इस महीने 273 मेडिकल कॉलेजों में 32,000 नए चेहरे प्रवेश करेंगे. डॉक्टर बनने के इच्छुक लगभग 6 लाख लोगों के लिए अगले साल की दौड़ शुरू हो जाएगी. वे लोग एमबीबीएस प्रवेश की सत्रह परीक्षाओं के अजीबोगरीब वर्णमाला संबंधी झंझट से उलझ्ने के लिए तैयार हो जाएंगे. एआइआइएमएस, एआइपीएमटी. ईएमवीईटी, यूपीसीपीएमटी, एमएचटीसीईटी, एएफएमसी, जेआइपीएमईआर, पीएमईटी और न जाने क्या-क्या. वे लोग हिसाब लगाएंगे कि टॉप मेडिकल स्कूल कौन-से हैं. वे खंगालेंगे कि कृत्रिम परीक्षाओं का सर्वश्रेष्ठ मॉड्यूल कौन-से कोचिंग सेंटरों में है. और वे लोग चतुराई से पढ़ेंगे-मैकेनिक्स (सिर्फ भौतिकशास्त्र नहीं), जेनेटिक्स (सिर्फ जीवविज्ञान नहीं) और 'जीके' की खातिर बिजनेस अखबारों की एक दैनिक खुराक. अति-महत्वाकांक्षी 45,000 की निगाहें होंगी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की परीक्षा पर, हालांकि सिर्फ 77 ही उसमें जा सकेंगे.
इंडिया टुडे की बेस्ट मेडिकल स्कूल्स लीग टेबल में उनके लिए झटका देने वाली बात छिपी है. 14 साल के इतिहास में रैंकिंग्स में इतना बड़ा उलटफेर पहले कभी नहीं हुआ. पुराने समय से टॉपर-एम्स-अभी भी शिखर पर है. लेकिन उसके नीचे काफी फेरफार हुआ है. बड़े नाम वाले रैंकर्स अब नए दावेदारों को चाभियां सौंप रहे हैं.
आश्चर्यजनक ढंग से चली आंधी में, शीर्ष स्थानों पर दिल्ली ने कब्जा कर लिया है. मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज दो कदम उछलकर दूसरे स्थान पर आ गया है. इसके पीछे तेजी से पहुंचा है दिलशाद गार्डन स्थित यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज और गुरु तेगबहादुर अस्पताल, जो उससे महज 1.8 अंक पीछे हैं. उसने न सिर्फ लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज बल्कि दक्षिण के परंपरागत टॉपरों-वेल्लूर स्थित क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी), पुणे स्थित आर्म्ड फोर्सेस मेडिकल कॉलेज (एएफएमसी) और पुडुचेरी के जेआइपीएमईआर को पछाड़कर सबको हैरान कर दिया है.
बंगलुरू के सेंट जॉन्स मेडिकल कॉलेज जैसा प्रतिष्ठित कॉलेज भारी-भरकम 12 स्थान पीछे की तरफ लुढ़क गया है. कर्नाटक के कई अन्य मेडिकल कॉलेज भी रैंकिंग में फिसल गए हैं. राज्य का यह लचर प्रदर्शन शायद यहां के अधिकांश मेडिकल कॉलेजों में स्टाफ की कमी की वजह से है(जैसा कि इस साल कर्नाटक हाइकोर्ट में पेश रिपोर्ट से पता चलता है). इस साल पांच नवांगंतुक (और वापस लौटने वाले) भी हैं.
