scorecardresearch

शख्सियत: यूपी की जेलों में सुधार का आनंद

यूपी में महानिदेशक, जेल के पद पर तैनात आनंद कुमार ने जेलों के बंदियों से रिकार्ड संख्या में मास्क और पीपीइ किट बनवाकर एक मिसाल कायम की.

आनंद कुमार
आनंद कुमार
अपडेटेड 15 मई , 2020

मार्च में होली के तुरंत बाद लखनऊ के पुरानी जेल रोड पर स्थित कारागार मुख्यालय में महानिदेशक (डीजी) जेल आनंद कुमार विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे थे. तभी टीवी स्क्रीन पर देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा होने की ब्रेकिंग न्यूज चलने लगी. कुछ न्यूज चैनल अमेरिका और यूरोप में मास्क की कमी होने की खबर भी चला रहे थे. इसके बाद जेलों में सुधार के लिए बुलाई गई अधिकारियों की बैठक कोरोना संक्रमण के खतरे में जेलों की भूमिका पर केंद्रित हो गई.

आनंद ने अधिकारियों को सुझाव दिया कि यूपी की कई जेलों में टेलरिंग यूनिट है, डॉक्टर तो हर जेल में हैं जिन्हें मालूम है कि मास्क का कपड़ा कैसा होना चाहिए, सेनेटाइज कैसे होना चाहिए? इन सबको एक्टिव करके जेल में मास्क बनाते हैं. इसके बाद आनंद ने अपने अधिकारियों को ऐसी जेलों को चिन्हित करने को कहा जहां बंदियों से मास्क बनाया जा सके. सभी अधिकारी इस काम को एक अभियान के रूप में लेकर जुट गए. बंदियों को कोरोना संक्रमण के खतरे को बताते हुए उन्हें योगदान देने के लिए मोटीवेट किया गया.

पांच दिन के भीतर जेलों में मास्क बनाने की योजना हकीकत में उतर गई. गाजियाबाद की जिला जेल में तैनात डॉक्टर ने एक डबल लेयर मास्क का प्रोटोटाइप बनाया. दूसरी जेलों के डॉक्टरों की भी मास्क के इस प्रोटोटाइप पर राय ली गई तो सभी ने अपनी मंजूरी दे दी. इसके बाद सबसे पहले गाजियाबाद की जिला जेल और लखनऊ की आदर्श जेल में मास्क बनना शुरू हुआ. जेल प्रशासन ने कॉपरेटिव के पैसे से मास्क के लिए कपड़े और अन्य जरूरी सामानों का इंतजाम किया.

गाजियाबाद और लखनऊ की जेलों में एक दिन में करीब डेढ़ से दो हजार मास्क बनना शुरू हुआ. एक मास्क बनाने पर बंदी को एक रुपए पारिश्रमिक दिया गया. इन मास्क की लागत चार रुपए आई. यह वह समय था जब मास्क के प्रयोग को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं निर्धारित हो पाई थी. उस वक्त देश में सबसे पहले यूपी की जेलों में मास्क बनना शुरू हो गया था. गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर और लखनऊ के आदर्श कारागार में दो दर्जन से अधिक सिलाई मशीनें मौजूद थी, इसलिए शुरुआत में यहां तेजी के साथ मास्क बनना शुरू हुआ.

जेलों में मास्क बनाने में सबसे बड़ी समस्या यह आई कि कुछ जेलों में टेलरिंग मशीन नहीं थी. पीलीभीत जेल भी उनमें से एक थी. लॉकडाउन की वजह से मशीनों के इंतजाम करने में भी दिक्कतें आ रही थीं. ऐसी जिलों ने स्थानीय लोगों से संपर्क किया. कई लोगों ने स्वेच्छा से जेलों को सिलाई मशीनें दान में दी. इसके बाद यूपी की सभी जेलों में मास्क बनना शुरू हो गया. अभी तक सबसे यूपी की सभी जेलों को मिलाकर कुल साढ़े बारह लाख बनाए जा चुके हैं. इनमें सबसे ज्यादा पौने दो लाख मास्क आदर्श कारागार लखनऊ में बंदियों ने बनाए हैं. सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं ने कुल मिलाकर अब तक जेल में बने आठ लाख मास्क खरीदे हैं. पुलिस के सभी विभागों ने जेल के बने मास्क खरीदे हैं.

