ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी पुलिस के मना करने के कारण कोलकाता के मटियाबुर्ज इलाके में 25 फरवरी को पश्चिम बंगाल में अपनी पहली रैली आयोजित करने से वंचित रह गए. लेकिन इन जैसे अड़ंगों के बावजूद वे अपनी पार्टी की पहचान पूरे भारत में फैलाने के लिए सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रहे हैं. पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव और फरवरी के आखिरी हफ्ते में गुजरात नगर निगम चुनाव में कामयाबी से अपनी मौजूदगी दर्ज कराने से उनके हौसले बुलंद हैं.
एआइएमआइएम ने अहमदाबाद के निकाय चुनाव में खाता खोलने के लिहाज से बेहतर प्रदर्शन किया. पार्टी को सात सीटों पर कामयाबी मिली. चुनावी नतीजों से पता चलता है कि पार्टी के अल्पसंख्यक अधिकारों और अवसरों की बात उठाने का मुस्लिम समुदाय पर असर हुआ है. एआइएमआइएम के फायरब्रांड अध्यक्ष ओवैसी ने प्रचार के वास्ते अहमदाबाद में एक बड़ी सभा को संबोधित भी किया था.
शायद इस आशंका की वजह से कि एआइएमआइएम पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कहीं और बेहतर प्रदर्शन न कर दे उनकी कोलकाता रैली को मंजूरी नहीं दी गई. रैली के पोस्टर चिपका चुकी एआइएमआइएम को इस फैसले से बहुत हैरानी हुई. एआइएमआइएम के राज्य सचिव जमीरुल हसन दावा करते हैं, “हमने 10 दिन पहले अनुमति के लिए आवेदन किया था. हम सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस की इस तरह की चालबाजियों के आगे झुकेंगे नहीं. हम बातचीत करके फिर से नई तारीखों का ऐलान करेंगे.”
कोलकाता पुलिस ने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. टीएमसी ने भी रैली रद्द होने में अपनी किसी भूमिका से पल्ला झाड़ लिया. ओवैसी ने सवाल दागा है, “टीएमसी सांसद संसद के भीतर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संविधान और असहमतियों की बात करते हैं. लेकिन यहां हम उनके दो चेहरे देख रहे हैं-दिल्ली में वे कोई अलग बात करते हैं और बंगाल में उसके ठीक विपरीत. अगर मैं रैली आयोजित करना चाहता हूं तो मुझे मंजूरी क्यों नहीं मिली.” मटियाबुर्ज सीट अल्पसंख्यक दबदबे वाली है और डायमंड हार्बर लोकसभा सीट के तहत आती है जिसका प्रतिनिधित्व टीएमसी सुप्रीमो और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी करते हैं. एआइएमआइएम के पोस्टरों में नारा लिखा हुआ है-‘आवाज उठाने का वक्त आ चुका है’. अपनी पार्टी का बचाव करते हुए टीएमसी सांसद सौगत राय कहते हैं कि एआइएमआइएम की रैली को मंजूरी देने में हमारी कोई भूमिका नहीं है और ये पार्टी भाजपा का ही एक रूप है.
एआइएमआइएम के मुखिया इस सबसे बेफिक्र हैं. अपनी अखिल भारतीय रणनीति और दीर्घकालीन योजना पर वे कहते हैं कि ये आरोप हमारे ऊपर लगातार लग रहा है और इसकी अनदेखी करना ही बेहतर है. मुस्लिम युवाओं को जहां भी रोजगार तथा शिक्षा में अधिकार और अवसर नहीं मिलेंगे उस हर जगह पर एआइएमआइएम जाएगी. उन्होंने घोषणा की कि पार्टी 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जीत की तर्ज पर ही पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ेगी. बिहार में पार्टी ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा, पांच पर जीती और 14.28 प्रतिशत वोट बंटोरा.
पश्चिम बंगाल में ओवैसी फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी से गठबंधन कर सकते हैं जिन्होंने हाल में इंडियन सेक्युलर फ्रंट नामक मोर्चा बनाया है. ओवैसी अपनी पार्टी के लिए पश्चिम बंगाल को काफी मुफीद पाते हैं क्योंकि राज्य की जनसंख्या में मुस्लिमों का हिस्सा करीब 30 प्रतिशत है. विश्लेषक मानते हैं कि एआइएमआइएम का आना सांप्रदायिक प्राथमिकता के साथ बड़े बदलाव का संकेत है. हालांकि बंगाल के 30 प्रतिशत मुस्लिमों में करीब 24 प्रतिशत बंगाली बोलने वाले हैं और कुछ लोगों का मानना है कि ओवैसी के लिए इनके वोट पाना बड़ी चुनौती होगी.
बहरहाल, एआइएमआइएम कर्नाटक के गुलबर्ग में निगम चुनाव लड़ने की रणनीति बना रही है. यहां अप्रैल-मई में चुनाव होगा और यहीं से पार्टी ने अपने गढ़ के बाहर पहली बार जीत का स्वाद चखा था. पार्टी 2023 में उत्तर गुलबर्ग विधानसभा क्षेत्र से इलयास बागबां को चुनाव में उतारेगी. ओवैसी का कहना है कि पूर्व मंत्री कमर उल इस्लाम के इंतकाल के बाद यह स्थान रिक्त हुआ और मजलिस इसे भरेगी.
महत्वपूर्ण यह है कि एआइएमआइएम असम, तमिलनाडु और केरल की चुनावी जंग में शामिल नहीं हैं जहां बगाल के साथ ही चुनाव होने हैं. अभी तक पार्टी के दो विधायक और एक सांसद महाराष्ट्र में हैं. हैदराबाद में जहां से ओवैसी खुद लोकसभा पहुंचे हैं वहां से सात विधायक भी पार्टी के हैं. वे मुस्लिम वोटों की गोलबंदी कर एआइएमआइएम को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाना चाहते हैं.
अनुवादः मनीष दीक्षित
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