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भारतीय वायुसेना: छलावा नजर आ रही हवाई ताकत

लगातार दुर्घटनाग्रस्त होते विमान, कलपुर्जों की तंगी और पायलट प्रशिक्षकों की गैरमौजूदगी से संकट में दिख रहा भारत का युद्धक बेड़ा.

अपडेटेड 30 अप्रैल , 2012

भारतीय वायुसेना इतनी सांसत में पहले कभी नहीं रही. इसके लड़ाकू बेड़े की ताकत युद्धक विमानों के 31 स्क्वाड्रनों (लगभग 600 विमान) तक सीमित रह गई है. जबकि मंजूरी के हिसाब से इसके पास 42 स्क्वाड्रन (लगभग 800 विमान) होने चाहिए. बहुउद्देश्यीय युद्धक विमान मिराज 2000 के ढाई स्क्वाड्रन, जिनमें 50 विमान आते हैं, 10 से भी कम दिनों के भीतर हुई दो दुर्घटनाओं के बाद पिछले करीब दो माह से जमीन पर हैं.

दुर्घटनाग्रस्त होने वाले दोनों विमानों के इंजन में खराबी बताई गई. रही-सही कसर बुनियादी चरण-1 प्रशिक्षण विमान की पिछले तीन साल से गैरमौजूदगी ने पूरी दी है. नए पायलटों के प्रशिक्षण में इस्तेमाल होने वाले विमानों की कमी के कारण समूचा पायलट प्रशिक्षण कार्यक्रम खटाई में पड़ गया है. वायुसेना मुख्यालय के एक उच्चस्तरीय सूत्र के मुताबिक, ''जांच जारी है. हम मिराज 2000 की दुर्घटनाओं के कारणों का पता करने की कोशिश कर रहे हैं.''

पश्चिमी हवाई कमान के पूर्व ऑफिसर कमांडिग-इन-चीफ एयर मार्शल (रिटायर्ड) ए.के. सिंह कहते हैं, ''मिराज विमान 5 मार्च के बाद करीब 50 से भी ज्‍यादा दिनों से जमीन पर हैं. 24 फरवरी और 5 मार्च को घटी दोनों दुर्घटनाएं इंजन में खराबी के कारण हुईं.'' जब तक दुर्घटना के कारणों का सही-सही पता नहीं चल जाता, तब तक केवल सीमित उड़ानें ही होंगी ताकि पायलटों के प्रशिक्षण पर पूरी तरह विराम न लगे.

दुर्घटनाग्रस्त होने वाले दोनों विमानों को अनुभवी पायलट उड़ा रहे थे. 24 फरवरी को एयर आफिसर (कार्मिक) एयर मार्शल अनिल चोपड़ा और मिराज स्क्वाड्रन के कमांडिंग ऑफिसर विंग कमांडर राम कुमार उड़ान पर थे. दोनों ने ग्वालियर से उड़ान भरी और जब वे भिंड के ऊपर थे तो 15,000 फुट की ऊंचाई पर उन्हें इंजन से लपटें उठती दिखाई दीं. संभालने के सारे प्रयास व्यर्थ होने पर दोनों पायलटों को मजबूरन विमान से कूदना पड़ा.

वायुसेना मुख्यालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने इस बात का खुलासा किया. इस दुर्घटना को 10 दिन भी नहीं बीते थे कि राजस्थान में उड़ान भर रहे एक मिराज 2000 के इंजन में आग लग गई. पायलट बड़ी मुश्किल से जान बचाने में कामयाब हुए लेकिन विमान नष्ट हो गया. वायुसेना प्रमुख एयर चीफ  मार्शल एन.ए.के. ब्रॉन उम्मीद जताते हैं कि समस्या का निदान होते ही यह बेड़ा सामान्य उड़ान भरने लगेगा.

जमीन पर खड़े ये विमान समस्या का महज एक पहलू हैं. वायुसेना की युद्धक स्क्वाड्रन शक्ति में कमी खतरे की सबसे बड़ी घंटी है. वायुसेना के भंडार में मौजूद लड़ाकू जेट विमानों में ज्‍यादातर 30 साल से ज्‍यादा पुराने हैं. सेंटर फॉर एयर पॉवर स्टडीज के निदेशक रिटायर्ड एयर कोमोडोर जसजीत सिंह आगाह करते हैं, ''हमारी इस गिरावट की तुलना पाकिस्तान वायुसेना के तीव्र आधुनिकीकरण से कीजिए. चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की वायुशक्ति तो और भी बड़ी चिंता का विषय है.

चीन के अग्रणी युद्धक विमानों में करीब 400 से ज्‍यादा एसयू-30 और एसयू-27 विमान  हैं. कारगिल युद्ध के बाद पाकिस्तान ने अपनी वायुसेना के आधुनिकीकरण और उड्डयन कार्यक्रम पर खास ध्यान दिया. उसके पास आज 115 अत्याधुनिक एफ-16 (ब्लॉक 50 और ब्लॉक 52) विमान हैं. भारत के लिए यह स्थिति बेहद चिंताजनक है.''

