भारत वादों और उम्मीदों की भूमि है जिसे एक सांख्यिकीय अजूबा भी कहा जा सकता है. हम 134 करोड़ से अधिक की आबादी के साथ करीब तीन खरब डालर की अर्थव्यवस्था, 150 करोड़ बैंक खाते, सूचीबद्ध कंपनियों का 150 लाख करोड़ रुपए का मार्केट कैप है लेकिन डीमैट खाते सिर्फ 3.5 करोड़ हैं. जीडीपी वृद्धि में विभिन्न क्षेत्र योगदान दे रहे हैं. घरेलू व विदेशी प्रतिभागियों का मजबूत पूंजी प्रवाह लार्जकैप इंडेक्स को उच्चतम स्तर पर बनाए हुए है. विश्व बैंक के विकास सूचकांक में मार्केट कैप और जीडीपी का अनुपात उस देश के वित्तीय क्षेत्र के मूल्यांकन का मुख्य मापदंड होता है. सिंगापुर, अमेरिका, कनाडा, स्विट्जरलैंड, मलयेशिया और जापान जैसे देशों की तरह भारत का मार्केट कैप और जीडीपी का अनुपात 100 के आसपास है. यह आंकड़ा हमें दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के समक्ष खड़ा करता है. दूसरी ओर पूंजी बाजार में भाग लेने वाली आबादी महज आठ फीसद है जबकि विकसित देशों में इक्विटी और इससे जुड़े विकल्पों में 35 से 40 फीसद आबादी निवेश करती है. इस मामले में भारत काफी पीछे है. उम्मीद थी कि इस बार के आम बजट में सरकार कुछ नीतिगत पहल करेगी लेकिन निवेशकों को लेकर जो प्रावधान किए हैं उससे बाजार सदमे में है.
देश की बड़ी आबादी में अचल संपत्ति में निवेश को वरीयता, निवेश योग्य अधिशेष की कमी जैसे कारकों की वजह से इक्विटी मार्केट में भागीदारी निचले स्तर पर बनी हुई है. इसके अलावा बाजार में उतार-चढ़ाव, वित्तीय जागरूकता की कमी और सरकारी प्रोत्साहन का अभाव भी इसका प्रमुख कारक हैं. राहत की बात यह है कि अन्य एसेट क्लास में कमजोर रिटर्न और नोटबंदी के कारण भारी मात्रा में घर में रखी नकदी शेयर बाजार में निवेश की गई. बाजार नियामक, उद्योग संघों, मीडिया, फंड हाउस जैसे भागीदार और ब्रोकिंग फर्मो के साझा प्रयासों से देश में इक्विटी कल्चर को समृद्ध करने में मदद मिली है. हालांकि घर की कुल बचत का इक्विटी मार्केट में निवेश अब भी पांच फीसद पर टिका हुआ है जो अन्य उभरते बाजारों की 10 से 15 फीसद के दायरे की तुलना में बहुत कम है. जाहिर यहां इक्विटी कल्चर के विकास के लिए भारी गुंजाइश है.
यदि आईपीओ में खुदरा निवेशकों के लिए मूल्य में आकषर्क छूट दी जाए तो बाजार में इस श्रेणी की भागीदारी को बढ़ाया जा सकता है. बाजार में खुदरा निवेशकों की मानसिकता समय-समय पर बदलती रहती है. वह एकमुश्त निवेश के बजाय नियमित अंतराल पर एसआईपी के जरिए पैसा लगाते हैं जिससे एफआईआई की निकासी के दौरान बाजार की अस्थिरता को थामने में मदद मिलती है. तकनीक नवाचार, निवेशक जागरूकता और शिक्षा, नए उत्पादों का विकास और डेरिवेटिव बाजार की वृद्धि के लिए स्टाक एक्सचेंजों द्वारा किए गए प्रयास भी बाजार सहभागियों, वाल्यूम, मार्केट शेयर और आकार बढ़ाने में महती भूमिका निभा रहे हैं. ब्रोकरों द्वारा नई-नई प्रौद्योगिक का उपयोग भी नए निवेशकों को बाजार की ओर आकर्षित कर रहा है. इन निवेशकों को ब्रोकिंग चार्ज में छूट से इक्विटी कल्चर का प्रचार-प्रसार हो रहा है.
