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ब्‍याज दरों ने कर दी है जिंदगी को बेमजा

राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा के 35 वर्षीय व्यवसायी संजीव राठौड़ प्रति माह करीब 80,000 रु. कमाते हैं. एक दशक पहले वे इसका एक छोटा-सा हिस्सा ही कमाते थे लेकिन आज की तुलना में तब ज्‍यादा खुश थे.

अपडेटेड 18 जून , 2011

राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा के 35 वर्षीय व्यवसायी संजीव राठौड़ प्रति माह करीब 80,000 रु. कमाते हैं. एक दशक पहले वे इसका एक छोटा-सा हिस्सा ही कमाते थे लेकिन आज की तुलना में तब ज्‍यादा खुश थे.

राठौड़ कहते हैं, ''हाल के महीनों में जीवनयापन की लागत नाटकीय ढंग से बढ़ गई है. महीने के अंत में मेरे पास खर्च करने लायक पैसे नहीं बचते.'' कई अन्य मध्यमवर्गीय भारतीयों की तरह, राठौड़ को कुछ महीने पहले मकान खरीदने का फैसला करने की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. वे कहते हैं, ''मैंने एक फ्लैट बुक किया और उसके बाद ब्याज दरें बढ़ गईं. मेरी मासिक किस्त 20 प्रतिशत बढ़ गई है.''

उधर, केरल के कासरगोड में रेडीमेड वस्त्रों के विक्रेता करिंगप्पल्लम हनीफ ने नया दुपहिया खरीदने का फैसला टाल दिया है. छह महीने पहले उन्होंने एक होंडा एक्टिवा बुक करने के लिए अग्रिम राशि जमा करवाई थी.

ऋण के लिए आवेदन करने के पहले वे इंतजार कर रहे थे कि गाड़ी मिलने का समय थोड़ा और नजदीक आ जाए. एक महीने पहले, उनके बैंक के प्रबंधक ने उन्हें बताया कि पिछले छह महीनों में उसकी संभावित मासिक किस्त बढ़ चुकी है. उधर पेट्रोल भी 5 रु. प्रति लीटर महंगा हो जाने से हनीफ के लिए अपनी खरीदारी टाल देना आसान हो गया.

नई दिल्ली में 25 वर्ष के एक पब्लिक रिलेशंस एक्जक्यूटिव सिद्धार्थ भल्ला अपने खर्चों में कटौती कर रहे हैं, क्योंकि बढ़ती ब्याज दरों और मुद्रास्फीति ने मिलकर 40,000 रु. की उनकी मासिक आमदनी को निचोड़ लिया है. भल्ला कहते हैं, ''मैं 13,000 रु. हाउसिंग लोन पर चुकाता हूं, 5,000 रु. कार लोन पर, स्वास्थ्य और जीवन बीमा के लिए 3,000 रु. का प्रीमियम देता हूं और 5,000-7,000 रु. आवाजाही और खानपान पर खर्च करता हूं. इन सबके बाद मेरे पास मात्र 10,000 रु. बचते हैं.'' 

राठौर, हनीफ और भल्ला जब भी खर्च न करने का फैसला करते हैं, तो अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचती है. करोड़ों भारतीयों का उपभोग खर्च सकल घरेलू उत्पाद में सबसे अहम योगदान देता है. यह भारत के 13 खरब डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग आधा है.

वरिष्ठ बैंकर के.वी. कामथ, जो आइसीआइसीआइ बैंक के गैर-कार्यकारी अध्यक्ष हैं, मानते हैं कि पिछले 12 महीनों में होम लोन की मासिक किस्तों में 30-40 प्रतिशत तक की वृद्धि हो चुकी है. भारतीय रिजर्व बैंक ने इस अवधि में ब्याज दरों में 9 बार वृद्धि की है, जो अधिकांशतः लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की निरर्थक कोशिश में की गई है. वह ऋण, जो एक वर्ष पहले लगभग 8 प्रतिशत की ब्याज दर पर लिया गया था, अब उस पर ब्याज दर 11 प्रतिशत तक की हो गई है.

सारे अहम्‌ वृहद आर्थिक सूचकांक निश्चित मंदी की ओर इशारा करते हैं. जनवरी से मार्च 2011 की तिमाही में अर्थव्यवस्था सिर्फ 7.8 प्रतिशत की दर से बढ़ी. पिछले सप्ताह जारी किया गया अप्रैल माह का औद्योगिक उत्पादन सूचकांक-जो औद्योगिक वृद्धि की मजबूती का एक अहम सूचक होता है-अप्रैल में 6.3 प्रतिशत रहा, जो मार्च के 7.8 प्रतिशत के स्तर से काफी कम है.

