भारतीय रेल नए वित्त वर्ष में कार्बन क्रेडिट प्वाइंट बेचेगी. सभी जोनल रेलवे से कहा गया है कि अभी तक जमा कार्बन क्रेडिट प्वाइंट का ब्यौरा रेल मंत्रालय दें. रेलवे के पास अभी तक लगभग
1 लाख टन कार्बन क्रेडिट प्वाइंट जमा है.
रेलवे अधिकारियों से मिली जानकारी के मुताबिक 10 हजार टन में लगभग 85 लाख कार्बन क्रेडिट प्वाइंट होते हैं. एक प्वाइंट की अंतराराष्ट्रीय मार्केट वैल्यू भारतीय मूल्य में 7.86 रु. है. रेलवे
अपने कार्बन क्रेडिट को दिल्ली मेट्रो को बेचने की तैयारी में है. चूंकि मेट्रो खुद कार्बन क्रेडिट प्वाइंट जमा कर उसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचने का अनुभव रखता है इसलिए रेलवे अपना प्वाइंट
मेट्रो को बेचेगी.
गौरतलब है कि प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल के मुताबिक विकासशील देशों को यह सुविधा है कि वह कार्बन उत्सर्जन में कमी कर क्रेडिट प्वाइंट जमा कर सकता है.
इस प्वाइंट को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचा जा सकता है. प्रोटोकॉल के मुताबिक हर देश को सालाना टारगेट है कि वह अपने देश में कार्बन उत्सर्जन कम करे. जो देश इस टारगेट को पूरा नहीं
कर पाते हैं वह दूसरे देश की ओर से जमा किए गए कार्बन क्रेडिट प्वाइंट को खरीद सकते हैं.
रेलवे अधिकारियों का कहना है कि पिछले दस साल में भारतीय रेल ने कई ऐसे उपाय किए हैं जिससे कि कार्बन उत्सर्जन में काफी कमी आयी है. इसमें रोरो सेवा (रोल ऑन रोल ऑफ), सोलर
एनर्जी, डीजल में जटरोफा का मिश्रण करना प्रमुख है. रेलवे का हर जोन इस काम में लगा है. पिछले दस वर्षों में 1 लाख टन कार्बन क्रेडिट प्वाइंट जमा हो चुके हैं.
क्रेडिट प्वाइंट ज्यादा से ज्यादा जमा हो इसके लिए नई तकनीक लागू की जा रही है. फिलहाल यह कोशिश हो रही है कि ट्रेनों से लगने वाले ब्रेक से ऊर्जा का उत्पादन हो. जैसा कि दिल्ली मेट्रो में हो रहा है. दिल्ली
मेट्रो अपनी ऊर्जा खपत का 30 फीसदी हिस्सा ब्रेक लगने से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा से पूरी करता है. रेलवे प्रवक्ता अनिल कुमार सक्सेना का कहना है कि कार्बन क्रेडिट प्वाइंट एकत्र करने के
लिए सभी रेलवे जोन ने ऊपाय किए हैं जिससे काफी अच्छे परिणाम आ रहे हैं. निकट भविष्य में रेलवे कार्बन क्रेडिट प्वाइंट जमा करने का एक बड़ा हिस्सेदार बनेगा.
क्या है रिजनरेटिव ब्रेकिंग सिस्टमः इस सिस्टम के तहत ब्रेक लगने से पैदा होने वाली गतिक ऊर्जा से कन्वर्टर-इन्वर्टर मशीन चलनी शुरू हो जाएगी. यह मशीन इलेक्ट्रिकसिटी जनरेटर की तरह
काम करेगी. यह रेल की पटरियों यानी ओवर डेट इलेक्ट्रिकसिटी लाइन्स को इलेक्ट्रिकल एनर्जी की आपूर्ति करेगी. यह एनर्जी ट्रेन को एक्सिलिरेट करेगी. यानी उसे गति प्रदान करेगी. इस तरह
से सिस्टम में 30 फीसदी ऊर्जा की बचत होगी.

