
हिंद महासागर के बीचो-बीच एक ऐसा टापू, जिसकी कहानी फिल्मी लगती है लेकिन पूरी तरह सच्ची है. चारों तरफ नीले पानी की लहरों से घिरे इस टापू की कहानी में है ढेर सारा खून, जो कब्जे से लेकर इस्तेमाल तक बहता ही रहा है. एक आइलैंड की खूबसूरती के पीछे ऐसी हैरतअंगेज़ कहानी भी हो सकती है, सुनकर भी भरोसा नहीं होगा.
इसकी कहानी शुरू होती है सैकड़ों साल पहले, जब पुर्तगाली नाविकों ने इसे खोजा था और आज यह दुनिया की सबसे शक्तिशाली सैन्य बेसों में से एक बन चुका है. 21 जून 2025 को ईरान पर हुए हमले में इस टापू का नाम फिर चर्चा में आया, जब बी-2 स्टेल्थ बॉम्बर्स ने यहां से उड़ान भरी. लेकिन इसकी कहानी सिर्फ जंग तक सीमित नहीं है, इसमें इंसानी दर्द, राजनीति की चालें, और एक खोए हुए समाज की तलाश भी शामिल है.
एक अनजान टापू की खोज
साल था 1512, जब पुर्तगाली नाविक पेड्रो मस्करेनहास अपने जहाज से हिंद महासागर में भटक रहे थे. उनकी नजर पड़ी एक छोटे से टापू पर जो चारों तरफ से मूंगा चट्टानों और नीले पानी से घिरा था. उन्होंने इसे अपने गुरु ‘गार्सिया डी नारनोह’ के नाम पर "डिएगो गार्सिया" नाम दिया.
उस वक्त यह टापू बिल्कुल सुनसान था सिर्फ पक्षियों और समुद्री जीवों का बसेरा था. कुछ साल बाद फ्रांसीसी इसे अपने कब्जे में ले आए और मॉरीशस से इसे संभालने लगे. 18वीं सदी में यूरोपीय लोग यहां आकर नारियल के पेड़ लगाने लगे और धीरे-धीरे एक छोटी सी आबादी बस गई. ये लोग अफ्रीका और मेडागास्कर से लाए गए गुलामों के वंशज थे जिन्होंने अपनी संस्कृति, भाषा, और संगीत बनाया. लेकिन ये खुशहाल जिंदगी ज्यादा दिन नहीं चली.
ब्रिटेन ने चली चाल
साल 1814 में नेपोलियन युद्धों के बाद मॉरीशस ब्रिटेन का हिस्सा बन गया और डिएगो गार्सिया भी इसके साथ चला गया. लेकिन असली खेल तब शुरू हुआ जब कोल्ड वॉर की आहट सुनाई दी. 1960 के दशक में अमेरिका और ब्रिटेन ने सोचा कि इस टापू को सैन्य बेस के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. यह जगह इतनी दूर थी कि दुश्मन की नजर भी नहीं पड़ती और यहां की आबादी भी बहुत कम थी- लगभग 1,500 लोग. 1965 में ब्रिटेन ने मॉरीशस से चागोस आर्किलागो ( डिएगो गार्सिया इसी चागोस द्वीपसमूह का एक द्वीप है) को 30 लाख पाउंड में खरीद लिया और इसे ब्रिटिश इंडियन ओशन टेरिटरी (BIOT) बनाया. लेकिन यह सौदा इतना आसान नहीं था जितना लगता है.

चागोस लोगों की जबरन बेदखली
ये कहानी यहां से दर्दनाक हो जाती है. ब्रिटेन और अमेरिका ने फैसला किया कि सैन्य बेस बनाने के लिए टापू को खाली करना होगा. 1970 के दशक में चागोस लोगों की (टापू पर रहने वाले आदिवासियों को चागोस कहा जाता था) जिंदगी उजड़ गई. इन लोगों को उनके घरों से निकालकर मालवाहक जहाजों में ठूंसा गया और मॉरीशस और सेशेल्स भेज दिया गया.