यह अप्रैल-जून की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के लिहाज से पूर्व चेतावनी का संकेत है. सरकार चिंतित है, लेकिन उसे घबराहट नहीं है. वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा, ''औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आंकड़े परेशानी पैदा करने वाले हैं. (हमें) इसका रुझान देखने के लिए दीर्घकालिक औद्योगिक उत्पादन सूचकांक वृद्धि का इंतजार करना होगा.''

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक ही मंदी की तरफ इशारा नहीं कर रहा. यात्री कारों की बिक्री की वृद्धि दर-जो उपभोक्ताओं के आत्मविश्वास का एक अच्छा संकेतक होती है-मई में मात्र 7 प्रतिशत थी, जो जून 2009 के बाद से अब तक की सबसे सुस्त वृद्धि दर है. भारतीय ऑटोमोबाइल उत्पादकों का संगठन बाकी बचे वित्त वर्ष की संभावनाओं को लेकर निराश है.

सरकार, जिसे फरवरी तक 9 प्रतिशत की विकास दर हासिल कर लेने का विश्वास था, अब स्वीकार करती है कि इस लक्ष्य को पाना 'कठिन' होगा. मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु कहते हैं, ''विशेषकर कच्चे तेल की कीमतें ऊंची बनी रहीं, तो 9 प्रतिशत का लक्ष्य कठिन हो जाएगा. (हमारी) संभावनाओं पर तुषारापात करने वाला सबसे महत्वपूर्ण पहलू यही है.''

रिजर्व बैंक जिस रफ्तार से ब्याज दरें बढ़ाता जा रहा है उस पर वित्त मंत्रालय के कुछ अधिकारी निजी तौर पर चिंता जताते हैं. उपभोक्ताओं और फर्मों के लिए ऋण बेतहाशा महंगा होते जाने से विकास पर जो असर पड़ेगा उससे भी चिंतित हैं. वैसे, अधिकृत तौर पर वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक एक ही सुर में बात करते हैं. बसु किसी तरह की अनबन की बात खारिज करते हैं, ''मध्यम से दीर्घ अवधि में मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाना अच्छे विकास का हिस्सा होता है.''

मुद्रास्फीति और ब्याज दरों के अलावा, मंदी के इस घालमेल में तीसरा हिस्सेदार भी है- घोटालों से दागी सरकारी परिवेश, जो उद्योग जगत को आक्रामक ढंग से निवेश करने से रोक रहा हो सकता है. उपभोग के बाद निवेश भारत की सकल घरेलू आय का दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है.

राष्ट्रीय व्यावसायिक दैनिक इकोनॉमिक टाइम्स द्वारा शीर्ष औद्योगिक संस्था फिक्की के साथ पिछले सप्ताह कराए गए 75 शीर्ष कॉर्पोरव्ट एक्जक्यूटिव्स का सर्वेक्षण बताता है कि 80 प्रतिशत उत्तरदाता महसूस करते हैं कि सरकार में रोजमर्रा के निर्णय लेने की प्रक्रिया भी सुस्त हो चुकी है और 72 प्रतिशत का कहना है कि सरकार का संकट आर्थिक वृद्धि को प्रभावित करेगा. निर्णायक तौर पर, उत्तरदाताओं की बहुसंख्या महसूस करती है कि सरकार संचालन की कमियां उनकी व्यावसायिक और निवेश योजनाओं पर नकारात्मक असर डालेंगी.

कॉर्पोरव्ट निवेश योजनाएं पहले ही प्रभावित हो चुकी हैं. एक्सिस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री सौगत भट्टाचार्य कहते हैं, ''पूंजीगत खर्च के आंकड़े कम होते जा रहे हैं. लेकिन हम ये नहीं जानते हैं कि इसमें से कितना बढ़ती ब्याज दरों के कारण है और कितना शासन में संकट के चलते मानी जाने वाली समस्याओं के कारण है.

5.50 करोड़ रु. की नरूला इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक एस.के. नरूला कहते हैं, ''ब्याज दरों में बढ़ोतरी छोटे और मझेले उपक्रमों पर कहर बरपा रही है.'' नरूला ने भारत में अपनी विस्तार योजनाओं को रोक दिया है और इसके बाद अफ्रीका की ओर देख रही है.

सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी के सीईओ और प्रबंध निदेशक महेश व्यास का मानना है कि घोटाले और विवाद अपनी भूमिका निभा रहे हैं. वे कहते हैं, ''नई निवेश घोषणाओं में तेजी से गिरावट आई है. इसका कुछ हिस्सा इस कारण हो सकता है कि शीर्ष औद्योगिक घराने टेलीकॉम या भूमि अधिग्रहण विवादों में फंसे हुए हैं.'' लेकिन व्यास निकट भविष्य में वृद्धि को लेकर आशान्वित हैं.

