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गोल्ड मेडलिस्ट दलित छात्र को सपा लोहिया वाहिनी की कमान

‘मोदी वापस जाओ’ का नारा लगाने वाले ‘गोल्ड मेडलिस्ट’ दलित छात्र को सपा लोहिया वाहिनी की कमान

फोटोः आशीष मिश्र
फोटोः आशीष मिश्र
अपडेटेड 7 जनवरी , 2020

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 जनवरी, 2016 को लखनऊ के बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के छठे दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे. विश्वविद्यालय में सभागार में जैसे नरेंद्र मोदी भाषण देने के लिए मंच पर रखे विशेष पोडियम पर पहुंचे दर्शकों के बीच से दो छात्र खड़े होकर ‘रोहित हम शर्मिंदा हैं, द्रोणाचार्य जिंदा है.’, ‘मोदी वापस जाओ. जैसे नारे लगाने लगे. ये दोनों एलएलएम के पूर्व छात्र रामकरन ‘निर्मल’ और अमरेंद्र आर्य थे. 

रामकरन को तो मोदी के हाथों की एलएलएम का गोल्डमेडल भी मिलना था. 

अचानक शुरू हुई नारेबाजी से पूरे सभागार में मौजूद सुरक्षाकर्मियों के बीच हडक़ंप मच गया. सुरक्षाकर्मियों ने इन दोनों छात्रों को पकडक़र लखनऊ पुलिस को सौंप दिया. पुलिस ने इन दोनों छात्रों का शांति भंग में चालान कर दिया. एलएलएम में गोल्ड मेडल पाने वाले इसी दलित छात्र रामकरन को अब समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ‘उत्तर प्रदेश समाजवादी लोहिया वाहिनी’ का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर युवाओं खासकर दलितों के बीच पार्टी की पकड़ मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंप दी है.

कौशांबी के चरवां गांव के रहने वाले 35 वर्षीय रामकरन ‘निर्मल’ दलित की धोबी उपजाति से संबंध रखते हैं. गांव के प्राइमरी स्कूल से ही प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के दौरान इनमें एक मेधावी छात्र के लक्षण दिखने लगे थे. वर्ष 2009 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से लॉ पाठ्ïयक्रम अच्छे अंकों में उत्तीर्ण करने के बाद रामकरन ने वर्ष 2013 में लखनऊ के बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय में एलएलएम की प्रवेश परीक्षा में चौथी रैंक हासिल की थी. 

वर्ष 2015 में इन्होंनें एलएलएम में गोल्ड मेडल हासिल किया और इसके बाद वे जज बनने की हसरत पाले पीसीएस-जे की तैयारी करने दिल्ली पहुंच गए. हैदराबाद विश्वविद्यालय, तेलंगाना में दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों के बीच जाति और लिंग भेदभाव के विरोध में दिल्ली में हुए कई विरोध प्रदर्शनों में राम करन ने हिस्सा लिया और जेल गए. 

यह चर्चा में तब आए जब इन्होंने बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध किया. रामकरन कहते हैं ‘मेरा कोई राजनीतिक विरोध नहीं बल्कि सामाजिक विरोध था. प्रधानमंत्री मोदी दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के मुद्ïदे पर कुछ नहीं बोल रहे थे.’ इसके बाद रामकरन को देश भर के शिक्षण संस्थाओं में जाति और लिंग भेदभाव पर बोलने के लिए बुलाया जाने लगा.

मार्च, 2017 में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी. दो महीने बाद सहारनपुर में हुए जातीय संघर्ष के बाद रामकरन ने कई लोगों के साथ लखनऊ में विधानभवन का घेराव किया. पुलिस ने इनके साथ 22 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इस घटना के बाद यह सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के संपर्क में आए. 

अखिलेश के कहने पर रामकरन ने सपा की सदस्यता ली. सपा ने इन्हें अपने एससी-एसटी प्रकोष्ठ की कार्यकारिणी में बतौर सदस्य जगह दी. इसके बाद वे आगे की पढ़ाई करने के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पीएचडी में दाखिला हो गया. यहां इन्होंने जज बनने के लिए होने वाली पीसीएस-जे परीक्षा में गड़बडिय़ों के खिलाफ आवाज उठानी शुरू की. 

रामकरन ने पीसीएस-जे की चयन परीक्षा में केवल अंग्रेजी भाषा को रखे जाने के विरोध में आंदोलन शुरू किया. रामकरन बताते हैं ‘हर राज्य में पीएसएस-जे की परीक्षा में वहां की स्थानीय भाषा से जुड़ा एक प्रश्नपत्र शामिल किया गया है लेकिन यूपी में ऐसा नहीं है. केवल अंग्रेजी भाषा रखे जाने के कारण पीसीएस-जे परीक्षा में हिंदी भाषी क्षेत्र के छात्र ज्यादा नहीं सेलेक्ट हो पाते हैं. इससे गरीब छात्र नहीं चयनित हो पाते हैं. हमारी मांग थी कि 200 अंकों के अंग्रेजी भाषा के  प्रश्नपत्र की बजाय 100-100 अंकों के दो प्रश्नपत्र क्रमश: अंग्रेजी और हिंदी भाषा के होने चाहिए.’ 

इसके अलावा इनकी मांग थी पीसीएस-जे परीक्षा में चार बार ही शामिल होने की बाध्यता को भी खत्म किया जाए. 

इस मांग को लेकर रामकरन के नेतृत्व में छात्रों के एक दल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक समेत भाजपा सरकार के कई मंत्रियों और अधिकारियों से मुलाकात की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. हालांकि इस मुद्दे को लेकर रामकरन ने प्रयागराज में उत्तर प्रदेश संघ लोकसेवा आयोग के दफ्तर के बाहर भी कई बार प्रदर्शन किया. इसके बाद यह लगातार छात्रवृत्ति समेत कई अन्य मुद्दों पर लगातार प्रदर्शन करते रहे. 

अब अखिलेश यादव ने रामकरन को लोहिया वाहिनी की कमान सौंप कर दलितों के साथ सामान्य युवाओं के बीच पार्टी की पकड़ मजबूत करने का जिम्मा सौंपा है. 

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