आगरा से अलीगढ़ जाने वाले हाइवे पर 25 किलोमीटर चलने पर हाथरस जिले की कोतवाली चंदपा पड़ती है. इस कोतवाली से 200 मीटर पहले दाहिनी ओर जाने वाली छह फीट चौड़ी सड़क को पुलिस ने बेरिकेडिंग लगाकर रोक रखा है. यहां से किसी भी गाड़ी को भीतर जाने की अनुमति नहीं है. इस सड़क पर करीब दो किलोमीटर चलने पर बूलगढ़ी गांव पड़ता है जहां 14 सितंबर को एक वाल्मीकि (दलित) परिवार की 19 वर्षीय युवती के साथ हुई दरिंदगी ने देश-विदेश में हाथरस को चर्चा में ला दिया है. यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने बूलगढ़ी की इस घटना की सीबीआइ जांच की सिफारिश कर दी है. यह पहला मौका है जब हाथरस में किसी घटना की सीबीआइ जांच होगी. पश्चिमी यूपी के जिले आगरा, मथुरा और अलीगढ़ के कुछ इलाकों को काटकर 3 मई 1997 को हाथरस जिले का गठन किया गया था. हाथरस जिला अलीगढ़ मंडल के अंतर्गत आता है. 1,800 वर्ग किलोमीटर में फैला हाथरस जिला सात प्रशासनिक ब्लॉकों हाथरस, मुरसान, सासनी, सिकंदराराऊ, हसायन, सादाबाद और सहपऊ में बंटा हुआ है. हाथरस यूपी का एकमात्र शहर है जिसके नाम से चार रेलवे स्टेशन (हाथरस सिटी, हाथरस किला, हाथरस जंक्शन और हाथरस मेंडू) हैं.
हाथरस की विश्व में पहचान यहां की हींग और रंग गुलाल के लिए है. हाथरस को हींग की मंडी कहा जाता है. यहां हींग की 60 फैक्ट्रियां हैं जिनसे लगभग 70 करोड़ रुपये का वार्षिक कारोबार होता है. हींग के कारोबार ने हाथरस के करीब पंद्रह हजार लोगों को रोजगार दिया है. यहां से तैयार हींग कुवैत, सऊदी अरब, बहरीन आदि देशों में मुख्य रूप से एक्सपोर्ट होती है. इसी तरह यहां बनने वाले रंग गुलाल की देश के अलावा विदेशों में भी बड़ी मांग रहती है. होली के प्रसिद्ध यूपी के ब्रज इलाके में हाथरस के बने गुलाल से ही रंग खेला जाता है. यहां गुलाल बनाने की 20 फैक्ट्रियां हैं. हाथरस में गुलाल का कारोबार 30 करोड़ रुपए सालाना का है. इस कारोबार में पांच हजार लोग जुड़े हुए हैं. हाथरस में मसाले का काम करने वाले व्यवसायी विजय वार्ष्णेय कहते हैं, “हाथरस में पहली बार बूलगढ़ी जैसा मामला सामने आया है. रसनगरी के नाम से प्रसिद्ध हाथरस जिले की छवि इससे धूमिल हुई है.”
हाथरस हिंदी के प्रसिद्ध हास्य कवि 'काका हाथरसी', जिनका असली नाम प्रभुलाल गर्ग था, की जन्मस्थली भी है. इनकी रचनाएं समाज में व्याप्त दोषों, कुरीतियों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक कुशासन की ओर ध्यान आकर्षित करती हैं. हाथरस के एक युवा कवि मनोज चक्रपाणि कहते हैं, “भले ही काका हाथरसी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी हास्य कविताएं, जिन्हें वे 'फुलझडियां' कहा करते थे, सदैव गुदगुदाती रहती हैं. इनकी रचनाओं ने हाथरस को पूरे विश्व में पहचान दिलाई है.” लोक नाट्य की प्राचीन विधा 'स्वांग' भी हाथरस में परवान चढ़ी थी. स्वांग खास किरदार की वीरगाथाओं पर ही गाया जाता है. महिलाओं का अभिनय पुरुष ही करते हैं. कलाकार उच्च स्वर में गायन करते हैं. मुख्य वाद्य यंत्र नगाड़ा होता है. हाथरस के रहने वाले पंडित नथाराम गौड़ ने स्वांग को एक नई पहचान देकर दुनियाभर में अपना डंका बजाया. लोक नाट्य में देश में स्वांग की दो विधाएं हैं. एक कानपुर तो दूसरी हाथरस शैली. कानपुर शैली प्राचीन है. कानपुर के स्वांग स्वांग में फटकेबाजी (द्विअर्थी बातें) होती है, लेकिन हाथरसी स्वांग में इसका कहीं स्थान नहीं है.
