scorecardresearch

इंदिरा गोस्वामी: कलम को उद्धारक बनाया

असमिया की सुपरिचित कथाशिल्पी इंदिरा गोस्वामी पूर्वोत्तर में मामोनी रायसम गोस्वामी के नाम से भी मशर थीं. उन्होंने असमिया लोगों के अनकहे कष्टों और दुखों को अपने साहित्य के जरिए वाणी दी.

इंदिरा गोस्वामी
इंदिरा गोस्वामी
अपडेटेड 3 दिसंबर , 2011
इंदिरा गोस्वामी 
(1942-2011)

असमिया की सुपरिचित कथाशिल्पी इंदिरा गोस्वामी पूर्वोत्तर में मामोनी रायसम गोस्वामी के नाम से भी मशर थीं. उन्होंने असमिया लोगों के अनकहे कष्टों और दुखों को अपने साहित्य के जरिए वाणी दी. उनकी कृतियां कथावस्तु की विविधता और विशिष्ट अभिव्यक्ति कौशल के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने स्कूली जीवन से ही कहानी लेखन शुरू कर दिया था.

उनके शुरुआती कहानी संग्रह हैं चिनाकी मरम और कइना. बाद में हृदय एक नदीर नाम, निर्वाचित गल्प और प्रिय गल्प शीर्षकों से उनके कहानी संग्रह भी प्रकाशित-प्रशंसित हुए. गोस्वामी अपनी कहानियों में पाठकों को भावुकता की बजाए संवेदनशीलता से बांध लेती हैं. उनकी कृतियों के विस्तृत फलक में मनुष्य जीवन अपने वैविध्य और विलक्षणता के साथ मौजूद है. उनकी कहानियों में यथार्थ, सूक्ष्म अंतर्दृष्टि और गहरी काव्यात्मक संवेदना का संगम है.

यही तथ्य गोस्वामी के उपन्यासों के लिए भी सही है. उनका पहला उपन्यास था चिनाबार स्त्रोत. परवर्ती काल में उनके जो उपन्यास अपने उत्कृष्ट स्तर और मर्मस्पर्शी शैली के कारण बहुचर्चित हुए वे हैं नीलकंठ ब्रज, अहिरन, मामरे धारा तरोवाल, संस्कार, ईश्वर जख्मी जात्री, जेज आरू धूलि धूसरित पृष्ठ, दासरथीर खोज और छिन्नमस्ता. उनके उपन्यास दाताल हाथीर उने खोवा हावदा को क्लासिक का दर्जा हासिल हुआ.

गोस्वामी ने महज 27 साल की उम्र में आत्मकथा आधा लेखा दस्तावेज लिखी. इसने उन्हें प्रसिद्धि के शीर्ष पर ला बिठाया. इसका देश-विदेश की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ. उनकी यह आत्मकथा उस समय आई, जब वे नितांत अकेला अनुभव कर रही थीं. अक्तूबर 1965 में उनकी शादी हुई थी और 1967 में उनके पति माधवन रायसम अय्यंगार की जीप दुर्घटना में मौत हो गई. वैवाहिक जीवन का सुख महज डेढ़ साल ही मिल पाया. पति की मौत ने उन्हें गहरे अवसाद में डाल दिया. उन्होंने आत्महत्या की भी कोशिश की किंतु विफल रहीं. अवसाद का सामना करने के लिए उन्होंने स्वयं को लेखन में व्यस्त कर दिया और उसी से घातक अवसाद पर काबू पा सकीं.

साहित्य में उल्लेखनीय अवदान के लिए उन्हें साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ पुरस्कार समेत कई सम्मान मिले. पेशे से वे शिक्षक थीं. वे दिल्ली विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा विभाग में असमिया की प्रोफेसर रहीं. गोस्वामी ने असम के उग्रवादियों के अंतर्मन को समझा और केंद्र सरकार और उग्रवादियों के बीच शांतिवार्ता की मध्यस्थता भी की.

Advertisement
Advertisement