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अमेरिका का ईरानी ठिकानों पर हमला युद्ध इतिहास में किस बात के लिए याद किया जाएगा?

ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों पर हमले के लिए लगातार 37 घंटों तक बिना रुके उड़ते रहे अमेरिका के बी 2 बॉम्बर और उनकी सुरक्षा के लिए लगातार उनके साथ चलते रहे फाइटर जेट्स

बी2 बॉम्बर (बाएं); ईरान पर हमले का एक वीडियो ग्रैब
अपडेटेड 24 जून , 2025

ईरान और इजरायल-अमेरिका के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंचकर सीज फायर की स्थिति में पहुंच गया. तीनों पक्षों ने बात करके फिलहाल बाकी दुनिया के लिए ये घोषणा की है कि इस ‘युद्ध विराम’ पर तीनों पक्ष सहमत हो गए हैं.

लेकिन कुछ घंटों पहले ईरान ने अमेरिकी हमले के जवाब में अपने एयर डिफेंस को और मजबूत करने की कोशिश शुरू कर दी थी, जबकि अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने चेतावनी दी थी कि अगर ईरान कोई गलत कदम उठाता है तो और सख्त कार्रवाई हो सकती है. कई दिन चले इस युद्ध में कई ऐसे हमले हुए जिन्होंने भविष्य में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय विवादों की नींव और रणनीति तय की है. 

इन्हीं में से एक था 21 जून 2025 को शुरू हुआ अमेरिका का वो बड़ा ऑपरेशन जिसमें ईरान के तीन मुख्य न्यूक्लियर साइट्स—फोर्डो, नातांज और इस्फहान पर हमला बोला गया. एयर बेस से हज़ारों मील दूर हुए इस मिशन में 125 फाइटर जेट्स ने हिस्सा लिया जिसमें 6 B2 स्पिरिट बॉम्बर्स ने सबसे कारगर रोल निभाया. इन बॉम्बर्स ने मिसौरी के व्हाइटमैन एयर फोर्स बेस से उड़ान भरी. साथ में 30 क्रूज मिसाइलें भी दागी गईं, जो पानी के नीचे से चलीं और अंडरग्राउंड न्यूक्लियर प्लांट्स को निशाना बनाया. लेकिन बतौर एक मिलिट्री ऑपरेशन यह सब इतना आसान नहीं था, जितना लगता है. इसलिए इसे विस्तार से और आसान भाषा में समझ लेते हैं कि यह मिशन कैसे चला, क्या खास था इसमें?

भोर में चुपचाप हुई शुरुआत

यह मिशन 21 जून 2025 की सुबह चुपचाप शुरू हुआ जब व्हाइटमैन एयर फोर्स बेस पर B2 स्पिरिट बॉम्बर्स तैयार किए गए. ये प्लेन इतने ताकतवर हैं कि बिना रुके हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर सकते हैं लेकिन इसके लिए हवा में इनकी री-फ्यूलिंग ज़रूरी है. पायलटों की थकान को ध्यान में रखते हुए अमेरिका ने एक रणनीति बनाई. उन्होंने कतर, डिएगो गार्सिया (हिंद महासागर में एक छोटा सा द्वीप) और गुअम जैसे अलाय बेस का इस्तेमाल किया. खास तौर पर डिएगो गार्सिया से B2 को मिडिल ईस्ट, अफ्रीका और इंडो-पैसिफिक तक आसानी से पहुंचाया गया. ये बेस इतने सेफ़ हैं कि दुश्मन को भनक तक नहीं लगी.

हवा और पानी से दोहरा हमला 

B2 स्पिरिट के साथ अरब सागर में अमेरिकी एयरक्राफ्ट कैरियर्स और पनडुब्बियां भी तैनात थीं. इनसे F/A-18 सुपर हॉर्नेट्स और EA-18 ग्रोलर्स ने उड़ान भरी. सुपर हॉर्नेट्स का काम था ईरान के एयर डिफेंस को तोड़ना जबकि ग्रोलर्स ने इलेक्ट्रॉनिक शोर पैदा करके दुश्मन के रडार को गुमराह किया. साथ में KC-135 स्ट्रैटो एयर टैंकर सऊदी अरब के आसमान में मंडराते रहे, जो B2 को बीच हवा में री-फ्यूल कर रहे थे. ये

