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मध्य प्रदेश में खूंखार हुआ खनन माफिया

खनन माफिया का खूनी खेल भारी कीमत वसूल रहा है. एक नौजवान-ईमानदार आइपीएस अफसर ने अपनी जान देकर इस गोरखधंधे को रोकने की कोशिश की, लेकिन नेता और नौकरशाही की शह पर यह धंधा जारी.

जबलपुर के पास अवैध खनन
जबलपुर के पास अवैध खनन
अपडेटेड 18 मार्च , 2012

हर साल तकरीबन 10,000 करोड़ रु. के खनिज और 450 करोड़ रु. के उपखनिजों का उत्पादन करने वाले मध्य प्रदेश की खदानों में कानून-व्यवस्था धसकती जा रही है. इसी धसकती कानून व्यवस्था का बदनुमा चेहरा मुरैना में 8 मार्च को अवैध खनन रोकने की कोशिश में भारतीय पुलिस सेवा (आइपीएस) के युवा अफसर नरेंद्र कुमार की हत्या के रूप में सामने आया. नौजवान अफसर की मौत और उनकी विधवा आइएएस मधुरानी तेवतिया के सरकारी व्यवस्था पर धिक्कार ने राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में भूचाल ला दिया.

चौतरफा दबाव के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मामले की सीबीआइ जांच की सिफारिश कर दी. इस मौत के ठीक एक दिन पहले पड़ोसी जिले भिंड में भी आला अफसरों के साथ खनन माफिया के गुर्गों ने मार-पीट की और दो दिन बाद पन्ना जिले में भी अधिकारियों के साथ बालू माफिया का यही सलूक रहा. साफ था कि एक आइपीएस की मौत से मध्य प्रदेश के खनन जगत में चल रहा जो खूनी खेल एक झटके में सतह पर आया है, उसकी जड़ें दूर तक फैली हैं.

विधानसभा के मानसून सत्र में पेश नियंत्रक और महालेखा परीक्षक रिपोर्ट भी इसी ओर इशारा करती है. इसके मुताबिक, 2005 से 2010 के दौरान खनन से जुड़ी गड़बड़ियों की वजह से प्रदेश सरकार को 6,906 मामलों में 1496.29 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ. पिछले छह साल में देश में अवैध खनन के सबसे ज्‍यादा 24,630 मामले मध्य प्रदेश में ही सामने आए. इनमें से 23,393 अदालतों में दर्ज हुए. राज्य के खनन क्षेत्र की बखिया उधेड़ते हुए यह रिपोर्ट कहती है कि 2009 तक राज्य खनिज विभाग के पास अपनी ऑडिट शाखा तक नहीं थी. खनन लीज धारकों से ग्रामीण बुनियादी ढांचा विकास शुल्क वसूलने में भारी कोताही बरती गई. उमरिया और शहडोल जिलों में खनन के नाम पर वसूला गया कर सरकारी खाते में जमा ही नहीं किया गया. खनिजों और उपखनिजों की रॉयल्टी वसूलने में भारी खामियों के कारण सरकार को करोड़ों का नुकसान हुआ. खनन क्षेत्र में एक साथ इतनी वित्तीय लापरवाहियां! साफ है कि फायदा सिर्फ खनन माफिया को पहुंचा.

नौकरशाही, जाहिर है, इसका खंडन करेगी. मध्य प्रदेश के खनिज सचिव एस.के. मिश्र-जो कि मुख्यमंत्री दफ्तर में भी सचिव हैं-कहते हैं कि ''एक समय था जब खनिज से राजस्व 800 करोड़ रु. ही मिल पाता था. अब यह 2,500 करोड़ रु. से ज्यादा पहुंच गया है. थोड़ा-बहुत अवैध खनन हो सकता है लेकिन कार्रवाई हमेशा की जाती है.'' उनके मुताबिक, पिछले वित्त वर्ष में जहां सरकार को रेत से 70 करोड़ रु. की रायल्टी मिली थी वहीं चालू वित्त वर्ष में यह आंकड़ा अब तक 102 करोड़ रु. पहुंच गया है. ''राजस्व में यह वृद्धि अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि अवैध खनन पर शिकंजा कसा है.''