जेलों में मास्क बनाने के काम ने पूरी गति पकड़ी ही थी कि इसी दौरान लखनऊ में भी कोरोना पॉजिटिव मामले सामने आने लगे थे. अस्पतालों को अपने डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ के लिए पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेँट (पीपीइ) किट का तुरंत इंतजाम करना पड़ा. अचानक पीपीइ किट की डिमांड बढ़ने पर इनकी सप्लाइ बाधित हो गई थी. ऐसे में लखनऊ के बलरामपुर अस्पताल के निदेशक डॉ. राजीव लोचन ने लखनऊ आदर्श कारागार के अधीक्षक को फोन करके जेल के बंदियों से पीपीइ किट बनाने का प्रस्ताव रखा.

डॉ. लोचन ने पीपीइ किट बनाने की पूरी गाइडलाइन और एक प्रोटोटाइप आदर्श कारागार भिजवाया. इसे देखकर दो दिन के भीतर आदर्श कारागार के बंदियो ने दस पीपीइ किट का सैंपल तैयार कर दिया. इस किट की कीमत सात सौ रुपए से कम आई. आदर्श कारागार के अधीक्षक ने इस पीपीइ किट को परीक्षण के लिए बलरामपुर अस्पताल भेजा. डॉ. राजीव लोचन ने कोरोना पीड़ितों के इलाज में लगे डॉक्टरों को जेल की बनी पीपीइ किट पहनाकर इसकी गुणवत्ता का परीक्षण किया.

सभी डाक्टरों से सकारात्मक फीडबैक मिलने के बाद डॉ. लोचन ने आदर्श जेल के अधीक्षक से बलरामपुर अस्पताल के लिए डेढ़ सौ पीपीइ किट तुरंत बनवाने को कहा. इसके बाद लखनऊ के सिविल अस्पताल ने भी आदर्श जेल से पीपीइ किट सप्लाइ करने का आर्डर दिया. आज गाजियाबाद, मेरठ, मथुरा की जिला जेल और आदर्श कारागार लखनऊ में पीपीइ किट बनाई जा रही है. अब तक यह सभी जेलें मिलकर साढ़े छह सौ पीपीइ किट बना चुकी हैं.

कोरोना संक्रमण के समय जब कैदी सलाखों से बाहर रहने वालों के लिए सुरक्षा कवच बनाने में जुटे हैँ तो जेल प्रशासन ने भी इन्हें इस खतरनाक वायरस से बचाने के लिए उपाय किए हैं. प्रदेश की सभी जेलों में बंद बंदियों से लिए आयुष मंत्रालय की गाइडलाइन के तहत 'इम्युनिटी बूस्टिंग फूड' की व्यवस्था की गई है जिसमें विशेष प्रकार से तैयार किया गया काढ़ा देना और योग का अभ्यास शामिल है. इसके बावजूद आगरा जेल में कैदी कोरोना पॉजिटिव मिले हैं. वह भी तब जब मुलाकात बंद है. जेल के अधिकारी और कर्मचारी निगेटिव आई है. जेल प्रशासन ने राशन, दूध की सप्लाई के जरिए कोरोना वायरस के जेल के भीतर जाने की आशंका जाहिर की है. ऐसे में आनंद ने अधिकारियों से जेल में बाहर से आने वाले खाने-पीने के सामान को विसंक्रमित करने के तौर-तरीके की एक विस्तृत गाइडलाइन जारी करने को कहा है.

यूपी की जेलों में सुरक्षा-व्यवस्था और बंदियों की बढ़ती मनमर्जी पर अंकुश लगाने की चुनौतियों के बीच पिछले वर्ष जून में आनंद कुमार पुलिस महानिदेशक (जेल) के पद पर आसीन हुए थे. यूपी के पुलिस विभाग में यह पहला मौका था जब पुलिस महानिदेशक (डीजी) स्तर के अधिकारी को जेलों की कमान सौंपी गई. इसके बाद से आनंद ने यूपी की जेलों में सुधार योजनाओं तो गति दे दी. आनंद की सरपरस्ती में लखनऊ के कारागार मुख्यालय में जेलों पर निगरानी के लिए वीडियो वॉल बनाई गई. यह वीडियो वॉल देश में जेलों की निगरानी के लिए अपनी तरह का पहला प्रयास है.

यूपी की जेल में 30 से 40 सीसीटीवी कैमरे पहले से लगे थे लेकिन इसकी केंद्रीयकृत निगरानी की व्यवस्था नहीं थी अब जेल मुख्यालय में वीडियो वॉल के जरिए सेंट्रलाइज्ड मॉनीटरिंग सिस्टम काम कर रहा है. जेल मुख्यालय के कमांड सेंटर की एक दीवार पर 12 टीवी स्क्रीन लगाकर एक वीडियो वाल बनाई गई है. इस वीडियो वॉल को 48 स्क्रीन में तब्दील किया गया है. इतना ही नहीं जेलों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए सरकार ने जेल की सीमा के भीतर किसी के भी मोबाइल फोन ले जाने पर रोक लगा दी है चाहे वह जेल में तैनात अधिकारी ही क्यों न हो. इसके अलावा जेल रेडियो के माध्यम से बंदियों के बौद्धिक और चारीत्रिक विकास की योजना शुरू की गई. बंदियों को रोजगार से जोड़ने की योजना शुरू हुई.

