पिछले महीने चीन के साथ तनाव बढ़ने के बाद भारतीय सेना ने ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) से अत्यंत ठंडे मौसम (ईसीसी) में पहने जाने वाले कपड़ों की डिलिवरी तेज करने को कहा है. सेना चाहती है कि ओएफबी कानपुर में बने तीन परतों वाले ईसीसी 80,000 जोड़ी कपड़ों की डिलिवरी जल्द से जल्द करे. हरेक वस्त्र शून्य से 50 डिग्री नीचे के तापमान और 40 किलोमीटर प्रति घंटे से चलने वाली हवाओं के बीच सैनिकों को बचाने के लिए डिजाइन किया गया है. ये इस बात संकेत है कि सेना मानकर चल रही है कि लद्दाख सेक्टर में तैनाती लंबे समय तक रह सकती है.
सेना ने जून में लेह में तैनात 14 कॉर्प्स के तहत तैनात मौजूदा दो डिविजनों के अलावा दो और इन्फेंट्री डिविजन (करीब 30,000 सैनिक) लद्दाख सेक्टर में सुरक्षा बढ़ाने के लिहाज से तैनात की हैं. इनमें से एक डिविजन दूसरे चीन यानी पाकिस्तान से भी मुखातिब है. वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को बदलने की चीनी सेना (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी या पीएलए) की सबसे बड़ी कोशिश से निपटने में सेना की तीन से ज्यादा तैनात डिविजनों को एयरफोर्स के हथियारों से लैस अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टरों, एसयू-30-जेट और सी-17 हैवी लिफ्टर्स का साथ मिल रहा है.
इस साल मई में पीएलए ने एक सैन्य अभ्यास को एलएसी के साथ दो डिविजनों की पूर्ण तैनाती में बदल लिया. इसके बाद चीनी सेना एलएसी में बदलाव की साजिश के तहत घुसपैठ में लिप्त हो गई और वहां तैनात सैनिकों ने भारतीय सेना के घुसपैठ रोकने के प्रयासों को भी रोकने की चेष्टा की. 15 जून को लद्दाख की गलवान घाटी में आमने-सामने की भीषण गुत्थमगुत्था लड़ाई में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए जबकि नामालूम संख्या में चीनी सैनिक मारे गए.
फिलहाल तनाव घटाने और सैनिकों को पीछे हटाने के लिए दोनों देशों के बीच वार्ता मंथर गति से चल रही है. इस बीच तीन दौर की बैठकें दोनों देशों के कमांडरों के बीच हो चुकी है. आखिरी बैठक 30 जून को हुई जो 12 घंटे चली थी. इसमें एलएसी के नजदीक टकराव के बिंदुओं पर तनाव घटाने और सैनिक हटाने का फैसला हुआ. लेकिन किसी भी हालत में यह प्रक्रिया महीनों तक चलना तय है क्योंकि ठंड तक तो सैनिक वहां तैनात ही रहेंगे.
14 कॉर्प्स ने वहां दोगुने सैनिकों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए पिछले महीने माल-असबाब जुटाना शुरू कर दिया था. ठंड के लिए सामग्री जुटाने का काम जून में शुरू हो जाता है और चार महीनों में यानी ठंड की दस्तक होने से ठीक पहले सितंबर तक पूरा होता है. पेट्रोल केरोसिन, अनाज और दालें ट्रकों से लेह पहुंचाई जाती हैं ताकि ठंड में जब कश्मीर और लद्दाख जाने वाले प्रमुख दर्रे और रास्ते बर्फबारी की वजह से बंद हो जाते हैं तब इनका इस्तेमाल किया जा सके. एक सैनिक के लिए इतनी ऊंचाई पर ठंड के दौरान करीब 800 किलो सामग्री की जरूरत पड़ती है. ताजे फल और सब्जियां वायुसेना के बड़े मालाहक विमानों के जरिये चंडीगढ़ से यहां पहुंचाई जाती हैं. भोजन के अलावा वहां तैनात सैनिकों को ऊंचाई की क्रूर और जानलेवा ठंड से बचाने की भी जरूरत होती है. वहां तापमान शून्य से 40 डिग्री तक नीचे चला जाता है. पेंगोंग झील की तरह सिंधु, श्योक जैसी नदियां भी जम जाती हैं. पाइपों में भी पानी जम जाता है और पानी गरम करने से लेकर खाना बनाने तक हर काम के लिए केरोसिन की जरूरत होती है.
सेना का कहना है कि सप्लाई लाइन सीमित होने पर भी उसे ठंड का मौसम भी गुजार लेने की उम्मीद है. सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, “बीते वर्षों में हमने लद्दाख में बहुत सारी सुविधाएं तैयार कर ली हैं. इसलिए हमें यहां बस काम शुरू करने की जरूरत है. हमारे सैनिक बहुत साहसी और किसी भी माहौल में ढल जाने वाले हैं.”
भारत को छोड़कर किसी भी देश की सेना इतनी ऊंचाई पर सेना तैनात नहीं करती. ये सब ज्यादातर 1999 के करगिल युद्ध के बाद से शुरू हुआ जब करगिल में भारतीय सेना की ओर से खाली छोड़ी गई चौकियों पर पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठ कर कब्जा कर लिया. तब से सेना ने 150 किलोमीटर नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर सर्दी में भी निगरानी शुरू कर दी. एलओसी पर 12 हजार से 20 हजार फुट की ऊंचाई पर 200 चौकियां स्थापित की गई हैं.
आर्टिलरी के पूर्व महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पी. रविशंकर कहते हैं, “हमारे पास ऊंचाई पर तैनात करने लायक बेहतरीन तंत्र है. इसके लिए हमें साजोसामान की सप्लाई तीन गुना करने की जरूरत होगी. मुझे नहीं लगता कि इस मोर्चे पर चीनी हमारी बराबरी कर सकेंगे.”
पीएलए की तैनाती इसी ऊंचाई पर है लेकिन उनके पास तिब्बत के पठार पर होने का फायदा है. उनके लिए सड़कों और ट्रेन के जरिये मोर्चे पर सामग्री पहुंचाना कहीं आसान है. बहुत विरले मौके आए हैं जब पीएलए को अग्रिम मोर्चे पर तैनात किया गया हो. फिंगर 4 के पास पेंगोंग झील के पास फिंगर 4 में पीएलए के स्थायी निर्माण उसके लंबे समय तक वहां रहने की योजना का इशारा करते हैं. उनकी तैनाती के बाद उनकी वहां टिकने की क्षमता देखना दिलचस्प होगा. विश्लेषक कहते हैं कि शायद ये एक लंबा गेम होगा. करगिल जंग के बाद से भारत ने एलओसी के 150 किलोमीटर इलाके को कठोर तैनाती वाला क्षेत्र बना लिया. इसी तरह पीएलए के साथ मौजूदा तनातनी के बीच, चाहे तनाव घटाने के प्रयासों का कोई भी नतीजा हो, एलएसी पर तैनाती कठोर होना तय है. यानी ये अपने पूर्ण शाब्दिक अर्थ में शीत युद्ध होगा.
अनुवादः मनीष दीक्षित
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