1997 में हमारे सर्वेक्षण की शुरुआत होने के समय से ही एम्स लगातार शीर्ष पर रहा है (2002 को छोड़कर, जब यह सीएमसी के हाथों शीर्ष स्थान से हाथ धो बैठा था). कोई संस्थान अपना नेतृत्व इतने लंबे समय तक बरकरार कैसे रखता है? निदेशक डॉ. आर.सी. डेका कहते हैं, ''हमारा एक सूत्रीय लक्ष्य है कि रचनात्मकता, बौद्धिक जीवट और पेशेवर दक्षता वाले ऐसे गतिशील नेतृत्व को विकसित किया जाए जो 21वीं सदी के हेल्थकेयर के लिहाज से उपयुक्त हो. एम्स अपने छात्रों को कहीं भी, चाहे वह ग्लोबल वर्कप्लेस हो, या भारत का नया कॉर्पोरेट हेल्थकेयर क्षेत्र, मुकाबले में उतर सकने वाला आत्मविश्वास और अनुभव देता है''
आंकड़े देखें: यहां सभी 629 सुपर स्पेशलिस्ट शिक्षक भारतीय चिकित्सा की अगली पीढ़ी तैयार करने के लिए साल भर में 36,000 घंटे खर्च करते हैं. क्लीनिकल अनुभव के लिए एमबीबीएस के छात्र 1,000 घंटे तक वरिष्ठों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं. हर हफ्ते छह घंटे तक वे 120 प्रयोगशालाओं में अपने हाथ गंदे करते हैं.
ये छात्र लाइब्रेरी में 71,827 किताबों, 568 डिजिटल डाटाबेस और 80,000 से ज्यादा पत्रिकाओं को अपने शिक्षकों के साथ रात-रात भर पढ़ते हैं और उनके शिक्षक भी देश भर में मेडिकल शोध का सबसे विशाल भंडार प्रकाशित करते हैं. औषधि विज्ञान विभाग के प्रमुख और एम्स के प्रवक्ता डॉ. वाइ.के. गुप्ता कहते हैं, ''2010 में फैकल्टी और वैज्ञानिकों ने 300 शोध परियोजनाओं में हिस्सा लिया, ऊंची प्रतिष्ठा वाली पत्रिकाओं में 1,559 शोधपत्रों के अलावा 245 पुस्तकें और मोनोग्राफ्स प्रकाशित किए.''
यहां एक मुश्किल डिग्री की पढ़ाई का मामूली सवाल नहीं है. एम्स की एक डिग्री दुनिया भर के दरवाजे खोल देती है. सब-डीन डॉ. राकेश यादव कहते हैं, ''पिछले साल हमारे 95 प्रतिशत छात्र स्नातकोत्तर कोर्सों के लिए योग्यता परीक्षा में सफल रहे.'' पिछले साल एम्स के 15 प्रतिशत छात्रों ने स्नातकोत्तर कोर्स यहीं से किया, जबकि 35 प्रतिशत छात्र पीजीआइ, चंडीगढ़ चले गए. हाल में अपना एमबीबीएस पूरा करने वाले गौरव सारस्वत कहते हैं, ''बहुत सारे छात्र विदेश भी चले जाते हैं.''
यादव इससे सहमति जताते हैं, ''हर साल करीब 50 प्रतिशत छात्र अमेरिका और ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा के लिए या काम के लिए चले जाते हैं.'' 2009-10 में विदेशी प्लेसमेंट के लिए मिला अधिकतम वेतन 70,000 डॉलर था. भारतीय प्लेसमेंट के लिए मिला अधिकतम वेतन 14 लाख रु. था. जल्दी ही रेडियोलॉजी में गैर-शैक्षणिक जूनियर रेजीडेंसी शुरू करने वाले सारस्वत शायद इसी फलते-फूलते क्षेत्र में बने रहें. वे कहते हैं, ''मैं सिविल सर्विसेज भी चुन सकता हूं.''
अवसरों की यह कतार बाजार विश्लेषकों को हैरान नहीं करती. राजस्थान के कोटा में दो दशक से प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए छात्रों को कोचिंग दे रहे कॅरियर प्वाइंट इन्फोसिस्टम्स के प्रबंध निदेशक और सीईओ प्रमोद माहेश्वरी कहते हैं, ''वित्त व्यवस्था, स्टाफ, छात्रों, मूल्यों, प्रतिष्ठा, शिक्षण, शोध और क्लीनिकल देखभाल के लिहाज से एम्स हमेशा से सर्वाधिक प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थान रहा है. अब जब पूरे देश में हेल्थकेयर क्षेत्र में उछाल आई हुई है, तो अभिभावक और छात्र दोनों मेडिकल डिग्री को एमबीए से ज्यादा मलाईदार मान रहे हैं.''