वे कहते हैं, ''मंदी होगी, लेकिन तेज मंदी नहीं होगी. ऐसा इस कारण होगा, क्योंकि 8 लाख करोड़ रु. की अतिरिक्त क्षमता इस वर्ष जुड़ने जा रही है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 3 लाख करोड़ रु. ज्‍यादा है. इस वर्ष नई निवेश घोषणाएं न होने का असर तीन वर्ष बाद जाकर ही दिखेगा.'' वे यह भी कहते हैं, ''तीन वर्ष पहले जिन योजनाओं की घोषणा की गई थी, वे अब पूरी होने के करीब हैं. बढ़ती ब्याज दरें और शासन के मसले उन्हें जरा भी प्रभावित नहीं कर सकेंगे.''

सौगत भी निवेश को लेकर तार्किकतापूर्ण ढंग से आशावादी हैं, भले ही उपभोग को लेकर नहीं हैं. वे कहते हैं, ''अगर फर्मों को वृद्धि

की संभावनाओं को लेकर विश्वास हो, तो वे ब्याज की अतिरिक्त लागत झेल सकती हैं. लेकिन खुदरा उपभोक्ता के ऋणों पर निश्चित असर पड़ेगा.''

कोलकाता के 33 वर्षीय कॉर्पोरव्ट एक्जक्यूटिव अंभ्रिन भट्टाचार्य खुदरा ऋण लेने वालों के बोझा के बारे में सब कुछ जानते हैं. वे कहते हैं, ''पिछले वर्ष मेरे वेतन में जो वृद्धि हुई थी, वह उतनी ही थी, जितनी मेरी मासिक किस्तों में वृद्धि हुई है.''

अधिकांश मध्यमवर्गीय भारतीयों की कुंठा को जताते हुए वे कहते हैं, ''जीवन शैली में बेहतरी की बात तो भूल जाइए, मैं अपनी पिछली जीवन शैली को भी बरकरार नहीं रख पा रहा हूं.''

वित्त मंत्री सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि मुद्रास्फीति ''कम-से-कम होती जा रही है.'' भारतीय रिजर्व बैंक ने भविष्यवाणी की है कि मार्च, 2012 तक मुद्रास्फीति की दर 6 प्रतिशत तक आ जाएगी. अंभ्रिन भट्टाचार्य के लिए यह एक सांत्वना की बात शायद ही हो सके.

चिंतित निवेशकों को दिलासा दिलाने के लिए वित्त मंत्री जनसंपर्क की मुहिम पर निकल पड़े हैं. पिछले सप्ताह ओईसीडी टैक्स सेमिनार में बोलते हुए मुखर्जी ने कहा, ''अर्थव्यवस्था की वृद्धि को संचालित करने वाले पक्ष जस के तस हैं.'' संस्थागत निवेशकों के साथ बंद कमरे में हुई बैठक में उन्होंने भागीदारों से वृद्धि की संभावनाओं को लेकर आक्रामक रहने को कहा.

बताया जाता है कि उन्होंने लंबे समय से अटके सुधारों को लागू करने का वादा किया, जिनमें बीमा और खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा में छूट देना शामिल है. सरकार के सामने चुनौती अपनी विश्वसनीयता स्थापित करने की है. बड़े-बड़े वायदों से पीड़ित उपभोक्ता और निवेशक अब और संतुष्ट नहीं रह सकते.

-साथ में गुंजीत स्त्रा, तिथि सरकार, पीयूष बबेले, सरिता एस. बालन, टी. सुरेंदर 

2-3 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है होम और कार लोन की ब्याज दरों में पिछले 12 महीनों में.
30-40 प्रतिशत की औसत वृद्धि हुई है होम लोन की मासिक किस्तों में पिछले 12 महीनों में.
57.2 भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 57.2 प्रतिशत हिस्सा लोगों द्वारा किए जाने वाले खर्च से आता है. 29.5 प्रतिशत आता है निवेश से.

7.8 प्रतिशत थी जनवरी से मार्च 2011 के बीच सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर, जनवरी-मार्च 2010 के बीच यह दर थी 9.4 प्रतिशत.

3.8 प्रतिशत वृद्धि अप्रैल 2011 में थी टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं (कार, फ्रिज, वाशिंग मशीन, एसी) में; यह अप्रैल 2010 में 23.3 प्रतिशत थी.

7 प्रतिशत वृद्धि मई 2011 में यात्री कारों की बिक्री में. दो वर्ष में सबसे कम. बाकी बचे वर्ष के लिए भविष्यवाणी नकारात्मक है.

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