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हरियाणा: जो आदेश सरकारी, वही पोशाक हमारी

सरकारी दफ्तरों में 'शालीनता' लाने के लिए हरियाणा के ड्रेस कोड संबंधी निर्देश 1980 के दशक के खालिस्तानी चरमपंथियों की चुभती याद दिलाते हैं.

अपडेटेड 18 मई , 2012

सरकारी दफ्तरों में 'शालीनता' लाने के लिए हरियाणा के ड्रेस कोड संबंधी निर्देश 1980 के दशक के खालिस्तानी चरमपंथियों की चुभती याद दिलाते हैं.

हरियाणा के महिला और बाल विभाग ने जो निर्देश जारी किए हैं उनका निशाना मुख्यतः महिलाएं ही हैं. सरकारी पत्रक में दफ्तरों में जींस, टी-शर्ट और अन्य पश्चिमी परिधान पहनकर आने वाले कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई किए जाने की चेतावनी भी दी गई है. विभिन्न जिलों में विभाग के सभी कार्यालयों के अलावा यह पत्रक फील्ड कर्मचारियों को भी भेजा गया है. यह पश्चिमी पहनावों को 'भद्दा' कहकर खारिज करता है. पत्रक अविश्वसनीय तरीके से कहता है कि जींस और टी-शर्ट अशालीन पहनावा होने के साथ ही, ''सरकारी नियमों का उल्लंघन भी करते हैं.''

इसके मुताबिक, हरियाणवी लोगों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त और 'शालीन' परिधान के तौर पर ''महिलाओं के लिए साड़ी, सलवार-कमीज और दुपट्टा तथा पुरुषों के लिए पैंट-शर्ट'' की सिफारिश की गई है.

परिधान संहिता को थोपे जाने का महिला कर्मचारियों ने जबरदस्त विरोध किया है. हरियाणा की समेकित बाल विकास योजना (आइसीडीएस) निरीक्षक कल्याण संघ की रोहतक स्थित तेज-तर्रार अध्यक्ष, सविता मलिक ने इस निर्देश को ''महिलाओं की बुनियादी स्वतंत्रताओं पर हमला'' करार दिया है.

आइसीडीएस और आइसीपीएस (समेकित बाल संरक्षण योजना) में संलग्न करीब 55,000 कर्मचारियों और फील्ड स्टाफ के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली मलिक ने कहा कि जब अधिसंख्य कर्मचारी अपने आप ही पारंपरिक परिधान पहनते हैं, ऐसे में परिधान संहिता जारी किए जाने की जरूरत उनकी समझ से बाहर है.

वे कहती हैं, ''हाल में कॉलेज से पढ़ाई करके निकली और आइसीपीएस में नियुक्त चंद लड़कियां जींस और शर्ट पहनती हैं. हम उनके साथ मजबूती से खड़े हैं क्योंकि हमारा मानना है कि एक कामकाजी महिला को यह अधिकार है कि वह अपनी सहूलियत के हिसाब से कुछ भी पहन सकती है.''

हरियाणा की समाज कल्याण मंत्री गीता भुक्कल ने महिला एवं बाल विभाग के इस विवादास्पद निर्देश का बचाव किया. लेकिन उन्होंने यह माना कि परिधानों की शालीनता के संबंध में जारी पत्रक की भाषा गड़बड़ थी और जींस व टी-शर्ट उतने ही 'शालीन' हो सकते हैं जितने कि साड़ी या सलवार-कमीज.

मंत्री ने हालांकि इस बात की पैरवी की कि ''जिस तरीके से जजों, वकीलों, डॉक्टरों और नर्सों के लिए कार्यस्थल के परिधान तय हैं, वैसे ही दूसरे कामों में लगे लोगों के लिए किसी किस्म की परिधान संहिता होनी ही चाहिए और उन्हें इसका अनुपालन करना चाहिए.''

भुक्कल ने इंडिया टुडे को बताया कि विभाग का यह पत्रक वापस लिया जा रहा है और अगर जरूरत पड़ी तो इसे दोबारा तैयार कर के फिर से जारी किया जाएगा, जिससे ''किसी की भावना को ठेस न पहुंचे.'' उन्होंने कहा, ''ऐसे निर्देश सिर्फ सुझाव होते हैं और इन्हें इसी रूप में लिया जाना चाहिए.''

इस दौरान मलिक समेत महिला एवं बाल विभाग में उनकी साथी अपनी कमर कसे बैठी हैं. उन्होंने कहा, ''हम हरियाणवी महिलाओं को परिधान संहिता में बांधे जाने के किसी भी कदम का विरोध करेंगे. इस तरह की चीज का एक ऐसे राज्‍य में बेहद प्रतिकूल असर होगा जो बेहद खराब लिंगानुपात को दुरुस्त करने की लड़ाई लड़ रहा है.'' क्या मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा सुन रहे हैं?

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