एक निजी अस्पताल में किसी नए एमबीबीएस छात्र को लगभग 30,000 रु. महीना मिल जाते हैं, लेकिन स्नातकोत्तर डिग्री और संबंधित अनुभव भी हो तो 5-7 लाख रु. तक मिल सकते हैं. माहेश्वरी आगे कहते हैं, ''हर नजरिए से उत्कृष्टता भरी प्रतिष्ठा के चलते एम्स एक 'ब्रांड' बन चुका है.'' भारी-भरकम कॉर्पोरेट अस्पतालों के लिए प्रतिभाओं को जुटाना और सहेज कर रखना एक बड़ी चुनौती है. ''और एम्स से ब्रांड का जुड़ाव बहुत गहरा है.''
और आगे से आगे बने रहने के लिए एम्स ने भी पिछले साल पूरी ताकत झेंक दी. पल्मोनरी (पूरे स्नातकोत्तर कोर्स सहित), जेनेटिक, जेरीऐट्रिक, प्रत्यारोपण और आपातकालिक चिकित्सा में एकदम नई इकाइयां शुरू की जा रही हैं. एक राष्ट्रीय कैंसर केंद्र शुरू होने वाला है. डेका गर्व से कहते हैं, ''संक्रामक रोगों, मेटाबोलिक डिस्आर्डर्स और मोलेक्यूलर मेडिसिन में बिल्कुल अगली कतार का शोध करने के अलावा हमारे चिकित्सकों ने इलाज करने की नई पद्धतियां और नई तरीके से शल्य चिकित्सा शुरू की है.''
इसकी बड़ी मिसाल है-रोबोटिक सर्जरी, जो आधुनिक सर्जरी में क्रांति लाने वाली अहम नई तकनीकों में से है. इस वर्ष, एम्स ने हरेक विभाग में रोबोटिक सर्जरी अपना ली है. यह 2008 से अब तक का छोटा-सा सफर है. तब सर्जरी के प्रोफव्सर डॉ. अरविंद कुमार ने संस्थान में भारत की पहली रोबोटिक सर्जरी की थी. 1980 के दशक में एक छात्र के तौर पर उस समय के बिल्कुल प्राथमिक और साधारण ऑपरेशन थियेटर को याद करने वाला यह व्यक्ति कहता है, ''ऑपरेशन थियेटर में नए से नए तरीके हमें आगे बने रहने में मदद कर रहे हैं.''
अरविंद कुमार कहते हैं, ''उस जमाने में ऑपरेटिंग टेबल को जैक की मदद से ऊपर नीचे किया जाता था. आज हर चीज बटन छूते ही चलने लगती है.'' गुप्ता उनकी बात को आगे बढ़ाते हैं, ''एम्स को लेकर हमारी दृष्टि सिर्फ शिक्षण, रोगी की देखभाल और शोध में उत्कृष्टता नहीं है. इसे विश्व भर में शीर्ष रैंकिंग पाने वाला मेडिकल स्कूल भी बनना होगा.''
अगर एम्स स्वास्थ्य देखभाल करने के नए परिदृश्य से तालमेल बैठाने की तैयारी कर रहा है, तो उसके छात्रों और डॉक्टरों को मलाईदार से ज्यादा मलाईदार स्थानों पर जाने का विकल्प भी मिल रहा है. एम्स के डॉक्टरों का निजी क्षेत्र को पलायन एक चुनौती भरी सचाई बन चुकी है. लेकिन डेका इसका सकारत्मक पक्ष ही देखना पसंद करते हैं.
उनका कहना है, ''इससे एम्स की प्रणाली की ताकत का ही पता चलता है. लोग जहां कहीं भी जाएं, वहां वे कामयाबी से प्रतिस्पर्धा करने के लिए जाते हैं. ऐसा इसी वजह से संभव हो पाता है क्योंकि उनकी शिक्षा-दीक्षा यहां हुई है.'' एम्स में डॉ. बी.आर. आंबेडकर कैंसर हॉस्पिटल के प्रमुख डॉ. जी.के. रथ मिसाल देते हैं, ''अगर आप दूध उबालेंगे तो मलाई मिलेगी, दोबारा उबाल दें तो दोबारा मलाई मिल जाएगी.''
