शायद व्यक्ति के भीतर गुणों के विकास में उसके नाम का भी प्रभाव होता है. इसीलिए मध्य प्रदेश के जबलपुर निवासी एक दंपति ने अपनी बेटी का नामकरण सिस्टर निवेदिता के नाम पर किया. सिस्टर निवेदिता एक अंग्रेज-आयरिश सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षक और स्वामी विवेकानंद की शिष्या थीं. इन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले देशभक्तों की मदद की और मिशन के तौर महिला शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया था.
जबलपुर की यह बेटी निवेदिता आइएएस अफसर बनीं. लॉकडाउन के सन्नाटे के बीच लखनऊ के एनेक्सी भवन के दूसरे तल पर अपने दफ्तर में बैठीं प्रमुख सचिव सचिव, खाद्य एवं आपूर्ति निवेदिता शुक्ला वर्मा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश “कोई भूखा न सोए” को हकीकत में लाने के लिए एक मिशन के तौर पर जुटी हुई हैं.
कोरोना का संक्रमण बढ़ते ही मुख्यमंत्री ने प्रदेश में असहायों को मुफ्त राशन बांटने की घोषणा कर दी थी. अबतक प्रदेश का खाद्य विभाग साढ़े तीन करोड़ राशन कार्डों पर चाढ़े चौदह करोड़ लाभार्थियों को गेहूं दो रुपए किलो और चावल तीन रुपए किलो के सब्सिडाइज्ड रेट पर राशन दे रहा था. प्रदेश की 80 हजार राशन की दुकानों के जरिए यह राशन हर महीने की 01 से 12 तारीख के बीच बांटा जाता है. इनके लिए साढ़े सात लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न का उठान हर महीने करना और इन्हें प्रदेश की कुल 80 हजार राशन की दुकानों के जरिए बांटना एक चुनौती भरा काम रहता है.
खाद्य विभाग ने करीब सभी दुकानों में ईपॉस मशीनें लगा दी थीं जिनसे बॉयोमीट्रिक सिस्टम के जरिए राशन बांटा जा रहा है. मुख्यमंत्री का आदेश मिलते ही निवेदिता ने 19 मार्च को एक आदेश जारी कर दिया कि मनरेगा के जॉब कार्डधारक, श्रम विभाग के पंजीकृत श्रमिक नगर विकास विभाग से भी ऐसे दैनिक वेतन भोगी जिनके पास राशन कार्ड न हों, एक अभियान चलाकर उनके भी कार्ड बनाए जाएं.
लॉकडाउन की घोषणा होते ही बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर भी यूपी पहुंचने लगे थे. ऐसे में मुख्यमंत्री से निर्देश मिलते ही इन प्रवासी मजदूरों के राशन कार्ड बनाने का कार्य भी जुड़ गया. इनमें से जिनके पास भी आधार कार्ड थे उनके राशन कार्ड बनाए गए. कई सारे लोग ऐसे भी थे जिनके पास कोई दस्तावेज मौजूद नहीं था, उन्हें जिलाधिकारी के जरिए मिलने वाली राहत किट दिलवाई गई. दस दिन तक चले अभियान में पूरे प्रदेश में साढ़े पांच लाख लोगों के राशन कार्ड बनाए गए.
लॉकडाउन लागू होने के बाद खाद्य विभाग के सामने सबसे बड़ी चुनौती लोगों तक राशन बांटने की थी. इसी दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना में पांच किलो मुफ्त राशन बांटने की भी घोषणा हो गई. यूपी में साढ़े तीन करोड़ राशन कार्ड धारक हैं और साढ़े चौदह करोड़ लाभार्थियों को महीने में एक बार राशन बंटता था. अब केंद्र सरकार का राशन बांटने के कारण उसी व्यवस्था में महीने में दो बार पूरी प्रक्रिया संपन्न कराने की चुनौती थी.
खाद्य विभाग ने तय किया कि एक से 12 अप्रैल तक राशन कार्ड पर राशन बांटते रहें और इसी दौरान एफसीआइ के गोदाम से केंद्र सरकार के मुफ्त राशन का उठान भी करना शुरू कर दिया जाए. केंद्र सरकार से मिलने वाला पांच किलो चावल महीने की 15 से 26 तारीख तक बांटा जाना था.