कैसा शिकंजा? आइपीएस की हत्या के दो दिन बाद पन्ना जिले में पूर्व डकैत कुबेर सिंह ने अजयगढ़ के एसडीएम नाथूराम गौड़ और अनुविभागीय पुलिस अधिकारी (एसडीओपी) जगन्नाथ सिंह पर उस समय हमला कर दिया, जब वे रेत के अवैध खनन को रोकने की कोशिश कर रहे थे. पिछले वर्ष सतना जिले के उचेहरा और नागौद वन क्षेत्र में अवैध खनन के खिलाफ कार्रवाई करने वाले वनकर्मियों पर जो हमला हुआ उसमें लोक निर्माण मंत्री नागेंद्र सिंह के भतीजे रूपेंद्र सिंह उर्फ बाबा राजा का नाम भी सामने आया.

नागेंद्र सिंह के अलावा मुरैना से भाजपा सांसद नरेंद्र सिंह तोमर का नाम भी अवैध खनन को संरक्षण देने में उछला है. अवैध खनन के खिलाफ पुलिस की हाल ही की कार्रवाई में उनके करीबी भाजपा नेता हमीर सिंह पटेल भी पकड़े गए. पटेल ने जनवरी में खनिज निरीक्षक राजकुमार बरेठा पर उस समय हमला कर दिया था, जब वे पत्थरों से भरी ट्राली जब्त करने की कार्रवाई कर रहे थे. तोमर ने भी माना है कि इलाके में बड़े पैमाने पर रेत और पत्थर की अवैध खुदार्ई हो रही है और इस पर कार्रवार्ई जरूरी है. मुरैना में पांच साल पहले तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी और एसपी हरिसिंह यादव पर भी फायरिंग हुई थी. प्रदेश के जबलपुर से ही सियासत की शुरुआत करने वाले एनडीए संयोजक और जदयू अध्यक्ष शरद यादव तो साफ-साफ आरोप लगाते हैं कि ''मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों के संरक्षण में अवैध खनन चल रहा है.''

ग्वालियर-चंबल अंचल में एक अनुमान के मुताबिक सालाना 2,000 करोड़ रुपए से ज्यादा के सैंडस्टोन और रेत का अवैध खनन हो रहा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यहां की खदानों से हर साल 3.5 लाख घन मीटर पत्थर निकलता है, लेकिन अवैध खनन के चलते इससे ढाई गुना पत्थर (करीब 8 से 9 लाख घन मीटर) निकाला गया है. सरकार को इस पत्थर से मुश्किल से 12 करोड़ रु. बतौर रायल्टी के रूप में मिलते हैं. ग्वालियर के पास घाटीगांव वन क्षेत्र में भी 4,000 से ज्यादा ऐसे पिट्स पाए गए हैं, जिनसे अवैध खनन हुआ है. खनन माफिया की गतिविधियों के चलते घाटीगांव का सोन चिरैया अभयारण्य वीरान हो गया.

कुछ और नमूने देखें. मुरैना के मनोज पाल सिंह की आरटीआइ पर मिली आधिकारिक जानकारी के मुताबिक जबलपुर जिले की सिहोरा तहसील के गांव झींटी में करीब 51 हेक्टेयर पर खनन करने के लिए कटनी के पेसिफिक एक्सपोर्ट्स और नरसिंह लक्ष्मी माइंस, ग्वालियर के मायाराम सिंह तोमर और एक अन्य निवेदक भारद्वाज को खदानें दी गईं. पैसिफिक एक्सपोर्ट्स को अनुबंध के मुताबिक साल भर में करीब 81,000 टन आयरन, ब्लू डस्ट और लैटेराइट आदि खनिज निकालने थे. लेकिन इसने तो पांच महीने में ही धरती से 12 लाख टन खनिज निचोड़ लिया. इतना ही नहीं, उसने आयरन खनिज विशाखापत्तनम के रास्ते चीन तक में बेचा. बाकियों की खदान पर भी मिलीभगत कर पैसिफिक ने ही खुदाई की. लोकायुक्त के पास इसकी शिकायत हुई है. सरकार जांच दल की रिपोर्ट को दबाकर बैठ गई है. इस रिपोर्ट के बाद किसी भी कंपनी के खिलाफ न तो कोई कार्रवाई की गई और न ही खनन पर रोक लगाई गई. कटनी जिले में विजय राघवगढ़ के कांग्रेसी विधायक संजय पाठक पर भी आरोप लगा है कि सिहोरा इलाके में उनकी खनन कंपनियों ने क्षमता से ज्यादा खनन किया. एक अनुमान के मुताबिक लीज समाप्त होने के बाद भी यहां से करीब 50 लाख टन लौह खनिज निकाला गया, जिसकी कीमत करीब 5,000 करोड़ रुपए बैठती है.