भारतीय वायुसेना में शामिल मिग-21 के ज्‍यादातर मॉडल करीब 40 साल पुराने हैं. इसी तरह हमारी वायुसेना के बेड़े में मौजूद मिग-27 और मिग-29 की उम्र भी 20 साल से ज्‍यादा है. अधिकतर मिग-21 और मिग-27 विमानों को 2017 तक हटाया जाना है. इनकी जगह मध्यम क्षमता के बहुउद्देश्यीय युद्धक विमान एसयू-30 एमकेआइ (हालांकि इस सौदे पर आखिरी मुहर लगनी बाकी है), हल्के लड़ाकू विमानों (भारतीय वायुसेना को अभी इनका इंतजार है) और पांचवीं पीढ़ी के युद्धक विमानों (फिलहाल कागजों में) को लेनी है.

भारतीय वायुसेना ने 2006 में अपनी घटती हवाई ताकत के मद्देनजर सरकार को चेताया था. तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एयर चीफ  मार्शल एस.पी. त्यागी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर आगाह किया था कि युद्धक विमानों को हासिल करने में वायुसेना की सुस्ती लड़ाकू क्षमता के मामले में हमें पाकिस्तान से बहुत पीछे कर देगी.

यहां तक कि फ्रांस में बने 16 रफेल्स विमानों के 18 अरब डॉलर (90,000 करोड़ रु.) के सौदे को अगर आज अंतिम मंजूरी दे दी जाए तो इसकी पहली खेप की उड़ान में कम से कम तीन साल का समय लग जाएगा. पश्चिमी हवाई कमान के पूर्व एयर ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ एयर मार्शल विनोद भाटिया कहते हैं, ''इस बीच मौजूदा विमानों में से कई बाहर होंगे और हमारी स्क्वाड्रन क्षमता में और गिरावट आएगी.1965 की तुलना में बेशक हमारे पास आज बेहतर विमान और क्षमता है, लेकिन जब तक हमारे पास लड़ाकू विमान नहीं हैं, यह निरर्थक है.''

नए पायलटों के बुनियादी स्टेज-1 प्रशिक्षण के लिए वायु सेना के पास 2009 से प्रशिक्षक विमान नहीं हैं. 31 जुलाई, 2009 को हुई एक दुघर्टना के बाद से, जिसमें दो बेहतरीन पायलटों को जान गंवानी पड़ी थी, 70 एचपीटी-32 विमानों का समूचा बेड़ा जमीन पर खड़ा है. हर वर्ष प्रशिक्षित होने वाले करीब 150 पायलटों में से सभी को अब सीधे स्टेज 2 प्रशिक्षण के लिए किरण प्रशिक्षण विमानों में भेजा जा रहा है. यहां भी दिक्कत है.

वायुसेना में शामिल किए गए 234 किरण स्टेज 2 प्रशिक्षण विमानों में से मात्र 81 ही चालू हालत में हैं. एयर कोमोडोर जसजीत सिंह चेतावनी देते हैं, ''नौसिखिया पायलटों को पिस्टन इंजन वाले धीमे विमानों में उड़ान भरने और उतरने जैसी बुनियादी बातों का प्रशिक्षण दिया जाता है. लेकिन एचपीटी-32 विमानों के उपलब्ध नहीं होने से ये पायलट सीधे किरण विमान में जा रहे हैं. इससे उनकी बुनियाद कमजोर हो रही है.''

रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने 19 मार्च को राज्‍यसभा में बयान दिया कि अब तक हुई दुर्घटनाओं में से 46 फीसदी इंसानी चूक (पायलटों) की वजह से हुईं.

विश्लेषक चेताते हैं कि अपर्याप्त प्रशिक्षण के कारण आने वाले कुछ वर्षों में यह आंकड़ा बढ़ सकता है. भारतीय वायुसेना को उम्मीद है कि जैसे ही 75 स्टेज 1 प्रशिक्षण विमानों का सौदा पक्का हो जाएगा, पायलटों को विदेश भेजा जाएगा.

भारतीय वायुसेना में पायलटों को तीन चरणों में प्रशिक्षण दिया जाता है-एचपीटी-32 (स्टेज-1), किरण (स्टेज-2) और हॉक एडवांस्ड जेट प्रशिक्षण (लड़ाकू पायलटों के लिए स्टेज-3). वायुसेना के 434 प्रशिक्षण विमानों और सिमुलेटरों में से मात्र 255 ही पायलट प्रशिक्षण के लिए उपलब्ध हैं. सूत्रों के मुताबिक, ''प्रशिक्षण विमानों की बेहद कमी है. 46 सिमुलेटरों में से केवल 16 चालू हालत में हैं. इसका नतीजा आधे-अधूरे प्रशिक्षण के रूप में दिखाई पड़ रहा है.''

वायुसेना पायलटों और विमानों के खोने का जोखिम अब और नहीं उठा सकती. उसे अपने ध्येय पर ध्यान देना होगा-शांतिकाल में आप जितना ज्‍यादा पसीना बहाओगे, युद्धकाल में उतना ही कम खून जाया करोगे.
- साथ में कार्तिकेय शर्मा

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