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देश के आधे डॉक्टर सिर्फ चार राज्यों में

हाल में बिहार में चमकी बुखार से बच्चों की मौत के बाद स्वास्थ्य सेवाओं पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गए हैं. पर हैरतअंगेज तथ्य है कि चार राज्यों में ही देश के आधे से अधिक डॉक्टर हैं. लेकिन, बिहार में एलोपैथी के महज 40 हजार, होम्योपैथी-यूनानी-आयुर्वेद के 1.36 लाख डॉक्टर हैं. 

फोटो सौजन्यः इंडिया टुडे
फोटो सौजन्यः इंडिया टुडे

एलोपैथी के डॉक्टरों में से करीब 46 फीसदी या 5.3 लाख डॉक्टर सिर्फ चार राज्यों में रजिस्टर्ड हैं. 31 जनवरी, 2019 तक के आंकड़ों के मुताबिक, देश में एलोपैथिक डॉक्टरों की संख्या 11.57 लाख है. जिन चार राज्यों में देश के आधे डॉक्टर रजिस्टर्ड हैं वे हैं-आंध्र प्रदेश (1,00,587), कर्नाटक (1,22,875), महाराष्ट्र (1,73,384) और तमिलनाडु (1,33,918). ये जानकारी सरकार ने दी है और माना है कि देश में डॉक्टरों की संख्या विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से कहीं कम है. 

लेकिन 1.36 लाख आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और यूनानी डॉक्टर बिहार में रजिस्टर्ड हैं जबकि यहां से रजिस्टर्ड एलोपैथिक डॉक्टरों की संख्या 40 हजार से कुछ ज्यादा है. सांसद सुशील कुमार सिंह के देश में डॉक्टरों की कमी से संबंधित एक सवाल के जवाब में स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने यह लिखित जानकारी संसद में दी है. 

सरकार ने माना है कि 31 जनवरी तक देश में राज्य चिकित्सा परिषदों और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) में पंजीकृत डॉक्टरों की संख्या 11,57,771 है. लेकिन अनुमान है कि इनमें से 80 फीसदी ही चिकित्सा कार्य के लिए उपलब्ध होते हैं. ये अनुमान एमसीआइ ने भी जाहिर किया था. इसके अलावा देश में 7.88 फीसदी आयुर्वेदिक, यूनानी और होम्योपैथी के डॉक्टर भी हैं जिनमें से 6.30 लाख ही काम के लिए उपलब्ध होते हैं. देश में डॉक्टरों की कमी की बात सरकार भी मानती है. 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, डॉक्टरों और आबादी का अनुपात 1:1000 होना चाहिए पर हमारे देश में 1.35 अरब आबादी मानते हुए ये 1:1457 के स्तर पर है. तिस पर भी एकेडमी ऑफ फैमिली फिजीशियंस ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट डॉ. रमन कुमार कहते हैं, चार राज्यों में इतने डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन मेडिकल शिक्षा के बाजारीकरण का एक नमूना है. महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मेडिकल कॉलेजों में में तीन चौथाई सीटें हैं. रमन कुमार कहते हैं, देश के आधे से ज्यादा मेडिकल कॉलेज प्राइवेट हैं. पांडिचेरी जैसे छोटे से शहरनुमा राज्य में भी मेडिकल कॉलेजों की संख्या नौ हैं. 

देश में चिकित्सा शिक्षा की स्थिति बड़ी अजीबोगरीब है. मेडिकल कॉलेज खुलवाने के लिए राज्य सरकार मंजूरी देती है. इसे कोई फंडिंग नहीं होती है. बिहार और यूपी में आबादी के लिहाज से मेडिकल सीटें भी काफी कम रही हैं. बिहार में मौजूदा कॉलेजों में सीटें काफी कम हैं. 

भारत में समस्या डॉक्टरों की कमी से ज्यादा एमबीबीएस डॉक्टरों की सही तैनाती और अवसरों की उपलब्धता यानी कुल मिलाकर प्रबंधन करने से जुड़ी है. जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ. के.के. अग्रवाल कहते हैं, पीजी परीक्षा में डेढ़ लाख लोग शामिल होते हैं और एक लाख लोग फेल होते हैं. जिनको पीजी नहीं मिलता वो अगले साल की तैयारी करते हैं. ये एमबीबीएस डॉक्टर इलाज के लिए उपलब्ध नहीं रहते. उनको अच्छे पैसे की नौकरी मिलेगी तो वे गांव में भी भी चले जाएंगे. 

दिल्ली में रेजिडेंट डॉक्टर को 60 से 80 हजार रुपए मिलते हैं लेकिन यूपी-बिहार के गांव में 20 हजार रु. में ये डॉक्टर काम करते हैं. देश में डॉक्टरों की कमी से ज्यादा उनकी सही तैनाती और उनके लिए ज्यादा अवसर बनाने की है. सरकारी डॉक्टरों की संख्या देश में उपलब्ध डॉक्टरों की संख्या का दस फीसदी के आसपास है. चिकित्सा सेक्टर में पूरी तरह बदलाव की जरूरत है. सालों फाइल दबाने की सरकारी आदतें बदले बगैर गाड़ी पटरी पर नहीं आ सकती. एमसीआइ के ढांचे में भी बदलाव की जरूरत है. 

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