टैंकर बिना शोर के काम करते हैं लेकिन उनकी सिक्योरिटी के लिए F-18 ग्रोलर्स ने इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग  का सहारा लिया जिससे ईरान की हवाई नजर धोखा खा गई. साथ में पनडुब्बियों से 30 क्रूज मिसाइलें दागी गईं जो पानी के नीचे से सीधे न्यूक्लियर साइट्स पर जाकर गिरीं. हमले के ठीक बाद 23 जून 2025 की सुबह तक ईरान ने अपने सैन्य ठिकानों पर गतिविधि बढ़ा दी. खबरों के मुताबिक, तेहरान ने अपने पुराने F-14 फाइटर जेट्स को फिर से तैयार किया और रूस से अतिरिक्त S-400 डिफेंस सिस्टम मंगवाने की कोशिश में जुट गया. दूसरी ओर अमेरिका ने खाड़ी क्षेत्र में अपने एयरक्राफ्ट कैरियर्स की संख्या बढ़ा दी और पेंटागन ने कहा कि वो “हर हालात से निपटने को तैयार हैं.”

रास्ता मुश्किल लेकिन सटीक

B2 को ईरान की हवा में घुसने के लिए बहुत ऊंचाई पर उड़ना पड़ा. नीचे पहाड़ों और रेगिस्तानों का खुला एयर जोन था जहां छिपने की जगह बहुत कम थी. लेकिन इनकी खास स्टेल्थ तकनीक ने उन्हें रडार से गायब रखा. जब टारगेट- फोर्डो, नतांज और इस्फहान नजदीक आए तो पायलटों को बड़ा फैसला करना था. क्या मिसाइलें दूर से दागी जाएं या बंकर बस्टर बम सीधे गिराए जाएं? आखिरकार GBU57 बंकर बस्टर्स बम का इस्तेमाल हुआ जो 200 फीट तक जमीन में घुस सकता है. ये बम इतना भारी (30,000 पाउंड) है कि B2 बॉम्बर में सिर्फ 2 ही ले जाए जा सकते हैं. इसमें मिलिट्री ग्रेड GPS और चार एक्टिव फिन्स होते हैं जो इसे सटीक निशाने पर ले जाते हैं. ये फिन्स मिसाइल को हवा में ठीक रास्ते पर रखते हैं ताकि बम सही जगह पर गिरे.

ईरान का जवाब

ईरान का एयर डिफेंस भी कमज़ोर नहीं था. उनके M29 और F-14 विमान भले ही पुराने हों लेकिन खतरा बने हुए थे. अगर B2 बॉम्बर इनके हत्थे लग जाता तो मुश्किल हो सकती थी, क्योंकि B2 लड़ाई में माहिर नहीं होते हैं. लेकिन अमेरिका ने EA-18 ग्रोलर्स से रेडियो सिग्नल जाम कर दिए जिससे ईरान के पायलट भटकते रह गए. F-18 सुपर हॉर्नेट्स ने लंबी दूरी की मिसाइलें दागीं जिससे ईरानी जेट पीछे हट गए. ऊपर से डिकॉय ने सर्फेस टू एयर मिसाइल्स (SAM) को बेवकूफ बनाया. इजरायली सेना के अधिकारियों ने मीडिया को बयान दिया है कि जब ईरान ने हताश होकर मिसाइलें दागीं तो वो खाली जगहों पर गिरीं. इसके बाद B2 ने इराक की हवा में जाकर फिर से टैंकरों से फ्यूल लिया.

बंकर बस्टर्स का धमाका

ऐसी मिसाइलें जो अंडरग्राउंड बंकरों को तबाह करती हैं इन्हें ‘बंकर बस्टर्स’ कहा जाता है. सत्तर के दशक में अमेरिका और रूस ने इन पर काम करने की शुरुआत की थी. ये गुज़रे ज़माने की बात हुई जब कोई इमरजेंसी कंडीशन देखते ही प्रधानमंत्री समेत पूरी कैबिनेट को बंकर में शिफ्ट करके सुरक्षित हो जाता था कोई भी देश. अब दुनिया के ज्यादातार देशों के पास ‘बंकर बस्टर्स’ हैं. ईरान और इजरायल के पास भी. सबसे पहले अमेरिका और रूस ने ऐसी मिसाइलें बनानी शुरू कीं जो ज़मीन के कुछ फीट भीतर पेनेट्रेट करके ब्लास्ट होती थीं. करीब पंद्रह वर्षों तक इनकी मार ज़्यादा से ज़्यादा 5 फीट रही.