कई परिवारों को बिना तैयारी के बीच समुद्र में छोटी नावों पर छोड़ दिया गया जहां से उन्हें नई जिंदगी शुरू करनी पड़ी. एक रिपोर्ट में एक बुजुर्ग महिला ने बाद में याद करते हुए कहा, "हमने अपने कुत्तों को भी पीछे छोड़ दिया था और फिर हमें अचानक बताया गया कि हम कभी वापस नहीं आ सकते" ब्रिटेन ने 1974 में मॉरीशस को 6.5 लाख पाउंड दिए ताकि इन लोगों को बसाया जा सके लेकिन यह पैसा उनके जख्म भरने के लिए काफी नहीं था. कई लोग झुग्गियों में रहने को मजबूर हो गए और उनकी ‘चागोस’ संस्कृति धीरे-धीरे मिटती चली गई.
दुनिया का सबसे खतरनाक मिलिट्री बेस
‘चागोस’ लोगों के चले जाने के बाद डिएगो गार्सिया पर सैन्य गतिविधियां तेज हो गईं. 1971 में अमेरिकी नौसेना के सी-बिज (Naval Mobile Construction Battalions) ने यहां काम शुरू किया. उन्होंने हवाई अड्डा, गहरे पानी का बंदरगाह, और फ्यूल टैंक बनाए. 1977 में नेवल सपोर्ट फैसिलिटी डिएगो गार्सिया की स्थापना हुई और ये अमेरिका का एक प्रमुख मिलिट्री बेस बन गया. 1980 के दशक में सोवियत संघ के बढ़ते प्रभाव और ईरान संकट के बाद अमेरिका ने यहां 4 अरब डॉलर का निवेश किया. दो 12,000 फीट लंबे रनवे, बॉम्बर जेट पार्किंग, और हजारों सैनिकों के लिए रिहायशी सुविधाएं बनाई गईं. 1990 के गल्फ वॉर में बी-52 बॉम्बर्स ने पहली बार यहां से उड़ान भरी और इराक पर 8 लाख टन बम गिराए. 2001 में 9/11 हमले के बाद अफगानिस्तान पर हमले भी इसी बेस से शुरू हुए.
आइलैंड की पॉलिटिक्स खतरनाक है
डिएगो गार्सिया की कहानी में वर्ल्ड पॉलिटिक्स का भी दिलचस्प रोल है. 2019 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने फैसला दिया कि ब्रिटेन का चागोस आर्किपेलागो (अब डिएगो गार्सिया) पर कब्जा गैरकानूनी है, और इसे मॉरीशस को लौटाना चाहिए.
यूएन ने भी ब्रिटेन से 2019 तक टापू खाली करने को कहा लेकिन ब्रिटेन ने इस फैसले को नजरअंदाज कर दिया. 2024 में नए समझौते की घोषणा हुई जिसमें मॉरीशस को 10.1 करोड़ पाउंड सालाना मिलेंगे. लेकिन चागोस लोगों की वापसी का सवाल अभी भी अनसुलझा है. ब्रिटेन का कहना है कि सैन्य जरूरतें खत्म होने तक कोई वापसी नहीं होगी जबकि चागोस लोग अपने घर लौटने की उम्मीद में हैं.

और फिर हुआ ईरान पर हमला
अब बात करते हैं 21 जून 2025 की. "ऑपरेशन मिडनाइट हैमर" के तहत अमेरिकी बी-2 बॉम्बर्स ने इसी बेस से ईरान के फोर्डो न्यूक्लियर साइट पर हमला बोला. ये मिशन 37 घंटे तक चला और डिएगो गार्सिया से उड़ान भरने वाले इन विमानों ने न्यूक्लियर फेसिलिटी वाले बंकर्स को तबाह कर दिया. लेकिन इस बार कहानी में एक नया मोड़ आया. मॉरीशस के साथ 22 मई 2025 को हुए समझौते के बाद टापू का मालिकाना हक़ तो मॉरीशस को सौंप दिया गया, लेकिन ब्रिटेन और अमेरिका को 99 साल तक सैन्य बेस चलाने का अधिकार भी मिला. कुछ खबरों में कहा गया कि इस बार इसी बेस से थोड़ी दूर पर गुआम बेस को प्राथमिकता दी गई क्योंकि डिएगो गार्सिया की गोपनीयता पर सवाल उठ रहे थे. कुल मिलाकर इस रहस्यमयी टापू की भूमिका ने दुनिया भर को चौंका तो दिया ही है.

