायक पार्टी के रूप में खुद को स्थापित कर पाएगी?
रेड्डी जाति के वोट वाइएसआर कांग्रेस के साथ जुट गए हैं क्योंकि इस समुदाय को लगता है कि जगन के साथ गलत हुआ है. इसके अलावा अनुसूचित जातियां खासकर माला और ईसाई भी वाइएसआर कांग्रेस के साथ हैं. लेकिन इस गिरफ्तारी ने उस मध्यवर्ग के वोटों को पार्टी से दूर छिटका दिया है जो भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दे के रूप में देखता है.
आठ साल से सरकार में बनी कांग्रेस के खिलाफ वैसे भी सत्ताविरोधी भावना मौजूद है जो जगन वाले प्रकरण से बिल्कुल अलहदा है. जो वोट पड़ेंगे, वे टीडीपी और वाइएसआर कांग्रेस के बीच बंट जाएंगे. ओपिनियन रिसर्च कंसल्टेंसी युदोफुद स्ट्रैटजीज के निदेशक तेजा नार्रा कहते हैं, ''टीडीपी के लिए 2014 के चुनाव गंभीर परिणाम लेकर आएंगे क्योंकि मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर उसकी स्थिति कमजोर होगी. इसकी प्रमुख वजह यह है कि सरकार का मौजूदा कार्यकाल तो कांग्रेस का है, पर पहला कार्यकाल यानी 2004 से 2009 वाइएसआर से जुड़ा है, लिहाजा मतदाता उस दौर के लिए सकारात्मक प्रतिक्रिया वाइएसआर कांग्रेस को देगा.''
टीडीपी के टिकट पर 2009 में चुने गए पांच विधायकों ने इस्तीफा देकर उपचुनाव की स्थिति पैदा कर दी और दोबारा चुने गए, हालांकि इस बार एक निर्दलीय रहा, दूसरा वाइएसआर कांग्रेस के टिकट पर जीता और तीन अन्य तेलंगाना राष्ट्र समिति से जीत कर आए. टीडीपी को 31 मई को एक और झ्टका लगा जब नुजविद के विधायक सी. रामकोटैया ने घोषणा की कि वे दोबारा टीडीपी के टिकट पर चुनाव नहीं लड़ेंगे. ''टीडीपी के लौटने की कोई गुंजाइश नहीं है.'' उन्होंने नई पार्टी के बारे में अभी फैसला नहीं किया है.
टीडीपी के अध्यक्ष एन. चंद्रबाबू नायडू अपनी मुश्किलों को साफ देख रहे हैं. वे कहते हैं, ''मैं जगन को जेल में नहीं देखना चाहता, पर यह चाहता हूं कि सरकार लूटे गए धन को जब्त कर के गरीबों के कल्याण में लगाए. टीडीपी ने वाइएसआर के राज में खनन और भ्रष्टाचार के घोटालों का पर्दाफाश किया था और प्रधानमंत्री से उनके खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया था, लेकिन हमेशा की तरह यूपीए और कांग्रेस वक्त रहते कार्रवाई नहीं कर सके.''
मुख्यमंत्री जोर देकर कहते हैं कि सीबीआइ के कदम से कांग्रेस का कोई लेना-देना नहीं. उन्होंने दावा किया, ''जगन अपनी गिरफ्तारी से सहानुभूति की लहर पैदा करना चाह रहे हैं. हमें उससे कोई मतलब नहीं.'' मुख्यमंत्री के पास हालांकि इस बात का जवाब नहीं है कि कैसे वाइएसआर की विरासत को कांग्रेस ने धीरे-धीरे कर के नष्ट कर दिया, खासकर उनके द्वारा शुरू किए गए विकास के कामयाब कार्यक्रम और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम.
