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औद्योगिक असंतोष: मजदूर यों ही नाराज नहीं

अजय पाल सिंह (बदला हुआ नाम) मारुति-सुजुकी के मानेसर कारखाने में हड़ताल खत्म होने के बाद काम पर लौटने से बेहद खुश हैं. इस कारखाने में 13 दिन से चली आ रही हड़ताल शुक्रवार 17 जून को समाप्त हो गई. अजय पाल का कहना है, ''हमें मजदूर संघ की राजनीति की जानकारी नहीं है. हम तो सिर्फ  काम करने के लिए यहां आए हैं.''

अपडेटेड 26 जून , 2011

अजय पाल सिंह (बदला हुआ नाम) मारुति-सुजुकी के मानेसर कारखाने में हड़ताल खत्म होने के बाद काम पर लौटने से बेहद खुश हैं. इस कारखाने में 13 दिन से चली आ रही हड़ताल शुक्रवार 17 जून को समाप्त हो गई. अजय पाल का कहना है, ''हमें मजदूर संघ की राजनीति की जानकारी नहीं है. हम तो सिर्फ  काम करने के लिए यहां आए हैं.''

सोनू गुर्जर का मत अलग है. गुर्जर मानेसर कारखाने में नए मजदूर संघ मारुति-सुजुकी कर्मचारी यूनियन (एमएसईयू) के अध्यक्ष हैं. उनकी मांग है कि प्रबंधन उनके संघ को मान्यता प्रदान करे पर  मारुति के वरिष्ठ अधिकारियों ने उनकी मांग को मानने से यह कहकर इनकार कर दिया कि मारुति उद्योग कामगार संघ पहले से ही मौजूद है और वह मानेसर और गुड़गांव कारखानों के मजदूरों के हितों का प्रतिनिधित्व करता है.

प्रबंधन के एमएसईयू को मान्यता देने से इनकार करने पर हड़ताल की नौबत आ गई. प्रबंधन ने हड़ताल के लिए कर्मचारियों को भड़काने के आरोप में 11 कर्मचारियों को निकाल दिया, इनमें अधिकतर नए संघ के पदाधिकारी थे.

13 दिन के गतिरोध के बाद दोनों पक्ष पहले वाली स्थिति कायम करने पर सहमत हो गए; प्रबंधन ने बरखास्त कर्मचारियों को काम पर ले लिया लेकिन नए संघ को स्पष्ट मान्यता नहीं दी. मारुति-सुजुकी को एक पखवाड़े में करीब 400 करोड़ रु. का घाटा हुआ. उपभोक्ताओं को अपनी नई कारों के लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा तो कर्मचारियों को 13 दिन के वेतन के दोगुने का घाटा उठाना पड़ेगा. भावी निवेशक आशंकित हैं.

पिछले 12 माह में देश भर में कुछ बड़ी कंपनियों में औद्योगिक असंतोष देखने को मिला. नवंबर, 2010 में गाजियाबाद में ऑटो कलपुर्जों की निर्माता अलाएड-निप्पन में औद्योगिक विवाद के दौरान कर्मचारियों की उत्तेजित भीड़ ने एक सहायक महाप्रबंधक को पीट-पीट कर मार डाला.

सितंबर, 2010 में श्रीपेरुंबुदूर, तमिलनाडु में मोबाइल फोन के उपकरण बनाने वाली एक कंपनी फॉक्सकॉन के कर्मचारी दूसरे मजदूर संघ  को मान्यता दिए जाने की मांग करते हुए हड़ताल पर चले गए. जून, 2010 में चेन्नै में ह्यूंदई कारखाने में कर्मचारियों की बरखास्तगी को लेकर प्रबंधन के साथ हुए विवाद के बाद कर्मचारी हड़ताल पर चले गए. बरखास्त कर्मचारियों को आखिरकार बहाल कर दिया गया.

मजदूरों में असंतोष और औद्योगिक कार्रवाई क्यों बढ़ रही है? अर्थशास्त्री और शीर्ष औद्योगिक संगठन फिक्की के महासचिव राजीव कुमार का मानना है कि भारत में हाल में श्रमिकों में असंतोष बढ़ने के पीछे राजनीति से ज्‍यादा बहुत कुछ का हाथ है, ''यह एक संरचनात्मक मुद्दा है.

कई वर्षों में तेजी से हुए विकास ने कुशल कामगारों की कमी और दक्षता को लेकर विसंगति पैदा की है. संगठित क्षेत्र में मजदूरों का मानना है कि उनका जितना मूल्य है उसके हिसाब से उन्हें उतना वेतन नहीं मिल रहा है.'' उनका  मानना है कि इस परिदृश्य में श्रम समस्याएं बार-बार पैदा हो सकती हैं.