सिर्फ गोला बारूद ही नहीं है यहां
इस टापू की एक और खूबसूरत लेकिन अनदेखी कहानी है. वो है इसका कुदरती खजाना. एक रिपोर्ट बताती है कि डिएगो गार्सिया के चारों तरफ 700 से ज्यादा समुद्री प्रजातियां हैं, और इसका मूंगा चट्टान इकोसिस्टम दुनिया के सबसे स्वस्थ इकोसिस्टम्स में से एक है. चाहे इंसानों को यहां से खदेड़ दिया गया हो लेकिन ब्रिटिश कानून यहां के समुद्री जीवों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त सख्त है. हालांकि चागोस कंजर्वेशन ट्रस्ट चाहता है कि पूरे टापू को संरक्षित क्षेत्र बनाया जाए, ताकि यहां एक वैज्ञानिक केंद्र बन सके. लेकिन बरसों से लगातार हो रहे मिलिट्री मूवमेंट की वजह से ट्रस्ट का ये सपना अभी दूर है.
धीरे-धीरे इसका रहस्य खो रहा है?
ईरान हमलों के बाद जिस तरह इस आइलैंड पर दुनिया भर की नज़र पड़ी है. इससे एक नुक्सान ब्रिटिश और अमरीकी सेना को ये हुआ कि इस आइलैंड की यूएसपी इसकी ‘सीक्रेसी’ अब धुंधली हो रही है. इस छोटे से आइलैंड का इस्तेमाल ही यही है कि बिना दुश्मन की नज़र में आए अपने मिलिट्री मूवमेंट और खतरनाक मिशन चालू रखे जाएं. लेकिन अब दुनिया भर के मिलिट्री सैटेलाइट इस आइलैंड के पल-पल की ख़बर रख रहे हैं. गूगल मैप्स समेत इंटरनेट पर मौजूद तमाम मुफ्त सैटेलाइट इमेजरी प्लेटफ़ॉर्म तो इस आइलैंड की तस्वीर ‘लो रेजोल्यूशन’ और कई बार ब्लर करके दिखाते हैं, लेकिन यही बात दुनिया की कमोबेश हर सेना के पास मौजूद मिलिट्री सैटेलाइट इमेजरी के लिए नहीं कही जा सकती.
रूस, चीन और फ्रांस इस आइलैंड को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ब्रिटेन और अमेरिका को घेरने की तैयारी कर रहे हैं. वजह है इस आइलैंड की लोकेशन. स्ट्रेटेजी के लिहाज से इस आइलैंड की लोकेशन इतनी खतरनाक है कि हर देश इसे अपने कब्ज़े में या ‘किसी के कब्ज़े में नहीं और आज़ाद’ आइलैंड के तौर पर इसकी पैरोकारी करता है.
हालांकि मॉरीशस के साथ हुआ हालिया समझौता इसे विवादास्पद बना रहा है, और कुछ लोग मानते हैं कि गुआम जैसे बेस अब ज्यादा सुरक्षित हैं. फिलवक्त यहां 4,200 सैनिक और कर्मचारी रहते हैं, और सैटेलाइट के जरिए उनकी हर जरूरत पूरी होती है.
एक आइलैंड, दो चेहरे
डिएगो गार्सिया की कहानी दो चेहरों वाली है. एक तरफ ये सैन्य शक्ति और तकनीक का जबरदस्त प्रतीक है, जहां से दुनिया की सबसे बड़ी जंगें लड़ी गईं. दूसरी तरफ ये चागोस लोगों के दर्द और खोए हुए घर की याद दिलाता है. ये टापू भविष्य में शांति की राह दिखाएगा या जंग का गवाह बनेगा ये आने वाला वक्त बताएगा. लेकिन एक बात पक्की है कि इसकी कहानी लंबे समय तक वॉर हिस्ट्री में याद की जाती रहेगी.