देश-दुनिया को सुख और शांति का संदेश देने वाले व समाज सुधारक करपात्री महाराज की हाथरस कर्मस्थली रही है. उन्होंने हाथरस में आगरा रोड स्थित संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना कराई थी. वे दशनामी परंपरा के संन्यासी थे. दीक्षा के उपरान्त उनका नाम 'हरिहरानन्द सरस्वती' था किन्तु वे 'करपात्री' नाम से ही प्रसिद्ध थे, क्योंकि वे अपने अंजलि का उपयोग खाने के बर्तन की तरह करते थे. इसलिए करपात्री (कर= हाथ, पात्र = बर्तन, करपात्री = हाथ ही बर्तन हैं जिसके) नाम से उनकी पहचान भी बन गई थी.
स्वामी विवेकानंद का भी हाथरस से गहरा नाता रहा है. अपनी भारतयात्रा के दौरान उन्होंने वृंदावन से लौटते समय हाथरस में एक वृक्ष के नीचे रात्रि प्रवास किया. हाथरस में उस समय के रेलवे स्टेशन मास्टर सदानंद को अपना पहला शिष्य बनाया था. स्टेशन मास्टर का मूल नाम शरतचंद्र गुप्ता था. सदानंद को शिष्य बनाने से पहले उन्होंने कठिन परीक्षा भी ली. परीक्षा के रूप में स्टेशन मास्टर को अपने ही स्टेशन पर कुलियों से भिक्षा मांगने को कहा. जब सहज भाव से स्टेशन मास्टर ने कुलियों से भिक्षा मांगकर स्वामी जी को दिखाया, तब उन्होंने स्टेशन मास्टर को दीक्षा दी. दीक्षा के बाद स्वामी विवेकानंद ने ही स्टेशन मास्टर का नाम सदानंद रखा. वह सदानंद को साथ लेकर ऋषिकेश गए. 12 जून 1998 को रिलीज हुई चार घंटे की फिल्म 'स्वामी विवेकानंद' में भी हाथरस स्टेशन और यहां के तत्कालीन स्टेशन मास्टर का जिक्र है. इस फिल्म में धार्मिक सीरियल 'श्रीकृष्णा' में कृष्ण की भूमिका निभाने वाले सर्वदमन बनर्जी ने स्वामी विवेकानंद का किरदार निभाया था.
हाथरस का राजनीतिक इतिहास भी बड़ा दिलचस्प है. यह यूपी की उन संसदीय सीटों में से एक है जहां करीब पिछले तीन दशकों से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लोकसभा चुनाव में अजेय बनी हुई है. हाथरस सुरक्षित लोकसभा सीट पर वर्ष 1991 से भाजपा या इसकी सहयोगी का ही कब्जा रहा है. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल की उम्मीदवार सारिका बघेल यहां से विजयी हुई थीं. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में राजवीर सिंह दिलेर भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते थे. हाथरस में तीन विधानसभा क्षेत्र हाथरस (सुरक्षित), सादाबाद और सिकंदराराऊ हैं. इनमें हाथरस और सिकंदराराऊ सीट भाजपा के पास है जबकि सादाबाद विधानसभा क्षेत्र से रामवीर उपाध्याय बसपा के टिकट पर जीते थे जो अब बागी हो गए हैं.
हाथरस जिला इन दिनों महिला पर अपराध को लेकर सुर्खियों में है. बूलगढ़ी में युवती की मौत के सातवें दिन 5 अक्तूबर को यहां के सादाबाद इलाके में रहने वाली एक चार वर्षीय बच्ची ने भी दम तोड़ दिया. बच्ची के साथ उसके रिश्तेदार ने ही रेप किया था. पुलिस विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, हाथरस में अब तक रेप के 21 मामले दर्ज हो चुके हैं. इसके अलावा 26 मामले पॉस्को ऐक्ट के भी दर्ज हुए हैं. व्यस्था पर व्यंग्य करते हुए ही काका हाथरसी ने अपनी कविता 'मूर्खिस्तान जिंदाबाद' में ये लाइनें लिखी थीं:
“स्वतंत्र भारत के बेटे और बेटियों !
माताओं और पिताओं,
आओ, कुछ चमत्कार दिखाओ।
नहीं दिखा सकते ?
तो हमारी हां में हां ही मिलाओ।“
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