जब लूट इस पैमाने पर चल रही हो तो फिर साजिश और गठजोड़ के आरोपों से कोई तबका बाहर कैसे रह सकता है? दिवंगत नरेंद्र कुमार की पत्नी मधुरानी तेवतिया ने इसी ओर इशारा कियाः ''मध्य प्रदेश की आइएएस और आइपीएस एसोसिएशन हमारे साथ अब तक खड़ी नहीं हुईं. क्या ये संगठन सिर्फ चाय पीने और पार्टी करने तक ही सीमित रह गए हैं.'' ध्यान रहे कि यह एक पत्नी का भावुक विलाप भर नहीं क्योंकि मधुरानी खुद आइएएस अफसर हैं. नरेंद्र के पिता और उत्तर प्रदेश पुलिस में इंस्पेक्टर केशव देव भी इसी में जोड़ते हैं, ''आइपीएस अफसर का काम सड़क पर जाकर अवैध कामों को रोकना नहीं होता. थाना प्रभारी उस समय कहां थे? पूरे मामले में मध्य प्रदेश पुलिस का रवैया सहयोग का नहीं है. साजिश साफ नजर आती है.'' देव कहते हैं कि मरने से एक दिन पहले भी उनके बेटे ने राजनैतिक दबाव की बात कही थी.

इस मोर्चे पर कुछ ठोस हो, न हो, सियासत जरूर जमकर हो रही है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की नैया डुबोकर आए मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर माफिया से सांठगांठ का आरोप लगाते हैं. नरेंद्र की हत्या की सीबीआइ जांच के अपनी सरकार के फैसले का जिक्र करते हुए चौहान कहते हैं, ''बहन मधुरानी के साथ मेरी पूरी संवेदना है. जहां तक अवैध खनन का सवाल है तो सरकार पहले ही इस पर सख्ती से कार्रवार्ई कर रही है.'' राज्य सरकार ने मुरैना जिले में जरूर अवैध खनन रोकने के लिए विशेष सशस्त्र बल (एसएएफ) की तीन कंपनियां और करीब तीन सौ जवान भेज दिए हैं. दरअसल मुख्यमंत्री को यह सफाई इसलिए देनी पड़ी क्योंकि राज्य की खदानों पर मुख्यमंत्री सचिवालय का सीधा नियंत्रण है और सचिवालय पर आरोप लग रहे हैं.

विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह मुख्यमंत्री के रिश्तेदारों और खनिज सचिव मिश्र पर सवाल उठाते हैं, ''मिश्र चार साल से इस पद पर हैं और उनके प्रभाव के कारण ही खनिज माफिया के खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं हो पा रही है.'' सिंह चाहते हैं कि हत्या के साथ अवैध खनन की भी सीबीआइ जांच करवाई जाए. मिश्र हालांकि अपने ऊपर लगे आरोपों को राजनैतिक बताते हुए प्रतिक्रिया देने से इनकार करते हैं. ''दरअसल माइनिंग का मतलब ही लोग कालिख से भरा काम समझते हैं. अवैध खनन रोकने के लिए लगातार कार्रवाई हो रही है. चाहे वह सिहोरा का मामला हो या चंबल अंचल में पत्थर का खनन.''

दरअसल, मध्य प्रदेश के सभी पचास जिलों में अवैध खनन हो रहा है. शहडोल और मालवा अंचल भी अवैध खनन से अछूता नहीं है. असल में खनन माफिया की दबंगई अभी पुलिस और प्रशासन पर भारी पड़ रही है. राजनेता बचे हुए हैं. लेकिन सब कुछ इसी तरह चलता रहा तो पहिया पूरा घूमते देर नहीं लगेगी. जिस दिन राजनेता शिकार होने लगे. तब क्या होगा?

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