वे कहते हैं, ''हमें बदले में अब तक अच्छी शिक्षा वाले लोग नहीं मिल रहे हैं. हालांकि नरेगा के कारण गांववालों की मजदूरी बढ़ी है लेकिन वास्तव में यह गांव में मजदूरी करने वालों में जड़ता बढ़ा रहा है. औद्योगिक रोजगार के लिए लगातार कुशल और अकुशल श्रमिकों की कमी हो सकती है, जिससे वेतन बढ़ाने के लिए दबाव बढ़ेगा.''

अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय का कहना है कि मजदूर संघों और श्रमिकों के रोजगार को नियंत्रित करने वाले कानूनों में अन्य समस्याएं भी हैं. ''मजदूर संघ से संबंधित कानून कई संघों की इजाजत देता है, और कोई संघ प्रबंधन और किसी दूसरे संघ के बीच हुए समझैते को मानने के लिए बाध्य नहीं है.'' इससे यह बात साफ  हो जाती है कि मारुति-सुजुकी के कुछ कर्मचारी चेन्नै की फॉक्सकॉन के अपने साथियों की तरह, एक से ज्‍यादा संघ क्यों चाहते थे, इससे सौदेबाजी करने की उनकी ताकत बढ़ जाती.

फिर श्रम कानूनों की बाधा भी है. औद्योगिक विवाद कानून, 1947 के अध्याय 5-बी में यह व्यवस्था है कि 100 से अधिक कर्मचारियों वाले किसी कारखाने को छंटनी, अस्थायी छंटनी और तालाबंदी से पहले सरकार से इजाजत लेनी होगी. सरकार ऐसी इजाजत शायद ही कभी देती है क्योंकि इससे उसकी लोकप्रियता कम होने का खतरा रहता है.

तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने 2001 के बजट भाषण में जब इस अध्याय में संशोधन करने का सुझाव दिया था, तब भारी राजनैतिक बवाल मच गया था. भाजपा के शिवसेना जैसे सहयोगियों ने राजग को छोड़ने की धमकी दे डाली थी. एक दशक बाद भी यथास्थिति बनी हुई है.

मारुति के हड़ताली कर्मचारियों के साथ बातचीत कर रहीं हरियाणा की श्रम आयुक्तसतवंती अहलावत का कहना है, ''मजदूर वर्ग की सामाजिक सुरक्षा के लिए, छंटनी की इजाजत नहीं दी जा सकती.'' इस तरह के कानून मजबूत मजदूर अभिजात वर्ग और ताकतवर मजदूर संघों को जन्म देते हैं. इस तरह के श्रम कानूनों का मतलब है कि संगठित क्षेत्र के कर्मचारी देश के कुल कामगारों का 10 प्रतिशत हैं.

देबरॉय का मानना है कि धारा 5-बी में छंटनी को कंपनी की तालाबंदी और अस्थायी छंटनी से अलग करना जरूरी है. छंटनी उतनी विवादास्पद नहीं है जितना कंपनी का बंद होना. देबरॉय का कहना है, ''औद्योगिक विवाद कानून के अलावा, कम-से-कम 50 ऐसे अन्य श्रम कानून हैं जिन्हें राज्‍यों द्वारा बदला जा सकता है.'' उनका कहना है कि ''यहां तक कि औद्योगिक विवाद कानून में भी राज्‍यों द्वारा संशोधन किया जा सकता है क्योंकि श्रम का मामला संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है.''

हरियाणा सरकार बार-बार जोर देकर कह रही है कि मारुति की हड़ताल और कुछ नहीं बल्कि राज्‍य में औद्योगिक असंतोष को भड़काने की वामपंथी दलों की राजनैतिक साजिश का हिस्सा थी. मुख्यमंत्री के सलाहकार शिव भाटिया का कहना है, ''यह उन राजनैतिक तत्वों द्वारा हरियाणा में मजदूर संघों का राजनीतिकरण करने का कदम था, जो बंगाल और केरल में अपना गढ़ खो चुके हैं.

श्रमिकों और प्रबंधन के बीच भ्रम और असंतोष पैदा करने की उनकी नीतियों को यहां इजाजत नहीं दी जाएगी.'' सोनू गुर्जर के नेतृत्व वाला एमएसईयू अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस से संबद्ध होने की मांग कर रहा है. इसके नेता गुरुदास दासगुप्ता हैं और यह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) से संबद्ध है.

लेकिन हरियाणा सरकार को यह समझने की जरूरत है कि मारुति में हुई हड़ताल औद्योगिक असंतोष का एक नया तरीका है जो कव्वल एक राज्‍य या किसी एक राजनैतिक संगठन तक सीमित नहीं था. अब समय आ गया है कि राज्‍य और केंद्र सरकार भारत के श्रमिक बाजार और श्रम कानून की गंभीर और बुनियादी समस्याओं का निराकरण करें.

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