कांग्रेसियों को लगातार यह डर सताए हुए है कि जगन के खिलाफ इस लड़ाई में कहीं वे मुफ्त में शिकार न बन जाएं. जगन को जिस दिन सीबीआइ ने पूछताछ के लिए बुलाया, उससे एक ही दिन पहले एक्साइज मंत्री मोपदेवी वेंकटरमन की गिरफ्तारी से कांग्रेसियों के कान खड़े हो गए. उन्हें वादारेवु और निजामपटनम बंदरगाह और औद्योगिक गलियारा परियोजना से जुड़े सौदों को अनुमति देने में कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया गया है. मुख्यमंत्री को 24 मई को भेजे अपने दो पन्ने के इस्तीफे में वेंकटरमन ने कहा, ''मैंने तो तत्कालीन मुख्यमंत्री वाइएसआर के आदेश का पालन किया था, उनके बुलाने पर उनके दफ्तर गया था और उनके सचिव की मौजूदगी में फाइल पर दस्तखत किए थे, हालांकि वह फाइल मेरे दफ्तर में नहीं भेजी गई थी.''
सीबीआइ इस सिद्धांत पर काम कर रही है कि वाइएसआर सरकार में छह मंत्री और कई अफसरों ने ऐसे सरकारी आदेश जारी किए जिन्होंने मंजूरी के लिए आमादा कंपनियों की मदद की और बदले में जो जगन के उद्यमों में निवेश करने को तैयार हो गईं. पुराने वफादार कांग्रेसी निजामाबाद के सांसद मधु याश्की गौड़ कहते हैं कि पार्टी और सोनिया गांधी ने यह साफ कर दिया है कि ''हम भ्रष्टाचार में लिप्त किसी को नहीं बख्शेंगे.'' उन्होंने कहा, ''आंध्र हाइकोर्ट में दायर जनहित याचिका के आधार पर चल रही सीबीआइ की कार्रवाई बिल्कुल उसी तर्ज पर है.''
वाइएसआर कांग्रेस का आरोप है कि जगन से राजनैतिक रंजिश निकाली जा रही है. टीडीपी से राज्यसभा सांसद रहे और अप्रैल 2011 में जगन के खिलाफ उपचुनाव में लड़ कर हार चुके एम.वी. मैसूरा रेड्डी कहते हैं, ''सीबीआइ जैसे संस्थानों को स्वायत्तता दी जानी चाहिए और उन्हें सत्ताधारी पार्टी का औजार बन कर नहीं रह जाना चाहिए.'' सीबीआइ का समन जब जगन को गया, तो रेड्डी ने टीडीपी छोड़ वाइएसआर कांग्रेस में जाने का फैसला कर लिया.
कांग्रेस ने जिस जगन को हाल के दिनों में खलनायक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, उन्हें विरासत में मिली चीजें कांग्रेस को काफी मजबूत कर सकती थीं. वाइएसआर के आर्थिक सलाहकार रहे और अब जगन के करीबी डी.ए. सोमायाजुलु कहते हैं, ''वाइएसआर अद्भुत नेता थे. उन्होंने आवास, भोजन, स्वास्थ्य सुरक्षा और सम्मानजनक वृद्धावस्था से जुड़ी कई योजनाएं शुरू की थीं.
इंदिरा प्रभा योजना के तहत वे सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली और पानी मुहैया करा रहे थे. उनकी योजनाओं का कम-से-कम 80 लाख लोगों को लाभ मिला है और 28 लाख किसानों को मुफ्त बिजली मिली. लोग उन्हें बहुत प्यार करते थे.'' वाइएसआर की मौत के बाद कांग्रेस सरकार ने उनकी विरासत को झड़-पोंछने के उद्देश्य से सारी योजनाओं को रोक दिया और सब्सिडी में कटौती कर डाली.
जगन जब राजनीति के मैदान में औपचारिक रूप से कूद पड़े, तब कहीं जाकर उन्हें एहसास हुआ कि उनकी शख्सियत क्या है. वाइएसआर के वफादार कुछ तत्कालीन कांग्रेस नेताओं को जगन की क्षमता पर भरोसा न था. वाइएसआर की मौत के छह महीने बाद अपने पिता के शोक में डूबे लोगों का शुक्रिया अदा करने जब जगन ओडरपु यात्रा पर निकले, तो उस दौरान जगन की प्रतिबद्धता और संयम को देखने के बाद ही उन्हें उसकी नेतृत्व क्षमता पर भरोसा हुआ. इसी यात्रा में जगन ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया. कुल 265 दिनों तक चली यात्रा के दौरान उन्होंने 5,152 गांवों, 114 शहरों और 13 जिलों में 700 परिवारों से मुलाकात की और समूचे राज्य का 17,430 किलोमीटर से ज्यादा कवर कर लिया.