दूसरी चुनौती यह थी कि कैसे ईपॉस मशीनों से कैसे गाइडलाइन का पालन करते हुए राशन बांटा जाए? इसके लिए सभी कोटेदारों की मोबाइल के जरिए ट्रेनिंग की गई. कैसे सोशल डिस्टेंसिंग रखना है? दुकान के बाहर साबुन पानी की व्यवस्था हो. हर बार उपयोग करने के बाद ईपॉस मशीन को सेनेटाइजर से साफ किया जाए. चूंकि इस पूरी प्रक्रिया में काफी समय लगना था इसलिए पहली बार सुबह छह बजे से रात नौ बजे तक कोटे की दुकानों से राशन बांटने की व्यवस्था हुई.
राशन बांटने के लिए सभी जिलाधिकारियों को निगरानी करने की जिम्मेदारी दी गई. सुबह छह बजे से ही लाइव डाटा कैप्चर की व्यवस्था की गई. सर्वर को दुरुस्त करने के लिए टेक्टिनकल टीम का अलर्ट पर रखा गया. व्हाट्सएप ग्रुप पर “डिस्ट्रिक्ट सप्लाई ऑफिसर” (डीएसओ) लगातार कोटेदारों की फोटो अपलोड करते रहे और यही क्रम जिलाधिकारी से लेकर शासन के अधिकारियों तक चलता रहा. बहुत सारे जरूरतमंद अंत्योदय कार्ड धारक हैं जो सिंगल यूनिट हैं, दिव्यांगजन और जो नए राशनकार्ड बने हैं इनके लिए अलग से निगरानी की गई.
पहली अप्रैल में तीन करोड़ 23 लाख राशन कार्ड पर राशन बांटा गया. इनमें से चालीस लाख अंत्योदय कार्ड धारक थे जिन्हें मुफ्त राशन मिलना था. ग्राम्य विकास विभाग, श्रम विभाग और नगर विकास विभाग से असहायों की सूची लेकर इन्हें मुफ्त राशन दिया गया. यह मुफ्त राशन कोटेदार के जरिए बांटा गया. इस मुफ्त बांटे गए राशन की दो रुपए प्रति किलो गेहूं और तीन रुपए प्रति किलो चावल के हिसाब से प्रतिपूर्ति खाद्य विभाग ने कोटेदारों को की. इसके लिए विभाग ने कोटेदारों को 64 करोड़ रुपए की प्रतिपूर्ति की.
राशन वितरण में कोई गड़बड़ी न हो इसके लिए खाद्य विभाग पहले से ही सिस्टम मजबूत करने में जुटा हुआ था. एफसीआइ के गोदाम से ब्लाक गोदाम राशन लाने वाली सभी गाड़ियों पर खाद्य विभाग ने पहले से जीपीएस लगा दिया है ताकि हर गाड़ी की निगरानी की जा सके. ब्लाक गोदाम पर यह शिकायत आती थी कि वहां से कोटेदार को कम राशन देते हैं. इसके लिए हर ब्लाक गोदाम पर एक नोडल अधिकारी की तैनाती की गई. इन अधिकारियों को अपने सामने ब्लाक गोदाम से राशन बंटवाने की जिम्मेदारी दी गई.
लॉकडाउन में कई दूसरे राज्यों ने राशन बंटवाने के लिए ईपॉस मशीनों का उपयोग नहीं किया जबकि यूपी में इस बायोमीट्रिक सिस्टम को जारी रखा गया. इससे हर लाभार्थी को मिलने वाले राशन का हिसाब रखने में आसानी हुई. गड़बड़ी की शिकायत मिलने पर लीगल मेट्रोलाजी यानी बाट-माप विभाग की एक घूमंतु टीम के जरिए कोटे की दुकानों की जांच भी करवाई गई. गड़बड़ी करने वाले 752 कोटेदारों को निलंबित किया गया है. चार सौ के खिलाफ एफआइआर भी कराई गई है.
यूपी में 95 प्रतिशत ईपॉस मशीन से बांटा गया. कुछ लोगों के पास आधार नहीं है या फिर जो लोग बहुत बूढ़े हैं, मजदूर हैं जिनका अंगूठा ईपॉस मशीन कैप्चर नहीं कर पाती है ऐसे लोगों को बिना ईपॉस मशीन के राशन बांटने की छूट दी गई. ऐसे लोगों में जिनके पास आधार कार्ड नहीं है उनके किसी दूसरे पहचानपत्र का नंबर ईपॉस मशीन में डालकर उन्हें राशन देने की व्यवस्था की गई. कोटेदारों की करीब 125 दुकानें ऐसी भी हैं जहां नेटवर्क नहीं आता है यहां मैनुअली राशन वितरण कराया गया.