यूपी की 71 जेलों में 93 हजार से अधिक बंदियों की निगरानी में लगातार लगे हुए आनंद गुवाहाटी, असम में पैदा हुए थे. इनके नाना गुवाहाटी में रहते थे. आनंद के पिता एस. के. श्रीवास्तव बिहार कैडर के आइएएस अधिकारी थे तो बचपन पटना और आसपास के जिलों में बीता. पटना के सेंट माइकल्स हाइस्कूल से दसवीं पास करने के बाद आनंद आगे की पढ़ाई करने दिल्ली चले गए. यहां बाराखंभा रोड स्थित मार्डन स्कूल से इन्होंने इंटरमीडियट किया. इन्होंने दिल्ली के हंसराज कालेज से बीए आनर्स किया. इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए किया.

वर्ष 1988 में पहले ही प्रयास में आनंद का चयन भारतीय पुलिस सेवा में हो गया. इन्हें यूपी कैडर मिला. पहली पोस्टिंग एडीशनल पुलिस अधीक्षक (एएसपी) गोरखपुर के पद पर हुई. वर्ष 1993 में जब आनंद गाजियाबाद में एसपी सिटी के पद पर तैनात थे उस वक्त इन्होंने इनकाउंटर करके खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के आतंकवादी पकड़े थे. इसमें आनंद को गैंलेंट्री एवार्ड मिला था. अक्टूबर, 1994 में एसपी के तौर पर पहली बार रायबरेली में पोस्टिंग हुई. यहां से ये वर्ष 1995 मुजफ्फरनगर के एसपी बनाए गए.

इस दौरान मुजफ्फरनगर में डॉ. वेद भूषण का अपहरण हो गया था. ये उत्तर भारत के सबसे प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञों में से एक थे. अपहरणकर्ताओं ने डॉ. भूषण के परिवार वालों से 40 लाख रुपए की फिरौती मांगी थी. उस वक्त पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लोकसभा में विपक्ष के नेता थे. वाजपेयी ने डॉ. भूषण के अपहरण का मुद्दा लोकसभा में उठाया था. आनंद के जीवन की यह सबसे बड़ी चुनौती थी. अपहरण के चौदह दिन बाद डॉ. भूषण को देवबंद में अपहरणकर्ताओं को एनकाउंटर में मारकर उनके चंगुल से मुक्त कराया गया. इसके बाद पूरा मुजफ्फरनगर शहर पुलिस बल के स्वागत में उमड़ पड़ा था.

आनंद हरिद्वार में एसपी, देहरादून और गौतमबुद्ध नगर में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी), सहारनपुर में पुलिस उपमहानिरीक्षक (डीआइजी)/पुलिस महानिरीक्षक (आइजी) रेंज के पद पर तैनात रहे. पश्चिम यूपी के जिलों में आनंद की पकड़ को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन्हें मेरठ जोन का अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) के पद पर तैनात किया. इसके बाद पश्चिमी यूपी में अपराधियों की धड़पकड़ शुरू हुई और इस दौरान कई दुर्दांत बदमाश पुलिस मुठभेड़ में मारे गए.

दो महीने बाद आनंद कुमार को एडीजी कानून व्यवस्था जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप दी गई. इस दौरान यूपी कांवड़ यात्रा का अभूतपूर्व प्रबंध करके आनंद ने अपनी प्रशासनिक क्षमता दिखाई. प्रयागराज में जनवरी, 2019 में हुए कुंभ के सुरक्षित और सफल आयोजन के पीछे आनंद कुमार की मेहनत भी थी. पिछले वर्ष जून में इन्हें महानिदेशक जेल के पद तैनात कर जेलों में फैली अराजकता पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकल सामानों के आह्वान के बाद आनंद कुमार यूपी की सभी कार्यरत 71 जेलों में बनने वाले सामानों की ब्रांडिंग करने की योजना तैयार कर रहे हैं. जिस तरह तिहाड़ जेल के उत्पादों का अपना एक अलग ब्रांड है उसी प्रकार यूपी जेल का भी अपना ब्रांड होगा.

***

Advertisement
Advertisement