अबलावाडी नाम का समूचा गांव दिल दहला देने वाली एक घटना का मूक दर्शक बना रहा. वहां के लोगों ने एक युवती की निर्मम पिटाई और हत्या का कोई विरोध नहीं किया. 22 वर्ष की सुवर्णा को उसके नजदीकी रिश्तेदारों ने उसके प्रेमी की आंखों के सामने पीट-पीटकर मार डाला.
पांच वर्षों से सुवर्णा को चाहने वाला 24 वर्षीय गोविंदराजू असहाय होकर इस दरिंदगी को देखता रहा. हत्यारों ने उसे भी बुरी तरह पीटा और किसी तरह घिसट-घिसटकर निकल जाने भर की इजाजत दी. इस घटना को कर्नाटक में ऑनर किलिंग का पहला मामला बताया जा रहा है.
घटना के दो महीने बाद 5 जनवरी को गोविंदराजू की दहशतजदा मां थोलासम्मा और दो भाभियों-थयम्मा और मंगलागौरी ने 6 नवंबर, 2011 को हुई इस वारदात की चश्मदीद गवाह होने की जानकारी मांड्या जिला पुलिस को दी. मृतका सुवर्णा इलाके की प्रभावशाली ओबीसी वोक्कालिगा जाति की थी. रिश्तेदारों ने उसके पिता देवलाना रामकृष्ण की शह पर बुरी तरह घायल प्रेमिका को उसके प्रेमी की गोशाला की शहतीर से लटकाकर फांसी दे दी. चश्मदीदों के बयान और सिर्फ इंडिया टुडे से हुई गोविंदराजू की बातचीत से स्पष्ट है कि हत्यारों ने युवती की बिरादरी के करीब 300 लोगों और कई दलितों के सामने दरिंदगी का नंगा नाच किया. मगर किसी ने भी रोकने-टोकने की कोशिश नहीं की.
बुरी तरह टूट चुके गोविंदराजू ने किसी गुप्त स्थान से टेलीफोन पर इंडिया टुडे को बताया, ‘अपनी लड़की को एक दलित के साथ बर्दाश्त नहीं कर पाए. हम एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे. साथ-साथ जिंदगी बिताना चाहते थे. उन्होंने सुवर्णा से कहा कि तुम दलित लड़के के साथ शादी करना चाहती हो, हम तुम्हें उसी के घर ले जाकर मारेंगे.’
गोविंदराजू और सुवर्णा को न्याय दिलाने के संघर्ष में जुटे कार्यकर्ता लक्ष्मण चीर्णाहल्ली कहते हैं कि कुछ वोक्कालिगा भी उनका समर्थन कर रहे हैं. वे कहते हैं, ‘लेकिन वोक्कालिगा-प्रभावी जिले में होने वाले दलित विरोधी मामलों में यह सबसे ताजा प्रकरण है.’
अबलावाडी के ज्यादातर वोक्कालिगा सुवर्णा की मौत को आत्महत्या बताते हैं. सुवर्णा के पड़ोस में रहने वाली 40 वर्षीया सावित्री कहती हैं, ‘क्या कोई आदमी खुद अपनी बेटी को मार सकता है? वह भी जब वह इकलौती हो और जिसे उसने फूल की तरह पाला हो?’ मृतका की 22 वर्षीया सहपाठी जयलक्ष्मी कहती है, ‘वह बहुत कमजोर थी. हमेशा पेट दर्द की शिकायत करती थी. उसने खुद ही अपनी जान ले ली. उसके पिता ने उस पर कभी हाथ तक नहीं उठाया. वह उसका कितना ख्याल रखते थे. हम सोचते थे, काश! हमें भी ऐसे ही पिता मिलते.’
अबलावाडी ग्राम पंचायत की 40 वर्षीया कांग्रेसी सदस्य लक्ष्मम्मा कहती हैं, ‘रामकृष्ण हमारे गांव के सयाने हैं और जनता दल सेकुलर (जद-एस)पार्टी से जुड़े हैं. उन्होंने गोविंदराजू के भाई थिम्मप्पा को पंचायत चुनाव में जिताया और देखो उन्हें बदले में क्या मिला.’ एक और पड़ोसी 35 वर्षीया निनगम्मा मानती हैं कि वोक्कालिगाओं से लिए गए 4 लाख रु. के कर्ज से बचने के लिए गोविंदराजू का परिवार यह मामला बना रहा है. वे कहती हैं, ‘ये लोग पैसा बनाने के लिए सुवर्णा की मौत को इस्तेमाल कर रहे हैं.’ अपनी बात के पक्ष में निनगम्मा तर्क देती हैं कि कुछ संगठनों ने गोविंदराजू परिवार के लिए 25 लाख रु. मुआवजे की भी मांग की है.
गोविंदराजू बेहद नाराजगी से इन आरोपों से इनकार करता है. वह कहता है कि 'चरित्रहीन' रामकृष्ण ने एक साल पहले सुवर्णा के 16 वर्षीय भाई सुनील को आत्महत्या के लिए मजबूर किया. उसे संदेह था कि वह किसी और की संतान है. गोविंदराजू के मुताबिक, ‘सुनील की मौत के बाद सुवर्णा ही उनकी चार एकड़ जमीन और गुड़ इकाई की एकमात्र वारिस थी. उसके चचेरे भाइयों की नजर इस संपत्ति पर गड़ी हुई थी. इसलिए उन्होंने सुवर्णा को रास्ते से हटाने के लिए हमारे रिश्ते को बहाना बनाया.’
विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा के गृहनगर मद्दूर के नजदीक पड़ने वाले अबलावाडी गांव में 2,000 से ज्यादा वोक्कालिगा और 'अछूत' माडिगा जाति के लगभग 300 दलित रहते हैं. ये दलित यहां से 45 किमी दूर स्थित कुनिगल से आए हुए 'बाहरी' लोग हैं, जो तीन पीढ़ी पहले इस गांव में आकर बस गए. उनके पास खुद की जमीन नहीं है और वे वोक्कालिगा परिवारों की जमीन में मजदूरी करते हैं.
बेहद नाराजगी के साथ एक वोक्कालिगा ग्रामीण कहता है, ‘वे सब के सब भारी आलसी हैं लेकिन हम उनके खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोल सकते. वे पुलिस में जाकर हमारे खिलाफ झूठी शिकायत कर देंगे और हमें तत्काल एससी-एसटी ऐक्ट के तहत सजा हो जाएगी. वे इस गांव में अल्पसंख्यक जरूर हैं लेकिन उन्हें अपनी ताकत का पूरा एहसास है.’
यह भावना समूचे इलाके में देखी जा सकती है. (सुवर्णा की मौत से दलित आंदोलन भड़क सकता है. इससे वोक्कालिगा राजनीति के इस हृदयस्थल में लंबे समय से खदबदा रहे अंतर-जातीय संघर्ष के भड़कने की आशंका बढ़ गई है.) जिला प्रशासन ने पिछले एक साल में अंतर-जातीय टकराव के मामलों के खतरनाक हद तक बढ़ने की पुष्टि की. इस प्रवृत्ति को दलित वोट गोलबंद करने की कवायद के रूप में भी देखा जा रहा है. अपनी पहचान प्रकट न करने की शर्त पर जिला प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इंडिया टुडे को बताया, ‘फिलहाल, हमने इस आग को भड़काने के लिए जिम्मेदार किसी एक पार्टी की पहचान नहीं की है लेकिन यकीनन ऐसी कोशिशें हो रही है.’
कर्नाटक में 2013 में विधानसभा चुनाव होने हैं. अब सिर्फ एक साल बाकी है. मांड्या जिला और इसके आसपास की वोक्कालिगा पट्टी, जो 224 सीटों वाली विधानसभा में 45 सदस्यों को भेजती है, सभी पार्टियों के भविष्य के लिए खास महत्व रखती है. पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा के नेतृत्व वाली जद-एस और कांग्रेस इस इलाके में परंपरागत प्रतिद्वंद्वी मानी जाती हैं. सत्तासीन भाजपा भी यहां पैठ बनाने में जुटी है तो मायावती की बहुजन समाज पार्टी की भी सुगबुगाहट दिखाई दे रही है.
सुवर्णा की मौत और आनन-फानन में हुए उसके अंतिम संस्कार को 'रहस्यमय आत्महत्या' बताकर रफादफा कर दिया गया. स्थानीय लोग और पुलिस मानती है कि यहां आत्महत्या के मामलों में केस दर्ज किए बिना या पोस्ट मॉर्टम किए बिना मृतक का अंतिम संस्कार कर देने की परिपाटी बन गई है, क्योंकि कोई भी कानूनी पचड़ों में फंसना नहीं चाहता. इस घटना के बाद से गोविंदराजू का परिवार अबलावाडी गांव से कहीं चला गया है. लेकिन उसका परिवार स्थानीय भाजपा नेता कृष्णामूर्ति के समर्थन के दम पर दो महीने पूर्व जो कुछ हुआ, उसकी शिकायत दर्ज कराना चाहता है. यह परिवार अब भी छुपकर रह रहा है.
गोविंदराजू के बड़े भाई थिम्मप्पा ने कई दलित संगठनों के अलावा राज्य मानवाधिकार आयोग का दरवाजा भी खटखटाया है. उसकी दलील है कि राजनैतिक रूप से ताकतवर वोक्कालिगाओं के दबाव में जिला पुलिस इस स्थिति में नहीं है कि मामले की निष्पक्ष जांच कर सके. उसने आयोग से गुजारिश की है कि वह अपनी ओर से स्वतंत्र जांच कराए और मामले को सीबीआइ को सौंपने की सिफारिश करे.
मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एस.आर. नायक ने इंडिया टुडे को बताया, ‘मैंने इन लोगों के आने से पहले ही मीडिया रपटों के आधार पर मामले का स्वतः संज्ञान ले लिया था. मैंने इस बाबत मुख्य सचिव, मांड्या जिला प्रशासन और पुलिस अधीक्षक को नोटिस जारी किए. मैंने क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक से भी बात की और छह सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट देने को कहा है.’
मांड्या के पुलिस अधीक्षक कौशलेंद्र कुमार कहते हैं कि गोविंदराजू के परिवार के आरोपों को देखा जाए तो मामला बनता है. वे बताते हैं, ‘हमने रामकृष्ण सहित ज्यादातर आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है.’
जिला प्रशासन मामले को जल्दी से जल्दी निपटाना चाहता है, क्योंकि कई दलित और वोक्कालिगा संगठन एक दूसरे के खिलाफ धरना-प्रदर्शनों में जुट गए हैं. प्रशासन को मामले के किसी गंभीर टकराव की ओर बढ़ जाने की आशंका है. जिले के उपायुक्त पी.सी. जाफर कहते हैं, ‘हम गांव में सौहार्द वापस लाने के लिए काम कर रहे हैं.’