जिन लोगों के अंगूठे नहीं लगते तो वे कोई दूसरा नंबर डालकर राशन ले लेते थे इसमें भी गड़बड़ी की शिकायत आ रही थी. इसमें कोटेदार कई बार फेक आइडी का नंबर डालकर राशन में खेल कर लेते थे. विभाग ने प्रावधान किया कि अब इस तरह से राशन तभी मिलेगा जब लाभार्थी का फोन नंबर भी कैप्चर किया जाए इसके लिए ईपास मशीन के सिस्टम में व्यवस्था की गई है. अगर लाभार्थी के पास मोबाइल फोन नहीं है तो नोडल अफसर या कोटेदार का फोन नंबर रजिस्टर किया जाए. इसका असर यह हुआ कि अंगूठा लगाकर राशन लेने वालों की संख्या बढ़ गई. अब ऐसे लोग जिनका मोबाइल नंबर दर्ज है वे राशन लेने आएंगे तो उनके पास एक ओटीपी आएगा. इसके बाद ही वे कोटे की दुकान से राशन ले पाएंगे.
एक नई व्यवस्था यह भी हुई कि पहले जो नए राशन कार्ड बनते थे तो उनका एलोकेशन सरकार से दो महीने बाद होता था यानी इन पर दो महीने बाद राशन मिलना शुरू होता था. सरकार ने तुरंत राशन देने की व्यवस्था की. असल में प्रदेश में कुल बंटने वाले राशन का करीब 94 प्रतिशत राशन ही बंट पाता है बाकी बच जाता है. ऐसे में बचत वाले राशन को तत्काल नए राशन कार्ड पर मुहैया कराने की व्यवस्था की गई.
सभी जिला पूर्ति अधिकारियों को निवेदिता ने आदेश दिया कि नए राशन कार्ड वाले अंत्योदय कार्ड धारक, दिव्यांगजन को फोन करके बुलाया जाए और जो लोग नहीं आए उनके घर जाकर देखा जाए कि वे क्यों नहीं आए. इस तरह मई में बंटने वाले राशन में साढे़ पांच लाख नए लाभार्थी बढ़कर आठ लाख पर पहुंच गए.
गड़बड़ियों के लिए कुख्यात हो चुके खाद्य विभाग को नए रंग-ढंग में लाने वाली निवेदिता मध्य प्रदेश के जबलपुर की रहने वाली हैं. इसके पिता इंडियन फॉरेस्ट सर्विस में थे. शहडोल से इंटरमीडियट करने के बाद निवेदिता ने जबलपुर के 'होम साइंस कालेज' से ग्रेजुएशन और इंग्लिश लिट्रेचर में एमए किया. इसके बाद होम साइंस कालेज में ही ये टीचर के रूप में नियुक्ति हो गईं.
वर्ष 1991 में निवेदिता भारतीय सिविल सेवा में चयनित हो गईं. इनकी पहली पोस्टिंग ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के तौर पर आगरा की बाह तहसील में हुई. यह इलाका डकैतों के लिए कुख्यात था. ये रामपुर, देहरादून और सहारनपुर में जिलाधिकारी रहीं. निवेदिता मार्च, 1999 से अक्तूबर 2001 के बीच देहरादून में जिलाधिकारी थीं, यही वह समय था जब उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था और देहरादून को इस नए गठित प्रदेश की राजधानी बनाई गई थी. देहरादून को राजधानी के तौर पर विकसित करने का जिम्मा निवेदिता के ऊपर ही आ गया था.
केवल पांच करोड़ रुपए में देहरादून को राजधानी के तौर पर विकसित करने का प्रस्ताव तैयार किया गया. विकास भवन को विधानसभा भवन में तब्दील किया गया. राजकीय इंटरमीडियट कालेज को सचिवालय बनाया गया. सर्किट हाउस राजभवन में बदला गया. निवेदिता के समय ही देहरादून के ऐसे कई भवनों को राज्य सरकार के मुख्यालय के तौर पर स्थापित किया गया.
केंद्रीय प्रतिनियुक्ति में ये सात साल सेंट्रल सेक्रेटेरियट में डायरेक्टर और ज्वाइंट सेक्रेटरी के पद पर रहीं. यूपी वापस आने पर ये प्रमुख सचिव उद्यान के पद पर रहीं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जून 2017 में निवेदिता को प्रमुख सचिव, खाद्य के पद पर तैनात किया. पिछले तीन साल से यह खाद्य विभाग जैसे चुनौतीपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी संभाल रही हैं. लॉकडाउन में कोई भूखा न सोए इसके लिए निवेदिता दिन-रात जाग रही हैं.
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