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''आइबी ने गढ़ा है इंडियन मुजाहिदीन''

डॉ. शाहिद बदर फलाही पेशे से चिकित्सक हैं और 27 सितंबर, 2001 को स्टुडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर प्रतिबंध लगने तक सिमी के अध्यक्ष थे.

डॉ. शाहिद बदर फलाही
डॉ. शाहिद बदर फलाही
अपडेटेड 21 सितंबर , 2011

डॉ. शाहिद बदर फलाही पेशे से चिकित्सक हैं और 27 सितंबर, 2001 को स्टुडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर प्रतिबंध लगने तक सिमी के अध्यक्ष थे. सिमी पर प्रतिबंध के तुरंत बाद उन्हें आतंकी सरगना बताते हुए गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर कुल आठ मामले दर्ज किए गए. इनमें से चार मामलों में बरी हो चुके फलाही को अगस्त 2004 में जेल से रिहा कर दिया गया. सिमी और आइएम के रिश्तों को लेकर प्रमुख संवाददाता पीयूष बबेले ने उनसे बातचीत की.

क्या जिहाद सिमी की विचारधारा का अभिन्न हिस्सा है? क्या आपको भारत के कानून और संविधान पर भरोसा है.
सिमी की मूल अवधारणा है -''छात्रों का संगठन, छात्रों के द्वारा, समाज सेवा के लिए.'' प्रतिबंध लगने तक सिमी के देश भर में 400 अंसार (पूर्णकालिक सदस्य) और 20,000 इसवान (अस्थायी सदस्य) थे. जिहाद सिमी की विचारधारा का अभिन्न हिस्सा है. लेकिन जिहाद का मतलब वह नहीं है जो ऑक्सफोर्ड का शब्दकोश और अमेरिकी एजेंसियां थोपती है. जिहाद का मतलब, जमीन से बुराई को खत्म करने के लिए अथक कोशिश है. रही बात संविधान पर भरोसे की तो हम आज तक सिमी पर लगाए गए चारों प्रतिबंधों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मामला लड़ रहे हैं. कानूनी लड़ाई साबित करती है कि हमें संविधान पर भरोसा है.

लेकिन लगातार आरोप लग रहे हैं कि प्रतिबंध के बाद सिमी के लोगों ने आइएम बनाया. आप कैसे दावा कर रहे हैं कि सिमी सिर्फ छात्र संगठन था.
आप बताइए कि इंडियन मुजाहिदीन कौन है? इसका सद्र कौन है और कहां इसका मुख्यालय है? इस पर लगे प्रतिबंध को अदालत में किसने चुनौती दी? हर संगठन का ढांचा होता है, लेकिन आइएम के बारे में थ्योरी के अलावा कुछ सामने नहीं आया. दरअसल आइएम और कुछ नहीं आइबी (इंटेलिजेंस ब्यूरो) की क्रिएशन है. आइबी लोगों के दिमाग में दो और दो पांच का तर्क भरना चाहती है, जो बात लोगों के गले नहीं उतरती और इसीलए आइएम की कोई शक्ल सामने नहीं आ पा रही.

दिल्ली हाइकोर्ट पर हमले के बाद भी आइएम के नाम से मेल आया है. ऐसे में आप आइएम को कैसे नकार सकते हैं.
दिल्ली हाइकोर्ट या इससे पहले हुए सभी आतंकवादी हमलों की मैं कड़े से कड़े शब्दों में निंदा करता हूं. इन हमलों के गुनहगारों को कड़ी सजा दी जाए. जहां तक सिमी पर आरोप का सवाल है तो हमारे बहुत से लोग जेल में है और पुलिस उलटा टांग के उनसे सारी जानकारी उगलवा सकती है. लेकिन लंबे समय से जेल में बंद होने के बावजूद वहां से कुछ नहीं निकल रहा है. हमारे एक साथी अबु बशर काशमी हैं, बेचारे गरीब आदमी हैं. लेकिन उन्हें जुलाई 2008 के अहमदाबाद बम धमाकों का मास्टर माइंड बताकर गिरफ्तार कर लिया गया. जब तक वो हमारे साथ रहे, हम उन्हें हाफ माइंड ही समझ्ते थे, लेकिन गिरफ्तारी के बाद वे मास्टर माइंड हो गए. ऐसे तमाम मामले आप को मिल जाएंगे. और धमाकों की जांच करनी है तो हिंदू कट्टरपंथी संगठनों पर भी नजर रखनी चाहिए. ऐसे मामलों में फरार लोगों की गिरफ्तारी हो.

आपका इशारा है कि आतंकवाद की जांच में धार्मिक पक्षपात हो रहा है?
मैं सिर्फ इतना कह रहा हूं कि स्वतंत्र दिमाग से जांच हो. कानून अपनी जगह है लेकिन राजनैतिक पार्टियों की मंशा साफ नहीं है. आज के हालात में कांग्रेस और आरएसएस में हम कोई फर्क नहीं पाते. दोनों मुसलमानों के खिलाफ हैं. लेकिन आम हिंदू ऐसा नहीं है. आजमगढ़ और मनचोभा गांव के मेरे क्लीनिक पर आज भी हर जाति-धर्म के मरीज आते हैं. आम आदमी को सच और झूठ की पहचान है.

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