दरअसल, इक्विटी मार्केट वित्त और निवेश का गंभीर व्यवसाय है इसलिए वित्त मंत्रालय को केंद्रीय बजट तैयार करने से पहले सभी प्रमुख बिंदुओं पर विचार करना चाहिए. वित्तीय बाजार के खिलाड़ियों के अलावा और इक्विटी कल्चर के विकास व रखरखाव में सरकार की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है. बड़े फंड मैनेजरों, एफआईआई और एचएनआई जैसे उद्योग के बड़े खिलाड़ियों से मिलने के बाद सरकार को यह आभास होता है कि वित्तीय बाजारों में भारी मुनाफा कमाया जा रहा है लेकिन जमीनी हकीकत पूरी तरह से अलग है. बजट में सख्त प्रावधानों और एलटीसीजी टैक्स में राहत न मिलने से मिड और स्मालकैप शेयर पस्त होकर जमीन पर आ गए हैं. इससे अधिकांश खुदरा निवेशकों को भारी नुकसान पहुंचा है.
सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि शेयर बाजार अर्थव्यवस्था की सेहत का पैमाना होता है. यह कंपनियों के लिए पूंजी जुटाने का प्रमुख स्रेत है. सरकार एलटीसीजी, लाभांश कर, बायबैक और इक्विटी म्यूचुअल फंड पर दोहरे कराधान से मोटा राजस्व कमा रही है. हाल के बजट में सरकार ने ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत एफपीआई पर भारी शुल्क लगया है. इसी वजह से शेयर बाजार में भारी बिकवाली का दौर चल रहा है. बजट के दिन से अब तक विदेशी निवेशक करीब 10,000 करोड़ रुपए की निकासी कर चुके हैं जबकि इस शुल्क वृद्धि से सरकार को कोई बड़ा लाभ नहीं होगा. इसके विपरीत इक्विटी मार्केट में निवेशकों की कड़ी मेहनत के छह लाख करोड़ रुपए डूब चुके हैं. ट्रस्टों के रूप में पंजीकृत एफपीआई के मामले में ट्रस्टों को कंपनी के रूप में परिवर्तित होने के लिए सरकार को एक साल की छूट अथवा विशेष विंडो का प्रावधान करना चाहिए ताकि विदेशी निवेशकों के रुख में बदलाव आ सके. इस पहल से दलाल पथ को खून-खराबे से बचाया जा सकता है. इस मामले में वित्त मंत्री स्पष्टीकरण देना चाहिए था लेकिन इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की गई.
मौजूदा आर्थिक परिदृश्य में सरकार को मांग और खपत बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन पैकेज या कुछ तात्कालिक नीतिगत उपाय करने की जरूरत है जिससे रोजगार पैदा हों, प्रति व्यक्ति आय बढ़े और लोगों के पास निवेश योग्य बचत बढ़े. निवेश योग्य ऊंची बचत और लंबी अवधि के लिए मजबूत पूंजी प्रवाह शेयर बाजार की दक्षता बढ़ाता है, अस्थिरता को घटाता है और निवेशकों के विास में वृद्धि करता है. ऐसे में सरकार को कानून में लचीलापल लाकर कर में कटौती और छूट के लिए विशेष प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि दीर्घकालिक इक्विटी निवेश को बढ़ावा मिले. सरकार का चालू वित्त वर्ष में सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य है. हालांकि मौजूदा स्थिति में इसे प्राप्त करना टेढ़ी खीर है इसलिए इक्विटी कल्चर को बढ़ावा देना समय की दरकार है. बजट में ईएलएसएस की तरह सीपीएसई ईटीएफ के लिए कर लाभ का प्रस्ताव इक्विटी कल्चर को बढ़ा सकता है लेकिन 80सी में निवेश के कई विकल्प होने की वजह से इस पहल का खास लाभ नहीं मिलेगा.
राहत की बात यह है कि खुदरा निवेशकों की गाढ़ी कमाई अब इक्विटी बाजार में आने लगी है. ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया और इससे आने वाले समय में इक्विटी कल्चर और ज्यादा समृद्ध होने की संभावना है. सरकार का दायित्व है कि वह खुदरा निवेशकों के विास को बनाए रखे. अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति पर वित्त मंत्रालय की लंबी चुप्पी पूंजी बाजारों के संकट को बढ़ा रही है. प्रारंभिक सुस्ती के बाद मोदी 2.0 सरकार को अब ‘परफार्म, रिफार्म और ट्रांसफार्म’ की राह पर चलकर देश को फिर से ऊंची विकास दर की राह पर लाना चाहिए जिसकी लंबे समय से प्रतीक्षा है. मोदी 2.0 सरकार को चुनावी मोड से बाहर आने के लिए पर्याप्त समय है. उसे क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस से सत्ता हथियाने के बजाय भारत को चीन की तुलना में ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में सारी ऊर्चा केंद्रित करनी चाहिए. इस पहल से अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध का भारत बड़ा लाभ उठा सकता है. अर्थव्यवस्था में मजबूत वृद्धि के साथ निवेशकों के अनुकूल नीतियां समय की जरूरत है.
राजीव सिंह कार्वी स्टाक ब्रोकिंग में सीईओ हैं.
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