जगन 17 मई को जब कडप्पा जिले में रुके थे तो जनता की भारी प्रतिक्रिया का खुद इंडिया टुडे गवाह रहा. उनके पिता और खुद की तस्वीरों से सजी एक मिनी बस जैसे-जैसे गांवों से गुजरती, सड़क के दोनों ओर के मकान लोगों से पट जाते. लोग भावी मुख्यमंत्री की एक झ्लक पाने को बेचैन थे. उनकी अपील एक फिल्मी सितारे की थी. क्या छोटा और क्या बड़ा, लोग उन्हें छूने के बाद रोने लग जाते थे. पुरुष उनसे बात करना चाह रहे थे, बूढ़े उन्हें आशीर्वाद देना चाह रहे थे और छोटी उम्र के लड़के उन्हें 'अण्णा' (बड़ा भाई) कहकर पुकार रहे थे.
जगन अब एक अनगढ़ कारोबारी से प्रेरक नेता बन चुके हैं, जो अपने भाषणों में नाटकीयता की छौंक भी लगाते हैं. कडप्पा जिले के हर गांव-कस्बे में लगी वाइएसआर की प्रतिमा की ओर वे हाथ हिलाते हैं और लौटते वक्त वादा कर जाते हैं कि पिता की योजनाओं को जिंदा कर के रहेंगे. उन्होंने अपनी स्थिति एक ऐसे लोकप्रिय नेता की बना ली है जिसकी तुलना एन.टी. रामा राव से की जा सकती है.
एनटीआर की पत्नी लक्ष्मी पार्वती कहती हैं कि जगन की लोकप्रियता सनक के स्तर पर पहुंच चुकी है जो उन्हें उनके मरहूम पति की याद दिलाती है. सीबीआइ जब जगन को पूछताछ के लिए 26 मई को हैदराबाद के लोटस पॉन्ड स्थित उनके आलीशान घर से ले जा रही थी, तो वहां मौजूद सैकड़ों लोगों में वे भी थीं. वे कहती हैं कि ''जगन मुख्यमंत्री बनेगा और एनटीआर से भी बड़ा स्टार होगा.''
जगन की पत्नी 35 वर्षीया भारती, जो साक्षी समूह की अध्यक्ष भी हैं, चमकदार गुलाबी और पीली सलवार कमीज में अदब से स्वागत करती हैं. वे कहती हैं, ''उनकी ताकत हम में समा गई है और हम चले जा रहे हैं.'' उनसे एक तस्वीर उतारने का आग्रह करने पर वे पीछे की ओर खिसक जाती हैं, 'हुआप सर (जगन) की तस्वीर ले सकते हैं.''
जगन की बहन शर्मिला और उनके पति अनिल कुमार भी उन्हें सहयोग देते हैं जो खुद ईसाई धर्म प्रचारक हैं. टीडीपी छोड़ वाइएसआर कांग्रेस में आईं तेलुगु फिल्म स्टार रोजा कहती हैं, ''साफ दिख रहा है कि कांग्रेस जगन से बदला ले रही है. उनमें हमारा भरोसा है. हम जानते हैं कि वे और मजबूत होकर उभरेंगे.''
रंजिश की इस सियासत में पुराने मिथक टूट रहे हैं कि आंध्र प्रदेश दक्षिण में कांग्रेस का गढ़ है. असल तस्वीर 12 जून को ही साफ होगी. सोनिया गांधी 1998 में पार्टी की अध्यक्ष बनीं तो कांग्रेस की लोकसभा में 140 सीटें थीं. कांग्रेस के टूट रहे छोटे-छोटे किलों में आंध्र का पतन काफी बड़ा साबित होगा. देशभर में पार्टी का ढांचा ढह रहा है. हिमाचल में 26 साल बाद निकाय चुनावों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ होना एक बड़े आश्चर्य की तरह सामने आया है. क्या अगले चुनाव में सोनिया गांधी को सीटों से भारी समझैता करना पड़ेगा?
-साथ में निर्मला रवींद्रन