जिन लोगों ने अपनी कला और हुनर एम्स में सीखा है, उनके लिए शिक्षक सबसे बेशकीमती संसाधन हैं. डॉ. शांडिल्य सेनगुप्ता आज भी उस दिन को याद करते हैं, जब 1990 के दशक में वे एक छात्र के तौर पर इस भव्य दरवाजे से भीतर आए थे. यह वह जगह थी, जहां कई ऐसे डॉक्टर हुआ करते थे, जो अंतरराष्ट्रीय समितियों का नेतृत्व करते थे और जिनके नाम पर रोगों के नाम रखे गए थे. आज, अमेरिका में हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में मेडिसिन विभाग के असिस्टेंट प्रोफव्सर होने के बाद भी एम्स के उनके शिक्षक ही उनके आदर्श पुरुष बने हुए हैं. वे कहते हैं,''उन लोगों ने हमें सपने देखने की चुनौती दी थी, सितारों को अपना लक्ष्य बनाने और फिर हम चाहे जो करें-पढ़ें-लिखें, खेलें या राजनीति करें-उसमें अपना पूरा जोर लगा देने की चुनौती दी थी.'' यह उत्कृष्टता का वह सर्वश्रेष्ठ सर्टिफिकेट है, जिसे पाने का सपना कोई संस्थान देख सकता है.
सेहत की कहानी
1. 50 प्रतिशत एमबीबीएस ग्रेजुएट एम्स, पीजीआइएमईआर, सीएमसी, जिपमेर में पीजी कोर्स करते हैं .
2. एम्स के 2010 के बैच के लिए विदेशी प्लेसमेंट का अधिकतम वेतन 70,000 डॉलर था.
3. घरेलू प्लेसमेंट के लिए अधिकतम वेतन 14 लाख रु. था.
पुस्तकों से इतर
पढ़ाकुओं का खानाः सिर्फ एम्स में, रात-रात भर पढ़ने वाले इन भूखे वैज्ञानिकों के लिए मेस रात के तीन बजे तक खुली रहती है.
आत्मा का संगीतः कला का सहारा लेने वाले उभरते डॉक्टरों के लिए हॉस्टल 5 में साउंडप्रूफ सो-कल्ट रूम में हाइ-फाइ ड्रम सेट्स हैं, गिटार, एंप्लिफायर्स और की-बोर्ड हैं.
25 आला मेडिकल कॉलेज
1.अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली
2. मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज (एमएएमसी), दिल्ली
3. यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेस ऐंड जीटीबी हॉस्पिटल, दिल्ली
4. क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी), वेल्लूर
5. आर्म्ड फोर्सेस मेडिकल कॉलेज (एएफएमसी), पुणे
6. लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज (एलएचएमसी), दिल्ली
7. जेआइपीएमईआर कॉलेज, पुडुचेरी
8. बी.जे. मेडिकल कॉलेज, अहमदाबाद
9. ग्रांट मेडिकल कॉलेज, मुंबई
10. कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज (केएमसी), मणिपाल
11. सेठ जी.एस. मेडिकल कॉलेज, मुंबई
12. वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज ऐंड सफदरजंग हॉस्पिटल, दिल्ली
13. मेडिकल कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल, कोलकाता
14. किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज, सीएमएम मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ
15. इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस, वाराणसी
16. बंगलुरू मेडिकल कॉलेज (बीएमसी), बंगलुरू
17. क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी), लुधियाना
18. मद्रास मेडिकल कॉलेज, चेन्नै
19. बी.जे. मेडिकल कॉलेज ऐंड ससून हॉस्पिटल, पुणे
20.सेंट जॉन्स मेडिकल कॉलेज, बंगलुरू
21. इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन ऐंड रिसर्च, कोलकाता
22. फैकल्टी ऑफ मेडिसिन, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़
23. गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल, गुवाहाटी
24. उस्मानिया मेडिकल कॉलेज, हैदराबाद
25. स्टैनली मेडिकल कॉलेज (एसएमसी), चेन्नै
राष्ट्रीय रैंकिंग अवधारणात्मक और तथ्यात्मक अंकों के आधार पर तैयार की गई है. जिन कॉलेजों ने तथ्यात्मक सूचना नहीं दी,उन्हें इसमें शामिल नहीं किया गया. फैकल्टी पर विचार नहीं किया.