पिछले पचास वर्षों में हथियार तकनीक जिस तरह से एडवांस हुई, ऐसी बंकर बस्टर मिसाइलें तैयार हैं जो 200 से 220 फीट ज़मीन के भीतर छुपे बंकर को पूरी तरह तबाह कर सकती हैं. इसका अंदाज़ा ऐसे लगाया जाए कि ज़मीन के भीतर अगर 20 फ्लोर की इमारत हो तो उसके बीसवें फ्लोर को भी खत्म किया जा सकता है. अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर जिस सबसे अडवांस बंकर बस्टर बम का इस्तेमाल किया उसे कहते हैं GBU57. ये ज़मीन के भीतर 200 फिट तक छुपे टार्गेट को नेस्तानाबूद करने में सक्षम है.

कैसे करता है ये काम ?

GBU57 का जादू समझते हैं. 
पहला स्टेप: B2 ऊंचाई से बम छोड़ता है.
दूसरा स्टेप: GPS और सेंसर इसका निशाना तय करते हैं. 
तीसरा स्टेप: पीछे लगे फिन्स मिसाइल को हवा में स्थिर रखते हैं.
चौथा स्टेप: 14,000 किलो का वजन 200 फीट तक जमीन में विस्फोट करते हुए घुस जाता है.
पांचवां स्टेप: डबल फ्यूज (G-सेंसिंग और टाइम डिले) इसे तय की गई सही टाइमिंग पर ब्लास्ट करता है. जिससे भूकंप जैसा धमाका होता है. ये बंकरों को अंदर से तोड़ देता है.

निशाना बने फोर्डो, नातांज और इस्फहान

अमेरिका के मुताबिक़ उसका मकसद ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम रोकना था. नातांज में 6 ऊपर वाली इमारतें और 3 अंडरग्राउंड स्ट्रक्चर हैं जहां 50,000 सेंट्रिफ्यूज हो सकते हैं.  अमेरिकी सेना का दावा है कि पनडुब्बियों से दागी गई 30 क्रूज मिसाइलों ने ऊपर के हिस्से को तबाह कर दिया. बिजली गुल हो गई, और सेंट्रिफ्यूज बंद हो गए. ऊपर का पायलट फ्यूल एनरिच्मेंट प्लांट जो 2003 से 60 फीसद तक रिफाइन यूरेनियम बना रहा था पूरी तरह ध्वस्त हो गया. फोर्डो तो 200 फीट नीचे है जिसे तोड़ना मुश्किल था. इस पर कुल मिलाकर बारी-बारी 12 GBU57 बम गिराए गए जिन्होंने गहरे बंकरों को नेस्तनाबूद कर दिया. इस्फहान पर भी हमले हुए, जहां ऊपरी ढांचे को नुकसान पहुंचा.

तैयारी और चुनौतियां क्या थीं?

ये मिशन इतना आसान नहीं था. अमेरिकी सेना की तरफ से मिली जानकारी के मुताबिक B2 को हवा में कई बार ईंधन भरना पड़ा जिसके लिए KC-135 टैंकरों को F-18 की सुरक्षा में रखा गया. ईरान की रडार और मिसाइल साइट्स को चकमा देने के लिए ग्रोलर्स ने इलेक्ट्रॉनिक शोर पैदा किया. पायलटों को ऊंचाई पर उड़ते हुए घंटों अलर्ट रहना पड़ा और हर कदम पर रणनीति बदलनी पड़ी. हमला करने के बाद बिना समय गंवाएं इन बॉम्बर्स ने वापसी तय की जिससे अब तक मिली जानकारी के अनुसार अमेरिका को किसी तरह का ‘एयर लॉस’ नहीं उठाना पड़ा.

फिलहाल तो ईरान और अमेरिका-इजरायल के बीच ‘सीज फायर’ की स्थिति बन गई है. लेकिन ये सीज फायर कितना कारगर होगा ये कहा नहीं जा सकता. 

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